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Old 05-03-2013, 11:06 PM   #1381
Dark Saint Alaick
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

नेट ने चूहों को टेलीपैथी में किया सक्षम
दो देशों में बैठे चूहों के मस्तिष्कों को एक-दूसरे से जोड़ने में कामयाबी हासिल

न्यूयार्क। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने टेलीपैथी के जरिए दूसरों के दिमाग को पढ़ लेने की कपोल कल्पना को हकीकत में बदलते हुए दुनिया के दो अलग-अलग देशों में बैठे चूहों के मस्तिष्कों को इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जोड़ने में कामयाबी हासिल की है। साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में गुरुवार को प्रकाशित हुए इस शोधपत्र में ड्यूक विश्वविद्यालय के न्यूरोबायोलॉजिस्ट मिगुयेल निकोलेलिस ने बताया कि इसके तहत ब्राजील के एक चूहे के दिमाग को इंटरनेट की मदद से अमेरिका में रहने वाले चूहों के साथ जोड़ दिया गया। टेलीपैथी उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसके जरिए बिना किसी भौतिक माध्यम की सहायता के एक इंसान दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क को पढ़ने अथवा उसे अपने विचारों से अवगत कराने में कामयाब होता है। इसके जरिए वैज्ञानिकों ने बाल की मोटाई के सौवें हिस्से जितने बारीक सेंसर को चूहों के मस्तिष्क में फिट कर दिया और उन्हें इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे से जोड़ दिया। इस तरह से ब्राजील में रहने वाले चूहे को जैसे ही लाल रंग की एक बत्ती जलती दिखाई दी, तो उसने एक लीवर दबाया और उसे पीने का पानी उपलब्ध हो गया। उसकी इस कामयाबी के संकेत दूसरे चूहों तक भी इस इलेक्ट्रानिक टेलीपैथी के जरिए पहुंच गए और उन्होंने भी अपने अपने यहां लीवर दबाकर पानी पीने में सफलता हासिल की। प्रोफेसर निकोलेलिस को इस शोध के लिए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डारपा) से 2.6 करोड डालर की आर्थिक सहायता भी प्राप्त हुई है। इसी एजेंसी को ही इंटरनेट की खोज करने का श्रेय प्राप्त है। ब्रेन मशीन इंटरफेस कहलाने वाली इस तकनीक के जरिए ही अपंग और लकवाग्रस्त लोग रोबोटिक बांह और कंप्यूटर के कर्सर को हिला पाते हैं। इसके मस्तिष्क के संकेत भेजने के क्रम को सुधार कर रोगी के खुद के अंगों को भी क्रियाशील बनाया जा सकता है। निकोलेलिस ने हालांकि अपनी इस तकनीक को एक आर्गेनिक कंप्यूटर करार देते हुए कहा है कि इसके जरिए दुनिया के कई मस्तिष्कों को जोड़ कर एक ऐसा जैविक कंप्यूटर तैयार हो जाता है, जो उन समस्याओं को भी चुटकियों में हल कर सकता है जिन्हें एक मस्तिष्क से हल कर पाना संभव नहीं है। निकोलेलिस अब चूहों के ऊपर मिली कामयाबी से उत्साहित होकर बंदरों के ऊपर यह शोध करने जा रहे हैं। हालांकि इस शोध से कई नैतिक सवाल भी खडे हो गए हैं। इसके आलोचकों का यह कथन ही पढ़ने वालों के पसीने छुड़ाने में सक्षम है कि इसके जरिए किसी दिन वैज्ञानिक रिमोट तकनीक से संचालित होने वाले जानवरों अथवा इंसानों की विशाल सेना तैयार करने में सक्षम हो जाएंगे। कुछ दूसरे शोधकर्ताओं को इस तकनीक में कुछ भी नया नहीं दिखाई दे रहा है और उनका कहना है कि इससे पहले भी डयूक के शोधकर्ता अमेरिका में बैठे एक बंदर के मस्तिष्क से जापान में लगी रोबोटिक बांह को नियंत्रित करने में सफलता हासिल कर चुके हैं।
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Old 13-03-2013, 11:04 PM   #1382
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

शहरी इलाकों में जून 2013 तक होंगे 6.6 करोड़ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता

