03-11-2010, 02:58 PM | #1 |
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धरती धोरां री............राजस्थान
राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसकी झंझा के साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रथान न हुआ हो।'' यह एक ऐसी धरती है जिसका नाम लेते ही इतिहास आँखों पर चढ़ आता है, भुजाएँ फड़कने लग जाती हैं और खून उबल पड़ता है। यहाँ का जर्रा-जर्रा देशप्रेम, वीरता और बलिदान की अखूट गाथा से ओतप्रोत अपने अतीत की गौरव-घटनाओं का जीता-जागता इतिहास है। इसकी माटी की ही यह विशेषता है कि यहाँ जो भी माई का लाल जन्म लेता है, प्राणों को हथेली पर लिये मस्तक की होड़ लगा देता है। यहाँ का प्रत्येक पूत अपनी आन पर अड़िग रहता है। बान के लिये मर मिटता है और शान के लिए शहीद होता है।'' राजस्थान भारत वर्ष के पश्चिम भाग में अवस्थित है जो प्राचीन काल से विख्यात रहा है। तब इस प्रदेश में कई इकाईयाँ सम्मिलित थी जो अलग-अलग नाम से सम्बोधित की जाती थी। उदाहरण के लिए जयपुर राज्य का उत्तरी भाग मध्यदेश का हिस्सा था तो दक्षिणी भाग सपालदक्ष कहलाता था। अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरुदेश का हिस्सा था तो भरतपुर, धोलपुर, करौली राज्य शूरसेन देश में सम्मिलित थे। मेवाड़ जहाँ शिवि जनपद का हिस्सा था वहाँ डूंगरपुर-बांसवाड़ा वार्गट (वागड़) के नाम से जाने जाते थे। इसी प्रकार जैसलमेर राज्य के अधिकांश भाग वल्लदेश में सम्मिलित थे तो जोधपुर मरुदेश के नाम से जाना जाता था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश कहलाता था तो दक्षिणी बाग गुर्जरत्रा (गुजरात) के नाम से पुकारा जाता था। इसी प्रकार प्रतापगढ़, झालावाड़ तथा टोंक का अधिकांस भाग मालवादेश के अधीन था। बाद में जब राजपूत जाति के वीरों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो उन भागों का नामकरण अपने-अपने वंश अथवा स्थान के अनुरुप कर दिया। ये राज्य उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़, प्रतापगढ़, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, सिरोही, कोटा, बूंदी, जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली, झालावाड़, और टोंक थे। इन राज्यों के नामों के साथ-साथ इनके कुछ भू-भागों को स्थानीय एवं भौगोलिक विशेषताओं के परिचायक नामों से भी पुकारा जाता है। ढ़ूंढ़ नदी के निकटवर्ती भू-भाग को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर) कहते हैं। मेव तथा मेद जातियों के नाम से अलवर को मेवात तथा उदयपुर को मेवाड़ कहा जाता है। मरु भाग के अन्तर्गत रेगिस्तानी भाग को मारवाड़ भी कहते हैं। डूंगरपुर तथा उदयपुर के दक्षिणी भाग में प्राचीन ५६ गांवों के समूह को ""छप्पन'' नाम से जानते हैं। माही नदी के तटीय भू-भाग को कोयल तथा अजमेर के पास वाले कुछ पठारी भाग को ऊपरमाल की संज्ञा दी गई है। अंग्रेजों के शासनकाल में राजस्थान के विभिन्न इकाइयों का एकीकरण कर इसका राजपूताना नाम दिया गया, कारण कि उपर्युक्त वर्णित अधिकांश राज्यं में राजपूतों का शासन था। राजपूताना के बाद इस राज्य को राजस्थान नाम दिया गया। आज यह रंगभरा प्यारा प्रदेश इसी राजस्थान के नाम से जाना जाता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राजपूताना और राजस्थान दोनों नामों के मूल में "राज' शब्द मुख्य रुप से उभरा हुआ है जो इस बात का सूचक है कि यह भूमि राजपूतों का वर्चस्व लिये रही और इस पर लम्बे समय तक राजपूतों का ही शासन रहा। इन राजपूतों ने इस भूमि की रक्षा के लिए जो शौर्य, पराक्रम और बलिदान दिखाया उसी के कारण सारे विश्व में इसकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य हुई। राजपूतों की गौरवगाथाओं से आज भी यहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि गर्व-मण्डित है। प्रसिद्ध इतिहास लेखक कर्नल टॉड ने इस राज्य का नाम "रायस्थान' रखा क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल में राजाओं के निवास के प्रान्त को रायथान कहते थे। इसा का संस्कृत रुप राजस्थान बना। हर्ष कालीन प्रान्तपति, जो इस भाग की इकाई का शासन करते थे, राजस्थानीय कहलाते थे। सातवीं शताब्दी से जब इस प्रान्त के भाग राजपूत नरेशों के आधीन होते गये तो उन्होंने पूर्व प्रचलित अधिकारियों के पद के अनुरुप इस भाग को राजस्थान की संज्ञा दी जिसे स्थानीय साहित्य में रायस्थान कहते थे। जब भारत स्वतंत्र हुआ तथा कई राज्यों के नाम पुन: परिनिष्ठित किये गये तो इस राज्य का भी चिर प्रतिष्ठित नाम राजस्थान स्वीकार कर लिया गया। |
03-11-2010, 03:05 PM | #2 |
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सभी जानते हैं की राजस्थान राजे रजवाड़ों की भूमि रही है इसीलिए इसका नाम "राजस्थान" है.
