10-11-2012, 08:27 PM | #1 |
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मंत्र संग्रह
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10-11-2012, 08:29 PM | #2 |
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Re: मंत्र संग्रह
श्री गणेश मंत्र (Ganesha Mantra)
"ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम: सिद्धिं मे देहि बुद्धिं प्रकाशय ग्लूं गलीं ग्लां फट् स्वाहा||" विधि :- इस मंत्र का जप करने वाला साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठकर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का लड्डू आदि रखे तथा जप काल में कपूर की धूप जलाये तो यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को सिद्ध करने की ताकत (Power, शक्ति) प्रदान करता है| |
10-11-2012, 08:31 PM | #3 |
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Re: मंत्र संग्रह
स्नान मन्त्र (Bathing Mantra)
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।। |
12-11-2012, 04:05 PM | #4 |
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Re: मंत्र संग्रह
आँखों की सुरक्षा का मंत्रः
ॐ नमो आदेश गुरु का... समुद्र... समुद्र में खाई... मर्द(नाम) की आँख आई.... पाकै फुटे न पीड़ा करे.... गुरु गोरखजी आज्ञा करें.... मेरी भक्ति.... गुरु की भक्ति... फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा। नमक की सात डली लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सात बार झाड़ें। इससे नेत्रों की पीड़ा दूर हो जाती है। |
12-11-2012, 04:06 PM | #5 |
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Re: मंत्र संग्रह
‘ॐ अरुणाय हूँ फट् स्वाहा।’
इस मंत्र के जप के साथ-साथ आँखें धोने से अर्थात् आँख में धीरे-धीरे पानी छाँटने से असह्य पीड़ा मिटती है। |
12-11-2012, 04:06 PM | #6 |
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Re: मंत्र संग्रह
नेत्ररोगों के लिए चाक्षोपनिषद्
ॐ अस्याश्चाक्क्षुषी विद्यायाः अहिर्बुधन्य ऋषिः। गायत्री छंद। सूर्यो देवता। चक्षुरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः। ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुधन्य हैं। गायत्री छंद है। सूर्यनारायण देवता है। नेत्ररोग की निवृत्ति के लिए इसका जप किया जाता है। यही इसका विनियोग है।. ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरित चक्षुरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहं अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु करु। याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूल्य निर्मूलय। ॐ नम: चक्षुस्तेजोरत्रे दिव्व्याय भास्कराय। ॐ नमः करुणाकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षि तेजसे नमः। खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। हंसो भगवान शुचिरप्रति-प्रतिरूप:। ये इमां चाक्षुष्मती विद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्या-सिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा। ॐ हे सूर्यदेव ! आप मेरे नेत्रों में नेत्रतेज के रूप में स्थिर हों। आप मेरा रक्षण करो, रक्षण करो। शीघ्र मेरे नेत्ररोग का नाश करो, नाश करो। मुझे आपका स्वर्ण जैसा तेज दिखा दो, दिखा दो। मैं अन्धा न होऊँ, इस प्रकार का उपाय करो, उपाय करो। मेरा कल्याण करो, कल्याण करो। मेरी नेत्र-दृष्टि के आड़े आने वाले मेरे पूर्वजन्मों के सर्व पापों को नष्ट करो, नष्ट करो। ॐ (सच्चिदानन्दस्वरूप) नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले, दिव्यस्वरूप भगवान भास्कर को नमस्कार है। ॐ करुणा करने वाले अमृतस्वरूप को नमस्कार है। ॐ भगवान सूर्य को नमस्कार है। ॐ नेत्रों का प्रकाश होने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ आकाश में विहार करने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ रजोगुणरूप सूर्यदेव को नमस्कार है। अन्धकार को अपने अन्दर समा लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है। हे भगवान ! आप मुझे असत्य की ओर से सत्य की ओर ले चलो। अन्धकार की ओर से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु की ओर से अमृत की ओर ले चलो। उष्णस्वरूप भगवान सूर्य शुचिस्वरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य शुचि तथा अप्रतिरूप हैं। उनके तेजोमय रूप की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। जो कोई इस चाक्षुष्मती विद्या का नित्य पाठ करता है उसको नेत्ररोग नहीं होते हैं, उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता है। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर यह विद्या सिद्ध हो जाती है। |
12-11-2012, 04:07 PM | #7 |
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Re: मंत्र संग्रह
चाक्षुषोपनिषद् की पठन-विधिः
श्रीमत् चाक्षुषीपनिषद् यह सभी प्रकार के नेत्ररोगों पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इस अदभुत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है। सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है। इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें। शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए। प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि 'मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।' लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके 'चाक्षुषोपनिषद्' का पठन प्रारंभ करें। इस उपनिषद का शीघ्र गति से लाभ लेना हो तो निम्न वर्णित विधि अनुसार पठन करें- नेत्रपीड़ित श्रद्धालु साधकों को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। अनार की डाल की लेखनी व हल्दी के घोल से काँसे के बर्तन में नीचे वर्णित बत्तीसा यंत्र लिखें- मम चक्षुरोगान् शमय शमय। इस पद्धति से 'चाक्षुषोपनिषद्' का पाठ करने पर इसका आश्चर्यजनक, अलौकिक प्रभाव तत्काल दिखता है। Last edited by aspundir; 12-11-2012 at 04:17 PM. |
12-11-2012, 04:18 PM | #8 |
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Re: मंत्र संग्रह
पीपल पूजन मन्त्र (Pipal Poojan Mantra).
अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने । अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।। |
12-11-2012, 04:46 PM | #9 |
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Re: मंत्र संग्रह
दाँत-दाढ़ के दर्द पर मंत्र प्रयोगः
ॐ नमो आदेश गुरु का... बन में ब्याई अंजनी...जिन जाया हनुमंत.... कीड़ा मकड़ा माकड़ा.... ये तीनों भस्मंत.... गुरु की भक्ति.... मेरी भक्ति.... फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा। एक नीम की टहनी लेकर दर्द के स्थान पर छुआते हुए सात बार इस मंत्र को श्रद्धा से जपें। ऐसा करने से दाँत या दाढ़ का दर्द समाप्त हो जायगा और पीड़ित व्यक्ति आराम का अनुभव करेगा। |
12-11-2012, 04:54 PM | #10 |
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Re: मंत्र संग्रह
बवासीर का मंत्रः
ॐ काका कता क्रोरी कर्ता... ॐ करता से होय....यरसना दश हंस प्रगटे.... खूनी बादी बवासीर न होय.... मंत्र जान के न बताये..... द्वादश ब्रह्महत्या का पाप होय... लाख जप करे तो उसके... वंश में न होय.... शब्द साँचा... पिण्ड काँचा... फुर्रो मंत्र ईश्वरोवाचा। रात्रि के रखे हुए पानी को लेकर इस मंत्र को 21 बार शक्तिकृत करके गुदाप्रक्षालन करें तो दोनों प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है। |
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