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09-11-2010, 03:40 PM | #2 | |
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जबकि में तो मर्यादा में कार्य कर रहा हूँ... रही बात गीला है तो बेहतर है.... जब गीला होगा तो कुछ दिखेगा... देखते रह्जोगे.... कुछ तो मिलेगा.... और बहुत उदाहरण है अभिसेख जी !
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09-11-2010, 03:35 PM | #3 | |
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अश्लीलता का मतलब बिकनी ब्लाउज और साडी साथ में सलवार कुरता नहीं है, आज कल सेंसर से भी टॉप लेस चित्र जिनमे निप्पल शो नहीं होते वो पास हो जाती है....इस बारे में क्या विचार है आप लोगों का !और हां सबसे सेक्सी ड्रेस तो सदी और ब्लाउज है साथ में पेटीकोट और लहंगा chunari , top squirt वो भी लो कट ब्लाउज के, तो क्या इन लोगो को एल सभा में बुला कर दंड संहिता की बात पर गोली मार देनी चाहिए !
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09-11-2010, 03:25 PM | #4 |
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बिकीनी अश्लील है तो लंगोट क्या है ?पिछले दिनों भोपाल में संस्कृति बचाओ मंच के कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के अंडर गारमेंट के विज्ञापन वाले बोर्ड उखाड़ कर फेंक दिए और दुकानों के शो केस में खडे़ बिकीनी और ब्रा वाले पुतले (मेनिक्विन) तोड़ डाले। उनका कहना है कि अंडर गारमेंट वाली लड़कियों की तस्वीर देखने से हमारी संस्कृति नष्ट होती है। उधर, हरिद्वार के महाकुंभ में महिला श्रद्धालुओं के बीच लंगोट पहने अनेक साधु गंगा नहाकर पुण्य लूट रहे हैं। अपने देश में पुरुष लंगोट पहनकर चौराहे पर भी खड़ा हो जाए तो संस्कृति को खतरा नहीं होता, स्त्री को बिकीनी में तस्वीर में भी देखने पर संस्कृति को बुखार चढ़ जाता है। हमारी संस्कृति में स्त्री और पुरुष बराबर नहीं हो सकते। पुरुष चाहे जितनी नंगई कर ले। बल्कि नंगा रहने पर साधु-संन्यासी का दर्जा मिल सकता है। लेकिन स्त्री का बिकीनी पर उतरना वर्जित है। इसीलिए संस्कृति की रक्षा करनी पड़ती है। देश में कई पंथ और संप्रदाय हैं, जिनमें साधु लोग नंगे रहते हैं। धार्मिक अवसरों पर उनकी शोभायात्रा निकलती है। अभी एक अखाड़ा कुंभ नहाने भी आया हुआ है। भोपाल में लड़कियों का एक कॉलेज है। इसके सामने एक ब्यूटी क्लिनिक वाले ने चॉकलेट बॉडी स्पा का होर्डिंग लगा रखा था। इसमें मॉडल की पूरी पीठ दिखाई दे रही थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस तरफ से गुजरे तो उन्हें वह होर्डिंग अश्लील लगा। उन्होंने कहा कि लड़कियों के कॉलेज के सामने ऐसी होर्डिंग्स कतई ठीक नहीं। उन्होंने कॉलेज के सामने से ही नहीं, पूरे राज्य से ऐसे अश्लील होर्डिंग्स हटाने के निर्देश दिए। क्या श्लील है और क्या अश्लील, इसका फैसला कौन करेगा? हमारी संस्कृति इसके बारे में बिल्कुल साफ है। चॉकलेट बॉडी स्पा इस जमाने की किसी भी लड़की के अरमानों का हिस्सा हो सकता है। लेकिन पोस्ट ग्रैजुएट स्तर की लड़कियां भी यह तय नहीं कर सकतीं कि अश्लील क्या है। कॉलेज के सामने ऐसी होर्डिंग्स रहे या नहीं, इसका फैसला कॉलेज की लड़कियों को करना चाहिए। वहां की महिला स्टाफ को करना चाहिए। लेकिन श्लील-अश्लील का मूल्यांकन पुरुष राजनेता करते हैं। हमारी प्राचीन गौरवपूर्ण सभ्यता में ऐसे मुद्दों पर लड़कियों की राय नहीं सुनी जाती। अपने देश में पहले महिलाएं अंडर गारमेंट (ब्रीफ और ब्रेसियर) जैसी चीजें पहनती ही नहीं थीं। लेकिन अब ये चीजें सतना और दांतेवाड़ा जैसी छोटी-छोटी जगहों पर ग्रामीण बाजारों तक में बिकने लगी हैं। लेकिन संस्कृति में शायद