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Old 30-10-2010, 04:45 PM   #1
ABHAY
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Post अकबर और बीरबल की कहानी

बीरबल ने चतुराई से खुद को मृत्युदंड से बचाया
एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में जोरों का कोलाहल सुनाई दिया। सभी लोग बीरबल के खिलाफ नारे लगा रहे थे- बीरबल बदमाश है, पापी है, इसे दंड दो। बादशाह ने भारी जनमत को बीरबल के खिलाफ देख आज्ञा दी कि बीरबल को सूली पर चढ़ा दिया जाए। दिन तय हुआ। बीरबल ने अपनी अंतिम बात कहने की आज्ञा मांगी।

आज्ञा मिलने पर उसने कहा- मैंने सारी चीजें तो आपको बता दीं, पर मोती बोने की कला नहीं सिखा पाया। अकबर बोला- सच, क्या तुम वह जानते हो? तो ठीक है जब तक मैं यह सीख न लूं, तुम्हें जीने का अवसर दिया जाता है। बीरबल ने कुछ विशेष महलों की ओर इशारा करते हुए कहा-
इन्हें ढहा दिया जाए क्योंकि इसी जमीन में उत्तम मोती पैदा हो सकते हैं। महल ढहा दिए गए। ये महल बीरबल की झूठी शिकायत करने वाले दरबारियों के थे। वहां बीरबल ने जौ बो दिए। कुछ दिन बाद बीरबल ने सभी से कहा- कल सुबह ये पौधे मोती पैदा करेंगे।

अगले दिन सभी आए। ओस की बूंदें जौ के पौधों पर मोती की तरह चमक रही थीं। बीरबल ने कहा- अब आप लोगों में से जो निरपराधी, दूध का धुला हो, इन मोतियों को काट ले। लेकिन यदि किसी ने एक भी अपराध किया होगा तो ये मोती पानी होकर गिर जाएंगे।

कोई आगे न बढ़ा। लेकिन अकबर समझ गए कि गलतियां तो सभी से होती हैं। बादशाह ने बीरबल को मुक्त कर दिया। सार यह है कि किसी को दंडित करने से पूर्व उसके दोषी या निर्दोष होने के बारे में भलीभांति जांच कर लेनी चाहिए।
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Old 30-10-2010, 04:56 PM   #2
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'बीरबल की पैनी दृष्टि'
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।

ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।

एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं....भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”

बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।

बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।

बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।

“दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।

बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”

“क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?”

“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूध्द नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।”
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Old 30-10-2010, 04:59 PM   #3
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बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।


उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।


बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।


अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”


“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।”


अकबर ने कहा, “बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?”


“उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।”


बीरबल ने आगे कहा, “माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड क़ी गड़न सहन न कर सके।”


इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है।”


बादशाह बोले, “क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, “सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।”

बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।
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Old 30-10-2010, 05:01 PM   #4
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गंगाजल अमृत है - अकबर बीरबल के चुटकुले
एक बार चीन के बादशाह बीमार पड़े. उन्हें किसी ने बतलाया कि भारतबर्ष से गंगा नदी का जल मंगवाए , वह फायदा करेगा . बस उन्होंने एक दूत गंगाजल लाने को भेजा . उसने बादशाह अकबर के दरबार में पहुँच कर सारा हाल कहा और गंगा जल माँगा . उस समय बीरबल भी वही मौजूद थे . उन्होंने क्रोधित होकर कहा - हमारे यहाँ कोई गंगा जल नहीं है . सारे दरबारी और बादशाह अकबर बड़े आश्चर्य में पड़ गए कि बीरबल क्या कह रहा है ? उन्होंने उससे पूछा - बीरबल पागल तो नहीं हो गए हो ? भारतबर्ष में गंगा नदी है तो सही . बीरबल ने कहा - हुजूर ! वह गंगा जल नहीं वह तो अमृत है . चीन के दूत ने कहा कि अमृत ही दे दो , लेकिन उत्तर मिला कि अपने बादशाह से पूछ कर आओ , तब मिलेगा .
आखिर वह दूत लौटकर चीन चला गया और वहाँ से बादशाह की आज्ञा लेकर आया , तब उसे (अमृत) गंगाजल दिया गया .
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Old 30-10-2010, 05:03 PM   #5
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बेटी दे दो
एक शाम को बीरबल और बादशाह अकबर घूमने के लिए निकले. चलते चलते रास्ते में एक बड़ा बरगद का वृक्ष दिखाई दिया . उसे देख कर बीरबल ने कहा - देखिये जहाँपनाह ! कैसा अच्छा वर है ! बादशाह को शरारत सूझी , उन्होंने तुरंत कहा , बेटी दे दो . तो बीरबल यह सुनते ही मारे लज्जा के जमीन में गड़ गए .
आगे चलकर एक बड़ा सुन्दर मकबरा दिखाई दिया , उसे देखते ही बरबस बादशाह के मुँह से निकला - देखो बीरबल ! यह कितना सुन्दर है . तुरंत बीरबल ने जबाब दिया , सुन्दर है तो पोती दिला दीजिये .
बेचारे बादशाह अकबर समुचित जबाब न पाकर कुछ न कह सके .
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सत्य और असत्य का अंतर
एक बार बादशाह ने बीरबल से पूछा - बीरबल ! सत्य और असत्य में क्या अंतर है ? बीरबल ने कहा - हुजूर ! जितना आँख और कान में है . बादशाह ने कारण पूछा तो तो उन्होंने जबाब दिया - देखिये जो बात अपनी आँख से देखी जाय , वह सत्य है , उसे कोई झूठा नहीं कर सकता , लेकिन कान से सुनी जानी वाली बात असत्य होती है , इसीलिए सत्य और असत्य में आँख और कान का अंतर है .

