17-06-2013, 05:38 PM | #1 |
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मनोरम कहानियां
प्राचीन काल में किसी नगर में अहमद नाम का एक धनी व्यक्ति अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। एक रात आकाश में बदली नहीं थी और तारे बहुत अधिक थे। वे लोग अपने घर के आंगन में लेटे हुए थे। आकाश बड़ा सुंदर दिखाई दे रहा था और वह भोर तक जागना और तारों को निहारना चाहता था। वह व्यक्ति सोच में खोया हुआ था कि उसने एक आवाज़ सुनी। पहले तो उसे लगा कि उसे भ्रम हो रहा है किंतु कुछ ही क्षणों के पश्चात उसे पुनः आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान दिया तो पता चला कि आवाज़ छत से आ रही थी। उसे विश्वास हो गया कि कुछ लोग छत पर एक दूसरे से बातें कर रहे हैं। उसने कान लगा कर सुनना चाहा कि क्या बातें हो रही हैं तो उसे पता चला कि चोरों का सरदार, अपने साथियों को चोरी की योजना सुना रहा था। वह कह रहा था कि ये तीन लोग हैं, एक बच्चा है और दो बड़े। हम बड़ी सरलता से घर में घुस कर जो चाहे ले जा सकते हैं। हममें से दो लोग, नीचे दरवाज़े के निकट खड़े हो कर गली का ध्यान रखेंगे। हममें से एक छत पर रहेगा और ऊपर का ध्यान रखेगा। मैं कमरे के भीतर जाऊंगा और सामान समेट कर लाऊंगा। बस इस बात का ध्यान रहे कि थोड़ी सी भी आवाज़ न हो। घर के मालिक ने चोरों की सारी बातें सुन ली थीं और उसे पता चल गया था कि चार लोग उसके घर में चोरी के लिए आए हैं जबकि वह अकेला है। उसे यह डर था कि यदि वह चिल्लाएगा तो चोर कहीं उसकी पत्नी और बच्चे को क्षति न पहुंचा दें। उसने सोचा कि चोरों के कुछ करने से पहले ही उसे कुछ न कुछ करना होगा। उसके मन में एक युक्ति आई। उसने धीरे से अपनी पत्नी को पुकारा। उसकी पत्नी ने पूछा कि क्या हुआ? समय क्या हुआ है? उसने कहा, कुछ नहीं, डरो नहीं, कुछ लोग छत पर हैं। पत्नी डर के मारे कांपने लगी और चिल्ला उठी, चोर! मदद करो! हमारी मदद करो! पति ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया और कहा, श्श्श! चुप रहो, डरो नहीं, बस मेरी बात सुनो। पत्नी ने कनखियों से छत की ओर देखा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया। पति ने कहा कि वे लोग छज्जे पर हैं, न वे हमें देख सकते हैं और न हम उन्हें देख सकते हैं। सुनो, मेरे मन में एक युक्ति है, तुम ऊंची आवाज़ से, इस प्रकार से कि चोर भी सुन लें, मुझ से कुछ प्रश्न पूछो। जैसे यह कि इतना धन और इतनी संपत्ति मैंने किस प्रकार एकत्रित की है। उसकी पत्नी ने भय से कांपते हुए, उसकी बात स्वीकार कर ली और ऊंची आवाज? में कहा कि अहमद! वर्षों से हम एक साथ जीवन बिता रहे हैं, आरंभ में हमारा जीवन अच्छा नहीं था और हमारे पास आज जितने पैसे नहीं थे। मैं यह जानना चाहता हूं कि इतना धन और इतनी संपत्ति तुम कहां से लाए हो? पति ने भी इतनी ऊंची आवाज़ में चोर सुन लें, कहा कि मुझ से यह प्रश्न मत पूछो क्योंकि मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता। पत्नी ने कहा कि क्यों नही दे सकते, मैं तुम्हारी पत्नी हूं। यदि मुझे नहीं पता