04-05-2013, 08:02 PM | #11 |
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Re: एक थी तात्री
हमारे राष्ट्र के अधिकतर प्रान्तों में कुटुंब का मुखिया पुरुष ही होता है. पुरुष के नाम से ही वंश चलता है. पैतृक संपत्ति पर अधिकतर, परिवार के बेटों का ही कब्जा होता है. बेटियाँ तो दहेज़ की एकमुश्त रकम देकर विदा कर दी जाती हैं. फिर तो उनका पारिवारिक व्यवसाय, जमीन और जायदाद आदि से कोई वास्ता नहीं रह जाता. कहीं कहीं अपवाद भी हो सकते हैं; पर समाज की मानसिकता और प्रतिबद्धता, इसी मान्यता को पुष्ट करती है. आज मैं, देश के दो ऐसे प्रमुख राज्यों की चर्चा करना चाहूंगा जहां ‘कथित’ तौर पर मातृसत्ता का बोलबाला है. ये हैं केरल और मेघालय. पिछले सत्रह सालों से केरल में हूँ. यहाँ का समाज कुछ मामलों में बहुत उन्नत है. लोग अपेक्षाकृत ईमानदार और योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाले हैं. जहां तक मातृसत्ता का सवाल है; सामाजिक जीवन के कुछ पहलुओं में यह अवश्य झलकती है. यथा- परिवार में कन्या शिशु का जन्म शुभ माना जाता है, स्त्रियों को शिक्षा एवं विकास के समान अवसर प्रदान किये जाते हैं. दहेज़- हत्याएं अथवा उत्पीडन सुनने में नहीं आते. माता- पिता विवाहित बेटी के घर भी, निःसंकोच होकर रह सकते हैं. पर इस मातृसत्ता की पृष्ठभूमि में, अतीत का एक काला चेहरा भी है, जो कईयों ने नहीं देखा.
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
04-05-2013, 08:03 PM | #12 |
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Re: एक थी तात्री
बरसों पहले, यहाँ की दो प्रमुख जातियों नम्बूदरी (ब्राह्मण) एवं नायर के मध्य; एक सर्वमान्य अनुबंध हुआ करता था. इसके तहत, नम्बूदरी जाति के पुरुष बेखटके; कुँवारी नायर कन्याओं के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकते थे (बिना वैवाहिक बंधन में बंधे हुए). उन कन्याओं के परिवारवाले, इसे बहुत अच्छा मानते थे; क्योंकि उनका सोचना था कि इस प्रकार जो संतान जन्म लेगी, वह बहुत बुद्धिमान और योग्य होगी(पिता के उच्चजाति नम्बूदरी से होने के कारण). उस संतान को पिता का नाम नहीं दिया जा सकता था, इसलिए वंश को माँ के नाम से ही चलाना पड़ता था. परन्तु इससे समाज में बहुत अनाचार फैलने लगा. नम्बूदरी पुरुष उच्छ्रन्खल होते गये. क्योंकि उनकी जाति में परिवार के बड़े बेटे को ही कानूनी विवाह( वेळी) की अनुमति थी. परिवार के अन्य बेटे नायर एवं अन्य निचली जातियों की कन्याओं से दैहिक सम्बन्ध( सम्बन्धम या वैकल्पिक विवाह के तहत) बना सकते थे. इस प्रकार नम्बूदरी कन्याओं के लिए वरों की कमी होने लगी. उन युवतियों को या तो ‘वेळी’ के तहत ऐसे अधेड़ पुरुष से विवाह करना पड़ता, जिसका पहले भी कई बार विवाह हो चुका हो या फिर ताउम्र कुँवारी रहना पड़ता. नम्बूदरी पुरुषों को, नारी के उपभोग का अवसर लगातार मिलता रहा; वहीँ उनकी स्त्रियों को केवल एक बार ही विवाह की अनुमति थी. ‘सम्बन्धम’ द्वारा जो सम्बन्ध नम्बूदरी पुरुष और नायर स्त्री के बीच बनता, उसे कुछ साधारण रीतियों से एक झटके में समाप्त किया जा सकता था. यह पुरुष, नित नयी कन्याओं को भोगने के लिए स्वतंत्र थे. नम्बूदरी तथा नायर स्त्रियों की दशा शोचनीय होती गयी. इस प्रथा के मूल में, मातृसत्ता की आड़ में; नारी का दैहिक शोषण ही तो था. कालांतर में इस प्रथा को बंद कर दिया गया. परन्तु क्या इस पर आधारित, मातृसत्ता की अवधारणा सही ठहराई जा सकती है?
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04-05-2013, 08:04 PM | #13 |
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Re: एक थी तात्री
अतीत के साथ साथ, वर्तमान की भी कुछ चर्चा कर ली जाये. यहाँ घरेलू नौकरानियाँ व मजदूर औरतें भी थोडा- बहुत पढ़ी- लिखी होती है( प्रांत में सौ प्रतिशत साक्षरता होने के कारण). बेरोजगारी की समस्या व उनकी शिक्षा का स्तर कमतर होने के कारण, कोई अन्य (सम्मानजनक) कार्य वे कर भी नहीं सकतीं. उनमें से कुछ (मुस्लिम स्त्रियाँ), १४ से १६ वर्ष की उम्र में ब्याह दी जाती हैं. उनके पति छोटे- मोटे व्यवसायों या नौकरियों में होते हैं ( आटो रिक्शा चालन, बढईगिरी, श्रमिक, मैकनिक आदि). इन पढ़े- लिखे युवकों को, यह छोटे- मोटे काम रास नहीं आते और वे अक्सर सब छोड़छाड कर घर बैठ जाते हैं. उनका काम बस शराब पीने और कमाऊ बीबी पर हाथ उठाने तक सीमित रह जाता है. घरेलू हिंसा में केरल का स्थान, राजस्थान के बाद दूसरा है. शराबखोरी और पारिवारिक विघटन आदि के चलते, आत्महत्या के मामलों में भी; यह प्रांत शीर्ष स्थान पर है.
