01-09-2014, 08:26 AM | #1 |
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दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
गमों को अकेले में बार बार याद कर के क्या पाओगे अपनी आँखों को आंसूं से भरा हुआ ही पाओगे आंसूं बहा कर भी कुच्छ हासिल न कर पाओगे अपने सूखे हुए ज़ख़्मों को फिर से हरा हुआ ही पाओगे अगर देते रहोगे दोष औरों को तो भी क्या पाओगे माफ़ करके ग्लितियाँ औरों की बहुत कुच्छ पाओगे अपने रिश्तों को अच्छा और मज़बूत भी कर पाओगे पाओगे दिल में खुशी भी और मन का सुकून भी पाओगे गर उलझे रहोगे दुनियाँ की उलझनो में तो क्या पाओगे उलझनो से बाहर निकलने का रास्ता भी न खोज पाओगे ज़िंदगी गर बिता दोगे दौलत इककठा करने में तो किया पाओगे जोड़ कर पाप की दौलत मेरे दोस्त कुच्छ हासिल न कर पाओगे छीनोगे हक़ जिन का उनकी बद दुआएँ ही पाओगे बंद कर लोगे रास्ते जनत के और दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे जब तक खुदा की बंदगी में मन से मन न लगा पाओगे उलझे रहोगे उलझनो में और कुच्छ भी न कर पाओगे करके सेवा खुदा के बन्दो की बहुत कुच्छ पाओगे लोगों के मन से मोहबत और दिल से दुआएँ भी पाओगे करोगे अच्छे करम ’बंसी’ तो प्यार के साथ इज़्ज़त भी पाओगे ख़तम कर लोगे भोज दिल का, खुशी से जी भी पाओगे खुशी से जी भी पाओगे बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 01-09-2014 at 12:39 PM. |
01-09-2014, 10:44 AM | #2 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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13-09-2014, 10:57 PM | #3 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
rafiq ji shukriya
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13-09-2014, 10:58 PM | #4 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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14-09-2014, 11:18 AM | #5 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
अच्छी प्रस्तुति है....आगे भी अपनी रचना पोस्ट करना ज़ारी रखें!
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14-09-2014, 11:04 PM | #6 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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19-09-2014, 05:20 PM | #7 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
प्रिय बंसी जी, आपकी कविता में एक निर्दोष हृदय के सुन्दर भाव उभर कर आते हैं. अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठ कर एक बेहतर समाज के लिये काम करना हम सब का कर्त्तव्य है. एक ह्रासोन्मुख समाज में जहाँ मानवता हाशिये पर धकेल दी गयी हो और मूल्यों का विघटन हो रहा हो, वहाँ कवि मन उन्हीं मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिये आह्वान करता है ताकि हमारा आने वाला कल निश्चित रूप से सत्य, शिव और सुन्दर बन सके. एक उद्देश्यपूर्ण कविता फोरम पर शेयर करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
03-10-2014, 03:27 PM | #8 |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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03-10-2014, 03:34 PM | #9 | |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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कोशिश करता हूँ कुछ कहने की. जिनसे कहना चाहता हूँ वो तो शायद पड़ते नहीं पड़ते हैं वो जिनको शायद पड़ने की ज़रूरत नहीं फिर भी कहता तो रहता हूँ अपने स्वार्थ के लिए क्यूँ कि अपने विचार रखे बगैर मैं रह पता नहीं |
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03-10-2014, 03:59 PM | #10 | |
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Re: दरवाज़े दोज़ख़् के खुले पाओगे....bansi
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हौसिला अफ़ज़ही जो मेरी आपने की है मेरे पास शब्द उसके लिए नहीं हैं. इस तारीफ के लायक तो मैं नहीं हूँ देख कर समाज के हालात कुछ कह देता हूँ रोता है दिल अक्सर देश के हालात देख कर करता हूँ कुछ कोशिश कहने की दिल थाम कर बस थोड़ा सा सुकून पता हूँ अपने विचार रख कर और मन ही मन खुश हो जाता हूँ कुछ कह कर आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
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