19-12-2013, 05:08 PM | #11 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : एक गांव में अजुर्न और मोहन नाम के दो किसान रहते थे। अजुर्न धनी था, मोहन साधारण पुरुष था। उन्होंने चिरकाल से बद्रीनारायण की यात्रा का इरादा कर रखा था। अजुर्न बड़ा सुशील, सहासी और दृ़ था। दो बार गांव का चौधरी रहकर उसने बड़ा अच्छा काम किया था। उसके दो लड़के तथा एक पोता था। उसकी साठ वर्ष की अवस्था थी, परन्तु दाढ़ी अभी तक नहीं पकी थी। मोहन परसन्न बदन, दयालु और मिलनसार था। उसके दो पुत्र थे, एक घर में था, दूसरा बाहर नौकरी पर गया हुआ था। वह खुद घर में बैठाबैठा ब़ई का काम करता था। बद्रीनारायण की यात्रा का संकल्प किए उन्हें बहुत दिन हो चुके थे। अजुर्न को छुट्टी ही नहीं मिलती थी। एक काम समाप्त होता था कि दूसरा आकर घेर लेता था। पहले पोते का ब्याह करना था, फिर छोटे लड़के का गौना आ गया, इसके पीछे मकान बनना परारम्भ हो गया। एक दिन बाहर लकड़ी पर बैठकर दोनों बुजुर्गो में बातें होने लगी।
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19-12-2013, 05:11 PM | #12 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : मोहन-क्यों भाई, अब यात्रा करने का विचार कब है? अजुर्न-जरा ठहरो। अब की वर्ष अच्छा नहीं लगा। मैंने यह समझा था कि सौ रुपये में मकान तैयार हो जाएगा। तीन सौ रुपये लगा चुके हैं अभी दिल्ली दूर है। अगले वर्ष चलेंगे। मोहन-शुभ कार्य में देरी करना अच्छा नहीं होता। मेरे विचार में तो तुरंत चल देना ही उचित है, दिन बहुत अच्छे हैं। अजुर्न-दिन तो अच्छे हैं, पर मकान को क्या करुं! इसे किस पर छोडूं? मोहन-क्या कोई संभालने वाला ही नहीं, बड़े लड़के को सौंप दो। अजुर्न-उसका क्या भरोसा है। मोहन-वाहवाह, भला बताओ तो कि मरने पर कौन संभालेगा? इससे तो यह अच्छा है कि जीतेजी संभाल लें। और तुम सुख से जीवन व्यतीत करो। अजुर्न-यह सत्य है, पर किसी काम में हाथ लगाकर उसे पूरा करने की इच्छा सभी की होती है। मोहन-तो काम कभी पूरा नहीं होता, कुछ न कुछ कसर रह ही जाती है। कल ही की बात है कि रामनवमी के लिए स्त्रियां कई दिन से तैयारी कर रही थीं-कहीं लिपाई होती थी, कहीं आटा पीसा जाता था। इतने में रामनवमी आ पहुंची। बहू बोली, परमेश्वर की बड़ी कृपा है कि त्योहार बिना बुलाए ही आ जाते हैं, नहीं तो हम अपनी तैयारी ही करती रहें।
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19-12-2013, 05:13 PM | #13 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : अजुर्न-एक बात और है, इस मकान पर मेरा बहुत रुपया खर्च हो गया है। इस समय रुपये का भी तोड़ा है। कमसे-कम सौ रुपये तो हों, नहीं तो यात्रा कैसे होगी। मोहन-(हंसकर) अहा हा! जो जितना धनवान होता है, वह उतना ही कंगाल होता है तुम और रुपये की चिंता! जाने दो। मैं सच कहता हूं, इस समय मेरे पास एक सौ रुपये भी नहीं, परन्तु जब चलने का निश्चय हो जायेगा, तो रुपया भी कहीं न कहीं से अवश्य आ ही जाएगा। बस, यह बतलाओ कि चलना कब है? अजुर्न-तुमने रुपये जोड़ रखे होंगे, नहीं तो कहां से आ जाएगा, बताओ तो सही। मोहन-कुछ घर में से, कुछ माल बेचकर। पड़ोसी कुछ चौखट आदि मोल लेना चाहता है, उसे सस्ती दे दूंगा। अजुर्न-सस्ती बेचने पर पछतावा होगा। मोहन-मैं सिवाय पाप के और किसी बात पर नहीं पछताता। आत्मा से कौन चीज़ प्यारी है! अजुर्न-यह सब ठीक है, परन्तु घर के कामकाज बिसराना भी उचित नहीं। मोहन-और आत्मा को बिसारना तो और भी बुरा है। जब कोई बात मन में ठान ली तो उसे बिना पूरा किए न छोड़ना चाहिए।
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19-12-2013, 05:14 PM | #14 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : अन्त में चलना निश्चय हो गया। चार दिन पीछे जब विदा होने का समय आया, तो अजुर्न बड़े लड़के को समझाने लगा कि मकान पर छत इस परकार डालना, भूसी बखार में इस भांति जमा कर देना, मंडी में जाकर अनाज इस भाव से बेचना, रुपये संभालकर रखना, ऐसा न हो खो जावें, घर का परबन्ध ऐसा रखना कि किसी परकार की हानि न होने पावे। उसका समझाना समाप्त ही न होता था। इसके परतिकूल मोहन ने अपनी स्त्री से केवल इतना ही कहा कि तुम चतुर हो, सावधानी से काम करती रहना। मोहन तो घर से परसन्न मुख बाहर निकला और गांव छोड़ते ही घर के सारे बखेड़े भूल गया। साथी को परसन्न रखना, सुखपूर्वक यात्रा कर घर लौट आना उसका मन्तव्य था। राह चलता था तो ईश्वरसम्बन्धी कोई भजन गाता था या किसी महापुरुष की कथा कहता। सड़क पर अथवा सराय में जिस किसी से भेंट हो जाती, उससे बड़ी नमरता से बोलता। अजुर्न भी चुपकेचुपके चल तो रहा था, परन्तु उसका चित्त व्याकुल था। सदैव घर की चिंता लगी रहती थी। लड़का अनजान है, कौन जाने क्या कर बैठे। अमुक बात कहना भूल आया। ओहो, देखू, मकान की छत पड़ती है या नहीं। यही विचार उसे हरदम घेरे रहते थे यहां तक कि कभीकभी लौट जाने को तैयार हो जाता था।
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19-12-2013, 05:15 PM | #15 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : चलतेचलते एक महीना पीछे वे पहाड़ पर पहुंच गए। पहाड़ी बड़े अतिथिसेवक होते हैं अब तक यह मोल का अन्न खाते रहे थे। अब उनकी खातिरदारी होने लगी। आगे चलकर वे ऐसे देश में पहुंचे, जहां दुर्घट अकाल पड़ा हुआ था। खेतियां सब सूख गई थीं, अनाज का एक दाना भी नहीं उगा था। धनवान कंगाल हो गए थे धनहीन देश को छोड़कर भीख मांगने बाहर भाग गए थे। यहां उन्हें कुछ कष्ट हुआ, अन्न कम मिलता था और वह भी बड़ा महंगा। रात को उन्होंने एक जगह विश्राम किया। अगले दिन चलतेचलते एक गांव मिला। गांव के बाहर एक झोंपड़ा था। मोहन थक गया था, बोला-मुझे प्यास लगी है। तुम चलो, मैं इस झोंपड़े से पानी पीकर अभी तुम्हें आ मिलता हूं। अजुर्न बोला-अच्छा, पी आओ। मैं धीरेधीरे चलता हूं।
