11-11-2012, 06:11 PM | #1 |
Administrator
|
रघुवीर सहाय की कविताएँ
रघुवीर सहाय की कविताएँ
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:12 PM | #2 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
आपकी हँसी
निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे लोकतंत्र का अंतिम क्षण है कह कर आप हँसे सबके सब हैं भ्रष्टाचारी कह कर आप हँसे चारों ओर बड़ी लाचारी कह कर आप हँसे कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोचने लगा सहसा मुझे अकेला पा कर फिर से आप हँसे
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:12 PM | #3 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
रामदास
चौड़ी सड़क गली पतली थी दिन का समय घनी बदली थी रामदास उस दिन उदास था अंत समय आ गया पास था उसे बता, यह दिया गया था, उसकी हत्या होगी धीरे धीरे चला अकेले सोचा साथ किसी को ले ले फिर रह गया, सड़क पर सब थे सभी मौन थे, सभी निहत्थे सभी जानते थे यह, उस दिन उसकी हत्या होगी खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर दोनों हाथ पेट पर रख कर सधे कदम रख कर के आए लोग सिमट कर आँख गड़ाए लगे देखने उसको, जिसकी तय था हत्या होगी निकल गली से तब हत्यारा आया उसने नाम पुकारा हाथ तौल कर चाकू मारा छूटा लोहू का फव्वारा कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी? भीड़ ठेल कर लौट गया वह मरा पड़ा है रामदास यह 'देखो-देखो' बार बार कह लोग निडर उस जगह खड़े रह लगे बुलाने उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:12 PM | #4 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है मखमल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चँवर के साथ तोप छुड़ा कर ढोल बजा कर जय-जय कौन कराता है पूरब-पश्चिम से आते हैं नंगे-बूचे नरकंकाल सिंहासन पर बैठा उनके तमगे कौन लगाता है कौन कौन है वह जन-गण-मन अधिनायक वह महाबली डरा हुआ मन बेमन जिसका बाजा रोज बजाता है
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:14 PM | #5 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
कला क्या है
कितना दुःख वह शरीर जज्ब कर सकता है ? वह शरीर जिसके भीतर खुद शरीर की टूटन हो मन की कितनी कचोट कुंठा के अर्थ समझ उनके द्वारा अमीर होता जा सकता है ? अनुभव से समृद्ध होने की बात तुम मत करो वह तो सिर्फ अद्वितीय जन ही हो सकते हैं अद्वितीय याने जो मस्ती में रहते हैं चार पहर केवल कभी चौंक कर अपने कुएँ में से झाँक लिया करते हैं वह कुआँ जिसको हम लोग बुर्ज कहते हैं अद्वितीय हर व्यक्ति जन्म से होता है किंतु जन्म के पीछे जीवन में जाने कितनों से यह अद्वितीय होने का अधिकार छीन लिया जाता है और अद्वितीय फिर वे ही कहलाते हैं जो जन के जीवन से अनजाने रहने में ही रक्षित रहते हैं अद्वितीय हर एक है मनुष्य और उसका अधिकार अद्वितीय होने का छीन कर जो खुद को अद्वितीय कहते हैं उनकी रचनाएँ हों या उनके हों विचार पीड़ा के एक रसभीने अवलेह में लपेट कर परसे जाते हैं तो उसे कला कहते हैं ! कला और क्या है सिवाय इस देह मन आत्मा के बाकी समाज है जिसको हम जान कर समझ कर बताते हैं औरो को, वे हमें बताते हैं वे, जो प्रत्येक दिन चक्की में पिसने से करते हैं शुरू और सोने को जाते हैं क्योंकि यह व्यवस्था उन्हें मार डालना नहीं चाहती वे तीन तकलीफों को जान कर उनका वर्णन नहीं करते हैं वही है कला उनकी कम से कम कला है वह और दूसरी जो है बहुत सी कला है वह कला बदल सकती है क्या समाज ? नहीं, जहाँ बहुत कला होगी, परिवर्तन नहीं होगा
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:15 PM | #6 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
मेरा जीवन