ऐसा क्लॉज हो कि वे बिकें और पहने भी जाएं, पर पहने हुए देखे न जाएं। आज ज्यादातर परिवारों में महिलाएं अंडर गारमेंट पहनती हैं। वे उसे खरीदने बाजार जाती हैं। जब वे किसी पुरुष दुकानदार से अपनी साइज का अंडर गारमेंट मांगती हैं, तो संस्कृति नष्ट नहीं होती। अपने घर की स्त्रियों के लिए जब पुरुष उसे खरीदने जाते हैं, तब भी संस्कृति नष्ट नहीं होती। ध्यान रहे कि परिवारों की स्त्रियों में पत्नी के अलावा मां और बहनें भी हो सकती हैं। मध्य प्रदेश में एक दलित लड़की को निर्वस्त्र करके घुमाया गया। मणिपुर की महिलाओं ने बलात्कारियों के खिलाफ नग्न प्रदर्शन किया। ऐसी घटनाएं इस देश में होती ही रहती हैं। ये सब अश्लील नहीं लगतीं। असल में इससे हमारी संस्कृति को भी कोई खतरा नहीं होता। इसलिए ऐसे मामलों में किसी 'संस्कृति बचाओ मंच' को आंदोलन करते आप कभी नहीं देखेंगे। इस संस्कृति का एक पहलू और है। कहां संस्कृति नष्ट हो रही है, इसका निर्णय हमेशा पुरुष करते हैं। आप महिलाओं को संस्कृति बचाओ आंदोलन चलाते नहीं देखेंगे। असल में संस्कृति नष्ट ही तब होती है, जब कोई महिला अपनी इच्छा से कोई काम करती है। पुरुष की मर्जी से बलात्कार भी हो जाए तो वह चिंता का विषय नहीं बनता। पुरुष की पीठ दिख सकती है, स्त्री की पीठ नहीं दिख सकती। असल में स्त्री की पीठ ही अश्लील होती है। इसमें देखने वाले की आंखों का कोई कसूर नहीं होता। तिस पर चॉकलेट बॉडी स्पा। यह तो हद ही हो गई। इसीलिए कहते हैं कि संस्कृति को समझना बहुत मुश्किल है। यह सबके वश की बात नहीं है। वैसे बाइ द वे, यह चॉकलेट स्पा होता क्या है?
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09-11-2010, 03:30 PM | #5 |
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खजुराहो क्या हमारे पर्यटन उद्योग का अश्लील पैकेज है? मुझे मालूम नहीं कि अश्*लीलता के संदर्भ में विचारधारा का सवाल कितना पारिभाषित है – लेकिन इतना मालूम है कि ऐसे किसी भी व्यवहार पर कानूनी पाबंदी है। इसके बावजूद धड़ल्*ले से अश्*लील साहित्*य प्रकाशित होते हैं और बड़े पैमाने पर बिकते हैं। पचास-साठ के दशक में राजकमल चौधरी ने मैथिली में एक नॉविल लिखा था, पाथर फूल। दरभंगा के एक प्रेस से छप रहा था। किसी कर्मचारी ने प्रशासन को सूचना दी कि पाथर-फूल नाम का एक अश्*लील साहित्*य छापा जा रहा है। जब तक छापे के लिए प्रशासनिक अधिकारी प्रेस पहुंचते, उससे पहले ही प्रकाशक ने छपी हुई सारी किताबें पांडुलिपि सहित आग के हवाले कर दी। उस नॉविल की तीन छपी हुई प्रतियां बची रह गयीं, जो तीन सज्*जन प्रेस से पहले ही उठा कर ले गये थे। लेकिन विडंबना ये है कि राजकमल चौधरी का वो नॉविल अब तक अप्रकाशित है। जाहिर है, अब तक ये भी पता नहीं है कि उस नॉविल में राजकमल ने किस मसले को डिस्*कस किया था। इस्*मत की कहानी लिहाफ समलैंगिक रिश्*तों पर एक मार्मिक कहानी है, लेकिन शुचितावादियों के निशाने पर रही। एक नॉविल अभी अभी मेरे हाथ लगा है, नोबल पुरस्कार विजेता एल्*फ्रीडे येलिनेक का - lust - हिंदी में इसका अनुवाद मज़ा नाम से प्रकाशन संस्*थान ने छापा है। मूल जर्मनी से इसका अनुवाद अमृत मेहता ने किया है। खैर, ये बाज़ार में पाठकों के लिए उपलब्*ध नहीं है। क्*योंकि छप जाने के बाद किसी कर्मचारी ने प्रकाशन संस्*थान के मालिक से कहा कि ये वल्*गर साहित्*य है – लगभग पोर्नोग्राफी। प्रकाशक ने इसे डंप कर दिया। बाज़ार में वितरित ही नहीं होने दिया। विदेशी आलोचकों ने लुस्*ट नाम की इस किताब को पोर्नोग्राफिक पैरोडी की संज्ञा दी है। सच ये है कि इस किताब में ज़रूर वल्*गर विवरण हैं, लेकिन वो जुगुप्*सा से ज़्यादा वितृष्*णा पैदा करते हैं। लॉलिता को