18-04-2014, 10:16 PM | #11 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उसके पिता ने फिर नज़दीक आ कर दरवाजे की झिरी में मुंह रखा. “क्या आज मुझे खाने को कुछ नहीं मिलेगा?” उसने शिकायत के लहजे में कहा. ”मेरी उमर में सुबह हड्डियां तब तक पानी की तरह होती हैं जब तक की इन्हें खाना न मिल जाय.” “मैं आ रहा हूँ,”वांग लुंग ने अपने बालों को जल्दी जल्दी सवांरते हुए कहा. एक क्षण के उपरांत उसने अपना लंबा चोगा उतारा तथा अपनी लंबी चोटी को अपने सिर के चारों और घुमा कर बाँधा और झट से पानी का टब ले कर बाहर निकल गया. उसे नाश्ता करने की भी सुध न थी. वह सत्तू में पानी मिला कर अपने पिता को दे देगा. खुद के लिये उसे नाश्ते की इच्छा नहीं थी. उसने टब को देहरी के बाहर नज़दीक ला कर नीचे जमीन में उंडेल दिया, ऐसा करते हुये उसे इस बात का ध्यान था कि उसने बड़ी देग में रखा हुआ सारा पानी ही नहाने में खत्म कर दिया है. उसे दुबारा आग जलानी पड़ेगी. उसे अपने पिता पर क्रोध आ गया.
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19-04-2014, 10:53 PM | #12 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“यह बुढऊ सिर्फ अपने खाने और पीने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं सोचता,” उसने चूल्हे के पास मुंह ले जाते हुए कहा: किन्तु ऊँची आवाज में कुछ न बोला. आज की सुबह वह बूढ़े के लिये आखरी बार खाना बनाएगा. उसने देग में थोड़ा बहुत पानी डाला जो उसने द्वार के पास बने कुएं से एक बाल्टी द्वारा खींचा था, यह जल्द ही उबल गया जिस से उसने खाना तैयार कर लिया और इसे बूढ़े के पास ले गया.
“आज रात को हम चावल खायेंगे, पिता जी,” उसने कहा, ”अभी आप ये सत्तू पीएं.” “टोकरी में बहुत थोडे चावल बच गए हैं,” बूढ़े ने बीच के कमरे में मेज पर बैठते हुए और चॉपस्टिक से पीला गाढ़ा भात खाते हुए कहा. “तो हम बसंत उत्सव में कुछ कम खा लेंगे,” वांग लुंग ने कहा. परन्तु बूढ़े ने उसकी बात न सुनी. वह अपने कटोरे से सड़प सड़प कर खाता रहा. वांग लुंग तब अपने कमरे में दाखिल हुआ और उसने फिर से लंबा नीला चोगा अपने पास खींचा और अपने बालों की चोटी को खोल दिया. उसने अपना हाथ उस्तरे से साफ़ की हुयी अपनी भोंहों तथा गालों पर फेरा. उसने सोचा कि क्यों न वह दोबारा शेव करवा ले? अभी मुश्किल से सुबह हुयी थी. वह नाईयों की गली से हो कर शेव करवाता हुआ प्रतीक्षा करती हुयी दुल्हिन के घर चला जाएगा. अगर उसके पास पैसे होते तो वह ऐसा ही करता.
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19-04-2014, 10:59 PM | #13 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उसने अपनी टेंट से सलेटी कपड़े की मैली कुचेली थैली निकाली और इसमें रखे हुये पैसे गिने. कुल मिला कर चांदी के छह डालर व दो मुट्ठी ताम्बे के सिक्के निकले. उसने अपने पिता को यह नहीं बताया था कि उसने रात के खाने पर अपने दोस्तों को भी आमंत्रित किया है. उसने अपने चचेरे भाई, पिता की खातिर अपने चाचा को और अपने तीन पड़ोसी किसानों को, जो गांव में उसके साथ ही रहते थे, को बुलवाया था. उसने सुबह ही शहर जा कर सूअर का मांस, तालाब की मछली और कुछ शाहबलूत के फल लाने का विचार बनाया था.