मेरा एक जीवन है उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरुजन हैं उसमें कोई मेरा अनन्यतम भी है पर मेरा एक और जीवन है जिसमें मैं अकेला हूँ जिस नगर के गलियारों, फुटपाथ, मैदानों में घूमा हूँ हँसा खेला हूँ उसके अनेक हैं नागर, सेठ, म्युनिस्पलम कमिश्नर, नेता और सैलानी, शतरंजबाज और आवारे पर मैं इस हाहाहूती नगरी में अकेला हूँ देह पर जो लता-सी लिपटी आँखों में जिसने कामना से निहारा दुख में जो साथ आए अपने वक्त पर जिन्होंने पुकारा जिनके विश्वास पर वचन दिए, पालन किया जिनका अंतरंग हो कर उनके किसी भी क्षण में मैं जिया वे सब सुहृद हैं, सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं पर मैं अकेला हूँ सारे संसार में फैल जाएगा एक दिन मेरा संसार सभी मुझे करेंगे - दो चार को छोड़ - कभी न कभी प्यार मेरे सृजन, कर्म-कर्तव्य, मेरे आश्वासन, मेरी स्थापनाएँ और मेरे उपार्जन, दान-व्यय, मेरे उधार एक दिन मेरे जीवन को छा लेंगे - ये मेरे महत्व डूब जाएगा तंत्रीनाद कवित्त रस में, राग में रंग में मेरा यह ममत्व जिससे मैं जीवित हूँ मुझ परितप्त को तब आ कर वरेगी मृत्यु - मैं प्रतिकृत हूँ पर मैं फिर भी जियुँगा इसी नगरी में रहूँगा रूखी रोटी खाउँगा और ठंड़ा पानी पियूँगा क्योंकि मेरा एक और जीवन है और उसमें मैं अकेला हूँ
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:15 PM | #7 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
मेरी स्त्री
प्यारे दर्शको, यह जो स्त्री आप देखते हैं सो मेरी स्त्री है इसकी मुझसे प्रीति है । पर यह भी मेरे लिए एक विडम्बना है क्योंकि मुझे इसकी प्रीति इतनी प्यारी नहीं जितनी यह मानती है कि है । यह सुंदर है मनोहारी नहीं, मधुर है, पर मतवाली नहीं, फुर्तीली है, पर चपला नहीं और बुद्धिमती है पर चंचला नहीं । देखो यही मेरी स्त्री है और इसी के संग मेरा इतना जीवन बीता है । और इसी के कारण अभी तक मैं सुखी था । सच पूछिए तो कोई बहुत सुखी नहीं था । पर दुखिया राजा ने देखा कि मैं सुखी हूँ सो उसने मन में ठानी कि मेरे सुख का कारण न रहे तो मैं सुखी न रहूँ । उसका आदेश है कि मैं इसकी हत्या कर इसको मिटा डालूँ । यह निर्दोष है अनजान भी । यह नहीं जानती कि इसका जीवन अब और अधिक नहीं । देखो, कितने उत्साह से यह मेरी ओर आती है ।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:16 PM | #8 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
मेरे अनुभव
कितने अनुभवों की स्मृतियाँ ये किशोर मुँह जोहते हैं सुनने को पर मैं याद कर पाता हूँ तो बताते हुए डरता हूँ कि कहीं उन्हें पथ से भटका न दूँ मुझे बताना चाहिए वह सब जो मैंने जीवन में देखा समझा परंतु बहुत होशियारी के साथ मैं उन्हें अपने जैसा बनने से बचाना चाहता हूँ बौर नीम में बौर आया इसकी एक सहज गंध होती है
मन को खोल देती है गंध वह जब मति मंद होती है प्राणों ने एक और सुख का परिचय पाया। वसंत वही आदर्श मौसम और मन में कुछ टूटता-सा : अनुभव से जानता हूँ कि यह वसंत है
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:16 PM | #9 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
मत पूछना
मत पूछना हर बार मिलने पर कि 'कैसे हैं' सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का अतुकांत
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:17 PM | #10 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
चंद्रकांत
चंद्रकांत बावन में प्रेम में डूबा था सत्तावन में चुनाव उसको अजूबा था बासठ में चिंतित उपदेश से ऊबा था सरसठ में लोहिया था और ...और क्यूबा था फिर जब बहत्तर में वोट पड़ा तो यह मुल्क नहीं था हर जगह एक सूबेदार था हर जगह सूबा था अब बचा महबूबा पर महबूबा था कैसे लिखूँ
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
Bookmarks |
|
|