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Old 14-09-2014, 06:00 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking वार्तालाप की अनुज्ञप्ति/Conversation License

सूत्र का शीर्षक पढ़कर तो आप बहुत चौंके होंगे. क्या कहा? बोलने का लाइसेंस? ड्राइविंग लाइसेंस के बारे में तो हम जानते हैं? क्या भारत में बोलने का भी लाइसेंस लेना पड़ता है? हद हो गई भई! पहले मैं यह बता दूँ कि यह सूत्र उनके लिए नहीं है जो विशुद्ध भारतीय हैं और भारतीय संस्कृति से भली-भाँति परिचित हैं. यह सूत्र उन विदेशियों के लिए है जो भारतीय हैं और भारतीय संस्कृति से भली- भाँति परिचित नहीं हैं. हाँ, यह सच है कि भारत में बोलने का भी लाइसेंस लेना पड़ता है. भारत के कुछ आधुनिक शहरों को छोड़कर यदि एक लड़का किसी लड़की से सार्वजनिक स्थान पर वार्तालाप करना चाहता है तो उसे बोलने का भी लाइसेंस लेना पड़ता है और उस लाइसेंस का नाम है- शादी. नहीं तो लोग सन्देह की नजरों से उन्हें देखने लगते हैं. भारत में बिना लाइसेंस के सार्वजनिक स्थान पर किसी लड़के-लड़की का आपस में वार्तालाप करना बुरा समझा जाता है. समाज के उच्च वर्ग से सम्बन्धित हीरो-हीरोइन भी इससे अछूते नहीं हैं. इनके बारे में भी अक्सर समाचार-पत्रों में छपता रहता है जिसे गोंसिप कहते हैं. गोंसिप का छपना अच्छी बात मानी जाती है. जिन हीरो और हीरोइनों के बारे में समाचार-पत्रों में गोंसिप नहीं छपता वह चिन्तित होकर बीमार पड़ जाते हैं.

Last edited by Rajat Vynar; 15-09-2014 at 11:11 AM.
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Old 15-09-2014, 07:47 AM   #2
rajnish manga
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Default Re: वार्तालाप की अनुज्ञप्ति/Conversation License

भाई साहब, सिर्फ बोलने के लिये ही नहीं यहाँ पर किसी भी विषय पर अपनी राय रखने के लिये लाइसेंस की जरूरत पडती है. छोटी से छोटी बात पर किताबों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, फिल्मों को लटका दिया जाता है (अभी हाल में फाइंडिंग फेनी फिल्म में नायिका के एक डायलाग 'I am still a virgin' को ले कर बहुत हंगामा हुआ).

अभी कुछ माह पूर्व वेंडी डोनिगर की किताब 'The Hindus: An Alternative History' के विरुद्ध एक सज्जन ने मोर्चा खोल दिया. तो साहब दुनिया के जाने माने प्रकाशन गृह पेंग्विन ने उनके सामने घुटने टेक दिये. पुस्तक का भारत में प्रकाशन रुक गया. इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक कार्टून बनाने का अपराध करने पर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर को जेल भेज दिया गया. मुंबई के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का प्रसंग आपको याद होगा. उन्हें भी एक तीखे कार्टून के कारण जेल की हवा खानी पड़ी. जब चारों ओर से सोशल नेटवर्किंग और मीडिया पर आवाजे उठनी शुरू हुईं तो सरकार को थूक कर चाटना पड़ा. एक और उदाहरण NCERT की किताब का लें. इसमें दिए गये एक कार्टून पर पिछले 60 साल में कोई बहस या ऐतराज़ नहीं उठाया गया. एकाएक संसद में मसला रखा गया और कार्टून किताब से बाहर कर दिया गया. उपरोक्त सभी लोगों के पास भी लाइसेंस नहीं थे.

आपने गॉसिप की बात की. इसमें तो किसी प्रकार के लाइसेंस की दरकार ही नहीं है. कई बार तो गॉसिपयाफ्ता व्यक्ति ही इन्हें फैलाने में पहल करता है. दूसरे, गॉसिप समाचारों को आम तौर पर सारे एन्जॉय करते हैं. पाठक या श्रोता-दर्शक भी और इसके टारगेट भी (मार्केटिंग टूल के तौर पर). यहाँ गॉसिप और अफ़वाह में अंतर समझने की जरूरत है.

और भी बहुत सी बातें हमारे समाज में व्याप्त हैं जहाँ अघोषित लाइसेंस लिये बगैर कोई कदम उठाना महा अपराध समझा जाता है.

चर्चा के लिये एक अछूता विषय चुनने के लिये धन्यवाद.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)

Last edited by rajnish manga; 15-09-2014 at 07:49 AM.
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Old 15-09-2014, 11:14 AM   #3
Rajat Vynar
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Talking Re: वार्तालाप की अनुज्ञप्ति/Conversation License

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Originally Posted by rajnish manga View Post
भाई साहब, सिर्फ बोलने के लिये ही नहीं यहाँ पर किसी भी विषय पर अपनी राय रखने के लिये लाइसेंस की जरूरत पडती है. छोटी से छोटी बात पर किताबों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, फिल्मों को लटका दिया जाता है (अभी हाल में फाइंडिंग फेनी फिल्म में नायिका के एक डायलाग 'I am still a virgin' को ले कर बहुत हंगामा हुआ).