दक्षिणी बाजार से वह कुछ अंकुरित बाँस खरीदना चाहता था और साथ ही गाय का मांस लेना चाहता था, वह अपने बागीचे में उगायी हुई बन्द गोभी के साथ उसका सालन बनाना चाहता था. परन्तु यह तब संभव हो पाता यदि फलियों का तेल और सोयाबीन सॉस खरीदने के बाद कुछ पैसे बचते. अगर वह अपने सिर की हजामत करवाता है तो वह कदाचित गाय का माँस नहीं खरीद पायेगा. फिर उसने अचानक यह निर्णय लिया कि वह हजामत जरुर कराएगा.
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19-04-2014, 11:01 PM | #14 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वह बूढ़े से बिना कुछ बोले भोर की बेला में बाहर निकल गया. लाल सुरमई भोर के समय सूर्य क्षितिज पर छितराए बादलों में से निकल रहा था और गेहूं व जौं की विकसित होती जा रही बालियों पर पड़ने वाली ओस को दमका रहा था. वांग लुंग में छुपा किसान एक क्षण को ठिठका तथा वह उग रही बालियों का मुआयना करने के लिये झुका. वे अभी पकी नहीं थी और वर्षा का इंतज़ार कर रही थीं. उसने हवा को सूंघते हुए चिंता से आकाश की ओर देखा. काले बादलों में, हवा के भारीपन में उसने वर्षा का अनुमान लगाया. वह अगरबत्ती खरीद कर धरतीमाता के छोटे से मंदिर में जला कर रखेगा.ऐसे ही किसी दिन वह यही करेगा.
वह खेतों के बीच से घूमता हुआ पतली पगडंडी पर वह बढ़ता जा रहा था.निकट ही शहर की मटमैली दीवार दिखायी देने लगी. इस दीवार के गाते से वह मकान – ह्वांग निवास - दिखाई दे रहा था जिस में उसकी होने वाली दुल्हिन बचपन से ही एक गुलाम की हेसियत से रह रही थी. कई लोगों का मत था कि किसी बड़े मकान में रहने वाली एक गुलाम लड़की से शादी करने के बजाय अकेला रहना कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन जब उसने अपने पिता से यह कहा था,”क्या मेरे नसीब में कोई औरत नहीं है?” उसके पिता का उत्तर था,”इतने बुरे दिन आ गए हैं कि क्या बताएं, शादियों पर होने वाला खर्च अनाप शनाप बढ़ गया है और हर लड़की शादी से पहले अपने पति से सोने की अंगूठी और रेशमी कपड़ों की उम्मीद रखती है, तब फिर गरीब लड़कों की किस्मत में केवल गुलाम लड़कियां ही रह जाती हैं.”
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19-04-2014, 11:05 PM | #15 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उसके पिता ने खूब सोच विचार करने के बाद ह्वांग परिवार की हवेली का रुख किया था की क्या उनके यहाँ शादी लायक कोई गुलाम लड़की है?
“लड़की भले एकदम जवान न हो, और चाहे खूबसूरत भी न हो,” उसने कहा था. वांग लुंग को यह बात सुन कर बुरा लगा कि लड़की का सुन्दर होना जरूरी नहीं है. उसके विचार में पत्नी का सुन्दर होना बहुत बड़ी बात है जिसे देख कर लोग उसे बधाइयाँ देते. उसके विद्रोही तेवर देख कर उसके पिता ने ऊँची आवाज़ में कहा, “और हम इस सुन्दर औरत का करेंगे क्या? हमें एक ऐसी औरत चाहिए जो घर को सम्भाल सके, औलाद दे सके और खेतों में काम कर सके. क्या एक खूबसूरत लड़की यह सब कर सकेगी? वह तो हमेशा यही सोचती रहेगी कि उस के चेहरे के साथ कौन से कपड़े जचेंगे. नहीं, हमारे घर में सुन्दर लड़की के लिये कोई जगह नहीं है. हम लोग किसान हैं. सबसे अहम सवाल तो यह है कि क्या एक धनाड्य घर में काम करने वाली लड़की, जो सुन्दर भी हो और गुलाम भी, कँवारी रह पाएगी? सभी नौजवान मालिक उसके साथ किसी भी प्रकार की ज्यादती करने में संकोच न करेंगे.