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19-12-2013, 05:19 PM | #16 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : झोंपड़े के पास जाकर मोहन ने देखा कि उसके आगे धूप में एक मनुष्य पड़ा है। मोहन ने उससे पानी मांगा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मोहन ने समझा कि कोई रोगी है। समीप जाने पर झोंपड़े के भीतर एक बालक के रोने का शब्द सुनायी दिया। किवाड़ खुले हुए थे। वह भीतर चला गया। उसने देखा कि नंगे सिर केवल एक चादर ओढ़े एक बूढी धरती पर बैठी है, पास में भूख का मारा हुआ एक बालक बैठा रोटी, रोटी, पुकार रहा है। चूल्हे के पास एक स्त्री तड़प रही है, उसकी आंखें बन्द हैं, कंठ रुका हुआ है। मोहन को देखकर बूढी ने पूछा-तुम कौन हो? क्या मांगते हो? हमारे पास कुछ नहीं हैं। मोहन-मुझे प्यास लगी है, पानी मांगता हूं। बूढी-यहां न बर्तन है, न कोई लाने वाला। यहां कुछ नहीं। जाओ, अपनी राह लो। मोहन-क्या तुममें से कोई उस स्त्री की सेवा नहीं कर सकता? बूढी-कोई नहीं। बाहर मेरा लड़का भूख से मर रहा है, यहां हम भूख से मर रहे हैं।
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19-12-2013, 05:21 PM | #17 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : यह बातें हो ही रही थीं कि बाहर से वह मनुष्य भी गिरतापड़ता भीतर आया और बोला-काल और रोग दोनों ने हमें मार डाला। यह बालक कई दिन से भूखा है क्या करुं-यह कहकर रोने लगा और उसकी हिचकी बंध गई। मोहन ने तुरन्त अपने थैले में से रोटी निकालकर उनके आगे रख दी। बुयि बोली-इनके कंठ सूख गए हैं, बाहर से पानी ले आओ। मोहन बुयि से कुएं का पता पूछकर बाहर गया और पानी ले आया। सबने रोटी खाकर पानी पिया, परन्तु चूल्ळें के पास वाली स्त्री पड़ी तड़पती रही। मोहन गांव में जाकर कुछ दाल, चावल मोल ले आया और खिचड़ी पाकर सबको खिलायी। तब बुयि बोली-भाई, क्या सुनाऊं, निर्धन तो हम पहले ही थे, उस पर पड़ा अकाल। हमारी और भी दुर्गति हो गई। पहलेपहल तो पड़ोसी अन्न उधार देते रहे, परन्तु वे क्या करते। वे आप भूखों मरने लगे, हमें कहां से देते। मनुष्य ने कहा-मैं मजूरी करने निकला, दोतीन दिन तो कुछ मिला, फिर किसी ने नौकर न रखा बुयि और लड़की भीख मांगने लगीं। अन्न का अकाल था, कोई भीख भी न देता था। बहुतेरे यत्न किए, कुछ न बन सका। भूख के मारे घास खाने लगे, इसी कारण यह मेरी स्त्री चूल्हे के पास पड़ी तड़प रही है।
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19-12-2013, 05:22 PM | #18 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : बुयि-पहले कई दिनों तक तो मैं चलफिरकर कुछ धंधा करती रही, परन्तु कहां तक? भूख और रोग ने जान ले ली। जो हाल है, तुम अपने नेत्रों से देख रहे हो। उनकी बिथा सुनकर मोहन ने विचारा कि आज रात यहीं रहना उचित हैं साथी से कल मिल लेंगे। परातःकाल उठकर वह गांव में गया और खानेपीने की जिन्स ले आया। घर में कुछ न था। वह वहां ठहरकर इस तरह काम करने लगा कि मानो अपना ही घर है। दोतीन दिन पीछे सब चलनेफिरने लगे और वह स्त्री उठ बैठी। चौथे दिन एकादशी थी। मोहन ने विचारा कि आज सन्ध्या को इन सबके साथ बैठकर फलाहार करके कल परातःकाल चल दूंगा। वह गांव में जाकर दूध, फल सब सामगरी लाकर बुयि को दे, आप पूजापाठ करने मन्दिर में चला गया। इन लोगों ने अपनी जमीन एक जमींदार के यहां गिरवी रखकर अकाल के समय अपना निवार्ह किया था। मोहन जब मन्दिर गया, तब किसान युवक जमींदार के पास पहुंचा और विनयपूर्वक बोला-चौधरी जी, इस समय रुपये देकर खेत छुड़ाना मेरे काबू के बाहर है। यदि आप इस चौमासे में मुझे खेत बोने की आज्ञा दे दें, तो मेहनतमजदूरी करके आपका ऋण चुका दे सकता हूं।