होना चाहिए तो किसे पता होना चाहिए? पति ने कहा अभी रहने दो मैं किसी और समय तुम्हें बता दूंगा, मुझे भय है कि कहीं कोई हमारी आवाज़ सुन रहा हो और उसे मेरे रहस्य का पता चल जाए। पत्नी ने कहा, रहस्य? कैसा रहस्य? यदि यह बात है और तुम्हारे जीवन में कोई रहस्य है तो तुम्हें मुझे तुरंत बताना होगा। पति ने कहा कि ठीक है बताता हूं किंतु शांत रहो। यह धन दौलत और संपत्ति जो तुम देख रही हो यह मैंने चोरी से एकत्रित की है। मेरे कार्य का रहस्य यह था कि जब मैं चांदनी रात में किसी धनी व्यक्ति के घर की छत पर चोरी के लिए जाता था तो सात बार शोलम, शोलम शब्द कहता था। उसके बाद बिना किसी समस्या के मैं घर में घुस जाता था और कोई भी मुझे नहीं देख पाता था और मैं कमरे में घुस कर जो भी वस्तु चाहता था उठा कर ले आता था। उस समय में पुनः सात बार शोलम शोलम कहता था और उसी स्थान से छत पर कूद जाया करता था। इस जादुई मंत्र से कोई भी मेरे आने जाने के बारे में जान नहीं पाता था और मैं बड़ी सरलता से जहां चाहता था, चला जाता था और चोरी कर लेता था। अब तो तुम मेरे रहस्य से अवगत हो गई और तुम्हें शांति मिल गई होगी, अब सो जाओ, आधी रात भी बीत चुकी है।दोनों ने सोने का ढोंग किया, पति चोरों की ओर से चौकन्ना था जबकि पत्नी डरी और सहमी हुई थी। चोरों का सरदार उनकी बातें सुनकर बहुत ख़ुश हुआ। उसने छत पर प्रतीक्षा करने वाले चोर से कहा कि तुम भी नीचे जाओ और उन दोनों के साथ गली का ध्यान रखो। अब मैं वह मंत्र पढ़ कर अदृश्य हो जाऊंगा और कमरे से जो चाहूंगा उठा लूंगा। चोरों के सरदार ने सात बार शोलम शोलम कहा और यह सोच कर कि कोई भी उसे देख नहीं पा रहा है, बड़ी तेज़ी के साथ बंद द्वार की ओर बढ़ा। द्वार तेज़ आवाज़ के साथ खुला और चोर अपना संतुलन बनाए नहीं रख पाया तथा सीढ़ियों से गिरता हुआ आंगन में पहुंच गया। घर के मालिक ने, जो इसी अवसर की प्रतीक्षा में था, अपनी लाठी उठाई और उसकी पिटाई आरंभ कर दी। चोर को इस बात की तनिक भी अपेक्षा नहीं था, वह चिल्लाने लगा। गली में मौजूद तीन चोरों ने जब अपने सरदार के चिल्लाने की आवाज़ सुनी तो भाग खड़े हुए। चोरों के सरदार का पूरा शरीर मार खा खा कर नीला पड़ गया था। उसने घर के मालिक से गिड़गिड़ा कर निवेदन किया कि वह उसे अब और न मारे। घर के मालिक ने अपनी लाठी रोक ली और उससे पूछा कि तुम कौन हो और इस समय मेरे घर में क्या लेने आए हो? चोर ने कराहते हुए कहा कि मैं वही मूर्ख हूं जिसने तुम्हारी बातों पर विश्वास कर लिया जिसके बाद मेरे सिर यह मुसीबत आ गई। घर के मालिक ने जो अत्यधिक क्रोध में था, कहा कि मैंने वर्षों तक कार्य और परिश्रम किया है और तुम अपराधी चोर एक ही रात में मेरी सारी धन संपत्ति ले जाने के लिए आए थे। घर के मालिक के चिल्लाने की आवाज़ सुन कर पड़ोसी जाग गए और उन्होंने कोतवाल को इसकी सूचना दी। कोतवाल ने आ कर चोर को पकड़ लिया और सब लोग अपने अपने घर चले गए। Last edited by aspundir; 17-06-2013 at 05:52 PM. |
17-06-2013, 05:52 PM | #2 |
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Re: मनोरम कहानियां