अभी कुछ माह पूर्व वेंडी डोनिगर की किताब 'The Hindus: An Alternative History' के विरुद्ध एक सज्जन ने मोर्चा खोल दिया. तो साहब दुनिया के जाने माने प्रकाशन गृह पेंग्विन ने उनके सामने घुटने टेक दिये. पुस्तक का भारत में प्रकाशन रुक गया. इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक कार्टून बनाने का अपराध करने पर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर को जेल भेज दिया गया. मुंबई के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का प्रसंग आपको याद होगा. उन्हें भी एक तीखे कार्टून के कारण जेल की हवा खानी पड़ी. जब चारों ओर से सोशल नेटवर्किंग और मीडिया पर आवाजे उठनी शुरू हुईं तो सरकार को थूक कर चाटना पड़ा. एक और उदाहरण NCERT की किताब का लें. इसमें दिए गये एक कार्टून पर पिछले 60 साल में कोई बहस या ऐतराज़ नहीं उठाया गया. एकाएक संसद में मसला रखा गया और कार्टून किताब से बाहर कर दिया गया. उपरोक्त सभी लोगों के पास भी लाइसेंस नहीं थे.

आपने गॉसिप की बात की. इसमें तो किसी प्रकार के लाइसेंस की दरकार ही नहीं है. कई बार तो गॉसिपयाफ्ता व्यक्ति ही इन्हें फैलाने में पहल करता है. दूसरे, गॉसिप समाचारों को आम तौर पर सारे एन्जॉय करते हैं. पाठक या श्रोता-दर्शक भी और इसके टारगेट भी (मार्केटिंग टूल के तौर पर). यहाँ गॉसिप और अफ़वाह में अंतर समझने की जरूरत है.

और भी बहुत सी बातें हमारे समाज में व्याप्त हैं जहाँ अघोषित लाइसेंस लिये बगैर कोई कदम उठाना महा अपराध समझा जाता है.

चर्चा के लिये एक अछूता विषय चुनने के लिये धन्यवाद.
स सूत्र में मैंने ‘प्रतिबन्ध’ जैसे क्लिष्ट विषय को न लेकर एक अत्यन्त साधारण विषय को लिया है जिसे पढ़कर विदेशी भारतीय विस्मित हो सकें. सूत्र पर आपकी समालोचना गागर में सागर हैं और आपके प्रत्येक शब्दों पर पृथक रूप से व्यापक परिचर्चा की जा सकती है. जैसे- वर्जिन शब्द का सन्दर्भ आने पर मैंने कभी कहीं पर लिखा है-

