28-07-2014, 11:11 PM | #101 |
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Re: ज़रा इधर भी...
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
29-07-2014, 03:50 PM | #102 |
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Re: ज़रा इधर भी...
शोरूम के पुतलों को भी ढंक दिया नकाब से
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
29-07-2014, 03:52 PM | #103 |
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Re: ज़रा इधर भी...
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक और अल-शाम के नाम से मशहूर आईएसआईएस इराक और सीरिया में तेजी से अपनी पैठ बनाता हुआ एक मुस्लिम आंतकवादी संगठन है।
डेली मेल में छपी खबर के मुताबिक इस संगठन के लोग अपनेआप को कट्टरपंथी मुसलमान मानते हैं। संगठन के आतंकवादियों ने इराक के कई शोरूम में खड़े पुतलों के चेहरे को नकाब से ढक दिया। ऐसा करने के पीछे उन्होंने एक चौंकाने वाली वजह दी
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29-07-2014, 03:52 PM | #104 |
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Re: ज़रा इधर भी...
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29-07-2014, 03:53 PM | #105 |
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Re: ज़रा इधर भी...
इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसूल में इस संगठन के लोगों ने ऐसा काम किया है। उनका मानना है कि शरीयत के कानून के मुताबिक किसी भी मूर्ति को इंसान का चेहरा देना गलत है। उनके अनुसार इंसानी मूर्ति बनाया जाना और चेहरा खुले में दिखने को कानून के खिलाफ माना जाता है। इस बात का हवाला देते हुए कई शोरूम के सभी स्टैचू फिर चाहें वो मर्द के हों या औरत के, सभी को ढक दिया है।
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29-07-2014, 03:53 PM | #106 |
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Re: ज़रा इधर भी...
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29-07-2014, 03:54 PM | #107 |
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Re: ज़रा इधर भी...
आपको बता दें कि मोसूल में कई ईसाई धर्म के लोग भी काफी पहले से रहते चले रहें हैं। लेकिन आईएसआईएस के आतंकवादियों ने इन लोगों पर भी अपना धर्म बदलने पर जोर देना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि सभी ईसाई या तो मुस्लमान बनें या फिर टैक्स दें। ये भी नहीं तो सिर्फ मौत ही उनके लिए सजा है। ऐसे में लोग पड़ोस के क्षेत्र कुर्दिस्तान में शिफ्ट होने लगे हैं।
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29-07-2014, 04:00 PM | #108 |
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Re: ज़रा इधर भी...
मिलिए एक हिंदू से जो हर बार रखता है रोजे
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29-07-2014, 04:00 PM | #109 |
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Re: ज़रा इधर भी...
कोलकाता के 71 वर्षीय संजय मित्रा एक परंपरागत हिन्दू परिवार से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन रमज़ान के महीने में वो नियम से रोज़ा रखते हैं।
संजय मित्रा मुस्लिम बहुल रज़ाबाज़ार इलाक़े में रहते हैं और भारत विभाजन के समय हुए हिन्दू मुस्लिम दंगों की याद उनके ज़ेहन में आज भी ताज़ा है। वो कहते हैं, “मैंने कई सांप्रदायिक दंगे देखे हैं। साल 1992 में जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई, उस साल मैं दिल्ली में था। हर जगह दंगे हो रहे थे। मैंने ख़ुद को असहाय महसूस किया और बहुसंख्यक समुदाय से होने के नाते मैं इन दंगों पर शर्म महसूस करता हूं।”कभी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे मित्रा ने इन दंगों का विरोध करने का अपना ही तरीका अपनाया। वो कहते हैं, “बाबरी मस्जिद गिरने के बाद मैंने अपने मुसलमान भाइयों के साथ एकता दिखाने के लिए इस घटना का विरोध करने का निश्चय किया। और फिर 1993 से ही रमज़ान के दौरान मैंने रोज़ा रखने का संकल्प लिया।”
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29-07-2014, 04:01 PM | #110 |
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Re: ज़रा इधर भी...
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