07-10-2012, 09:51 PM | #1 |
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जीवन की राह प्रभु की ओर
बड़े शहरो को जोड़ने वाली हाईवे में दो सड़के होती है | एक आने की और एक जाने की | आमने सामने की दिशा से आने जाने वाले वाहन अपने मार्ग पर चलते हैं | बीच में हर १५ - २० किलोमीटर पर हाईवे की दोनों सड़को के बीच एक कट आता है जहाँ से आप अपने वाहन को मोड़कर दिशा बदल सकते हैं | ऐसे ही मानव जीवन में भी दो दिशाये हैं | एक माया की दिशा और दूसरी प्रभु की दिशा | दोनों दिशाये एक दूसरे से विपरीत है ( जैसे हाईवे पर आने जाने वाली दिशाये एक दूसरे के विपरीत होती है, यानी एक दिशा से वाहन आते हैं और उससे उलटी दिशा में वाहन जाते हैं | ) माया की दिशा चकाचौंध वाली है, जगमगाती है जैसे बड़े शहर आने पर हाईवे रौशनी से जगमगा उठती है | माया की दिशा सभी के लिए बड़ी सुलभ और माया की राह सबके लिए बड़ी आसान और आरामदायक है | आकर्षित करने हेतु तीनों गुण - जगमगाहट, सुलभता और आरामदायक - हमें माया के मार्ग में फसाने हेतु मौजूद हैं | पर इस माया के मार्ग पर चलते रहने से मार्ग की समाप्ति पर हम जिस मुकाम पर पहुचाते हैं वह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण, भयानक और कष्टदायक होता है | प्रभु के मार्ग में आकर्षित करने हेतु कोई चकाचौंध नहीं है और मार्ग भी सुलभ नहीं, कठिन है | पर मार्ग की समाप्ति पर भगवत सानिध्य, भगवत प्रेम और परमानन्द ( आनंद की परम पराकाष्ठा ) है | माया के मार्ग में सुख मिल सकता है पर इस मार्ग में आनंद है ही नहीं, पर प्रभु के मार्ग से पहुचने पर आनंद और परमानन्द के अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं | हर मनुष्य के जीवनकाल में दो-तीन बार मार्ग बदलने का मौका जरुर आता है, ठीक वैसे ही जैसे हाईवे पर चल रहे वाहन को दिशा बदलने हेतु दोनों सड़को के बीच कट आता है | यह मार्ग बदलने के मौको को प्रस्तुत करने हेतु जीवन में कोई ऐसा वाक्या / ऐसी घटना घटती है जैसे कोई व्यक्तिगत हानी, शारीरिक कष्ट, व्यापारिक नुकसान इत्यादि इत्यादि जिससे की मायारूपी जीवन में लिप्त उस मनुष्य का मायारूपी जीवन से क्षणभर की लिए मोहभंग होता है और वह प्रभु कृपा से प्रभु की तरफ आकर्षित होता है | कभी अपनों से वियोग, कभी अपनों द्वारा अपमान इत्यादि कई परिस्थितियां प्रभु प्रेरणा से हमारे जीवन में उपस्थित होती हैं और हमारा माया से मोहभंग कराती हैं | पर यह मोहभंग क्षणभंगुर होता है | पर प्रभु ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इस कारण मनुष्य से अपेक्षा होती है कि ऐसे मौको को हाईवे के सड़क कट की तरह समझे और अपनी जीवनरूपी गाड़ी को घुमाकर " माया के मार्ग " से " प्रभु मार्ग " की तरफ मोड़ दे | जीवन में ऐसे मौको को कभी चुकना नहीं चहिये | जैसे हाईवे पर चल रही एक गाड़ी जिसमे इंधन बहुत कम बचा हो और इंधन भरने का पम्प उलटी दिशा में नजर आ रहा है, ऐसे में अगर गाड़ीवाला हाईवे के सड़क कट पर गाड़ी मोड़ना भूल जाये तो अगला सड़क कट उसे नसीब नहीं होगा (क्योंकि वह १५ - २० किलोमीटर आगे है, तब तक गाड़ी का तेल खत्म होकर गाड़ी रुक जाएगी ) | ऐसे ही एक मानव जिसकी जीवनलीला कब खत्म हो जाये इसका उसे पता नहीं, अगर वह " प्रभु मार्ग " में मुड़ने का मौका चुक गया तो अगला मौका उसे जीवन में कब नसीब होगा यह पता नहीं और तब तक उसके जीवन की गाड़ी रुक जाएगी (यानी शरीर शांत हो जायेगा ) | राजा परीक्षित शाप मिलाने के प्रश्चात ७ दिवस के लिए निश्चिंत थे क्योंकि उनकी मृत्यु ७ दिन बाद निश्चित थी - हमारी मृत्यु भी निश्चित है, पर कब निश्चित है, इसका हमें भान नहीं इसलिए हम अगले पल के लिए भी निश्चिंत नहीं हैं | इसलिए जैसे प्रथम उपलब्ध कट पर ही गाड़ी मोड़ लेना समझदारी है, वैसे ही पहले उपलब्ध मौके पर " माया मार्ग " त्यागकर " प्रभु मार्ग " की तरफ मुड़ना सबसे बड़ी समझदारी है | जीवन की दिशा बदलने की यह मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी समझदारी भी प्रभुकृपा के कारण ही मनानी चाहिये ( यानी मेरे ऊपर मेरे प्रभु ने कृपादृष्टी डाली और मार्ग बदलने का अवसर मेरे जीवन में उपस्थित हुआ ) | मेरे प्रभु की पहली कृपा मनानी चाहिये कि - प्रभुमार्ग पर चलने का अवसर मेरे जीवन में आया | मेरे प्रभु की दूसरी कृपा मनानी चाहिये कि - उस अवसर को मेरी बुद्धि ने प्रभु प्रेरणा से खोया / गवाया नहीं | मायारूपी भवर में फसे मनुष्य को प्रभु से सदा सच्ची प्रार्थना करते रहना चाहिये कि यह दोनों प्रभुकृपा उसके जीवन में भी हो | |
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