लोहे की तलवार
एक दिन दरबार में एक कारीगर एक बहुत बढ़िया तलवार बना कर लाया . बादशाह अकबर को बड़ी पसंद आई , उन्होंने उसे कुछ देर तक हाथ में लेकर देखा और कहा - बीरबल तुम भी देखो , कह कर बीरबल को दे दी . बीरबल ने पहले तो उसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक उलट - पलट कर देखते रहे फिर उन्होंने उसे पलट कर तथा घिसकर देखा , परन्तु ऐसा मालुम हुआ कि उनकी समझ में कुछ न आया .
बीरबल बोले - हुजूर ! गुस्ताखी माफ़ हो ! आपके पारस जैसे हाथों में आकर तलवार सोने की क्यों नहीं हुई ? यही देख रहा था . इसीलिए मैंने इसे घिसा भी था . यह बात अभी तक मेरे समझ में नहीं आई .
बीरबल का ऐसा जबाब सुनकर बादशाह बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें वही तलवार इनाम में दे दी .
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Old 15-02-2011, 01:54 PM   #7
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हूर परी चुड़ैल / अकबर बीरबल की कहानी

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा - हूर ,परी और चुड़ैल लाओ . दूसरे दिन बीरबल ने एक वेश्या और अपनी स्त्री को लेकर जब दरबार में पहुंचे तो कहा - हुजूर ! अपनी बेगम साहिबा को और बुलवा लीजिये . बादशाह की आज्ञा से बेगम साहिबा भी आ गयी ,तब बीरबल ने इस प्रकार जबाब दिया . उसने कहा - हुजूर ! यही वेश्या हूर है यानी जन्नत में मिलने वाली सुंदरी ,दूसरी मेरी स्त्री है जो यह सर्व सुंदरी है और सब स्त्री सुलभ गुणों से पूर्ण है , न कभी गहनों के लिए झगडती है और न किसी बात के लिए मचलती है इसीलिए यह परी है . तीसरी बेगम साहिबा है . आप खुद ही जानते है ,इनकी इच्छा पूरी करना आपका दिन का खाना और रात की नींद को हराम कर देता है . बेगम साहिबा मन मसोस कर रह गयी . बादशाह बड़े शर्मिंदा हुए .
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Old 15-02-2011, 02:02 PM   #8
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बेटी दे दो - अकबर बीरबल के किस्से

एक शाम को बीरबल और बादशाह अकबर घूमने के लिए निकले. चलते चलते रास्ते में एक बड़ा बरगद का वृक्ष दिखाई दिया . उसे देख कर बीरबल ने कहा - देखिये जहाँपनाह ! कैसा अच्छा वर है ! बादशाह को शरारत सूझी , उन्होंने तुरंत कहा , बेटी दे दो . तो बीरबल यह सुनते ही मारे लज्जा के जमीन में गड़ गए .
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Old 21-02-2011, 05:03 AM   #9
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अभय और सिकंदर भाई, आपको कोटि-कोटि प्रणाम. बहुत ही मजेदार कहानियां हमारे साथ बांटी हैं.
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Old 02-03-2011, 06:14 AM   #10
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Default अकबर और बीरबल की कहानी

{गुरू ग्रन्थ}

एक बार अकबर और बीरवल अपने बगीचे मे बैठे थे
तभी राजा अकबर ने बीरवल से कहा

अकबर - बीरवल ये बताओ की हमारी जनता हमारे बारे मे क्या सोचती है
बीरवल - महाराज इस बात का जबाब जनता से सही कोई नही दे सकता
बीरवल और राजा अकबर वेश बदलकर अपनी सलतान्त मे घुमने निकले
तभी दूर से जंगल मे से एक लकडहारा लकडी काट कर लेकर आ रहा था तो (राजा अकबर ने मन मे सोचा ये लकडहारा चोर है अब मे जंगल से लकडी चोरी के लिये इसे डन्ड दूँगा )
राजा अकबर ने बीरबल से कहाँ इस लकडहारे से पता करो मेरे बारे मे ये क्या सोचता है
बीरबल - सुनो लकडहारे हमारे राजा अकबर नही रहे
लकडहारा - अच्छा हुआ बो ना रहा और अकबर को बुरा भला कहता हुआ निकल गया
राजा अकबर दुखी होये की उनकी जनता उनके बारे मे ये सोचती है
तभी बीरवल ने कहा कि महाराज आप थोडा और रूकिये
तभी राजा अकबर को दूर से एक बुजूर्ग महिला आती दिखाई दी और उस बुजूर्ग महिला को देख कर राजा अकबर का मन दुखी हुआ
( राजा अकबर ने सोचा की बो उस महिला की मदद करेगेँ )
बीरबल ने उस महिला कहा की राजा अकबर नही रहे
तो बो महिला रोने लगी और कहने लगी हे भगबान राजा अकबर की जगह मुझे उठा लेते)
लकडहारा और बुजूर्ग महिला दोनो की बातो के बाद राजा अकबर को अपने सबाल का उत्तर मिल गया
दोस्तो कहानी का मतलब है हम जैसा सोचते है वैसा हमे मिलता है
तो दोस्तो बताये कैसी लगी मेरी कहनी
ये कहानी मेरी जिन्दगी का एक हिस्सा बन चुकी है आप भी बनाये आपका मित्र
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