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27-10-2013, 11:49 AM | #1 |
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आखरी काम...........................
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27-10-2013, 11:53 AM | #2 |
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Re: आखरी काम...........................
आखिरी काम ! एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे , पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब"- मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें । “ ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये । ” “जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा ? “मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” , ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला । कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया। पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चालाऊ तरीके से ये सब करने लगा। कुछ एक हफ्तों में घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहुंचा । ” ठेकेदार साहब , मैंने घर तैयार कर लिया है , अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?” ठेकेदार बोला ” हाँ , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की ज़रुरत नहीं है , क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है; जाइये अपने परिवार के साथ उसमे खुशहाली से रहिये !”.!”. कारपेंटर यह सुनकर स्तब्ध रह गया , वह मन ही मन सोचने लगा , “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा …क़ाश मैंने ये घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता ! इससे ये सीख मिलती हैं की जबतक काम करो पूरा दिल लगा कर करो.........
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06-06-2014, 11:16 AM | #3 | |
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19-06-2014, 11:22 AM | #4 |
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30-10-2013, 09:10 PM | #5 |
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17-12-2013, 06:22 PM | #6 |
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राजेश खन्ना की आखरी फिल्म :......... राजेश खन्ना की आखरी फिल्म होगी रीलिज़... अपनी जिंदगी के आखिरी कुछ सालों में भी राजेश खन्ना के दिल में काम के लिए जज्बा पूरा था। तभी, अगर कोई उनके पास किसी फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर जाता, तो वे उसे गौर से सुनते और अच्छी लगने पर उसे एक्सेप्ट भी करते। ऐसा ही कुछ हुआ राखी सावंत के भाई राकेश सावंत साथ। राकेश की फिल्म ‘वफा’ के बाद काका ने उनकी अगली फिल्म ‘हैलो! कौन है?’ में भी काम किया और इस तरह यह उनके जीवन की आखिरी फिल्म बन गई। राकेश बताते हैं, ‘फिल्म ‘वफा’ के खत्म होने के तुरंत बाद ही काका से मैंने अपनी अगली फिल्म में काम करने के लिए कहा। उन्होंने इसके लिए हां भी कह दी। करीब तीन साल पहले ही फिल्म की शूटिंग पूरी हो गई थी, लेकिन अभी तक यह रिलीज नहीं हुई है।’ राकेश का कहना है कि इस उम्र में भी काम के लिए राजेश खन्ना बहुत जनूनी थे। वह बताते हैं, ‘इस फिल्म में काका एक सीबीआई ऑफिसर का रोल निभा रहे हैं और रति अग्निहोत्री उनकी पत्नी बनी हैं। रति जी के साथ ही उनका क्लाइमैक्स सीन था। इस सीन को पूरा करने के लिए उन्होंने पांच दिन लिए, जबकि यह एक ही दिन में पूरा होना चाहिए था। दरअसल, चार दिनों तक वह अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और मैंने भी उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया। लेकिन पांचवे दिन का शॉट काका की नजर में ओके हुआ, तब कहीं जाकर हमने पैकअप किया।’ वहीं, पैसों के मामले में भी काका अपनी आखिरी फिल्म तक वाकई सुपरस्टार रहे। दरअसल, राकेश की फिल्म का बजट बहुत छोटा था, इसलिए राजेश ने फिल्म का शेड्यूल पांच दिनों तक खिंच जाने की जिम्मेदारी अपने सर ली और अपनी फीस के 11 लाख रुपये प्रोड्यूसर को लौटा दिए। उन्होंने कहा था कि फिल्म की रिलीज अच्छे से करो। पैसा महत्व नहीं रखता, क्योंकि पैसा आज है और कल नहीं, लेकिन जो काम एक बार आपने परदे पर कर दिया वो अमिट हो जाता है। यही थी उनके काम के प्रति ईमानदारी और उनका जुनून। बहरहाल, अब राकेश चाहते हैं कि काका की यह आखिरी फिल्म इसी साल रिलीज हो, ताकि उन्हें सच्ची श्रद्धांजली मिल सके :.........
