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08-02-2011, 08:03 PM | #1 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ है हयात तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाये हुये जा-ब-जा बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म ख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये जिस्म निकले हुये अमराज़ के तन्नूरों से पीप बहती हुई गलते हुये नासूरों से लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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12-02-2011, 07:28 AM | #2 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
देखा है मैंने इश्क में ज़िन्दगी को संवरते हुए
चाँद की आरजू में चांदनी को निखरते हुए इक लम्हे में सिमट सी गई है ज़िन्दगी मेरी महसूस किया है मैंने वक्त को ठहरते हुए डर लगने लगा है अब तो, सपनो को सजाने में भी जब से देखा है हंसी ख्वाबों को बिखरते हुए अब तो सामना भी हो जाये तो वो मुह फिर लेते हैं अपना पहले तो बिछा देते थे नजरो को अपनी, जब हम निकलते थे उनके रविस से गुजरते हुए... |
12-02-2011, 07:29 AM | #3 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
तू परछाई है मेरी, तो कभी मुझे भी दिखाई दिया कर ऐ जिंदगी ! कभी तो इक जाम फुर्सत में मेरे संग पिया कर मै भी इन्सान हूँ, मेरे भी दिल में बसता है खुदा मेरी नहीं तो न सही, कम से कम उसकी तो क़द्र किया कर इनायत समझ कर तुझको अबतलक जीता रहा हूँ मै मिटा कर क़ज़ा के फासले, मै तुझमे जियूं तू मुझमे जिया कर मेरा क्या है ? मै तो दीवाना हूँ इश्क-ऐ-वतन में फनाह हो जाऊंगा वतन पे मिटने वालों की न जोर आजमाइश लिया कर........... |
17-03-2011, 11:28 PM | #4 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
दोस्तों.. आपके लिए विशेष तौर पर मैं लाया हूँ मशहूरो मारुफ़ ग़ज़ल गायक "राहत इन्दौरी " साहब की कुछ ग़ज़लें... गौर फरमाइयेगा..
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे |
17-03-2011, 11:28 PM | #5 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है |
17-03-2011, 11:31 PM | #6 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
अब पेश हैं महान ग़ज़ल गायक "रहबर जौनपुरी" साहब की कुछ ग़ज़लें..
मुझको किस मोड़ पे लाया है मुक़द्दर मेरा रास्ता रोकते हैं मील के पत्थर मेरा आँखों-आँखों में गुज़र जाती हैं रातें सारी अब मुझे ख़्वाब भी देता नहीं बिस्तर मेरा ताज कोई है न दस्तार-ए-फ़ज़ीलत कोई बार अब दोश पे लगता है मुझे सर मेरा मैं परेशान बदलते हुए हालात से था रख दिया वक़्त ने चेहरा ही बदल कर मेरा सेहन-ओ-दीवार वही, ताक़-ओ-दर-ओ-बाम वही अजनबी सा मुझे लगता है मगर घर मेरा मैं किसी और से उम्मीद-ए-वफ़ा क्या रक्खूँ ख़ुद ही जब बस नहीं चलता कोई मुझ पर मेरा तुझसे नाकामी-ए-मंज़िल का गिला क्या रेहबर चश्म-ए-बीना है न अब दिल है मुनव्वर मेरा |
17-03-2011, 11:32 PM | #7 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
इक छत तो बड़ी चीज़ है छप्पर नहीं रखते
जो घर को बनाते हैं वही घर नहीं रखते हो प्यास बुझानी तो कुआँ खोदिए कोई पीने के लिए लोग समन्दर नहीं रखते मंज़िल पे पहुँचने का सिखाते हैं हुनर हम राहों में किसी की कभी पत्थर नहीं रखते हम अज़मत-ए-किरदार पे करते हैं भरोसा एहसान की चोखट पे कभी सर नहीं रखते आईना-ए-एहसास को जो ठेस लगाएँ अल्फ़ाज़ हम ऐसे कभी लब पर नहीं रखते वाबस्ता उन्हीं लोगों से रहते हैं अँधेरे जो शम्मे दिल-ओ-जाँ को मुनव्वर नहीं रखत |
17-03-2011, 11:47 PM | #8 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
हमारे अलीगढ के मशहूर ग़ज़ल लेखक जिनकी ग़ज़लें दुनिया भर में मशहूर हैं..ज़नाब दानिश अलीगढ़ी साहब.. आज उन्हीं की कुछ ग़ज़लें आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ.. मुलाहिजा फरमाइयेगा...
क़दम क़दम पे ग़मों ने जिसे संभाला है उसे तुम्हारी नवाज़िश ने मार डाला है हर एक शब के लिए सुबह का उजाला है वो शख़्स जिसको ग़म-ए-ज़िन्दगी ने पाला है किसी के जिस्म की ख़ुशबू से दिल मोअत्तर है किसी की याद मेरे ज़ेह्न का उजाला है ख़ुशी ये है कि मुलाक़ात होने वाली है ये रंज है कि वो मिलकर बिछड़ने वाला है किसी के पाँव के छालों को किसने देखा है ज़माना राह में काँटे बिछाने वाला है वो लोग मुझसे उसूलों की बात करते थे जिन्होंने अपने उसूलों को बेच डाला है बुरा न मानिए दानिश कि आप अपने हैं ये कहके उसने मुझे बज़्म से निकाला है |
18-03-2011, 12:17 AM | #9 | |
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!! कुछ मशहूर गजलें !!
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Self-Banned. Missing you guys! मुझे तोड़ लेना वन-माली, उस पथ पर तुम देना फेंक|फिर मिलेंगे| मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक|| |
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20-03-2011, 06:24 PM | #10 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
आये हो तुम यहाँ क्यों
आये हो तुम यहाँ क्यों हाथों में लेके पत्थर बस्ती है मुफ़लिसों की, शीशे के ये नहीं घर पाबंदियाँ यहाँ है रस्मों-रिवायतों की चलती हूँ इसलिये मैं तेरी डगर से हटकर सहरा की धूप सर पर, तलुओं में भी हैं छाले शिद्दत है तिश्नगी की, छलते सुराब उस पर ज़िन्दा ज़मीर जिनका, डरते नहीं वो सच से चलते हैं खोटे मन के, तो आइनों से बचकर रहबर बिना किसी को मंज़िल कहाँ मिली है हम कब से चल रहे हैं राहें बदल-बदल कर महफ़िल में सबसे ‘देवी’ हँसकर मिली है लेकिन तन्हाइयों में रोई ख़ुद से लिपट-लिपट कर देवी नागरानी
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