01-12-2013, 12:56 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो . दिन रात याद आ के मेरा चैन लूट लो ; इस ख़ूब सूरती से अदावत किया करो . गर ज़ख्म भर गये तो ठहर जायेगा ये दिल ; ताज़ा रहें , तुम ऐसी शरारत किया करो . मुझको लगेगा , तेरे ज़ेहन में हूँ अब तलक़ ; दिन रात सबसे मेरी शिकायत किया करो . तेरे लबों पे ज़िक्र हो तो जानेंगे सभी ; दुनिया में इस तरह मेरी शोहरत किया करो . ना देखने से ठीक , हिक़ारत से ही देखो ; बेपर्दा सबमें पिछली मोहब्बत किया करो . दुनिया की हर इक़ चीज़ है , बस तू ही नहीं है ; ऐसी ग़रीब ना मेरी हालत किया करो . चाहे तो मुँह को फ़ेर ही लो , पर सलाम लो ; अपने मुरीद से ये मुरव्वत किया करो . अरसा गुज़र गया है , तुझे देखा तक़ नहीं ; ख़्वाबों में आ के लड़ने की ज़ेहमत किया करो . तेरी ज़फ़ा का चाहिये मुझको मुआवज़ा ; मेरी हर इक़ ग़ज़ल में ही शिरक़त किया करो . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव , गोमती नगर , लखनऊ . शब्दार्थ > फ़ितरत = स्वभाव , अदावत = दुश्मनी , हिक़ारत = घृणा , मुरीद = प्रशंसक , मुरव्वत = छूट / रियायत , अरसा = लम्बा वक़्त ,ज़ेहमत = कष्ट / तक़लीफ़ , ज़फ़ा = बेवफ़ाई , मुआवज़ा = हर्ज़ाना , शिरक़त = शामिल /सम्मिलित .
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01-12-2013, 03:34 PM | #2 |
VIP Member
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
great
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01-12-2013, 06:41 PM | #3 |
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
bahut hi lajawab sir ji, aur apka copyright ka tarika to kamaal hai
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04-12-2013, 01:03 PM | #4 |
Super Moderator
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
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20-12-2013, 08:14 PM | #5 |
Diligent Member
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
चाहे तो मुँह को फ़ेर ही लो , पर सलाम लो ;
अपने मुरीद से ये मुरव्वत किया करो . अरसा गुज़र गया है , तुझे देखा तक़ नहीं ; ख़्वाबों में आ के लड़ने की ज़ेहमत किया करो . bahut hi umda khyaalat se sajji sunder shabdavali ek uttam rachnaa badhayee ho dr sahab |
07-01-2014, 10:36 AM | #6 |
Member
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
nice sir.............
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17-01-2014, 09:14 PM | #7 |
Special Member
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Re: थोड़ी अदा के साथ में नफ़रत किया करो
बहुत उम्दा बड़े भाई
मजा आ गया
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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