08-11-2011, 10:40 AM | #21 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
तो हाथों में सबके निवाले रहेंगे न महफ़ूज़ रह पाएगी अपनी अस्मत जुबाँ पर हमारी जो ताले रहेंगे ग़मों से भरी ज़िन्दगी जी रहे हैं मगर भ्रम ख़ुशी का ही पाले रहेंगे यूँ आँसू बहाने से कुछ भी न होगा अगर दिल हैं काले तो काले रहेंगे बढ़ाते रहोगे अगर हौसला तुम तो पतवार हम भी सँभाले रहेंगे -अल्पना नारायण
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-11-2011, 10:44 AM | #22 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अंगारों पर चलकर देखे
दीपशिखा-सा जलकर देखे गिरना सहज सँभलना मुश्किल कोई गिरे, सँभलकर देखे दुनिया क्या, कैसी होती है कुछ दिन भेस बदलकर देखे जिसमें दम हो वह गाँधी-सा सच्चाई में ढलकर देखे कर्फ़्यू का मतलब क्या होता बाहर जरा निकल कर देखे -इसाक अश्क
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-11-2011, 10:48 AM | #23 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अंग-अंग में रूप रंग है, सोज़ो-साज़ है, मौसीक़ी है
तेरा सरापा है कि ख़ुदा ने एक मुरस्सा नज़्म कही है अपने ज़िह्न के हर गोशे में तुझको पया है नूर-अफ़शाँ अपने दिल की हर धड़कन में मैंने तिरी आवाज़ सुनी है तन्हा रहने पर भी मैंने तन्हाई महसूस नहीं की मेरे साथ हमेशा तेरी यादों की ही बज़्म रही है सूरज ढलता है तो तेरी याद के दीपक जल उठते हैं मेरे दिल के शहर की हर शब दीवाली की शब होती है सोये अरमाँ जाग उठते हैं, कितने तूफ़ाँ जाग उठते हैं सावन भादों की रिम-झिम तन-मन में आग लगा जाती है ज़िक्र करूँ क्या तेरे ग़म का, तेरे ग़म को क्या ग़म समझूँ तेरा ग़म वो नेमत है जो क़िस्मत वालों को मिलती है आओ ऐसे में खुल जाएँ, एक दूसरे में घुल जाएँ फ़स्ल-ए-गुल है जाम-ए-मुल है, तुम हो मैं हूँ, तन्हाई है शौक़ बारहा सोचा उनसे जो कहना है कह ही डालूँ लेकिन वो जब भी मिलते हैं दिल की दिल में रह जाती है. -सुरेशचन्द्र शौक़
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08-11-2011, 10:49 AM | #24 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अंजाम आज खुद़ से अनजान हो रहा है
आगाज़ ही अजल का सामान हो रहा है कुछ और कह रही हैं लोहूलुहान राहें कुछ और मंज़िलों से ऐलान हो रहा है है चोर ही सिपाही मुंसिफ़ है खुद़ ही क़ातिल किस शक्ल में नुमायाँ इंसान हो रहा है जिनको मिली है ताक़त दुनिया सँवारने की ख़ुदगर्ज आज उनका ईमान हो रहा है देखा पराग तुमने दुनिया का रंग बोलो इन हरक़तों से किसका नुक़सान हो रहा है -ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
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08-11-2011, 10:50 AM | #25 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अंतरगति का चित्र बना दो कागज़ पर
मकड़ी के जाले तनवा दो कागज़ पर गुमराही का नर्क न लादो कागज़ पर लेखक हो तो स्वप्न सज़ा दो कागज़ पर युक्ति करो अपना मन ठण्ढा करने की शोलों के बाजार लगा दो कागज़ पर होटल में नंगे जिस्मों को प्यार करो बे शर्मी का नाम मिटा दो कागज़ पर कोई तो साधन हो जी खुश रहने का धरती को आकाशा बना दो कागज़ पर यादों की तस्वीर बनाने बैठे हो आंसू की बूँदें टपका दो कागज़ पर अनपढ़ को जिस ओर कहोगे जाएगा सभ्य सुशिक्षित को बहका दो कागज़ पर -एहतराम इस्लाम
