06-07-2013, 07:35 PM | #1 |
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ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . मात्रा भार- 2122 2122 2122 212 फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . है ग़रीबी साथ पर ये दुख हुआ है जानकर मुँह छिपाये जा रहा था वो मुझे पहचान कर नाव थी मजधार मेरी वो किनारा कर गया जी रहा था मैँ जिसे पतवार अपनी जानकर बात आई थी हवा से पाप धुलता है कहीँ मैल है दिल मेँ अगर तो क्या करेँगे स्नान कर ये धरा भी एक दिन मिट कर रहेगी तय सुनेँ है ज़मीँ ये कह रही मत बैठना अभिमान कर कह रहा "आकाश" मुझको वो कबूतर आजकल देखता जैसे शिकारी तीर कोई तान कर ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश |
06-07-2013, 07:53 PM | #2 | |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
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जीवन के यथार्थ को रेखांकित करती हुयी पंक्तियाँ ....... शब्दों का सुन्दर चयन। आभार बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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06-07-2013, 09:12 PM | #3 |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
मात्रा भार-
2122 2122 2122 212 फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . भाई ये क्या है
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06-07-2013, 11:01 PM | #4 |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
मित्र, जिस प्रकार हिंदी में छंदबद्ध कविता मात्रा के हिसाब से लिखी जाती है (जैसे दोहे की दोनों पंक्तियाँ - 13,11/13,11 मात्राओं से निर्मित होती हैं) उसी प्रकार परंपरागत ग़ज़ल भी एक ही वज़न - मात्रा क्रम - के अनुसार अथवा एक ही बह्र या छंद में लिखे गये शेरों का समूह होता है. परंपरा के अनुसार उक्त ग़ज़ल के शेर दिखलाई गयी मात्राओं के अनुसार निर्मित है जहां मात्राओं के समूह को परंपरागत नाम दिये गये हैं). मात्रा क्रम तथा बह्र विभिन्न प्रकार की होती हैं.
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07-07-2013, 08:21 AM | #5 |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
उम्मीद है आदरणीय रजनीश जी के द्वारा बताई गई जानकरी से आप संतुष्ट हो गये होँगे।
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07-07-2013, 09:25 AM | #6 | |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
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09-07-2013, 06:29 AM | #7 |
Diligent Member
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
सोचा था उससे अधिक,
दिया आपने प्यार। दिल मेरा गदगद हुआ, करेँ नमन स्वीकार।। - आकाश महेशपुरी |
09-07-2013, 08:33 PM | #8 | |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
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तुम उदयाचल के बाल सूर्य,'जय' अस्ताचलगामी|| मंगलकामनाओं सहित आभार बन्धु।
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29-03-2014, 07:52 PM | #9 |
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
ग़ज़ल- दुख हुआ है जानकर (संशोधित)
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . है ग़रीबी साथ पर ये दुख हुआ है जान कर मुँह छिपाये जा रहा था वो मुझे पहचान कर ... नाव थी मजधार मेरी वो किनारा कर गया जी रहा था मैँ जिसे पतवार अपनी मान कर ... बात आई थी हवा से पाप धुलता है कहीँ मैल है दिल मेँ अगर तो क्या करेँगे स्नान कर ... ये धरा भी एक दिन मिट कर रहेगी तय सुनेँ है ज़मीँ ये कह रही मत बैठना अभिमान कर ... कह रहा "आकाश" मुझको वो कबूतर आजकल देखता जैसे शिकारी तीर कोई तान कर ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 |
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