नई दिल्ली। सस्ते स्मार्टफोन की उपलब्धता और मोबाइल इंटरनेट उपयोग बढने के कारण भारत के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया वेबसाइटों का इस्तेमाल करने वालों की संख्या जून 2013 तक बढकर 6.6 करोड़ हो जाएगी। इंटरनेट एंड मोबाइल ऐसोसिएशन आफ इंडिया (आईएएमएआई) और इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो (आईएमआरबी) ने भारत में सोशल मीडिया की स्थिति के बारे में तैयार रपट में कहा गया है, ‘भारत के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं की संख्या दिसंबर 2012 में 6.2 करोड़ थी और जून 2013 में यह तादाद बढकर 6.6 करोड़ हो जाएगी।’ रपट में कहा गया कि शहरी इलाकों में 74 फीसद सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। रपट के मुताबिक, ‘सोशल नेटवकि’ग उपयोगकर्ताओं की संख्या में बढोतरी का श्रेय भारत में इंटरनेट के प्रसार को दिया जा सकता है।’ सस्ते स्मार्टफोन की उपलब्धता और इसके कारण मोबाइल इंटरनेट का उपयोग बढ रहा है। निष्कर्ष के मुताबिक शहरों में इंटरनेट के आठ करोड़ सक्रिय उपयोगकर्ता हैं और 72 फीसद (5.8 करोड़ लोग) किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े हैं।
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Old 17-03-2013, 03:25 PM   #1383
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

कानों में अचानक सीटी की आवाज सुनें तो उसे हल्के में न लें

नई दिल्ली। अगर आपको फोन पर बात करते समय साफ सुनाई न दे या अचानक कानों में सीटी की आवाज सुनाई दे तो उसे हल्के तौर पर न लें। यह कानों की बीमारी एकॉस्टिक न्यूरोमा के लक्षण हो सकते हैं और इसे नजरअंदाज करने का नतीजा बहरेपन के रूप में सामने आ सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक और ईएनटी विशेषज्ञ डॉ एस के कक्कड़ कहते हैं कि एकॉस्टिक न्यूरोमा वास्तव में एक ट्यूमर होता है जिससे कैंसर तो नहीं होता लेकिन यह श्रवण क्षमता को क्षीण करते करते कई बार खत्म भी कर देता है। इसके और भी गंभीर नतीजे होते हैं। मुश्किल यह है कि इसके लक्षण इतने धीरे-धीरे उभरते हैं कि बीमारी का समय पर पता ही नहीं चल पाता। एम्स के ही पूर्व ईएनटी विशेषज्ञ डॉ बी एम अबरोल ने बताया कि हमारे मस्तिष्क से निकल कर आठवीं क्रेनियल तंत्रिका कान के अंदरूनी हिस्से तक जाती है। आठवीं और सातवीं क्रेनियल तंत्रिका एक दूसरे से सटी होती हैं। आठवीं क्रेनियल तंत्रिका पर बनने वाला ट्यूमर ही एकॉस्टिक न्यूरोमा कहलाता है। यह आठवीं क्रेनियल नर्व की शाखा वेस्टीबुलर तक भी पहुंच जाता है जिसकी वजह से इसे वेस्टिबुलर श्वेनोमा भी कहते हैं।’ मेदान्ता मेडिसिटी के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ के के हांडा ने बताया कि इस ट्यूमर के विकसित होने में कई बार बरसों लग जाते हैं। इसकी वजह से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। डॉ हांडा ने कहा कि इसमें फोन पर या नियमित बातचीत सुनाई नहीं देती। कभी-कभी अचानक कान में सीटी बजती महसूस होती है। अक्सर लोग इन लक्षणों कोे गंभीरता से नहीं लेते लेकिन यही एकॉस्टिक न्यूरोमा की शुरुआत होती है। अगर शुरू में इस समस्या का पता चल जाए तो इसका इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन बाद में गंभीर समस्या हो जाती है। डॉ अबरोल ने बताया कि कुछ मरीजों में यह समस्या तेजी से बढ़ती है। एकॉस्टिक न्यूरोमा की वजह से ऐसा लगता है जैसे चक्कर आ रहे हों या चलते समय अचानक कदम लड़खड़ा रहे हों। अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा बहुत बढ़ जाए तो इसके फलस्वरूप चेहरे पर लकवा भी हो सकता है। चूंकि यह आठवीं क्रेनियल तंत्रिका में होता है तो अपने आसपास की उन अन्य क्रेनियल तंत्रिकाओं और रक्त वाहिनियों को भी यह प्रभावित करता है जो मस्तिष्क को रक्त पहुंचाती हैं या मस्तिष्क तक जाती हैं। उन्होंने बताया कि सातवीं क्रेनियल तंत्रिका का सम्बंध चेहरे की मांसपेशियों से होता है। यह तंत्रिका अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा के ट्यूमर से प्रभावित हो जाए तो फेशियल पैरालिसिस या फेशियल पाल्सी जैसी समस्या हो सकती है। इससे मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, आंसू और नाक में एक द्रव का लगातार उत्पादन होता है और जीभ की स्वाद ग्रंथियां भी प्रभावित हो जाती हैं। डॉ अबरोल के अनुसार, पांचवीं क्रेनियल नर्व अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा से प्रभावित हो जाए तो चेहरे की मांसपेशियों में तीव्र दर्द होता है और यह समस्या ‘ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया’ कहलाती है।
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Old 17-03-2013, 03:29 PM   #1384
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बच्चों को कुबडा बना रहे हैं वजनी स्कूल बैग