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19-04-2014, 11:07 PM | #16 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
एक सुन्दर नारी का सौवां खसम होने से अच्छा होगा कि वह किसी कँवारी बदसूरत लड़की का पहला पति बनने का गौरव प्राप्त करे. ज़रा कल्पना करो कि क्या एक खूबसूरत लड़की तुम्हारे जैसे किसान के खुरदरे हाथों को छू कर इतनी खुश होगी जितना किसी धनी व्यक्ति के बेटे के कोमल हाथों को स्पर्श करने पर होगी, और फिर तुम अपने काले स्याह चेहरे की तुलना उन लोगों की सुनहरी त्वचा से करो जो उसके साथ मस्ती करते रहे होंगे?”
वांग लुंग को अपने पिता की वक्तृता पर पूरा भरोसा था. फिर भी उत्तर देने से पहले उसे खुद को मथना पड़ा. और तब वह तड़प कर बोला, ”कम से कम उसके चेहरे पर चेचक के दाग तो न होंगे, या उसका उपरी होंठ कटा हुआ तो न होगा.” “हम देखते हैं कि क्या हो सकता है,” उसके पिता ने उत्तर दिया. खैर, इस लड़की का चेहरा चेचक वाला तो था नहीं और न ही उसका ऊपर वाला होंठ कटा- फटा था. इतना तो वह जानता ही था, पर इससे अधिक कुछ नहीं. उसने और उसके पिता ने चांदी कि दो अंगूठियाँ खरीद ली थी, जिन पर सोने का पानी चढ़ाया गया था, और चांदी के कर्णफूल, जिन्हें ले कर उसका पिता रिश्ता पक्का करने के समय लड़की के मालिक के यहाँ ले गया था. इसके अतिरिक्त वह उस लड़की के बारे में कुछ नहीं जानता था जो उसकी होने वाली थी, सिवाय इसके कि आज के दिन वह वहाँ जा कर उस लड़की को लिवा कर ला सकता है.
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21-04-2014, 12:14 PM | #17 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वह चलता चलता नगर द्वार के आस पास बिखरे शीतल अंधकार में दाखिल हुआ. ठीक उसके बाहर भिश्ती, जिनके छकड़े कई टब पानी से भरे हुए थे, दिन भर आ जा रहे थे, उनके टबों से छलकता पानी नीचे पत्थरों पर गिर रहा था. संकरा रास्ता हमेशा गीला रहा करता व उसमे ठंडक बनी रहती थी. ईंट और गारे की मोटी दीवार के नीचे, यहाँ तक कि गर्मियों के दिनों में भी तरबूज बेचने वाले अपने फलों को पत्थरों पर ही फैला दिया करते थे, नमी से युक्त ठंडक में पीने के लिये तैयार कटे हुए तरबूज. यद्यपि अभी तरबूज का मौसम नहीं आया था, किन्तु कच्चे हरे आडुओं से भारी टोकरियाँ दीवार के साथ टेक लगा कर रखी हुयी थीं और विक्रेता चिल्ला रहे थे,
“बसंत के मौसम के पहले आडू लो, जी हाँ ! बिलकुल, पहले पहल - खरीदो, खाओ और पेट को साफ़ रख कर जाड़ों की वजह से होने वाले रोगों से मुक्ति पायें!” वांग लुंग अपने आप से कहा, “यदि उसे ये पसंद हैं तो वापसी में मैं उसे थोड़े ले दूंगा.” उसे इस बात का एहसास नहीं था की वापिस आते समय उसके पीछे पीछे एक लड़की भी चल रही होगी.
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21-04-2014, 12:15 PM | #18 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
वह द्वार के अंदर दायीं ओर मुड़ा एक पल में नाईयों वाली गली में आ पहुंचा. बहुत कम लोग उस से पहले वहाँ आये थे, केवल वो किसान जो पिछली रात अपनी खेती ले कर शहर में आये होंगे ताकि भोर को लगने वाली मंडी में अपनी सब्जियाँ बेच कर अपने खेतों में काम करने के लिये जल्द लौट सकें. वे ठंड से कांपते हुये और अपनी अपनी टोकरियों से लिपटे हुये सोये होंगे, वो टोकरियाँ जो इस समय उनके पैरों में खाली रखीं थीं. वांग लुंग ने उन लोगों की ओर ध्यान नहीं दिया, उसे डर था कि कोई उसे पहचान न ले, वह उनसे आज कोई हंसी मजाक नहीं करना चाहता था. लंबी सी इस गली में कितने ही नाई एक लाइन में अपने छोटे छोटे स्टालों के पीछे खड़े थे. वांग लुंग सबसे दूर वाले नाई के पास पंहुचा और एक स्टूल पर बैठ गया, उसने नाई को इशारे से बुलाया जो अपने पड़ोसी से गप्पें हांक रहा था. नाई एकदम उपस्थित हो गया और फटाफट कोयलों की सिगड़ी पर रखी केतली से पीतल की कटोरी में गर्म पानी डालने लगा.