कहावत ख़िर्स रा बे आहनगरी वा दाशते अंदजब - किसी अक्षम व मूर्ख व्यक्ति को कोई महत्वपूर्ण कार्य दिया जाता है तो फ़ारसी भाषा में कहा जाता है कि ख़िर्स रा बे आहनगरी वा दाशते अंद अर्थात भालू को लोहार का काम करने पर विवश कर दिया गया है।
आइये अब इस कहावत से संबंधित कहानी सुनते हैं।कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक लोहार था जो अपनी दुकान पर अकेले ही काम किया करता था। उसके पास काम बहुत अधिक था किंतु कोई भी उसका चेला बनने के लिए तैयार नहीं होता था। लोहार का काम बड़ा कठिन काम था, विशेष कर जब गर्मी पड़ती थी तो भट्टी में और पिघले हुए लोहे के साथ काम करना हर किसी के बस की बात नहीं थी। लोहार इस बात के लिए भी तैयार था कि जो उसका चेला बनेगा उसे वह दो तीन गुना अधिक वेतन देगा किंतु फिर भी कोई उसका चेला बनने को तैयार नहीं हुआ।एक दिन वह लोहार एक पेड़ के नीचे लेटा हुआ था कि उसे एक भालू दिखाई दिया। भालू को देखते ही उसके मन में एक युक्ति आई और उसने अपने आपसे कहा कि अब जबकि कोई मेरा चेला बनने के लिए तैयार नहीं है तो यदि मैं इस मोटे ताज़े भालू को अपने साथ नगर लेकर जाऊं और इसे अपना चेला बनने पर विवश कर दूं तो कैसा रहे? लोहार ने यह योजना बनाई और एक रस्सी भालू के गले में डाली और उसे अपने साथ नगर ले गया। उसने भूखे भालू को खाना दिया और उसे सीधे अपनी दुकान में ले गया। उस दिन के बाद से वह लोहार उस भालू के सामने अपना काम करता और प्रयास करता कि हथोड़ा चलाना और लोहे को कूटना उसे सिखा दे। वह जितना भी प्रयास करता उसे परिणाम प्राप्त नहीं होता और धीरे धीरे भालू की ओर से वह निराश होने लगा। अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसके पड़ोसी और नगर के लोग समझ गए थे कि लोहार, एक भालू को अपना काम सिखाना चाहता है और वे उसका परिहास करते थे। इससे उसके दुखों में एक और दुख की वृद्धि होती जाती थी। उसके मित्र भी उसे समझाते थे कि भालू कहीं लोहार का काम सीख सकता है। लोहार, लोगों के ताने सुन सुन कर और भालू की मंदबुद्धि से तंग आ चुका था, अपनी दुकान, भालू, नगर और लोगों को छोड़ कर भाग जाना चाहता था किंतु उसने अचानक ही निर्णय किया कि वह अपनी शैली को बदलेगा।अगले दिन वह एक भेड़ और मुर्ग़ा लेकर अपनी दुकान में पहुंचा और उसने उन दोनों को भालू के पास बांध दिया। पहले दिन उसने मुर्ग़े को बहुत दाना दिया और ऊंची आवाज़ से कहा कि अच्छी तरह से खा लो कि कल तुम्हें लोहार का काम करना है। मुर्ग़े ने वह सारे दाने तुरंत खा लिए। अगले दिन लोहार ने मुर्ग़े को कुछ और दाने दिए और कहा कि यह हथोड़ी लो और काम करो किंतु मुर्ग़े ने बिना कोई ध्यान दिए वो सारे दाने खा लिए और चल पड़ा। लोहार ने यह दर्शाया कि उसे इससे बहुत क्रोध आया है और उसने भालू और भेड़ के सामने मुर्ग़े का सिर काट दिया, उसके परों को उखाड़ा और उसे भट्टी में भून कर खा गया। फिर उसने कहा कि जो भी मेरी बात नहीं मानेगा उसका यही अंजाम करूंगा। अगले दिन उसने ढेर सारी घास भेड़ के सामने रखी, फिर अपनी हथोड़ी उसकी ओर बढ़ाई और कहा कि लो आज तुम्हारी बारी है, हथोड़ी लो और मेरी सहायता करो। भेड़ को मनुष्य की भाषा तो आती नहीं थी, वह थोड़ा सा मिमियाई और घास खाने लगी। लोहार ने भालू के सामने भेड़ा का सिर काटा, उसकी खाल उतारी और भट्टी में उसे भून कर खाने लगा। अगले दिन उसने भालू के सामने थोड़ा सा खाना रखा और कहा कि जब खा चुको तो हथोड़ी उठा कर मेरी सहायता करो।