नई दिल्ली। स्कूली बच्चों की पीठ पर लदा भारी स्कूल बैग उन्हें स्थाई या अस्थाई रूप से कुबड़ा बना सकता है। सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन (एसडीएफ) के तहत किए गए एसोसिएटेड चैम्बर आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) सर्वेक्षण के अनुसार पांच से 12 वर्ष के आयु वर्ग के 82 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपनी पीठ पर अत्यधिक भारी बैग ढोते हैं जिसके कारण बच्चों में कमर दर्द जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। रीढ़ चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बहुत अधिक भारी बस्ते ढोने से उनमें अस्थाई अथवा स्थाई कूबड़पन भी पैदा हो सकता है। एसोचैम की ओर से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार दस साल से कम उम्र के करीब 58 प्रतिशत बच्चे हल्के कमर दर्द के शिकार हैं जो बाद में गंभीर दर्द एवं कूबड़पन का कारण बन सकता है। कूबड़पन की चिकित्सा के विशेषज्ञ डा. शिशिर कुमार के अनुसार पूरी आबादी में करीब चार प्रतिशत लोग इससे पीड़ित होते हैं और प्रति दो हजार बच्चों में एक बच्चा कुबडेþपन का शिकार होता है। लड़कियों में कू बड़पन दस गुना अधिक होता है। आरएलकेसी हास्पिटल एंड मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट के अस्थि शल्य चिकित्सक डा. शिशिर कुमार के अनुसार अगर समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह शरीर में विकलांगता पैदा कर सकती है। किसी असामान्यता के चलते या दुर्घटना का शिकार होने पर रीढ़ मे आए विकार के कारण स्कोलियोसिस हो सकती है। कभी-कभी श्रोणि प्रदेश के झुक जाने के कारण एक पैर छोटा या एक पैर बड़ा हो जाता है। नतीजतन रीढ़ भी झुक जाती है। विशेष किस्म के आर्थोपैडिक जूतों का उपयोग करने से भी इससे बचा जा सकता है। यही नहीं अगर रीढ़ का झुकाव लगातार होता रहे तो आर्थोपैडिक सर्जन से परामर्श करके शल्य क्रिया भी कराई जा सकती है। डा. कुमार के अनुसार कूबड़पन से जुड़े ज्यादातर कारण वैसे तो जन्मजात होते हैं लेकिन लगातार अधिक वजन उठाने, गलत तरीके से बैठने आदि कारणों से भी कूबड़पन की समस्या हो सकती है। यह विकृति महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। जब लोगों में 10 डिग्री से ज्यादा टेढ़ापन होता है तब उस विकृति को स्कोलियोसिस कहते हैं। एसोचैम सर्वेक्षण से पता चलता है कि हमारे देश में करीब 82 प्रतिशत बच्चे अपनी पीठ पर अपने पूरे वजन का 35 प्रतिशत हिस्सा लेकर चलते हैं। एसोचैम स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डा. बी के राव के अनुसार पीठ पर अत्यधिक वजन या असामान्य वजन से पीठ की समस्या या रीढ़ में विकृति हो सकती है। अत्यधिक वजन के कारण रीढ़ पर पड़ने वाले दवाब के कारण (मस्कुलो-स्केलेटल प्रणाली) के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, देहरादून, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद सहित दस बडेþ शहरों में किए गए इस सर्वेक्षण से पता चला कि जिन दो हजार स्कूली बच्चों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया उनमें से 12 साल से कम उम्र के करीब 1500 बच्चे किसी सहारे के बिना ठीक से बैठ भी नहीं पाते हैं और वे हड्डी से सम्बंधित समस्याओं से ग्रस्त हैं तथा 40 प्रतिशत शारीरिक तौर पर निष्क्रिय हैं। डा. कुमार के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियों में पीठ दर्द की समस्या अधिक व्यापक है। कूबड़पन के मामले में गंभीर बात यह है कि ज्यादातर मामलों में इसका पता 25 से 30 वर्ष की उम्र में लगता है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की मानें तो 50 से 60 फीसदी तक कूबड़पन हो जाए तो उसका उपचार सिर्फ आपरेशन से ही संभव है।
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Old 23-03-2013, 04:38 PM   #1385
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वर्ष 2010 में हुई 23 लाख लोगों की मौत का कारण रहा नमक का ज्यादा सेवन

