14-09-2014, 10:13 PM | #21 |
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Re: गोरैया की आवाज़
गांवों में तोतों की पहचान शोर मचाने वाले और झुंड में चलने वाले पक्षियों की है। इनके झुंड को डार कहते हैं - देखो, तोतोंकी डार उतर रही है। मकई के भुट्टे बर्बाद करने में इनका कोई सानी नहीं है और इनसे अपने आम - अमरूद बचाने में भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है। घर से थोड़ा दूर रहने वाले पक्षियों में मोर, कठफोड़वा, बुलबुल, नीलकंठ, बया, टिटिहरी, बनमुर्गी, बत्तख, बगुला और कौडि़न्ना यानी किंगफिशर का किसान जीवन में काफी दखल है। इनमें पहले पांच का गुजारा खेतों और पेड़ों पर होता है जबकि बाद के चार ताल-पोखरों यानी वेटलैंड्स पर निर्भर करते हैं।
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14-09-2014, 10:26 PM | #22 |
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Re: गोरैया की आवाज़
बीच में पड़ने वाली टिटिहरी वेटलैंड्स के करीब रहती है लेकिन अंडे सूखी जमीन पर देती है। उल्लू के अलावा यह अकेली चिडि़या है, जिसकी आवाज पूरी रात सुनाई देती है। ज्यादातर शहरी बच्चों का परिचय इनमें सिर्फ मोर से है, वह भी चिड़ियाघरों में। लेकिन मोर देखने का मजा तब है जब उसे बादलों के मौसम में खुले खेत में देखा जाए।
कुछ खास मौसमों में नजर आने वाले माइग्रैंट पक्षियों को अपने यहां कुछ ज्यादा ही इज्जत हासिल रही है। कोयल, पपीहा, खंजन, दोयल और श्यामा यानी हमिंग बर्ड जाड़ा बीतने केसाथ अचानक दिखने लगते हैं, या पेड़ों से उनका गाना सुनाई देने लगता है। सारस और जांघिल जैसे विशाल माइग्रैंट पक्षी भीसुबह - शाम अपने परफेक्ट फॉर्मेशन में जोर - जोर से कें – कें करते हुए अपनी लंबी यात्रा पर निकले दिखाई देते हैं। गहरे तालों में कभी - कभी इन्हें बसेरा करते हुए भी देखा जा सकता है। ^^ हम नहीं जानते कि इनमें से कौन - कौन से पक्षी किन – किन खतरों का सामना कर रहे हैं और दस - बीस साल बाद इन्हें देखने का मौका भी हमें मिलेगा या नहीं। इसलिए इनसे नजदीकी बनाने का, इनकी मदद करने का एक भी मौका हमें खोना नहीं चाहिए।
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26-09-2014, 11:07 PM | #23 |
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Re: गोरैया की आवाज़
जिस घर वास रहे चिड़िया का
(मनोज मिश्र) मुझे अपने पर बड़ा गर्व भी हो रहा था वह इसलिए कि बचपन से अब तक, मेरे घर में एकसाथ विभिन जगहों पर एक-दो-तीन नहीं बल्कि कई दर्जन गौरैया रह रहीं हैं.जब सेजाननें-समझनें की समझ विकसित हुई तब से अपनी भोजन की थालियों के आस-पास उन्हेंमंडराते देखा है. अभी -अभी शाम को मैंने इनकी गिनती की ,अभी भी ये 14 की संख्या मेंघर में हैं. हम सब के यहाँ परम्परा से, एक लोक मत इस चिड़िया को लेकर है वह यह किजिस घर में इनका वास होता है वहाँ बीमारी और दरिद्रता दोनों दूर-दूर तक नहीं आतेऔर जब विपत्ति आनी होती है तो ये अपना बसेरा उस घर से छोड़ देतीहै.