“पूरी हजामत करवाएंगे?” उसने पेशेवर अंदाज़ में पूछा. “मेरा सिर और मेरा चेहरा,” वांग लुंग ने कहा. “कान और नाक भी साफ़ करवाएंगे?” नाई ने पूछा.
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21-04-2014, 12:16 PM | #19 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
“उसके कितने पैसे अलग से होंगे?” वांग लुंग ने सावधानीवश पूछा. “चार पेंस,” नाई ने गर्म पानी में एक काला कपड़ा डालते और निकालते हुए कहा. “मैं तुम्हें दो दूंगा,”वांग लुंग ने कहा. “तो मैं एक कान और एक नाक साफ़ कर दूंगा,” नाई ने तत्परता से उत्तर दिया.”तुम चेहरे की कौन सी तरफ ऐसा कराना चाहोगे,” उसने आगे वाले नाई की ओर देखते हुये व्यंग्य पूर्वक कहा. दूसरा नाई ठहाका मार कर हंसा. वांग लुंग को लगा की वह इस जोकर के हाथों फंस गया है, वह अकारण अपने को उनसे नीचा महसूस करने लगा, जैसा की अक्सर होता था, इन शहरी लोगों के सामने, भले ही ये सिर्फ नाई हैं, अन्य मनुष्यों की तुलना में नीच लोग, उसने शीघ्रता से कहा, “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी - जैसी तुम्हारी मर्ज़ी,” यह कह कर वह नाई द्वारा साबुन लगाने, मलने व शेव करवाने में मगन हो गया, नाई ने भी उसकी शराफत का कायल होते हुये उसके और भी काम बिना अतिरिक्त दाम लिये कर दिए जैसे कि उसके कन्धों तथा पीठ पर जोरदार रगड़ा देते हुये मालिश की जिस से उसकी माँसपेशियों को राहत महसूस हुई. वह वांग लुंग के माथे के ऊपर वाले बाल साफ़ करता हुआ कहने लगा,”
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21-04-2014, 12:24 PM | #20 |
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Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
उसका उस्तरा वांग लुंग के सिर के शीर्ष स्थल के आस पास मंडराने लगा तो वांग लुंग चिल्लाया,
“अपने पिता से पूछे बगैर मैं चोटी नहीं कटवा सकता!” नाई हँसते हुये चोटी को छूए बिना बाल साफ़ करता रहा. जब सारा काम हो गया और नाई के झुर्रीदार व भीगे हाथों में गिन कर पैसों का भुगतान कर दिया गया, वांग लुंग एक क्षण को भयाकुल हुआ. इतने अधिक पैसे! किन्तु गली में वापिस आते हुये उसकी शेव की हुयी त्वचा पर ताजा हवा भली लग रही थी, उसने अपने आप से कहा, “यह एक ही दिन की तो बात है.” तब वह बाजार गया और दो पाउंड सूअर का माँस खरीदा जिसे कसाई ने उसकी नज़रों के सामने कमल के सूखे पत्ते में बाँध दिया, और फिर, कुछ झिझकते हुये उसने छह पाउंड गाय का माँस भी खरीद लिया. जब खरीदारी पूरी हो गयी, यहाँ तक कि बीनकर्ड के ताजा टिक्के भी जेली के साथ ले लिये, वह मोमबत्ती बनाने वाले की दुकान पर गया जहाँ उसने एक जोड़ी सुगन्धित अगरबत्तियाँ खरीदीं. तब उसने बड़े संकोच के साथ ह्वांग परिवार की हवेली की ओर कदम बढ़ाए.
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