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10-01-2011, 09:35 PM | #1 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
आग की भीख
धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है; मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है? दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे, बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे। प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ। चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ। बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है, कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है? मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा? यह नाश आ रहा या सौभाग्य का सितारा? आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा, भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा। तम-बेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ। ध्रुव की कठिन घड़ी में पहचान माँगता हूँ। |
10-01-2011, 09:36 PM | #2 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बल-पुँज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है, अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ ढेर हो रहा है, है रो रही जवानी, अन्धेर हो रहा है। निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है। निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है। पंचास्य-नाद भीषण, विकराल माँगता हूँ। जड़ता-विनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ। मन की बँधी उमंगें असहाय जल रही हैं, अरमान-आरज़ू की लाशें निकल रही हैं। भीगी-खुली पलों में रातें गुज़ारते हैं, सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं। इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे, पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे। उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ। विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ। |
10-01-2011, 09:40 PM | #3 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
अपने ही मन से कुछ बोलें
क्या खोया, क्या पाया जग में मिलते और बिछुड़ते मग में मुझे किसी से नहीं शिकायत यद्यपि छला गया पग-पग में एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें! पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी जीवन एक अनन्त कहानी पर तन की अपनी सीमाएँ यद्यपि सौ शरदों की वाणी इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें! जन्म-मरण अविरत फेरा जीवन बंजारों का डेरा आज यहाँ, कल कहाँ कूच है कौन जानता किधर सवेरा अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें! अपने ही मन से कुछ बोलें! |
10-01-2011, 09:40 PM | #4 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
एक बरस बीत गया
एक बरस बीत गया झुलासाता जेठ मास शरद चांदनी उदास सिसकी भरते सावन का अंतर्घट रीत गया एक बरस बीत गया सीकचों मे सिमटा जग किंतु विकल प्राण विहग धरती से अम्बर तक गूंज मुक्ति गीत गया एक बरस बीत गया पथ निहारते नयन गिनते दिन पल छिन लौट कभी आएगा मन का जो मीत गया एक बरस बीत गया |
24-02-2011, 01:38 PM | #5 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
सभी कविताए अच्छी हे सिकन्दर भाई
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09-03-2011, 09:18 PM | #7 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
बहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली कवितायें हैं
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09-03-2011, 09:48 PM | #8 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
धन्यवाद जो आपने इतने अच्छा अच्छा कविता ....
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
11-05-2011, 10:10 PM | #9 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
अति सुंदर.................................
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