17-02-2013, 12:42 AM | #1 |
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देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है
देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है.... |
17-02-2013, 12:44 AM | #2 |
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Re: देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है
मुझे नीद कहाँ आती है तुझे देखे बगैर,
ख्वाबों में भी देखे हुए अरसे गुज़र गये.... |
17-02-2013, 12:48 AM | #3 |
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Re: देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है
यूँ न देख इन कातिल निगाहों से,
बेहोश हो गया हू, जरा होश में तो आने दे.... |
21-02-2013, 02:14 PM | #4 | |||
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Re: देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है
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जॉन भाई, आपके प्रयास की प्रशंसा की जानी चाहिए. इसी प्रकार पूरी लगन और ईमानदारी से इस दिशा में से काम करते रहें. अच्छी और स्तरीय कविता-शायरी की पुस्तकें पढ़ते रहें और स्वयं भी लिखने का क्रम बरकरार रखें. शुभकामनाएं. |
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22-02-2013, 07:48 PM | #5 |
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Re: देख दुनिया तेरे बगैर दिखती कैसी है
bahoot achhe sher hai kripya jari rakhen john bhai
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