भालू ने जल्दी जल्दी अपना खाना खाया और लोहार के कहने से पहले ही हथोड़ी उठा कर उसके साथ खड़ा हो गया। लोहार ने भट्टी से पिघला हुआ लोहा निकाला और उसे कूटने लगा। भालू, भी अपनी जान के भय से पिघले हुए लोहे पर हथोड़ी चलाने लगा और लोहे को सीधा करने लगा। उसका काम लोहार की आशा से भी अधिक अच्छा था। उसके बाद वे सभी लोग जो भालू से सहायता लेने के प्रयास के कारण लोहार का परिहास करते थे, उसकी दुकान के सामने से गुज़रते थे और भालू को लोहार का काम करते हुए देखते थे। उसके बाद से जब कभी कोई महत्वपूर्ण काम किसी मूर्ख अथवा अक्षम व्यक्ति के हवाले किया जाता है तो कहते हैं, ख़िर्स रा बे आहनगरी वा दाश्ते अंद। |
22-06-2013, 10:26 PM | #3 |
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Re: मनोरम कहानियां
सम्मोहन एवं बुद्धिमत्ता
पुराने समय की बात है। एक माली रहता था जो सुगंधित व सुदंर फ़ुलवाड़ियों व क्यारियों की बहुत अच्छे ढंग से देखभाल करता था। वृद्ध होने के बावजूद वह प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व बाग़ में टहलता और ताज़ा हवा का आनंद लेता। वह फूल पौधों को देखता और उन्हें सूंघा करता था। इसलिए सदैव प्रफुल्लित रहता था। यही कारण था कि मित्र उसे प्रफुल्लित वृद्ध कहते थे। उसका भी अन्य लोगों की भांति यह विश्वास था कि जो व्यक्ति भोर के समय उठे और कुछ देर फूलों के पास रहे और घास पर चले तो कभी भी बूढ़ा नहीं होगा और सदैव प्रफुल्लित रहेगा। माली ने अपने उपवन में नाना प्रकार के फूल लगा रखे थे और उनमें सबसे अधिक उसे लाल रंग का गुलाब पसंद था जो दिखने में भी सुंदर और सबसे अधिक सुगंधित होता है। वह हर दिन फूल और पौधों को देखता और एक एक फूल को सूंघता और स्वयं से कहताः बुलबुल यदि लाल गुलाब पर सम्मोहित होते हैं तो स्वाभाविक बात है। लाल गुलाब जीवन को आनंद देता है और इससे मन व आत्मा को शांति मिलती है। एक दिन माली सदैव की भांति सुर्योदय से पूर्व बाग़ में टहलते हुए अपनी पसंद वाले लाल गुलाब तक पहुंचा। उसने देखा कि गुलाब की टहनी पर बैठा एक बुलबुल गुलाब की पंखुड़ियों को एक-एक कर नोच रहा है। बुलबुल अपने सिर को पंखुड़ियों में छिपाकर चहक रहा था। वह इस प्रकार देख रहा था मानो फूल के पास रह कर प्रफुल्लता का आभास कर रहा हो। बुलबुल चहक रहा था और पंखुड़ियों को एक एक कर नोच रहा था यहां तक कि पूरे फूल से उसने पंखुड़ियां नोच डालीं। वृद्ध माली थोड़ी देर खड़ा यह दृष्य देखता रहा। फूलों के निकट बुलबुल को प्रसन्नचित पाकर स्वंय भी प्रफुल्लित था। किन्तु फूल के पास बिखरी पंखुड़ियों के कारण दुखी था। थोड़ी देर के पश्चात बुलबुल ने जब यह समझ लिया कि माली उसे देख रहा था, फुर से उड़ गया। दूसरे दिन माली ने फिर यही दृष्य देखा। उसने देखा कि बुलबुल पंखुड़ियों को नोच रहा है, चहक रहा है और जैसे ही उसे देखा, देखते ही उड़ गया। माली अपने मनपसंद फूलों की यह दुर्गत देख कर दुखी हुआ और स्वयं से कहने लगा कि बुलबुल को लाल गुलाब पर मोहित होने का अधिकार है किन्तु फूल, देखने और सूंघने के लिए होता है न कि नोचने के लिए। यह न्याय नहीं है। मैंने इन फूलों के लिए बहुत प्रयास किए हैं। बुलबुल इसे क्यों नष्ट कर रहा है? तीसरे दिन जब माली ने यह देखा कि बुलबुल चहक-चहक कर ज़मीन पर गिरी हुई पंखुड़ियों से बात कर रहा है तो वह क्रोधित हो उठा और कहाः जो बुलबुल अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करे उसका दण्ड पिंजरा है। उसने लाल गुलाब की झाड़ में जाल बिछाकर बुलबुल को पकड़ लिया और पिंजरे में बंद कर दिया और कहाः तुमने अपनी स्वतंत्रता के महत्व को नहीं समझा। अब पिंजरे में रहोगे तो पंखुड़ियों को नोचने का परिणाम समझ में आएगा। बुलबुल ने पिंजरे में बंदी बनाए जाने पर विरोध जताया और कहाः हे प्रिय मित्र हम और तुम दोनों ही लाल गुलाब पर मोहित हैं। तुम फूलों की सिंचाई करके मुझे प्रफुल्लित करते हो और इसके बदले में मेरे चहकने से आनंदित होते हो। मैं भी तुम्हारी भांति स्वतंत्र होना चाहता हूं और बाग़ का चक्कर लगाना चाहता हूं। तुमने किस तर्क के आधार पर मुझे बंदी बनाया है। यदि मेरी चहचहाहट सुनना चाहते हो तो यह जान लो कि तुम्हारा बाग़ मेरे लिए घोसले के समान है मैं उसमें दिन रात चहकूंगा। यदि और किसी कारण से मुझे बंदी बनाया है तो कृपा करके मुझे बताओ। माली ने उत्तर दियाः जहां तक आवाज़ और चहचहाहट का संबंध है मैं इस संदर्भ में तुमसे सहमत हूं। किन्तु तुमने मेरे प्रिय फूलों को क्षति पहुंचाकर मेरा चैन छीन लिया है। स्वतंत्र अवस्था में तुम चहचहाते समय अपना नियंत्रण खो देते हो, मेरे फूलों को नोच डालते हो। यह दण्ड तुम्हारे ग़लत कार्य के कारण है ताकि दूसरे इससे पाठ लें। बुलबुल ने कहाः हे निर्दयी व्यक्ति! तुम मुझे बंदी बना कर मेरे मन और आत्मा को आघात पहुंचा रहे हो और दण्ड की बात कर रहे हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारा पाप अधिक है। क्योंकि तूने मेरे मन को आहत किया है जबकि मैंने केवल एक फूल को नोचा है। बुलबुल की बातों का माली के मन पर प्रभाव पड़ा। वह पक्षी की बातों से इतना प्रसन्न हुआ कि उसे स्वतंत्र कर दिया। बुलबुल उड़ कर लाल गुलाब की टहनी पर बैठ गया और वृद्ध व्यक्ति को संबोधित करके उसने कहाः तुमने मेरे साथ उपकार किया मैं इसका पारितोषिक देना चाहता हूं। जहां तुम खड़े हो वहीं ज़मीन के नीचे सोने के सिक्कों से भरा एक बर्तन गड़ा है। उसे निकाल कर मौज उड़ाओ। माली ने ज़मीन को खोदा तो सिक्कों से भरा बर्तन देखकर उसने बुलबुल से कहाः मुझे आश्चर्य इस बात पर है कि तूने भूमिगत बर्तन को तो देख लिया किन्तु उस जाल को न देख सके जिसे मैंने बिछाया था। बुलबुल ने कहा इसका दो कारण हैः बुद्धिमत्ता के बावजूद इस बात की संभावना रहती है कि एक जीव अपने भाग्य के कारण किसी समस्या