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08-11-2011, 10:56 AM | #26 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अगर आप दिल से हमारे न होते
तो नज़रों से इतने इशारे न होते नहीं प्यार होता जो उनको किसीसे तो आँचल में ये चाँद-तारे न होते बहुत शोर था उनकी दरियादिली का हमें देखकर यों किनारे न होते कहाँ से ग़ज़ल प्यार की यह उतरती जो हम उन निगाहों के मारे न होते गुलाब! आप खिलते जो राहों में उनकी तो ऐसे कभी बेसहारे न होते -गुलाब खंडेलवाल
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08-11-2011, 10:58 AM | #27 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
मुझको आँगन में दिखा पदचिन्ह इक उभरा हुआ
तू ही आया था यहाँ पर या मुझे धोखा हुआ मेरे घर मे जिंदगी की उम्र बस उतनी ही थी जब तलाक था नाम तेरा हर तरफ बिखरा हुआ अब नजर इस रूप पर ठहरे भला तो किस तरह है नज़र मे तू नज़र की राह तक फैला हुआ क्या करूँ क्या क्या करूँ कैसे करूँ तेरा बयां तो तो बस अहसास है अंदर कहीं उतरा हुआ -विजय वाते
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08-11-2011, 10:59 AM | #28 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अंधकूपों सा अँधेरा रौशनाई हो गया है
राहज़न का राज़ लिखना ही बुराई हो गयाहै कुछ लकीरों के फक़ीरों की यहाँ इतनी चली है राह अपनी ख़ुद बनाना बेवफाई हो गया है कामना की दौड़ में फिरसत किसे समझे ज़रा भी यातना उस पेड़ की जो बोनसाई हो गया है गलकटों चोंरों लुटेरों जाबिरों के कारनामों का बदल कर नाम हाथों की सफाई हो गया है इस हवा में साँस लेना था कहाँ आसान अब तो फेफड़ों के ज़ोर की भी आजमाई हो गया है कब करिंदों की सफाई का चले अभियान देखें डॉन का तो काम सारा बासफाई हो गया है प्रेम रस मुजरे दलाली हैं वही बस नाम केवल देवदासी से बदलकर आजा बाई हो गया है -प्रेम भारद्वाज
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08-11-2011, 11:01 AM | #29 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या
मगर जो दाँव पर रखेंगे वो ईमान होगा क्या कमी कोई भी वो ज़िन्दगी में रंग भरती है अगर सब कुछ ही मिल जाए तो फिर अरमान होगा क्या मगर ये बात दुनिया की समझ में क्यों नहीं आती अगर गुल ही नहीं होंगे तो फिर गुलदान होगा क्या बगोला-सा कोई उठता है क्यों रह-रह के सीने में जो होना है तआल्लुक का इसी दौरान होगा क्या कहानी का अहम् किरदार क्यों ख़ामोश है दानिश कहानी का सफ़र आगे बहुत वीरान होगा क्या -मदनमोहन दानिश
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08-11-2011, 11:02 AM | #30 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
अगर तुमने मुझे रस्ते से भटकाया नहीं होता
तो मैंने मंजिले मक़सूद को पाया नहीं होता किसी की मुफलिसी पर रूह गर कोसे तो समझाना हर इक इंसान की किस्मत में सरमाया नहीं होता अगर मैं जानता डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता तुम्हारा कल हमारे आज में पैबस्त ही रहता तो मेरा आज मुझको इस तरह भाया नहीं होता झुका था आसमां, बढ़ कर ज़मीं गर बांह फैलाती धुंधलका दरमियां उनके कभी छाया नहीं होता -शेषधर तिवारी
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