मलेठिया जी, हम सभी राजस्थान के बारे में सब कुछ जानने को उत्सुक हैं . कृपया हमें राजस्थान के बारे में सबकुछ बताने की कृपा करें.
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03-11-2010, 03:36 PM | #3 | |
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मैं समय समय पर इसे अपडेट करता रहूँगा .................. अभी नेट की समस्या ho rhi hai......... |
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03-11-2010, 04:26 PM | #4 |
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राजस्थान के बारे में जानने की उत्सुकता तो मुझमें भी है
पर तारा बाबु एक प्रार्थना है भारी भरकर लेख की बजाय छोटे छोटे प्वाइंट और चित्र में अगर आप बताएं तो मुझे ख़ुशी होगी बाकि आप अपनी सहूलियत देख लें
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03-11-2010, 04:41 PM | #5 |
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आप सभी सज्जनों को यहां पाकर बहुत प्रसन्नता हुई !
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03-11-2010, 05:49 PM | #6 |
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हमें भी आपको यहाँ पा कर अपार प्रसन्नता हो रही है. .. अलैक जी, सादर प्रणाम.
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04-11-2010, 11:51 AM | #7 |
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जी,निशांत जी मैं भी यहाँ पर मुख्य बिन्दुओ को चित्र सहीत प्रस्तुत करने की कोशिश करूँगा.............
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04-11-2010, 11:52 AM | #8 |
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04-11-2010, 12:05 PM | #9 |
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आमेर का किला
आमेर का किला जिसे राजा मान सिंह ने सन १५९२ में बनवाया था और उसे विस्तार दिया मिर्जा राजा जय सिंह प्रथम एवं द्वितीय ने. परन्तु मूलतः जो अम्बेर का किला अम्बा माता की प्रतिष्ठा में १३ वीं सदी में बना था वह तो ऊपर है और उसे बनवाया था मीणा (चंदा) राजवंश ने. उसे ही आज हम जय गढ़ के नाम से जानते हैं. आज वह भग्नावस्था में है. उस किले की तलहटी में पुराना आमेर महल और एक बस्ती भी थी जिसके भग्नावशेष भर रह गए हैं. वर्त्तमान महल के चाँद पोल के निकट से एक पत्थर बिछा मार्ग उन खंडहरों की ओर जाता है. आमेर का वर्त्तमान महल हिन्दू एवं मुसलमानी स्थापत्यकला का एक बेजोड़ उदहारण माना जाता है. इसकी सुन्दरता की तारीफ सुन सुन कर बादशाह जहाँगीर जल भुन गया. कहते हैं कि उसने ईर्शावश उस महल की सुन्दरता को नेस्तनाबूद करने के लिए अपने आदमी भेजे थे. उनके पहुँचने के पहले ही महल के उन बेजोड़ अलंकरणों को प्लास्टर से ढक दिया गया. बादशाह को बताया गया कि महल की खूबसूरती महज अफवाह थी. |
05-11-2010, 12:58 AM | #10 |
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मलेठियाजी .....बहुत.......बहुत.......बहुत.....अच्छा सूत्र सुरु किया है ....कृपया अधिक से अधिक जानकारी दीजिये ताकि हमे भी राजस्थान को नजदीक से देख-पहेचान ने का मौका मिल सके.....
साथ मे सभी सदस्योंको विनंती है की आप भी अपने अपने राज्य / इलाके के बारे मे विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिये ताकि यह फोरम एक संपूर्ण भारत दर्शन का स्थल बन जाये.. हो सके तो सचित्र जानकारी दीजियेगा. धन्यवाद. |
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