11-09-2011, 12:06 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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मेरी फ़ितरत ....
तुम्हारे हिस्से की सब धूप सहन कर लेता ;
मै पेड़ बन के तुझे उम्र भर साया देता . हमारे हमसफ़र बन साथ चले चलते अगर ; पलक पर रखता या फूलों का गलीचा देता . तेरा यकीन जो मुझ पर ठहर गया होता ; तेरी ताबीज़ बन ताउम्र हिफाज़त देता . मै अगर जानता , तलवार तू भी रखती है ; तो ख़ुद को म्यान से बाहर नहीं आने देता . बिन तेरे जी नहीं पाऊंगा , पता होता अगर ; बहस न करके , हाथ गूंगे - सा उठा देता . वजूद खुद का तेरे प्यार में भुलाकर मै ; मेरी ख़ुदी को तेरी ख़ुदी का रंग दे देता चाँद , तू बादलों के पार छुपा बैठा है ; चकोर किस तरह हालात का पता देता . मेरी फ़ितरत तेरी फ़ितरत के करीब होती अगर ; तू भी भूले न मुझे , बस ये श्राप दे देता . रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव गोमती नगर ,लखनऊ ,इंडिया . (शब्दार्थ ~~ ख़ुदी = आत्म सम्मान , फ़ितरत = स्वभाव ) |
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