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15-01-2014, 05:09 PM | #7 |
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"आखिरी पत्ती" :......... ओ हेनरी की कहानी का नाट्य रूपांतरण... टेढ़ी मेढ़ी गलियों के जाल से सजी गन्दी,तंग बस्ती के एक तीन मंजिले मकान की ऊपरी मंजिल का जर्जर घर | सामने से देखने पर दो कमरों में बटा दिखाई देता है | बाई ओंर के हिस्से में सू का पेंटिंग स्टूडियो व बाई और जोंसी का बेडरूम | पलंग के पीछे खिड़की | खिड़की से बाहर पुरानी मिल की दीवार और दीवार पर फैली एक बेल । [ सू अपने पेंटिंग सामान को जमाते-सम्हालते लगातार बडबडा रही है ] सू-"कब तक .... ? न जाने कब तक ऐसे ही मरना पड़ेगा ? सपनों का शहर...... । भाड़ में जाये ऐसा सपना । क्या यही सब करने इस शहर में आई थी ? मजबूरी न होती तो टेढ़ी मेढ़ी गलियों वाले इस बदबूदार मोहल्ले के ऐसे घटिया मकान में कभी नहीं रहती मैं । कहते है इस शहर में कला कि क़द्र है ... । कलाकार कि किस्मत खुलती है यहाँ .........खाक खुलती है ? आसपास के कमरों में रहने वाले इन मरियल बूढों को देखकर तो नहीं लगता ...आधी उम्र हो गई ...आखें पथरा गई ...हाथ पांव तक कांपने लगे है ,लेकिन अभी भी दम भर रहें है । केनवास पर ब्रश चलाते है तो लगता है पान पर कत्था लगा रहें हो .... । फिर भी दिल के अरमान खत्म नहीं हुए । बड़ा कलाकार बनेंगे । हूँ.........बन गए ...| कहाँ कहाँ से आ जाते है सस्ते किराये वाले इन मकानों में ? मेरी मजबूरी नहीं होती न ....तो केरोसिन के स्टोव से उठने वाले धुंए से भरे इस मोहल्ले में झांकती भी नहीं कभी । कांसे का एक लोटा टीन कि कुछ तश्तरियां और एक स्टोव ... बस , बसा ली गृहस्थी ........ न नहाने के लिए ठीक बाथरूम न लेट्रिन .....चारो और फैली अजीब सी बदबू ......... और अब सारे शहर में फैली ये निमोनियां कि बीमारी [ खीज कर ] क्यों पड़ी हूँ मैं यहाँ ?..... भाड़ में जाये ये सपनों का शहर, यहाँ के लोग और सपने ..... [ एक ठंडी साँस के साथ ] बस, जोंसी कुछ ठीक हो जाये ... मैं उससे कह दूँगी कि अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रुक सकती .... । ओह ...जोंसी मेरी दोस्त ... बस यही एक सच्ची साथी मिली मुझे इस अजनबी शहर में :......... कथा का लिंक:.........
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10-07-2014, 10:38 PM | #8 |
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गुम है फैज की आखरी फिल्म :......... फैज की आखरी फिल्म ''दूर है सच का गांव''... उर्दू के मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ की बनाई आखरी फिल्म जो इतिहास का अनमोल सरमाया हो सकती है, दशकों पहले पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान कहीं खो गई और उसका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया। फैज़ की पुत्री सलीमा हाशमी ने बताया कि वह अब भी पाकिस्तान और लंदन में अस्सी के दशक के शुरू में बनाई गई फिल्म ''दूर है सच का गांव'' फिल्म के नेगेटिव ढूंढ रही हैं। शहर की यात्रा पर आईं सलीमा ने कहा, 'जब फिल्म का अंतिम संपादन चल रहा था तो पाकिस्तान के राजनीतिक हालात बिगड़ गए और फैज़ को निर्वासन में चले जाना पड़ा। उसके बाद उस फिल्म की रीलें गुम हो गईं। किसी ने उस फिल्म को नहीं देखा क्योंकि वह कभी रिलीज़ नहीं हुई।' फैज़ की एक मूल कहानी पर आधारित इस फिल्म का निर्देशन ए.जे.कारदार ने किया था और इसमें कुछ अनजान चेहरों ने अभिनय किया था। पाकिस्तान के गड़बड़ी वाले बलूचिस्तान सूबे में फिल्माई गई इस फिल्म में लोगों के विश्वास और धार्मिक आस्थाओं के बीच संघर्ष को दर्शाया गया था। अपने पिता की फिल्म को ढूंढने के अपने प्रयासों का खुलासा करते हुए सलीमा ने कहा कि फिल्म की रीलें आखरी बार लंदन में पाकिस्तानी दूतावास में देखी गई थीं। उन्होंने कहा, 'अब तमाम पुराने लोग जा चुके हैं। दूतावास के अधिकारियों का कहना है कि फिल्म उनके पास नहीं है। यह उनकी आखरी फिल्म थी और इसके गुम होने से मेरे पिता का दिल टूट गया और उन्हें इस कड़वे सच पर यकीन करने में लंबा वक्त लगा :.........
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15-01-2014, 05:12 PM | #9 |
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Re: आखरी काम...........................