वाशिंगटन। वर्ष 2010 के दौरान दुनिया भर में दिल के दौरे सहित इससे जुड़ी कई दूसरी समस्याओं के कारण हुई 23 लाख मौतों के पीछे का कारण नमक का ज्यादा सेवन करना रहा है। यह नया खुलासा करने वाले शोधकर्ताओं के दल में भारतीय मूल का एक वैज्ञानिक भी शामिल है। न्यू आरलींस में हुई अमेरिकी हृदय संघ की बैठक में मौजूद शोधकर्ताओं के मुताबिक, नमक के अत्याधिक सेवन के कारण हुई मौतों में 2109 के आंकड़े के साथ यूक्रेन का नाम दुनिया के तीस बड़े देशों में सबसे उपर है। वहीं 1803 मौतों के साथ रूस दूसरे और मिस्र (836) तीसरे स्थान पर है। वहीं दुनिया के तमाम देशों में नमक के अत्याधिक सेवन के कारण हुई मौतों में प्रति दस लाख 73 मौतों के आंकड़े के साथ कतर, केन्या (780 और संयुक्त अरब अमीरात (134) का नाम सबसे नीचे हैं। दुनिया भर के पचास देशों में स्थित 303 संस्थानों के 488 वैज्ञानिकों द्वारा मिलकर किए गए इस शोध ‘ग्लोबल बर्डन आफ डिजीजेज स्टडी-2010’ में शोधकर्ताओं ने वर्ष 1990 और 2010 के बीच विभिन्न आयुवर्ग, लिंग और क्षेत्रों के लोगों के नमक सेवन पर किए 247 सर्वेक्षणों का अध्ययन करके यह आंकड़ा निकाला है। उन्हें अपने अध्ययन में नमक सेवन की मात्रा के हृदय से जुड़ी बीमारियों पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया। इस अध्ययन से पता चला कि दुनिया भर में हुई कुल मौतों में से करीब दस लाख (40 फीसद) लोगों की मौत 69 साल से कम उम्र में ही हो गई। मारे गए लोगों में 60 फीसद पुरुष और 40 फीसद महिलाएं शामिल हैं। भारतीय मूल की गीतांजलि सिंह के साथ समन फहीमी, रेनाटा मिचा, शहाब खातिबजादेह, गूदार्ज दनाइ, माजिद एज्जाती, स्टीफेन लिम और जॉन पॉवेल्स ने मिलकर यह अध्ययन किया है।
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Old 26-03-2013, 10:30 AM   #1386
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कम खर्च में घुटना प्रत्यारोपण शुरू किया मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल ने

