21-02-2011, 10:26 AM | #21 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
शुक्रिया
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
21-02-2011, 11:19 AM | #22 | |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
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21-02-2011, 11:25 AM | #23 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
सिकन्दर साहब बहुत बढिया सूत्र बनाया है मै आपको पाक इस्लाम धर्म के बारे मे बताने के लिये त्ह दिल से शुक्रिया करता हूँ
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21-02-2011, 11:32 AM | #24 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
एक बात तो मैं यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि अधिकांश नॉन मुस्लिम्स एवं कुछ मुस्लिम्स भी इस गलत फहमी में मुब्तिला हैं कि इस्लाम का आरम्भ १५०० वर्ष पूर्व हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा किया गया जबकि सत्य यह है कि कुरान के अनुसार इस्लाम का आरम्भ स्रष्टि की रचना के साथ ही हो गया था सबसे पहले नबी हजरत आदम अ०स० को पृथ्वी पर भेजा गया और उसके बाद एक लाख चोबीस हज़ार नबियों को दुनिया में इस्लाम फेलाने के लिए भेजा गया |कुरान में बहुत से नबियों का ज़िक्र है जैसे कि हजरत युसूफ अ०स० ,हजरत इब्राहीम अ०स०.हजरत ईसा अ०स० (जिन्हें ईसाई लोग जीसस के नाम से जानते है)|विज्ञानं के अनुसार भी मानव का मानसिक स्तर आरम्भ में उतना विकसित नहीं था जितना कि आज है इसलिए इस्लाम के नियम उसकी सुविधानुसार परिवर्तित किये जाते रहे परन्तु एक समय ऐसा आया कि अल्लाह ताला को लगा कि अब मानव उस मानसिक स्तर पर है जब यह कुरान को समझ सकता है तब कुरान को मुहम्मद साहब स०अ०व० पर नाजिल किया गया (यह इस प्रश्न का भी उत्तर है कि लोग कहते हैं कि यदि इस्लाम सबसे पहला धर्म हे तो कुरान बाद में क्यूँ आया) और हजरत मुहम्मद स०अ०व० को अंतिम नबी के रूप में भेजने का उद्देश्य यह भी रहा कि इस्लाम अब मुकम्मल (सम्पूर्ण)हो गया है अर्थात अब कयामत तक इसमें कोई परिवर्तन नही किया जायेगा |
इस बात का एक और सबूत यह भी है कि खाना काबा जिसके चरों और आप हज यात्रा के समय चक्कर लगते हैं वो हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा नही बनाया गया बल्कि उसकी तामीर (कन्स्ट्रक्शन) हजरत इब्राहीम अ०स० द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल अ०स० के साथ मिलकर की गयी |हजरत इस्माइल अ०स० भी बाद में नबी बनाये गए | अभी कुछ सबूत और दूंगा इस बात के कि इस्लाम १५०० वर्ष पुराना नही बल्कि पृथ्वी की रचना होने के समय से है | Last edited by masoom; 21-02-2011 at 11:48 AM. |
21-02-2011, 11:38 AM | #25 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
" सुन्नत वह ग्रंथ (पुस्तक) है जिसमें मुहम्मद साहब "
हंसी आती है पढ़ कर ! शायद कोई गैर मुस्लिम भी जानता होगा कि सुन्नत क्या होती है |
21-02-2011, 11:39 AM | #26 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
कुरान का नाजिल होना -अल्लाह ताला ने अपना संदेश हमेशा फरिश्तों के माध्यम से भेजा और एक फरिश्ते का नाम है "हजरत जिब्राईल अ०स०"(ईसाई लोग इन्हें गेब्रियल के नाम से जानते हैं) |हज़त जिब्राईल अ०स० ही हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक अल्लाह का संदेश नबियों तक लाते रहे हैं |
