17-08-2016, 10:38 PM | #1 |
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एक अन्जान सफ़र पर निकला
ग़ज़ल
-------- एक अन्जान सफ़र पर निकला । मैं तेरी याद पहन कर निकला ।। चोट खा खा के दुआएँ लैटीं । जिसको पूजा वही पत्थर निकला ।। पी गया ख़ून पसीना मेरा । कितना कमज़र्फ़ समंदर निकला ।। जब भी निकला वो अयादत को मेरी । ले के अल्फ़ाज़ के ख़न्जर निकला ।। मैं तेरी दीद की हसरत ओढ़े । जिस्म की क़ैद से बाहर निकला ।। मेरी मैय्यत को लगाया कांधा । ग़ैर था आप से बेहतर निकला ।। ---- हातिम जावेद |
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