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#2 |
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Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
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बहुत अच्छे, रविजी ! मैं कामना करता हूं कि आपकी अंगदान की यह मुहिम रंग लाए ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#3 |
Special Member
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क्या है अंगदान
अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज़ को ले लिया जाता है और फिर इन अंगों को किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस तरह अंगदान से किसी दूसरे शख्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। एक शख्स द्वारा किए गए अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है। किन-किन अंगों का दान हमारे देश में लिवर, किडनी और हार्ट के ट्रांसप्लांट होने की सुविधा है। कुछ मामलों में पैनक्रियाज भी ट्रांसप्लांट हो जाते हैं, लेकिन इनके अलावा दूसरे अंगों का भी दान किया जा सकता है: -अंदरूनी अंग मसलन गुर्दे (किडनी), दिल (हार्ट), यकृत (लिवर), अग्नाशय (पैनक्रियाज), छोटी आंत (इन्टेस्टाइन) और फेफड़े (लंग्स) -त्वचा (स्किन) -बोन और बोन मैरो -आंखें (कॉर्निया)
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#4 |
Special Member
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दो तरह के अंगदान
-एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंखों, हड्डी और स्किन का दान आता है। -ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं। -जीवित लोगों द्वारा दान किया जाने वाला सबसे आम अंग है किडनी, क्योंकि दान करने वाला शख्स एक ही किडनी के साथ सामान्य जिंदगी जी सकता है। वैसे भी जो किडनी जीवित शख्स से लेकर ट्रांसप्लांट की जाती है, उसके काम करने की क्षमता उस किडनी से ज्यादा होती है, जो किसी मृत शरीर से लेकर लगाई जाती है। भारत में होने वाले ज्यादातर किडनी ट्रांसप्लांट के केस जिंदा डोनर द्वारा ही होते हैं। लंग्स और लिवर के भी कुछ हिस्सों को जीवित शख्स दान कर सकता है। -इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों को मौत के बाद ही दान किया जाता है। -घर पर होने वाली सामान्य मौत के मामले में सिर्फ आंखें दान की जा सकती हैं। बाकी कोई अंग नहीं ले सकते। बाकी कोई भी अंग तब लिया जा सकता है, जब इंसान की ब्रेन डेथ होती है और उसे वेंटिलेटर या लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर ले लिया जाता है।
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#5 |
Special Member
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सामान्य मौत और ब्रेन डेथ का फर्क
-सामान्य मौत और ब्रेन डेथ में फर्क होता है। सामान्य मौत में इंसान के सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं, उसके दिल की धड़कन रुक जाती है, शरीर में खून का बहाव रुक जाता है। ऐसे में आंखों को छोड़कर जल्दी ही उसके सभी अंग बेकार होने लगते हैं। आंखों में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं, इसलिए उन पर शुरुआती घंटों में फर्क नहीं पड़ता। यही वजह है कि घर पर होने वाली सामान्य मौत की हालत में सिर्फ आंखों का दान किया जा सकता है।
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#6 |
Special Member
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ब्रेन डेथ वह मौत है, जिसमें किसी भी वजह से इंसान के दिमाग को चोट पहुंचती है। इस चोट की तीन मुख्य वजहें हो सकती हैं: सिर में चोट (अक्सर ऐक्सिडेंट के मामले में ऐसा होता है), ब्रेन ट्यूमर और स्ट्रोक (लकवा आदि)। ऐसे मरीजों का ब्रेन डेड हो जाता है लेकिन बाकी कुछ अंग ठीक काम कर रहे होते हैं - मसलन हो सकता है दिल धड़क रहा हो। कुछ लोग कोमा और ब्रेन डेथ को एक ही समझ लेते हैं लेकिन इनमें फर्क है। कोमा में इंसान के वापस आने के चांस होते हैं। यह मौत नहीं है। लेकिन ब्रेन डेथ में जीवन की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है। इसमें इंसान वापस नहीं लौटता।
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#7 |
Special Member
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आंखों के अलावा बाकी अंगों का दान
आंखों के अलावा बाकी सभी अंगों का दान ब्रेन डेड होने पर ही किया जा सकता है। वैसे जिन वजहों से इंसान ब्रेन डेड होता है, उनका इलाज करने और मरीज को ठीक करने की पूरी कोशिश की जाती है और जब सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं और इंसान ब्रेन डेड घोषित हो जाता है, तब ही अंगदान के बारे में सोचा जाता है। ब्रेन डेड की स्थिति में कई बार मरीज के घरवालों को लगता है कि अगर मरीज का दिल धड़क रहा है, तो उसके ठीक होने की संभावना है। फिर उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित करके उसके अंगदान की बात कैसे शुरू कर दी। लेकिन ऐसी सोच गलत है। ब्रेन डेड होने का मतलब यही है कि इंसान अब वापस नहीं आएगा और इसीलिए उसके अंगों को दान किया जा सकता है।
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#8 |
Special Member
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कौन कर सकता है
कोई भी शख्स अंगदान कर सकता है। उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं है। नवजात बच्चों से लेकर 90 साल के बुजुर्गों तक के अंगदान कामयाब हुए हैं। अगर कोई शख्स 18 साल से कम उम्र का है तो उसे अंगदान के लिए फॉर्म भरने से पहले अपने मां-बाप की इजाजत लेना जरूरी है।
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#9 |
Special Member
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कैसे होता है
जिन लोगों की ब्रेन डेथ हो जाती है, उन्हें डॉक्टर वेंटिलेटर्स पर ले लेते हैं। फिर डॉक्टरों का एक पैनल इस बात की पुष्टि करता है कि उसकी ब्रेन डेथ हो चुकी है। कुछ समय बाद एक बार फिर उसकी पुष्टि की जाती है। इसके बाद घरवालों की इच्छा से और कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद मरने वाले के शरीर से अंगों को निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया मरने के बाद जल्द-से-जल्द शुरू कर दी जाती है। इस काम को करते वक्त बॉडी में सिर्फ एक चीरा लगाया जाता है और उसी से अंग निकाल लिए जाते हैं। इस पूरे काम में बॉडी को पूरे सम्मान के साथ रखा जाता है और बाद में उसे साफ करके परिजनों को दे दिया जाता है। इस प्रक्रिया में आधा दिन तक का वक्त लग सकता है। हो सकता है, अंतिम क्रिया करने के काम में मामूली-सी देरी हो जाए, लेकिन अंगदान की संतुष्टि के सामने यह कोई बड़ी बात नहीं है।
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#10 |
Special Member
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कहां है अड़चन
ऑर्गन डोनेशन ऐक्ट 1994 के नियमों के मुताबिक अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में ही किया जा सकता है, जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो। यह अपने आप में बेहद मुश्किल नियम है। इस नियम से दूर-दराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता। इस समस्या को देखते हुए सरकार ने 2011 में इस नियम में कुछ बदलाव करने के लिए एक बिल पास किया। नए नियम के मुताबिक अंगदान आप किसी भी आईसीयू में कर सकते हैं। यानी उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो, लेकिन आईसीयू है, तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है। यह नियम अभी लागू नहीं हुआ है, लेकिन लागू होने के बाद अंगदान की प्रक्रिया ज्यादा तेज और सुविधाजनक होगी। अंगदान की पूरी प्रक्रिया के साथ इतनी सारी शर्तें जुड़ी होने के कारण अपने देश में आज भी अंगदान बहुत कम हो पाता है। इसी वजह से किसी से अंग लेकर उसे जरूरतमंद में ट्रांसप्लांट करने के मामले बड़े कम होते हैं। साल में कुल 50 के आस-पास लोग ही अंगदान कर पाते हैं।
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