में घिर जाए। दूसरे यह कि मुझे स्वर्ण से प्रेम नहीं है इसलिए दृष्टि पड़ने के बावजूद इसे महत्व नहीं देता किन्तु चूंकि लाल गुलाब से मुझे प्रेम है और इस प्रेम के कारण मैं उस पर इतना मोहित हो उठा कि मेरी समस्त इंद्रियां लाल गुलाब की ओर केन्द्रित हो गईं और मैं तेरा जाल न देख पाया। जो भी चीज़ अपनी सीमा को नहीं पहचानती उसे कष्ट पहुंचता है यहां तक कि सीमा से अधिक प्रेम का भी यही परिणाम होता है। बुलबुल यह कह कर फुर से उड़ गया ताकि फूलों के सौन्दर्य से आनंदित हो। |
22-06-2013, 10:29 PM | #4 |
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Re: मनोरम कहानियां
बुद्धिमान खरगोश, मूर्ख हाथी
प्राचीन समय की बात है एक जंगल में ठण्डे एवं स्वच्छ जल का एक तालाब था। उस तालाब के आस पास कुछ ख़रगोश भी रहते थे। जब भी ख़रगोश प्यासे होते उसी तालाब से प्यास बुझाते थे। यहां तक कि एक दिन हाथियों का एक झुंड उस जंगल में आ पहुंचा। हाथी भी हर दिन उसी तालाब का पानी पीने लगे। ख़रगोशों को हाथियों का आना अच्छा नहीं लगा क्योंकि अब वे अपनी इच्छानुसार जब चाहें पानी नहीं पी सकते थे। ख़रगोश जब भी तालाब के पास जाते उन्हें कुछ हाथी उसके पास अवश्य मिलते थे इसलिए ख़रगोश तालाब के पास जाने से हिचकिचाते थे। इसके अतिरिक्त हाथी उस तालाब को गंदा भी करते थे। एक दिन सब ख़रगोशों ने इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए आपस में बातचीत की। एक वृद्ध और बुद्धिमान ख़रगोश ने जो अपनी बुद्धिमानी के लिए ख़रगोशों के बीच विख्यात था, कहाः मैंने समाधान ढूंढ लिया है। शीघ्र ही ऐसा क़दम उठाउंगा कि हाथी अब तालाब के निकट भी नहीं फटकेंगे। अन्य ख़रगोशों ने आश्चर्य से पूछाः वह कैसे? तुम जैसे वृद्ध ख़रगोश से क्या संभव है? क्या तुम उन शक्तिशाली हाथियों से लड़ सकते हो और उन्हें तालाब से दूर कर सकते हो? वृद्ध ख़रगोश ने कहाः मेरे पास एक युक्ति है। शीघ्र ही तुम सब को मेरी युक्ति पता चल जाएगी। मैं आज रात पहाड़ पर जाउंगा और हाथियों से बातचीत करूंगा। मुझे आशा है कि हाथी मेरी बातों को मान लेंगे और यहां से चले जाएंगे। अन्य ख़रगोशों को जो वृद्ध ख़रगोश की बुद्धिमत्ता से अवगत थे, इस बात पर विश्वास हो गया कि निरर्थक बातें न करने वाले वृद्ध ख़रगोश ने अवश्य कोई युक्ति ढूंढ निकाली है और शीघ्र वह हम सब को इस संकट से निकाल लेगा। उस रात चौदहवीं का चांद अपनी चमक बिखेर रहा था। वह बुद्धिमान ख़रगोश पहाड़ पर गया और ऊंची आवाज़ में गुहार लगाने लगा। हाथी ख़रगोश की गुहार को ध्यान से सुनने लगे। वृद्ध ख़रगोश ने कहाः हे हाथियो! सुनो! जान लो कि मैं चंद्रमा का दूत हूं और उसकी ओर से तुमसे बात कर रहा हूं। चंद्रमा ने आदेश दिया है कि किसी भी हाथी को तालाब के निकट होने की भी अनुमति नहीं है। क्योंकि तालाब पर ख़रगोशों का अधिकार है। चंद्रमा भी ख़रगोशों के साथ है। मैं उसका दूत हूं और उसका संदेश तुम लोगों तक पहुंचा रहा हूं। तालाब पर चंद्रमा और ख़रगोश का अधिकार है। आज के बाद तालाब के निकट भी न जाना। हे हाथियो! ध्यान से सुन लो यदि तालाब के निकट