"आखिरी पत्ती" :......... ओ हेनरी की कहानी का नाट्य रूपांतरण... [ मंच के बीच में दोनों कमरों को बांटने वाली दीवार में बने दरवाजे से डॉक्टर का प्रवेश] डॉक्टर- " सुनो सू ...! मैंने अपनी सारी कोशिश कर ली है ...लेकिन तुम्हारी इस सहेली के बचने कि संभावना बिलकुल भी नहीं है । मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि निमोनियां जैसी बीमारी में इसका ये हाल कैसे हो गया ? देखो सू मुझे लगता है कि इसकी जीने कि इच्छा शक्ति खत्म हो गई है । इसके दिमाग पर पर तो भूत सवार हो गया है कि अब वह अच्छी नहीं होगी । मैं अपनी सारी कोशिशे कर रहा हूँ लेकिन बीमार का ठीक होना भी उसकी अपनी इच्छा शक्ति पर ही निर्भर होता है । अब यदि कोई खुद बाहें फैलाए मौत का स्वागत करने को तैयार हो तो डॉक्टर भी क्या करेगा ? अच्छा सू मुझे एक बात बताओ ? क्या इसके दिल पर कोई बोझ है ? " सू- " पता नहीं डॉक्टर । ऐसी कोई बात उसने मुझसे कभी नहीं कही ।...वह इस शहर में बड़ा कलाकार बनने का सपना लेकर आई है और अकसर कहती है कि एक दिन नेपल्स की खाड़ी की पेंटिंग बनाने कि बड़ी तमन्ना है ।" डॉक्टर- "पेंटिंग ?.... हूँ ........ लेकिन मेरे पूछने का मतलब था कि क्या इसके जीवन में कुछ ऐसा है जिससे जीने कि इच्छा तीव्र हो .........मसलन ....जैसे कोई नौजवान ? कोई प्रेमी " सू- " नौजवान प्रेमी ......? छोड़ों भी डॉक्टर .ऐसी तो कोई बात नहीं " डॉक्टर- " ओःह ..... तो ये बात है | सारी गड़बड़ यही है | अब कोई मरीज खुद यदि अपनी अर्थी के साथ चलने वालो की संख्या गिनने लगे तो दवाई क्या खाक कम करेगी ? खैर , तुम यदि इसके मन में कोई आकर्षण पैदा कर सको तो बात बने ...... ठीक है ? मैं चलता हूँ | सारे शहर में निमोनिया के मरीज फैलें है मुझे उन्हें भी देखना है " :......... कथा का लिंक:.........
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Re: आखरी काम...........................
"आखिरी पत्ती" :......... ओ हेनरी की कहानी का नाट्य रूपांतरण... [ डॉक्टर जाता है | सू अपने आप में सुबकने लगती है | कुछ देर बाद अपने आप को स्थिर करने की कोशिश करती , पेंटिग का सामान समेट कर खुद को उत्साहित दिखाने के लिए सीटी बजाती हुई जोंसी के कमरे में जाती है | जोंसी अपने बिस्तर पर चादर ओढ़े , बिना हिले - डुले एक टक खिड़की की ओर देखते पड़ी है | सू को लगता है सोई है | वह सिटी बजाना बंद कर ईजल व केनवास लिए चित्र बनाना शुरू करती है | चित्र बनाते-बनाते उसे कोई धीमी आवाज सुनाई देती है , जैसे कोई कुछ दोहरा रहा हो | वह तेजी से जोंसी के बिस्तर के पास जाती है | जोंसी खिड़की की और एक - टक देखती गिनती बोल रही है ,लेकिन उलटी ] जोंसी-" बारह .... [ कुछ देर बाद ].ग्यारह......[ अचानक एक साथ ] नौ.......आठ ......सात.......... [ सू उत्सुकता से खिड़की की और देखती है ] सू- " क्या हुआ जोंसी ? क्या है वहां ? [ खिड़की में जा कर देखती है ]......कुछ भी तो नहीं ? ये पुरानी ईंटों की दीवार और उस पर फैली ये बेल ..... ये तो कब से है यहाँ ......." जोंसी- [ धीमे और थके स्वर में ] " छः ..........| अब यह जल्दी जल्दी गिर रही है .............[ ह्नाफ़ने का स्वर ] तीन ..........तीन दिन पहले तक.......... यहाँ करीब सौ.......सौ ...... से ज्यादा थी | वह देखो ...एक ...एक और गिरी.......... " [ खांसी व हांफना ] अब ...बची ..केवल..पाँच...." सू- " पाँच ..? पाँच क्या..... ? [ आश्चर्य से खिड़की को देखती है ] क्या है वंहा ? मुझे नहीं बताओगी ? जोंसी- " पत्तियां.....| उस बेल की पत्तियां ....गिर.....गिर रही है ......जिस वक्त आखिरी पत्ती गिरेगी........... मै..... भी.... | डॉक्टर ने नहीं बताया तुम्हे ? मुझे .....मुझे तीन दिन से पता है .....| " सू- [ तिरस्कार से लेकिन राहत के भाव से ] " ओफो ...! मैंने तुझ जैसी बेवकूफ लड़की नहीं देखी..........| अब...अब तेरे ठीक होने का इन पत्तियों से क्या सम्बन्ध ..? वह बेल तुझे अच्छी लगती है इसलिए ? गधी कही की.... अब अपनी ये बेवकूफी बंद कर .....| अभी थोड़ी देर पहले डॉक्टर ने मुझे बताया ...तेरे ठीक होने के बारे में | हाँ क्या कहा था उन्होंने.....? हाँ ...!!! संभावना रुपये में चौदह आना !!! अरे मेरी लाड़ों ... इससे ज्यादा जीवन की संभावना तो तब भी नहीं होती जब हम......... बस - ट्रेन या टेक्सी में बैठते है.....हा.... हा..." [ हंसती है ] " अब थोडा शोरबा पीने की कोशिश कर और मुझे ये तस्वीर बनाने दे, ताकि इसे उस खडूस संपादक को बेच कर मैं तेरे लिए दवाईयाँ ला सकूँ " :......... कथा का लिंक:.........
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