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19-12-2013, 05:23 PM | #19 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : परन्तु चौधरी कब मानता था? वह बोला-बिना रुपये दिए खेत नहीं बो सकते जाओ, अपना काम करो। वह निराश होकर घर लौट आया। इतने में मोहन भी पहुंच गया। जमींदार की बात सुनकर वह मन में विचार करने लगा कि जब यह जमींदार खेत नहीं बोने देता, तो इन किसानों की पराणरक्षा क्या करेगा! यदि मैं इन्हें इसी दशा में छोड़कर चल दिया, तो यह सब काल के कौर बन जायेंगे कल नहीं परसों जाऊंगा। मोहन अब बड़ी दुविधा में पड़ा था। न रहते ही बनता था, न जाते ही बनता था। रात को पड़ापड़ा सोचने लगा, यह तो अच्छा बखेड़ा फैला। पहले अन्नपानी, अब खेत छुड़ाना, फिर गाय और बैलों की जोड़ी मोल लेना। मोहन तुम किस जंजाल में फंस गए? जी चाहता था कि वह उन्हें ऐसे ही छोड़कर चल दे, परन्तु दया जाने न देती थी। सोचतेसोचते आंख लग गई। स्वप्न में देखता क्या है कि वह जाना चाहता है, किसी ने उसे पकड़ लिया है। लौटकर देखा तो बालक रोटी मांग रहा है। वह तुरन्त उठ बैठा और मन में कहने लगा-नहीं, अब मैं नहीं जाता। यह स्वप्न शिक्षा देता है कि मुझे इनका खेत छुड़ाना, गायबैल मोल लेना और सारा परबन्ध करके जाना उचित है। परातःकाल उठकर जमींदार के पास गया और रुपया देकर उनका खेत छुड़ा दिया। जब एक किसान से एक गाय और दो बैल मोल लेकर लौट रहा था कि राह में स्त्रियों को बातें करते सुना।
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19-12-2013, 05:28 PM | #20 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद : 'बहन, पहले तो हम उसे साधारण मनुष्य जानते थे। वह केवल पानी पीने आया था, पर अब सुना है कि खेत छुड़ाने और गायबैल मोल लेने गया है। ऐसे महात्मा के दर्शन करने चाहिए।' मोहन अपनी स्तुति सुनकर वहां से टल गया। गायबैल लेकर जब झोंपड़े पर पहुंचा तो किसान ने पूछा-पिताजी, यह कहां से लाये? मोहन-अमुक किसान से यह बड़े सस्ते मिल गए हैं। जाओ, पशुशाला में बांधकर इनके आगे कुछ भूसा डाल दो। उसी रात जब सब सो गए, तो मोहन चुपके से उठकर घर से बाहर निकल बद्रीनारायण की राह ली। तीन मील चलकर मोहन एक वृक्ष के नीचे बैठकर बटुआ निकाल, रुपये गिनने लगा तो थोड़े ही रुपये बाकी थे। उसने सोचा- इतने रुपयों में बद्रीनाराण पहुंचना असम्भव है, भीख मांगना पाप है। अजुर्न वहां अवश्य पहुंचेगा और आशा है कि मेरे नाम पर कुछ च़ावा भी च़ा ही देगा। मैं तो अब इस जीवन में यह यात्रा करने का संकल्प पूरा नहीं कर सकता। अच्छा, परमात्मा की इच्छा, वह बड़ा दयालु है। मुझजैसे पापियों को निस्संदेह क्षमा कर देगा। यह विचार करके गांव का चक्कर काटकर कि कोई देख न ले, वह घर की ओर लौट पड़ा।
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