02-02-2013, 10:42 PM | #1 |
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मिर्ज़ा ग़ालिब की विनोद प्रियता
ग़ालिब के जीवन से सम्बंधित निम्नलिखित अंश ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली द्वारा 1897 में लिखी गई मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी “यादगार-ए-ग़ालिब” से लिया गया है. ग़ालिब की सर्वप्रथम साहित्यिक जीवनी लिखने का श्रेय हाली को ही जाता है. इसके बाद ही, ग़ालिब की मृत्यु के लगभग तीन दशक बाद, ग़ालिब के साहित्य का बाकायदा मूल्यांकन और समालोचना शुरू हुयी. हाली स्वयं एक शायर और उच्च कोटि के आलोचक तो थे ही, ग़ालिब के शागिर्द भी थे. ग़ालिब अपनी उर्दू और फारसी शायरी के लिए तो विख्यात हैं ही, साथ ही अपने मित्रों तथा आत्मीयों को लिखे अपने सैकड़ों पत्रों के लिए भी जाने जाते हैं जो अनौपचारिकता और फक्कड़पन की एक अलग ही दुनिया की रचना करते हैं. आप देखेंगे कि ग़ालिब ने अपने पत्रों में उस समय प्रचलित सामंतवादी युग की दिखावटी विनम्रता का त्याग करते हुए एक ऐसी सरल, दोस्ताना और संवाद की सुखद अनुभूति जगाने वाली शैली को अपनाया जो उर्दू गद्य में अब तक उपलब्ध नहीं था. बाद के साहित्यकारों को ग़ालिब की इस नयी शैली ने बहुत प्रभावित किया. ग़ालिब के समय में ही ग़ालिब की विनोदप्रियता के चर्चे होते थे. हाली ने अपने ख़ास अंदाज़ में ग़ालिब के इस पक्ष का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है जिसकी बानगी आपको निम्नलिखित प्रसंगों के माध्यम से भलीभांति हो जायेगी. |
02-02-2013, 10:46 PM | #2 |
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Re: मिर्ज़ा ग़ालिब की विनोद प्रियता
सुना है कि ग़दर के बाद जब मिर्ज़ा ग़ालिब बर्न के सामने गए तो उस वक़्त कुलाह-ए-पपाक (ऊंची तुर्की टोपी) उनके सर पर थी.उन्होंने मिर्ज़ा की वज़ह देख कर पूछा,
“वैल, तुम मुसलमान?” मिर्ज़ा ने कहा, “आधा”. कर्नल ने कहा, “इस का क्या मतलब?” मिर्ज़ा ने कहा,”शराब पीता हूँ, सूअर नहीं खाता.” कर्नल यह सुन कर हंसाने लगा. फिर मिर्ज़ा ने वजीरे हिन्द की चिट्ठी दिखाई जो कि मलिका-ए-मुअज्ज़मा के कसीदे के जवाब में आई थी. कर्नल ने कहा, “तुम सरकार की फतह के बाद पहाड़ी पर क्यों न हाज़िर हुए?” मिर्ज़ा ने कहा, ”मैं चार कहारों का अफसर था, वह चारों मुझे छोड़ कर भाग गए. मैं क्योंकर हाज़िर होता?” कर्नल ने निहायत महरबानी से मिर्ज़ा और उनके तमाम साथियों को रुखसत कर दिया. Last edited by rajnish manga; 03-02-2013 at 04:04 PM. |
02-02-2013, 10:48 PM | #3 |
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Re: मिर्ज़ा ग़ालिब की विनोद प्रियता
आम मिर्ज़ा ग़ालिब को बहुत पसंद था. आमों की फसल में उनके दोस्त दूर से उनके लिए उम्दा उम्दा आम भेजते थे और वह खुद अपने बाज़ दोस्तों से तक़ाज़ा कर के आम मंगवाते थे. हकीम रज़ीउद्दीन खां, जो मिर्ज़ा के गहरे दोस्त थे, उनको आम नहीं भाते थे.एक दिन वह मिर्ज़ा के मकान पर बरामदे में बैठे थे और मिर्ज़ा भी वहीँ मौजूद थे. एक गधे वाला अपने गधे लिए हुए गली से गुज़रा. आम के छिलके पड़े थे. गधे ने सूंघ कर छोड़ दिया. हकीम साहब ने कहा, “देखिये आम ऐसी चीज़ है जिसे गधा भी नहीं खाता.”
