05-05-2014, 11:15 PM | #31 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उस औरत ने उसकी बात को जैसे दोहरा दिया, ”तैयार हूँ.” वांग लुंग ने, पहली बार उसकी आवाज को सुना, उसको पीछे से देखा क्योंकि वह उसकी ओर पीठ किये खड़ी थी. उसकी आवाज काफी साफ़ थी और उसे अच्छी लगी. न ऊंची, न कोमल, बिलकुल सादा, न कि कर्कश. औरत ने बाल अच्छी तरह सवाँरे थे और सुघड़ थे और उसका कोट भी साफ़ सुथरा था. एक पल की निराशा उसे तब हुयी जब उसने उसके नंगे पांवों को देखा. लेकिन इस पर वह ज्यादा नहीं सोच सकता था क्योंकि वृद्ध महिला दरबान से कह रही थी, “इस लड़की का बक्सा उठा कर गेट तक ले जाओ और इन्हें जाने दो.” एंड तब उसने वांग लुंग को पुकारा और कहा,”तुम लड़की के पीछे खड़े हो कर मेरी बात सुनो.” और जब वांग लुंग आगे आ गया तो उसने कहना शुरू किया, “यह लड़की जब हमारे घर आयी थी तो दस बरस की बच्ची थी और अब तक यह इसी घर में रही है, जबकि अब यह बीस बरस की है. मैंने इसे जब ख़रीदा था उस बरस अकाल पड़ा था जब उसके माँ बाप दक्षिण में आ गए थे क्योकि उनके पास खाने के लिये कुछ नहीं था. वे उत्तर दिशा में स्थित किसी जगह से आये थे और वहीँ लौट गए, और उसके बाद उनका क्या हुआ मुझे मालूम नहीं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
08-05-2014, 07:32 AM | #32 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
तुम देख रहे हो की उसका शरीर मजबूत है और गाल उत्तर के लोगों जैसे चौरस हैं. यह तुम्हारे खेतों में बढ़िया काम करेगी, पानी खींच कर लाएगी और जैसा तुम चाहोगे. यह सुन्दर भले न हो लेकिन तुम्हें उसकी जरुरत नहीं. केवल उन लोगों को सुन्दर महिलाओं की जरुरत होती है जिनके पास ढेर सा खाली समय हो उनके साथ बिताने के लिये. यह कोई चालाकी नहीं जानती. लेकिन जो कुछ भी इसे कहा जाता है, सब कर लेती है और अच्छे स्वभाव की है.
जहाँ तक मेरी जानकारी है यह अभी तक कुँवारी है. यह इतनी आकर्षक नहीं थी कि यह मेरे बेटों को या मेरे पोतों को लुभा पाती चाहे यह रसोई में काम नहीं करती थी. अगर कुछ है भी तो वहाँ एक कामकाजी व्यक्ति है. लेकिन इस स्थान पर जहाँ असंख्य व दिलकश गुलाम लड़कियां आज़ादी से दालानों में घूमती रहती हैं, मुझे शक है कि कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके साथ इसके सम्बन्ध रहे हों. इसे ले जाओ और अपनाओ. यह एक अच्छी गुलाम है, हालाँकि, कहीं कहीं यह धीमी है और मंद बुद्धि भी, और अगर अपने आगामी जीवन के लिये मैंने मंदिर में पूजा पाठ में मन ना लगाया होता, मैं उसे जाने न देती, क्योंकि वह रसोई के लिये तो ठीक ही है. लेकिन मैं अपनी गुलाम लड़कियों का ब्याह कराती हूँ यदि कोई व्यक्ति आ कर ऐसा करना चाहे और बशर्ते अन्य पुरुष मालिकों को इसमें दिलचस्पी न हो.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
08-05-2014, 07:36 AM | #33 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
अब उसने लड़की कि ओर मुखातिब हो कर कहा,
“उसकी आज्ञा का पालन करना और उसके बहुत से पुत्रों की माँ बनो. अपने पहले बच्चे को मेरे पास ले कर आना. मैं उसे देखना चाहूंगी.” “अच्छा, मालकिन माता,” उस औरत ने समर्पण वाले स्वर में कहा. वे खड़े हुये हिचकिचा रहे थे, और वांग लुंग बड़ा परेशान हो रहा था, नहीं जानता था कि उसे क्या बात करनी चाहिए या क्या करना चाहिए. “ठीक है, अब जाओ,” बूढ़ी स्त्री ने रूखे स्वर में कहा. वांग लुंग हडबडा कर झुकते हुये मुड़ा और कंधे पर ट्रंक उठाये बाहर को चल पड़ा, उसके पीछे वह स्त्री और फिर दरबान भी बाहर निकला. यह बाक्स वांग लुंग ने उस कमरे में, जहाँ उसकी टोकरी रखी थी, जाते ही जमीन पर रख दिया, इससे आगे वह हरगिज़ इसे उठाने वाला नहीं था, और वास्तव में वह बिना कुछ बोले वहाँ से नदारद हो गया. तब वांग लुंग स्त्री की ओर मुखातिब हुआ और पहली बार उसके चेहरे को देखा. उसका चेहरा चोकोर व सीधा साधा लगा, उसकी नाक छोटी व चौड़ी थी और नासिका छिद्र काले थे, मुंह फैला हुआ था जैसे चेहरे में कोई घाव रह चुका हो. उसकी आँखें छोटी थीं जिनका रंग धुंधला काला था, जिनमे कोई अकथनीय उदासी भरी हुयी प्रतीत होती थी. यह एक ऐसा चेहरा था जो आदतन चुप रहने वाला व न बोलने वाला था, जैसे बोलने का मौका मिलने पर भी बोल ना सकने वाला.
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08-05-2014, 07:38 AM | #34 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उसने अपने चेहरे पर पड़ने वाली वांग लुंग की दृष्टि को बिना किसी परेशानी अथवा प्रतिक्रिया के संयम से झेला. वांग लुंग ने यह देख लिया था कि उस स्त्री के चेहरे में किसी प्रकार कि कोई खूबसूरती नहीं थी- बस एक भूरा, सामान्य व धीरज वाला चेहरा. लेकिन चेहरे की साँवली त्वचा पर कोई चेचक के दाग नहीं थे, न ही होंठ कटे हुये थे. उसने अपने कानों में वांग लुंग द्वारा भेंट की हुयी बालियाँ, जिन पर सोने का पानी चढ़ा था, पहन रखी थीं और हाथों में उसके द्वारा दी गयी अंगूठियाँ पहनी थीं. उसने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ खुद को दूसरी ओर मोड़ा. हाँ, तो यह थी उसकी बीवी!
“यह बॉक्स और टोकरी उठा लो,” उसने रूखे स्वर में कहा. बिना कुछ कहे वह नीचे झुकी और बॉक्स को एक किनारे से पकड़ कर अपने कंधे पर रख कर, इसके बोझ से दबे दबे उठने कि कोशिश करने लगी. उसने इस हालत में उसे देखा तो एकाएक कहने लगा, “में संदूक उठा लूँगा, तुम यह टोकरी उठा लो.” **
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