हम किस श्रेणी में देखना चाहेंगे? खजुराहो क्*या हमारे पर्यटन उद्योग का अश्*लील पैकेज है? कहने का कुल जमा सार ये है कि अश्*लीलता से हमारा अभिप्राय क्*या है? अश्*लीलता से जुड़ी सामाजिक दुर्घटना के कितने उदाहरण हैं? क्*या रेपिस्*ट अश्*लील साहित्*य पढ़ कर उत्तेजित होता है या रिश्*तों के बीच संभव होने वाले यौन अपराध के पीछे अश्*लीलता की सार्वजनिक छवियां ज़*िम्*मेदार हैं? ऐसे में अश्*लील साहित्*य और अश्*लीलता की सार्वजनिक छवियों को लेकर हमारी उत्तेजना मैं समझ नहीं पाता हूं। जनतंत्र में जब आपने सविता भाभी पर सरकारी डंडा बरसाने की तरह ही कुछ वेबसाइटों पर भी ऐसी ही कार्रवाई करने की मांग उठायी, तो मेरे मन में कुछ और सवाल उभरे। वर्चुअल दुनिया में हर आदमी अपनी अपनी तरह से बर्ताव करने को स्*वतंत्र है। हम उसके बर्ताव को सामाजिक नैतिकता के दायरे में क्*यों लाना चाहते हैं? आपने जिन वेबसाइटों के उदाहरण दिये हैं, उन्*होंने देख लिया कि ख़बरों की औक़ात क्*या है और लोगों की दिलचस्*पी दरअसल किस चीज़ में सबसे ज़्यादा है। ठीक उसी तरह, जैसे टीवी में भूत-प्रेत-धर्म-अध्*यात्*म-सिनेमा-क्रिकेट की वकालत करने वाले दलील देते हैं कि पूरे देश की असल तस्*वीर देखने में नागरिकों की रुचि नहीं रही। ठीक उसी तरह, जैसे अख़बारों में खेती बाड़ी, समाज संस्*कृति, विचार विवेचना के पन्*नों की जगह ग्*लैमर और गॉशिप ने ले ली। मसला ये है कि मानव सभ्*यता की यौन गली ही अब तक इतनी रहस्*यमयी क्*यों बनी हुई है कि हर आदमी रात के अंधेरे में अपना अपना दीया जला कर उसे सुलझाने और समझने की कोशिश करता है। एक युवती अपना कौमार्य बेचती है और एक वेबसाइट उसकी ख़बर लगाता है और सबसे अधिक लोग उसे पढ़ते हैं, तो उसमें वेबसाइट का क्*या दोष है? मैंने आपके दिये हुए तमाम लिंक्*स देखे और उन तमाम लिंक्*स के होमपेज भी देखे। इन ख़बरों का एक कोना है या ऐसी ख़बरें जहां-तहां बिखरी पड़ी हैं। मुख्*य रूप से समाचार और उनके दूसरे स्*तंभ ही होमपेज पर नज़र आते हैं। हां सर्वाधिक पॉपुलर या सर्वाधिक पढ़ी गयी लिस्*ट में कथित अश्*लील ख़बरों की संख्*या ज़्यादा है। इसमें विजिटर, व्*यूअर का दोष है या वेबसाइट का – मुझे पहले ये स्*पष्*ट कीजिए। आपकी इसी बहस को अगर सबसे अधिक लोग देखने लगें, तो क्*या आपकी साइट पर छपने वाली दूसरी चीज़ों का संदर्भ और उसकी चर्चा और गंभीरता गौण मान ली जाएगी? समाज की अपनी दिक्*कत को सुलझाने के लिए कृपया कानून का रास्*ता न दिखाएं। सविता भाभी और ऐसी तमाम साइट को नेट पर बने रहने दें और उनके घनघोर अश्*लील क्रियाकलापों के बरक्*स इन्*हीं विषयों की सृजनात्*मक व्*याख्*या करके उनको पाठकों के लिए अप्रासंगिक बना दें। आप कहेंगे कि यह कैसी डिमांड है? फिर तो समाज में राजनीतिक विचारों की विरोधी धाराओं के खिलाफ़ भी इसी तर्ज पर बर्ताव करना होगा और सांप्रदायिक और जातिवादी ताक़तों को अपना काम करने देना होगा और प्रगतिशील सोच के साथ हमें अपना काम करते रहना होगा? तब मेरा जवाब वही होगा, जो मैं अपने इस बयान की पहली पंक्ति में संकेत कर चुका हूं, अश्*लीलता कोई राजनीतिक या सामाजिक (या यहां तक कि निजी) विचारधारा नहीं है – यह हमारी सभ्*यता की वो सरहद है, जहां कब दीवार खड़ी कर दी गयी, हमें पता ही नहीं चला। ग़नीमत है कि दीवार पुरानी पड़ चुकी हैं और दरारें नज़र आने लगी हैं। उन दरारों से हमारी सदी अगर झांक रही है, तो उसे झांकने दीजिए।
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09-11-2010, 03:33 PM | #6 |
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एक और बात जो चीज़ आप अपने पूरा परिवार के साथ बैठ कर नहीं देख सकते.. वो अश्लील है..