मिर्ज़ा ने जवाब दिया, “बेशक, गधा नहीं खाता.” ***** शराब के मुतल्लिक मिर्ज़ा ग़ालिब की बातें मशहूर हैं. एक शख्स ने उनके सामने शराब की बुराई की कहा कि शराब खोर की दुआ क़ुबूल नहीं होती. मिर्ज़ा ने कहा, “भाई जिसको शराब मयस्सर है उसको और क्या चाहिए, जिसके लिए दुआ मांगे.” |
02-02-2013, 10:50 PM | #4 |
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Re: मिर्ज़ा ग़ालिब की विनोद प्रियता
ग़दर के बाद जब कि मिर्ज़ा ग़ालिब की पेंशन बंद थी और दरबार में शरीक होने की इजाज़त न हुई थी, पंडित मोती लाल मिर्ज़ा साहब से मिलने आये.कुछ पेंशन का ज़िक्र चला. मिर्ज़ा साहब ने कहा,”तमाम उम्र में एक दिन शराब न पी हो तो काफ़िर और एक दफा नमाज़ पढ़ी हो तो गुनाहगार. फिर नहीं जानता कि सरकार ने किस तरह मुझे बाग़ी मुसलामानों में शुमार किया?”
***** एक दफा मिर्ज़ा मकान बदलना चाहते थे.एक मकान आप खुद देख कर आये.उस का दीवानखाना तो पसंद आ गया, मगर महलसरा खुद न देख सके. घर पर आ कर उसके देखने के लिए बीबी को भेजा. वह देख कर आयीं तो उन से पसंद और नापसन का हाल पूछा. उन्होंने कहा, “उस में तो लोग बला बतलाते हैं.” मिर्ज़ा ने कहा: ”क्या दुनिया में आप से भी बढ़ कर कोई बला है? |
02-02-2013, 10:52 PM | #5 |
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Re: मिर्ज़ा ग़ालिब की विनोद प्रियता
देहली में रथ को बाज़ मुज़क्कर (पुल्लिंग) और बाज़ मु’अन्नस (स्त्रीलिंग) बोलते हैं. किसी ने मिर्ज़ा साहब से पूछा,
“हुज़ूर रथ मु’अन्नस है या मुज़क्कर?” आप ने कहा, “भैया, जब रथ में औरतें बैठी हों तो मु’अन्नस कहो और जब मर्द बैठें तो मुज़क्कर समझो.” ***** हिजरी 1277 (ईस्वी सन 1860) में उन्होंने अपने मरने की तारीख़ कही (अपने नाम के अक्षरों को ले कर अंक ज्योतिष पर आधारित भविष्यवाणी की) कि “ग़ालिब मुर्द”. इससे पहले कई माद्दे (भविष्य की घटना का उल्लेख) ग़लत हो चुके थे. मुंशी जवाहर सिंह जोहर से उनके ख़ास त’आल्लुकात थे. उन से मिर्ज़ा साहब ने इस माद्दे का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा, ”हज़रत!इंशा अल्ला, यह माद्दा भी ग़लत साबित होगा. मिर्ज़ा ने कहा, “देखो साहब, तुम ऐसी फ़ाल मुंह से न निकालो. माद्दा सच न निकला तो मैं सर फोड़ के मर जाऊंगा.” Last edited by rajnish manga; 02-02-2013 at 10:54 PM. |
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