11-11-2012, 06:17 PM | #11 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
अंग्रेजो ने अंग्रेजी पढ़ा कर प्रजा बनाई अंग्रेजी पढ़ा कर अब हम प्रजा बना रहे हैं
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:18 PM | #12 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
डर
बढ़िया अँग्रेजी वह आदमी बोलने लगा जो अभी तक मेरी बोली बोल रहा था मैं डर गया
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:19 PM | #13 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली गहने गढ़ाते जाओ सर पर चढ़ाते जाओ वह मुटाती जाए पसीने से गंधाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए पड़ोसिनों से जले कचरा फेंकने को ले कर लड़े घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता औरतों को जो चाहिए घर ही में है एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी एक नागिन की स्टोरी बमय गाने और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र एक खूसट महरिन है परपंच के लिए एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किए जा सकें एक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक बिस्तरों पर चीकट तकिए कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े फर्श पर ढंनगते गिलास खूँटियों पर कुचैली चादरें जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है और जमीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा कहनेवाले चाहे कुछ कहें हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:19 PM | #14 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
दुनिया
हिलती हुई मुँडेरें हैं और चटखे हुए हैं पुल बररे हुए दरवाजे हैं और धँसते हुए चबूतरे दुनिया एक चुरमुराई हुई-सी चीज हो गई है दुनिया एक पपड़ियाई हुई-सी चीज हो गई है लोग आज भी खुश होते हैं पर उस वक्त एक बार तरस जरूर खाते हैं लोग ज्यादातर वक्त संगीत सुना करते हैं पर साथ-साथ और कुछ जरूर करते रहते हैं मर्द मुसाहबत किया करते हैं, बच्चे स्कूल का काम औरतें बुना करती हैं - दुनिया की सब औरतें मिल कर एक दूसरे के नमूनोंवाला एक अनंत स्वेटर दुनिया एक चिपचिपायी हुई-सी चीज हो गई है लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं लोग या तो ईर्ष्या करते हैं या चुगली खाते हैं लोग या तो शिष्टाचार करते हैं या खिसियाते हैं लोग या तो पश्चात्ताप करते हैं या घिघियाते हैं न कोई तारीफ करता है न कोई बुराई करता है न कोई हँसता है न कोई रोता है न कोई प्यार करता है न कोई नफरत लोग या तो दया करते हैं या घमंड दुनिया एक फँफुदियाई हुई चीज हो गई है लोग कुछ नहीं करते जो करना चाहिए तो लोग करते क्या हैं यही तो सवाल है कि लोग करते क्या हैं अगर कुछ करते हैं लोग सिर्फ लोग हैं, तमाम लोग, मार तमाम लोग लोग ही लोग हैं चारों तरफ़ लोग, लोग, लोग मुँह बाए हुए लोग और आँख चुँधियाए हुए लोग कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग दुनिया एक बजबजाई हुई-सी चीज हो गई है।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:20 PM | #15 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
हमारी मुठभेड़
कितने अकेले तुम रह सकते हो अपने जैसे कितनों को खोज सकते हो तुम हम एक गरीब देश के रहने वाले हैं इसलिए हमारी मुठभेड़ हर वक्त रहती है ताकत से देश के गरीब रहने का मतलब है अकड़ और अश्लीलता का हम पर हर वक्त हमला
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:21 PM | #16 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
हँसो हँसो जल्दी हँसो