one line..........
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09-11-2010, 03:37 PM | #7 |
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कुछ ऐसी पिक्चर के नाम बताये... वर्दी... बेटा , बूम, दस , तन बदन (गोविंदा ) और बहुत है.... टार्ज़न
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09-11-2010, 03:39 PM | #8 |
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किसी भी तरह की अश्लील वार्तालाप या मानवीय अंगो का कामुक प्रदर्शन अश्लीलता है...........
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09-11-2010, 03:40 PM | #9 |
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आज के दौर में मनोरंजन का पूर्णत्यः व्यवसायीकरण हो चुका है. लोग धन के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है. मनोरंजन की जगह फूहड़ता व अश्लीलता परोसी जा रही है.
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09-11-2010, 03:45 PM | #10 | |
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मित्र हमसफ़र अपने दिल पर हाथ रखकर एक बात का उत्तर दे देना. क्या जैसे तुम या में घर मैं निक्कर में घूम लेते हैं तो क्या अपनी पत्नी और मां को वैसे घुमते हुए देख सकते हैं क्या ? आदमी के मुकाबले औरत के पास छिपाने के लिए ज्यादा अंग होते हैं. पर फिर भी क्या कारण है कि औरतों को ही कम से कम कपडे पहनाये जा रहे हैं. आदमी की शर्ट आज भी वैसे ही बनती है जैसे कि आज से ५० साल पहले बनती थी. ( लगभग ) पर औरत की ड्रेस दिन प्रतिदिन छोटी होती जा रही है. ऐसा क्यों ? क्यों औरतें सर्दी में भी केवल एक ब्लाउज में ही घर से निकल जाती हैं. क्यों उनका वस्त्र दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है. क्योंकि समाज के कुछ लोगों ने फैशन के नाम पर उसको नंगा करके अपने मनोरंजन का उल्लू सीधा किया है. कभी मिस वर्ल्ड के नाम पर और कभी मिस यूनिवर्स के नाम पर. क्योंकि आम ही औरत धीरे धीरे सेक्स सिम्बल बनती जा रही है तो फ़िल्मी हीरोइन तो उनसे चार कदम आगे ही रहेंगी. और अगर आप उन चित्रों को एक अवयस्क के सामने रखेंगे तो क्या वो नोर्मल रह पायेगा. क्या हमारा अपने समाज की भावी पीड़ी के प्रति कोई भी कर्त्तव्य नहीं हैं. जब ये कहा जा रहा है कि आप इस तरह के चित्र मत डालिए तो क्या मजबूरी हो सकती है इस तरह के चित्र डालने की ? आपके कप्यूटर पर तो पड़े ही हुए हैं, चाहें जब देख लो कौन रोक रहा है ? पर उन सदस्यों को तो मत दिखाओ जिनकी उम्र अभी कच्ची है और वो या उनके मां और बाप उन बच्चों को इसलिए आने देते हैं कि ये एक साफ़ सुथरी फोरम है. खूबसूरती ही दिखानी है तो और भी तसवीरें हैं जिनको आप दिखा सकते हैं, जिनके अन्दर अंग प्रदर्शन नहीं है. गुसल में तो सभी नंगे होते हैं इसका मतलब ये नहीं है कि बाहर भी नंगे घूमोगे. ससुर को पता होता है कि बहु गर्भवती कैसे हुयी है फिर भी उसकी चर्चा वो अपनी बहु से नहीं करता. कुछ तो मर्यादा रखो मित्र. धन्यबाद.
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