28-08-2014, 10:57 PM | #11 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ हूंह ऐगो बैलो नै समभरो हौ, हमरा की समहारमीं’
फिर क्या था मुझे ताब आ गया और बैल की शामत। दो तीन हाथ का एक डंडा मेरे हाथ में था ही, मैं बैल के पीछे पीछे दौड़ गया। एक हाथ से उसकी पूछ पकड़ी और दूसरे हाथ से डंडा सटाक सटाक देता गया और बैल भागता गया। कभी बगैचा, कभी खेत, कभी तलाब। इस बीच कई बार उसकी पूछ छूट जाती और फिर सारी ताकत लगा कर पकड़ता और उसे पीट देता। अंत में बैल समझ गया और भागत हुआ बथान में जा कर धुंसा गया। मैं थक कर चूर हो गया। थोड़े देर बाद रीना मिली थी और बोल पड़ी – ‘‘पगला जा हीं की कभी कभी’’ ‘‘समझ में आइलौ, तों संहलमीं की नै’’ उसे कैसे बताता कि मेरा पागल पन तो वही है। खैर यह सिलसिला तो चल ही रहा था कि एक दिन अचानक रास्ते में मुझसे आगे जा रही रधिया ने कागज का एक टुकड़ा गिरा दिया। मेरे पीछे कई लोग आ रहे थे और कहीं इन लोगों के हाथ मंे पत्र नहीं लग जाय मैंने उसे उठा लिया। घर आकर जब उसे खोला तो वह प्रेमपत्र कम मेरी स्तुति गान अधिक थी। उसमें कई महान लोगों की सुक्तियों के सहारे मुझे यह समझाने का प्रयास किया गया था कि मैं बहुत महान हूं। धत्त तेरी की, मैंने अपना माथा ठोंक लिया। कमरे वाली प्रसंग का रधिया पर उल्टा असर हुआ और वह मुझे बहुत अच्छा आदमी समझने लगी, उसे क्या पता था कि यह सब मैंने अपनी अच्छाई के लिए कम और रीना के प्यार के लिए अधिक किया था। >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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