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04-05-2013, 08:04 PM | #14 |
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Re: एक थी तात्री
अब बात करें मेघालय की. यहाँ वंश परिवार की छोटी पुत्री के नाम पर चलता है. अधिकार और हैसियत कहने को तो उनके पास हैं पर गत वर्षों में लगभग, ५२ घरेलू हिंसा के मामले दर्ज़ हुए हैं; जिसका मुख्य कारण शराबखोरी बताया गया है. यह निष्कर्ष, नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क नामक महिला संगठन द्वारा किये गये अध्ययन से निकाला गया है. संगठन की निदेशक मनीषा बहल के अनुसार,’इस प्रकार की घटनाओं की संख्या दिनबदिन बढ़ती जा रही है. ग्रामीण इलाकों की स्थिति बदतर है. रिपोर्ट करने के बजाय, आपसी सुलह द्वारा बात को दबा देना ही श्रेयस्कर माना जाता है.’
वरिष्ठ महिला पुलिस अधिकारी, आई नोंगरांग के अनुसार, ‘ पिछले ३१ सालों में, विधायक बनने वाली महिलाओं की संख्या नगण्य है. महिला पुलिस-बल के गठन का अधिकार भी पुरुषों के हाथ में है. यह मातृसत्ता का एक अँधेरा पहलू है.’
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31-03-2014, 09:42 PM | #15 |
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Re: एक थी तात्री
जय जी, आपने मेरी जागरण- जंक्शन में पोस्ट रचना"एक थी तात्री"(६ सितम्बर २०१२) को हूबहू कॉपी कर, अपने नाम से पोस्ट किया है. इसे फौरन हटा लें नहीं तो आपके खिलाफ कडा कदम उठाने पर बाध्य हो जाऊंगी. My Hindi Forum के एडमिन से भी अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में, कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही करें.
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31-03-2014, 09:46 PM | #16 |
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Re: एक थी तात्री
यही नहीं आपने मेरी दूसरी पोस्ट (जो एक थी तात्री से ठीक पहले जागरण जंक्शन पर पोस्ट की थी)"मातृसत्ता बनाम पितृसत्ता" भी चुरा ली है.
Moderation Edit: Cleaned up the post. Personal attacks are not appreciated. Last edited by jitendragarg; 01-04-2014 at 11:06 PM. |
01-04-2014, 11:23 PM | #17 | |
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Re: एक थी तात्री
Quote:
Hello, Jai Bhardwaj is himself a part of our moderation team, so he is already aware of your copyright claim. As per his response, this story was taken from another forum, and there was no author information mentioned. As such, he added a note mentioning it was found on the internet. He was never looking to claim your work as his own. That being said, we have added the details of your original article in to the opening post of the thread. Kindly check and see if you want that edited further. If you can provide the link to original submission, we will add the same here. Furthermore, if you feel it necessary, we will be happy to create new thread for the second story. Kindly understand that most of the posts here are normally found on the internet, so we can't remove all of them. It will be extremely impossible to create a community if we only accepted original submission. However, we are always happy to provide the information of the original submission, if we have one. So, we encourage you to visit other threads and do let us know, if you have information about the same. Also, kindly use the report button for future issues, as our report queue is monitored on hourly basis. Emailing us about the issue might take some time depending on recipient's availability. Lastly, thank you for the story. It was a great read. We hope that you would personally share more of such stories. You can also provide a link to your personal blog in your profile signature, to allow readers to find more of your articles. Thanks, Jitendra Garg MyHindiForum Moderation Team
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02-04-2014, 11:08 AM | #18 |
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Re: एक थी तात्री
जितेंद्र जी, मुझे व्यक्तिगत हमले का कोई शौक नहीं है. किन्तु यहाँ पर मेरी पोस्ट को सहूलियत के हिसाब से बदल दिया गया है. एक जगह मैंने लिखा था- "मैं कतई इसकी समर्थक नहीं" जिसे बदलकर कर दिया "मैं कतई इसका समर्थक नहीं." दूसरी जगह मैंने लिखा था-"मैं इसे साझा करने से खुद को रोक नहीं पा रही" जिसे बदल कर जय भारद्वाज ने कर दिया है- "मैं इसको साझा करने से खुद को रोक नहीं -पा रहा". बीच बीच में दोहे भी डाल दिए हैं और अपनी पर्सनल- साइट्स की लिंक्स भी. इससे यही लगता है कि पोस्ट उनकी ही है. किन्तु इसमें भाषा, विचार, शब्द सब मेरे ही हैं. कोई भी मौलिकता नहीं है. अंतरजाल से सामग्री लेने और उसे word by word कॉपी करने में अंतर होता है. यदि आपने इसे किसी दूसरी फोरम से लिया और आपको लेखक का नाम नहीं मालूम था- तो भी यह आपका नैतिक दायित्व था कि यह बात आप यहाँ mention करते (कि रचना अज्ञात लेखक की है.) इसलिए मैं आपके तर्क से कतई सहमत नहीं हूँ. इसे रचना की चोरी ना समझा जाय तो क्या समझा जाय? जो भी हो - आपने बाद में रचना को मेरा नाम दिया, इस हेतु धन्यवाद.
Last edited by vinitashukla; 02-04-2014 at 11:17 AM. |
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