हुए तो चंद्रमा तुम्हें अंधा कर देगा। मेरी बात को बकवास न समझो मेरी बात की वास्तविकता को समझने के लिए आज रात पानी पीने के लिए तालाब के पास जाओ जब तुम तालाब में देखोगे तो तुम्हें पता चल जाएगा कि चंद्रमा कितना क्रोधित है। फिर ख़रगोश ने हाथियों के सरदार को संबोधित करते हुए कहाः मैं जो कह रहा हूँ वह तुम्हारे हित में है। बेहतर होगा कि अपने साथियों को इकटठा करो और यहाँ से निकल जाओ। यदि अपने झुंड के साथ यहाँ से नहीं गए तो स्वंय भुगतोगे तब हमसे यह न कहना कि पहले से तुम्हें क्यों नहीं सूचित किया। वृद्ध ख़रगोश अपनी बात कहने के पश्चात, पहाड़ से उतरा और अपने साथियों के पास पहुंचा और उनसे कहाः अब बैठ कर अपनी युक्ति का परिणाम देखते हैं। प्रार्थना करो कि हाथियों ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया हो। हाथी पानी पीने के लिए सदैव दिन में तालाब के पास जाते थे और उस समय तक कोई भी हाथी पानी पीने के लिए रात में नहीं गया था। न केवल हाथी बल्कि ख़रगोश भी रात में पानी पीने के लिए सोते के निकट नहीं जाते थे। हाथियों ने वृद्ध ख़रगोश की बात पर तनिक विचार किया। एक हाथी ने कहाः यह वृद्ध व मूर्ख ख़रगोश बकवास कर रहा है। दूसरे हाथी ने कहाः कैसे पता कि सही नहीं कहा होगा? हाथियों के सरदार ने कहाः संभव है चंद्रमा ने ही ऐसा कहा हो। चलो आज रात तालाब के निकट चल कर देखते हैं कि ख़रगोश की बात कितनी सही है? सभी हाथी तालाब की ओर चल पड़े। हाथियों के सरदारों ने कहाः इस बात की वास्तविकता को परखने के लिए मैं स्वंय तालाब के पास जा रहा हूँ तुम सब यहीं रूको। मैं आकर बताउंगा कि ख़रगोश की बात सही है या ग़लत। हाथियों का सरदार सोते के निकट पहुंचा। अचानक उसकी दृष्टि तालाब के पानी पर पड़ी। उसने आश्चर्य से देखा कि चांद का चित्र पानी पर उभरा है। हाथियों के सरदार ने अपने मन में कहाः यहाँ तक तो ख़रगोश की बात सही थी। अब तालाब का पानी पीकर देखूँ ताकि पता चल जाए कि ख़रगोश की बात सही है या ग़लत। हाथी के सरदार ने अपना सूढ़ पानी में डाला। जैसे ही उसका सूढ़ पानी में गया, पानी में लहरें उठीं और पानी के ऊपर चांद के दिखाई देने वाले चित्र में कंपन्न दिखाई दिया। हाथी ने इससे समझा कि चंद्रमा क्रोधित हो गया है और इसी क्रोध से वह कांप रहा है। स्वंय से कहने लगाः ख़रगोश सत्य कहता है। यहाँ से निकल जाने में ही भलाई है अन्यथा संभव है कि चंद्रमा हमें अंधा कर दे। अब मेरी आंखे भी कमज़ोर हो चुकी हैं और चंद्रमा को धुंधला और कांपते हुए देख रहा हूँ। भोला हाथी यह नहीं समझ सका कि सूढ़ पानी में डालने से लहरें पैदा हुई जिसके कारण चंद्रमा में कंपन्न दिखाई दे रहा है। वह यह नहीं समझ सका कि पैर को पानी में डालने से, कीचड़ उभरा है और उसके कारण पानी गदला हो गया है इसलिए पानी में चंद्रमा का चित्र धुंधला दिखाई दे रहा है। हाथियों का सरदार अपने मित्रों की ओर वापस लौट गया और उनसे कहने लगाः ख़रगोश की बात सही थी। बेहतर है आज की रात अभी यहाँ से किसी दूसरे तालाब की ओर चल दें। |
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