कुरान भी समय समय पर हजरत जिब्राईल अ०स० के द्वारा अल्लाह के आदेश पर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक पंहुचाया जाता था |अर्थात हजरत जिब्रईल अ०स० स्वयम मुहम्मद स०अ०व० को कुरान का पाठ पढाया करते थे जिसमे उनको कुल मिलाकर २७ वर्षों का समय लगा | उसके बाद यह आप स०अ०व० को जुबानी याद हो जाता था और आप दुसरे सहाबियों को यह सुनाया करते थे और ये सहाबी भी इसे याद करके अन्य लोगों तक पहुचाते थे | सहाबी -जिस व्यक्ति ने इस्लाम स्वीकार करने के बाद अर्थात मुस्लिम होने के बाद अपनी आँखों से हजरत मुहम्मद स०अ०व० को देखा हो उसे सहाबी कहते हैं | Last edited by masoom; 21-02-2011 at 11:49 AM. |
21-02-2011, 11:47 AM | #27 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
सुन्नत-किसी ग्रन्थ का नाम नही है बल्कि उन सभी कार्यों को सुन्नत कहा जाता है जिसको आप स०अ०व० ने स्वयम किया और अपने उम्मतीयों को करने का आदेश दिया |जैसे कि सीधे हाथ से पानी पीना ,बैठ कर पानी पीना ,अच्छी सवारी रखना ,खाना खाने के बाद मीठा खाना ,दाढ़ी रखना (कुछ लोग दाढ़ी रखने को फर्ज समझते हैं जबकि यह सुन्नत है),
सुन्नत और फर्ज में अंतर-जिस कार्य को हुज़ूर स०अ०व० ने स्वयम किया और हमे करने को कहा उसे सुन्नत कहते हैं परन्तु जिस कार्य को करने का आदेश मुहम्मद साहब स०अ०व० ने यह कहकर दिया कि यह अल्लाह का आदेश है उसे फर्ज कहते हैं |जैसे कि नमाज़ पढ़ना,रोज़ा रखना ......... अभी आपकी पहली पोस्ट ही पढ़ी है दोस्त आगे की पोस्ट पढकर और भी करेक्शन करने होंगे | |
21-02-2011, 05:21 PM | #28 | |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
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सिकन्दर भाई किसी भी पीर के मजार पर जाने का कोई ज़िक्र कुरान में नही है वास्तव में ये सब बिदअत है |बिदअत उसे कहते हैं जो कुरान में नही है या अल्लाह या उसके पैगम्बर ने नही बताया बल्कि हम लोगों ने अपनी और से उसका प्रचलन शुरू कर दिया और यह बहुत बड़ा गुनाह है बल्कि हराम है |और इन मजारों पर जाने की तुलना कम से कम हज से नहीं करनी चाहिए दोस्त | इस्लाम के पांच रुक्न सिकन्दर भाई ने बिलकुल ठीक से बताए है लेकिन इनमे से पांचवां रुक्न प्रत्येक मुसलमान पर फर्ज नही है और वो है हज |हज फर्ज होने के लिए मर्द पर पांच और महिलाओं पर ६ विशेष शर्तें है ,यदि आप इनमे से एक भी कंडीशन को पूरा नहीं करते तो आप पर हज करना फर्ज नहीं है |ये शर्तें निम्न हैं | १-मुसलमान होना | २-बालिग (वयस्क) होना | ३-आकिल (अक्ल वाला अर्थात पागल न होना) होना | ४-शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम होना | ५-आज़ाद होना (पहले समय में लोग गुलाम भी होते थे इसलिए गुलामों पर आजाद होने से पहले हज फर्ज नही है) | ६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है) |
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21-02-2011, 06:12 PM | #29 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है)
इस पर और रोशनी डालें मासूम जी ! |
21-02-2011, 06:16 PM | #30 |
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Re: इस्लाम से आपका परिचय
जहाँ तक मेरी मालूमात हैं _ कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसके ऊपर घरेलू जिम्मेदारियाँ हो यानि जैसे बेटी की शादी ना हुई हो तो वह भी हज पर नहीं जा सकता !
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