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26-09-2014, 11:09 PM | #24 |
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Re: गोरैया की आवाज़
मुझे बचाओ कहती चिड़िया
(गिरीश पंकज) आँगन में जब आती चिड़िया
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26-09-2014, 11:11 PM | #25 |
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Re: गोरैया की आवाज़
गौरेया और गिलहरियाँ
(राजेश भारती) गर्मियों की छुट्टियों में जब मैं अपनी नानी के गांव जाता था, तो वहां पर भी गौरेयाका झुंड सुबह से ही चहचहाने लगता था। ऐसा लगता था जैसे कि मानों संगीत की मधुरधुनें बज रही हैं, जिन्हें प्रकृति अपने हाथों से सारेगामापा का स्वर दे रही है। जबभी मैं स्कूल से लौटकर घर आता था, तो अक्सर मेरी पहली मुलाकात मेरे घर के पेड़ पररहने वालीं गौरेया और गिलहरियों से होती थी। गिलहरियों को हम सब (मेरे घर से सदस्य)गिल्लो कहकर बुलाते थे। एक आवाज़ पर ही सभी गिल्लो चीं...चीं...चीं... करती हुईंपेड़ से उतरकर नीचे आ जाती थीं और हमारे साथ बैठकर खाना खाती थीं। मेरी गली के लोगभी कहते थे, 'आपके द्वारा पाली गईं गिलहरियों को देखकर विश्वास नहीं होता कि येलोगों से इतनी घुलमिल सकती हैं।'
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26-09-2014, 11:15 PM | #26 |
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Re: गोरैया की आवाज़
मेरे आँगन में गौरैया
(देवेन्द्र मेवाड़ी) लो, इतनी देर में देखते ही देखते दो गौरेयां सूखी मिट्टी भरे मेरे गमले मेंधूल-स्नान भी कर गईं। चुपके से मुझे लिखते हुए देखा। देखा, मुझसे कोई खतरा नहीं है।गौरेया आई, गमले में उतरी और बीच-बीच में सिर उठा कर देखते हुए जम कर धूल-स्नान करगई। वह हलके भूरे रंग की मादा थी। शायद उसी ने बताया हो, उसके बाद नर गौरेया आ गई।सिर, चौंच से लेकर छाती तक काली। भूरी पीठ पर काली लकीरें। उसने भी पहले भांपा, फिरगमले में उतर कर धूल-स्नान कर लिया। ** गौरैया अब कहाँ रहे? (नवीन जी) अब यह सब सिर्फ यादों में है। मेरे बच्चे गौरैया को नहीं पहचानते। उनके बचपन में गौरैया का खेल और चहचहाना शामिल नहीं रहा। नीची छतों और आंगन विहीन घरों में गौरैया नहीं आती। बहुमंजिला अपार्टमेण्ट्स के आधुनिक फ्लैटों में गौरैया की जगह नहीं और इन फ्लैटों के बिना हमारा ‘विकास’ नहीं। गौरैया को बचाने की, घरों में उसे लौटा लाने की नेक और मासूम पहल का साधुवाद। लेकिन गौरैया की चीं-चीं-चीं किस खिड़की, किस रोशनदान, किस आंगन और किसी धन्नी से हमारे घर में लौटेगी?
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26-09-2014, 11:19 PM | #27 |
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Re: गोरैया की आवाज़
कविता > नन्हीं चूं चूं आ जा तू
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26-09-2014, 11:22 PM | #28 |
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Re: गोरैया की आवाज़
लॉन में गौरैया
(पाखी) मुझे गौरैया बहुत अच्छी लगती है। उसकी चूं-चूं मुझे खूब भाती है. कानपुर में थी तोहमारे लान में गौरैया आती थीं. उन्हें मैं ढेर सारे दाने खिलाती थी. दाने खाकर वेखुश हो जातीं और फुर्र से उड़ जातीं. हमारे लान में एक पुराना सा बरगद का पेड़ था, उस पर गौरैया व तोते खूब उधम मचाते. वहीँ एक बिल्ली भी थी, वह हमेशा उन्हें खाने कीफ़िराक में रहती. उस बिल्ली को देखते ही मैं डंडे से मारने दौड़ती. ** मुनिया और गौरैया (अनूप शुक्ल) कभी-कभी मुनिया गौरैया से कहती होगी -
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26-09-2014, 11:29 PM | #29 |
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Re: गोरैया की आवाज़
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21-10-2014, 11:29 AM | #30 |
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Re: गोरैया की आवाज़
(courtesy: aspundir ji's 'amazing GIF' page 1007)
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