05-11-2012, 04:51 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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कद अपना कभी नापिये .....
आईना कभी देखिये सीरत की नज़र से . हक़ मारने की रस्म ख़त्म होगी दिन ब दिन ; ऐसों को अगर देखिये लानत की नज़र से . आपही के रचे इश्तेहार हैं जो मुल्क़ के ; नाहक़ उन्हें न देखिये नफ़रत की नज़र से . कुछ को बना के हाशिया क्यों दे दिये सिफ़र ; भरसक उन्हें भी देखिये रहमत की नज़र से . छज्जे पे चाय और पकौड़ों के दरमियाँ ; देखें कभी सावन को , टूटी छत की नज़र से . हाथों से दूर , दिल में बसा चाँद लगेगी ; रोटी को कभी देखिये ग़ुरबत की नज़र से ग़म और ख़ुशी के दौर से पेश आइयेगा यूँ ; सम भाव सबको देखिये मरघट की नज़र से . जो साथ न जाना , वही बस क्यों कमा रहे ; उपलब्धियों को देखियेगा यश की नज़र से . इस ख़्वाहिशों के दौर में पनपा अज़ब चलन ; कुछ ढूंढते हैं प्यार तिज़ारत की नज़र से . देखें हों जिसके साथ हसीं ज़िन्दगी के ख़्वाब ; डोली उसी की देखिये बेबस की नज़र से . रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . ( शब्दार्थ ~~सीरत = आन्तरिक सौन्दर्य , सिफ़र = शून्य , रहमत = कृपा ,ग़ुरबत = दरिद्रता , मरघट = श्मशान , तिज़ारत = व्यापार ) Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 05-11-2012 at 07:13 PM. |
05-11-2012, 04:55 PM | #2 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
बहुत खूब डॉ० साहेब।
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05-11-2012, 05:25 PM | #3 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
छज्जे पे चाय और पकौड़ों के दरमियाँ ;
देखें कभी सावन को , टूटी छत की नज़र से . हाथों से दूर , दिल में बसा चाँद लगेगी ; रोटी को कभी देखिये ग़ुरबत की नज़र से आपकी इन दो लाइनों ने मुझे कविता को कितनी बार पढने के लिए मजबूर किया है....!! बहुत खूब.....!!!
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05-11-2012, 09:27 PM | #4 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
बहुत गहरी बात आपने काफी सादा लहजे में कह डाली है, ऐसा आप जैसा एक कुशल कलमकार ही कर सकता है ! आभार !
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05-11-2012, 09:33 PM | #5 | |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
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05-11-2012, 09:48 PM | #6 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
अतिसुन्दर रचना ...........!
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06-11-2012, 07:19 AM | #7 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
एक और बढ़िया रचना पढवाने के लिए बधाई।
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06-11-2012, 09:25 PM | #8 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
आभार आपका श्री aspundir जी .
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06-11-2012, 10:06 PM | #9 |
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Re: कद अपना कभी नापिये .....
छज्जे पे चाय और पकौड़ों के दरमियाँ ;
देखें कभी सावन को , टूटी छत की नज़र से . अति सुंदर एक भाव पूरण रचना / वैसे तो किसी भी बात को कहने के बहूत से तरीके होते है लेकिन डॉ साहब जो तरीका आपने चुना है वो एक दम अद्वितीय है . एक अच्छी कविता धन्यवाद डॉ साहब |
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