14-09-2013, 07:39 AM | #11 |
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Re: सब फ़िल्मी है
आपसी रिश्ते बहुत-कुछ नीयत पर निर्भर करते हैं। बहरहाल, कोई तीन दशक पूर्व नसीरुद्दीन शाह और शशि कपूर की बेटी संजना कपूर ने ‘हीरो हीरालाल’ नामक फिल्म की थी, जिसमें पोस्टर फाड़कर नायक बाहर आता है। राहुल रवैल की ‘अजरुन’ में भी नायक की गाड़ी खलनायक नेता के चुनाव प्रचार के बड़े बैनर को फाड़कर बाहर निकलती है। अनेक हॉलीवुड फिल्मों में भी सिनेमा पोस्टर का नाटकीय प्रयोग किया गया है। ‘शायद’ फिल्म में शराब पीने के खिलाफ बनाए गीत के छायांकन में नशे में डूबा एक व्यक्ति शराबबंदी का पोस्टर ओढ़कर सो जाता है। हॉलीवुड पोस्टरों के संकलन की एक किताब भी प्रकाशित हुई है और हमारे अनेक फिल्मकारों ने इसे खरीदा था कि कहानी चुराने के बाद आगे पोस्टर के डिजाइन की भी चोरी की जा सके। बहरहाल, शाहिद कपूर के लिए यह फिल्म निर्णायक सिद्ध होगी और सृजनशील संतोषी को हमेशा काम मिलता रहेगा, भले ही पहले काम किया आदमी साथ काम करे या न करे। संतोषी एक अच्छे लेखक भी हैं। उन्होंने हाल ही में अनिल कपूर को अनुबंधित किया है और फिल्म प्रेरित है महान नाटक ‘जिसने लाहौर नहीं देखा’
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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