’’याद रखिए- आपकी लिखी हुई कहानी समाज की बदलती मानसिकता (mind-set) के साथ दिन-प्रतिदिन पुरानी पड़ती जाती है। पाश्चात्य संस्कृति (western culture) में विवाह से पूर्व शारीरिक-सम्बन्ध (physical relationship) स्थापित करना आम बात है। कुछ देशों में जो लोग विवाह से पूर्व शारीरिक-सम्बन्ध स्थापित नहीं करते उन्हें हेय (despicable) दृष्टि (sight) से देखा जाता है। किन्तु भारतीय संस्कृति में आज भी ऐसे सम्बन्ध अनैतिक माने जाते हैं। इसी के अनुरूप कहानियाँ लिखी जाती हैं। याद कीजिए- आज से 50 वर्ष पूर्व भारतीय फ़िल्मों में नायिकाओं द्वारा शरीर प्रदर्शन का स्तर क्या था? शून्य था। आज क्या है? आज फ़िल्मों में नायिकाएँ अपने शरीर का 75 प्रतिशत भाग प्रदर्शित कर रही हैं। हो सकता है कि आज से सौ-दो सौ वर्ष बाद फ़िल्मों में महिलाएँ निर्वस्त्र दिखाई दें और विवाहेत्तर शारीरिक सम्बन्ध को अनैतिक न समझा जाए। अभी से कुछ फ़िल्मों में अपरिहार्य परिस्थितियों में विवाहेत्तर शारीरिक सम्बन्ध (Extramarital relationship) को नैतिक ठहराया जा रहा है। उदाहरण के लिए वर्ष 2013 में लोकार्पित हिन्दी फ़िल्म टेबल नं० 21 में जब कहानी के नायक विवान (राजीव खण्डेलवाल) को यह पता चलता है कि उसकी पत्नी सिया (टीना डेज़ी) ने अपने प्रबन्धकर्ता (boss) के साथ विवाहेत्तर शारीरिक सम्बन्ध सिर्फ़ इसलिए बनाया है कि उसकी पदोन्नति (promotion) हो सके तो वह चुप रहता है। दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुश्बू ‘Virginity is a big issue over a small tissue.*’ कहकर भारी मुसीबत में फँस चुकी हैं और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुँचा। भट्ट कैम्प की सफल हिन्दी फ़िल्म आशिकी 2 में कहानी की नायिका आरोही (श्रद्धा कपूर) कहानी के नायक राहुल (आदित्य राय कपूर) से अत्यधिक प्रेम करती है और राहुल के लिए अपनी जीविका (career) का भी परित्याग (renouncement) कर देना चाहती है। निःसंदेह प्रेम के परिप्रेक्ष्य (perspective) में जीविका के परित्याग की यह संधारणा (concept) बहुत अच्छी है, किन्तु इस संधारणा की लुटिया डुबोई है कहानी के नायक और नायिका के मध्य स्थापित शारीरिक सम्बन्ध (physical relationship) और लिव-इन-रिलेशनशिप ने। क्योंकि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के बाद जीविका के परित्याग की इस महान भावना का उतना अधिक महत्व नहीं रह जाता जितना कि लिव-इन-रिलेशनशिप के बिना रहता। यह सत्य है कि कहानी की नायिका का नायक से विवाह नहीं हुआ था, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में रहने के कारण वह नायक की पत्नी समान ही थी। कहानी के इस महत्वपूर्ण तथ्य को भूलकर विख्यात समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज अपनी समीक्षा में लिखते हैं- श्रद्धा का समर्पण वास्तविक होने के बावजूद 21 वीं सदी के दूसरे दशक के परिवेश में असहज लगने लगता है। मन में सवाल उठता है कि क्या कामयाबी छू रही कोई लड़की अपने प्रेमी के लिए सब कुछ त्याग सकती है।शायद इनके विचारों में लिव इन रिलेशनशिप 21वीं शताब्दि का दूसरा दशक होने के कारण एक स्त्री के लिए अत्यन्त साधारण सी बात है। संदर्भवश हम यहाँ पर यह बताते चलें कि फ़िल्म के व्यावसायिक (commercial) दृष्टिकोण (point of view) से लिव-इन-रिलेशनशिप को एक गीत में स्थापित करने को अनुचित (unfair) नहीं ठहराया जा सकता।’’

हाँ तक पुस्तक पर प्रतिबन्ध की बात है- बड़े भाग्यशाली होते हैं वे लेखक जिनकी कृतियों पर प्रतिबन्ध लगता है. कृतियों पर पेंच फँसाने वाले सभी महानुभावों को कोटिशः धन्यवाद. मैं स्वयं ऐसे अच्छे और महान व्यक्तियों की खोज में हूँ जो अपने खर्चे पर पेंच फँसा सकें. आवश्यकता पड़ने पर ऐसे अच्छे पेंच फँसाने वाले मिलते कहाँ हैं? पेंच फँसाने वाले सभी महानुभावों को यह जानकर अतीव प्रसन्नता का अनुभव होगा कि आप के महान ‘पेंच-समुदाय’ के लिए मैं एक अद्वितीय पुस्तक लिख रहा हूँ और पुस्तक पर पेंच फँसाने के लिए आप सबका हार्दिक स्वागत है. जो सबसे अधिक पेंच फँसाएगा उसे आकर्षक इनाम भी दिया जायेगा. पेंच फँसाने वाले ऐसे सभी महानुभावों से सादर अनुरोध है कि वह अपना पसंदीदा विषय हमें पहले से बता दें जिस पर पेंच फँसाकर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो. आखिर आप अपने खर्चे पर पेंच फँसा रहे हैं न! पुस्तक लिखने और प्रकाशित होने के बाद यह कहकर निराश और मायूस न करियेगा कि ‘इस विषय पर हम पेंच नहीं फंसाते. कोई दूसरी पुस्तक लाइए तब हम सोचेंगे कि पेंच फँसाया जाये या नहीं?’ अतः पेंच फँसाने वाले सभी महानुभावों से अनुरोध है कि अपने सम्पूर्ण बॉयो-डाटा के साथ आवेदन-पत्र यथाशीघ्र प्रस्तुत करें और अपने आवेदन-पत्र में यह स्पष्ट रूप से लिखें कि पेंच फँसाने में आपको कितने वर्ष का अनुभव है जिससे हमें यह पता चल सके कि आप कायदे से पेंच फँसा पाएँगे या नहीं! रजनीश जी, आपकी समालोचना अत्यन्त प्रभावकारी है, और अधिक चिन्तन करने के लिए बाध्य करती है. इसके अतिरिक्त आप से ही नहीं, सभी से मेरा अनुरोध है कि मेरे लेखन में हुई त्रुटियों को जितना बन सके स्पष्ट रूप से व्याख्या के साथ मेरे समक्ष प्रदर्शित करने की कृपा करें. मुझे अपनी त्रुटियों को सुनने और समझने में अधिक प्रसन्नता होती है. हार्दिक आभार के साथ.

Last edited by Rajat Vynar; 15-09-2014 at 11:21 AM.
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