हँसो हँसो जल्दी हँसो हँसो तुम पर निगाह रखो जा रही हे हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी और तुम मारे जाओगे ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं और मारे जाओगे हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त हो कर एक अपनापे की हँसी हँसते हो जैसे सब हँसते है बोलने के बजाय जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर तुम बोल सकते हो अपने से गूँजते थमते थमते फिर हँसना क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे हँसो पर चुटकुलों से बचो उनमें शब्द हैं कहीं उनमें अर्थ न हों जो किसी ने सौ साल पहले दिए हों बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे और ऐसे मौकों पर हँसो जो कि अनिवार्य हों जैसे गरीब पर किसी ताकतवर की मार जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता उस गरीब के सिवाय और वह भी अक्सर हँसता है हँसो हँसो जल्दी हँसो इसके पहले कि वह चले जाएँ उनसे हाथ मिलाते हुए नजरें नीची किए उनको याद दिलाते हुए हँसो कि तुम कल भी हँसे थे
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:21 PM | #17 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
नई हँसी
महासंघ का मोटा अध्यक्ष धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ सर नहीं, हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर बीस बड़े अखबारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार क्या हुआ समाजवाद कहें महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार आँख मार कर पचीस बार वह हँसे वह पचीस बार हँसे बीच अखबार एक नई ही तरह की हँसी यह है पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था जो आँख से आँख मिला हँस लेते थे इसमें सब लोग दाएँ-बाएँ झाँकते हैं और यह मुँह फाड़ कर हँसी जाती है राष्ट्र को महासंघ का यह संदेश है जब मिलो तिवारी से - हँसो - क्योंकि तुम भी तिवारी हो जब मिलो शर्मा से - हँसो - क्योंकि वह भी शर्मा है जब मिलो मुसद्दी से खिसियाओ जातपाँत से परे रिश्ता अटूट है राष्ट्रीय झेंप का
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:22 PM | #18 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
नशे में दया
मैं नशे में धुत था आधी रात के सुनसान में एक कविता बोलता जाता था अपनी जान में कुछ मिनट पहले किए थे बिल पे मैंने दस्तखत ख़ानसामा सोचता होगा कि यह सब है मुफ्त तुम जो चाहो खा लो पी लो और यह सिगरेट लो सुन के मुझको देखता था वह कि अपने पेट को? फिर कहा रख कर के सिगरेट जेब में मेरे लिए आज पी लूँगा इसे पर कल तो बीड़ी चाहिए एक बंडल साठ पैसे का बहुत चल जाएगा उसकी ठंडी नजर कहती थी कि कल, कल आएगा होश खो बैठे हो तुम कल की खबर तुमको नहीं तुम जहाँ हो दर असल उस जगह पर तुम हो नहीं कितने बच्चे हैं? कहाँ के हो? यहाँ घर है कहाँ? चार हैं, बिजनौर का हूँ, घर है मस्जिद में मियाँ कोरमा जो लिख दिया मैंने तुम्हारे वास्ते खुद वो खा लोगे कि ले जाओगे घर के वास्ते? सुन के वो चुप हो गया और मुझको ये अच्छा लगा लड़खड़ा कर मैं उठा और भाव यह मन में जगा एक चटोरे को नहीं उस पर तरस खाने का हक उफ नशा कितना बड़ा सिखला गया मुझको सबक घर पे जा कर लिख के रख लूँगा जो मुझमें हो गया सोच कर मैं घर तो पहुँचा पर पहुँच कर सो गया उठ के वह कविता न आई अक्ल पर आई जरूर उसको कितना होश था और मुझको कितना था सरूर
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:23 PM | #19 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
आनेवाला कल
मुझे याद नहीं रहता है वह क्षण जब सहसा एक नई ताकत मिल जाती है कोई एक छोटा-सा सच पकड़ा जाने से वह क्षण एक और बड़े सच में खो जाता है मुझे एक अधिक बडे अनुभव की खोज में छोड़ कर निश्चय ही जो बडे़ अनुभव को पाए बिना सब जानते हैं खुश हैं मैं रोज-रोज थकता जाता हूँ और मुझे कोई इच्छा नहीं अपने को बदलने की कीमत इस थकान को दे कर चुकाने की। इसे मेरे पास ही रहने दो याद यह दिलाएगी कि जब मैं बदलता हूँ एक बदलती हुई हालत का हिस्सा ही होता हूँ अद्वितीय अपने में किंतु सर्वसामान्य। हर थका चेहरा तुम गौर से देखना उसमें वह छिपा कहीं होगा गया कल और आनेवाला कल भी वहीं कहीं होगा
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
11-11-2012, 06:24 PM | #20 |
Administrator
|
Re: रघुवीर सहाय की कविताएँ
औरत की जिंदगी
कई कोठरियाँ थीं कतार में उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा उसके बचपन से जवानी तक की कथा
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
Bookmarks |
|
|