कानपुर। घुटने के दर्द से परेशान बुजुर्ग मरीजों को राहत देने के लिये शहर के सरकारी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल और हडडी रोग विशेषज्ञ मानवता के नाते आगे आए है। घुटने के प्रत्यारोपण के लिये मरीज को जहां प्राइवेट अस्पतालों में दो से ढाई लाख रूपये की रकम खर्च करनी पड़ती है, वहीं सरकारी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल और हड्डी रोग विशेषज्ञ यह सुविधा सिर्फ 60 से 70 हजार हजार रूपये में मुहैया करा रहे हैं। शहर के सरकारी गणेश शंकर विदयार्थी मेडिकल कालेज (जीएसवीएम) में प्राचार्य और हडडी रोग विभाग के प्रमुख प्रो आनंद स्वरूप ने अभी कुछ महीने पहले अस्पताल में अत्याधुनिक उपकरणों और सुविधाओं से सुसज्जित स्टेट आफ दि आर्ट आपरेशन थियेटर की शुरूआत की थी जिसका उद्देश्य गरीब मरीजों को कम राशि में यह सुविधा मुहैया कराना था । लेकिन अब उनके इस पद से हट जाने और अनुभवी तथा योग्य हड्डी रोग विशेषज्ञों की कमी के कारण गरीबों को यह सुविधा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में प्रो स्वरूप ने गरीब मरीजों को सस्ते इलाज की यह सुविधा दिलाने के लिए अब मेडिकल कालेज के ही निकट लाजपतनगर में ‘होप आर्थोपेडिक एंड स्पाइन सुपर स्पेशियालिटी क्लीनिक’ की शुरूआत की है, जहां मानवता के नाते डा स्वरूप और उनकी टीम गरीबों का आपरेशन निशुल्क करती है । बस मरीजों को आपरेशन में लगने वाला जरूरी सामान लाना पड़ता है । इसके लिये बाहर के मरीज प्रो स्वरूप से उनके ई मेल एड्रेस नीपेनक्योर डाट सीओ डाट इन या डाआनंदस्वरूपस्वरूप एट दि रेट याहू डाट को डाट इन पर संपर्क कर सकते हैं। प्रो आनंद स्वरूप ने आज पीटीआई भाषा से एक विशेष बातचीत में यह जानकारी दी। डा स्वरूप ने बताया कि इसमें 45 हजार रूपये रोगी के घुटने में लगाये जाने वाले स्वदेशी इंप्लांट के लगते हैं तथा 15 से 20 हजार रूपये अन्य खर्चो में । इसके अलावा रोगी को दवायें और भर्ती रहने के दौरान खाना पीना अस्पताल से मुफ्त में दिया जाता है। यहीं नही घुटना प्रत्यारोपण करवाने वाले रोगी को तीन दिन के अंदर अपने पैरो पर चलने लायक बना दिया जाता है तथा एक हफ्ते के अंदर घर जाने की इजाजत भी दे दी जाती है। प्रो स्वरूप से पूछा गया कि जब प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में एक घुटने के प्रत्यारोपण में दो से ढाई लाख रूपये का खर्च आता है और अगर कारपोरेट अस्पताल में कोई रोगी यह आपरेशन कराता है तो यही खर्च तीन से साढे तीन लाख रूपये तक बढ जाता है तो फिर यहां यह प्रत्यारोपण इतना सस्ता क्यों हो जाता है, इस पर उन्होंने बताया कि प्राइवेट अस्पतालों में घुटना प्रत्यारोपण करने वाले सर्जन की फीस ही 70 हजार से एक लाख रूपये के बीच होती है। इसके बाद आपरेशन थियेटर, नर्सिन्ग और एनीस्थिीसिया आदि की फीस भी 70 से 80 हजार होती है। इसके अलावा करीब 30 से 40 हजार की दवाएं लगती हैं। उन्होंने बताया कि एनजीओ की मदद से किए जाने वाले इन आपरेशनों के लिए मरीजों से न तो प्रत्यारोपण आपरेशन करने की फीस ली जाती है और न ही आपरेशन थियेटर आदि का खर्च और न ही दवाओं के पैसे । इसलिये यहां रोगी को केवल स्वदेशी इंप्लांट बाहर से लाना पड़ता है जिसका खर्च 45 हजार रूपये होता है तथा 15 हजार रूपये अतिरिक्त खर्चे के होते है। इसमें वह एंटीबायोटिक्स दवायें शामिल होती हैं जो अस्पताल में उपलब्ध नही होतीं। इसके अलावा अगर मरीज बहुत गरीब है तो वह उसका इलाज किसी भी सरकारी अस्पताल के आपरेशन थियेटर में जाकर मुफ्त में करते है और गरीब मरीजों के लिये आपरेशन के सामान और दवाओं में लगने वाले खर्चे का इंतजाम वह खुद एनजीओ की मदद से करते है।
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Old 27-03-2013, 08:10 PM   #1387
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डायनासोर का सफाया करने वाला उल्कापिंड नहीं बल्कि धूमकेतु था

वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने नए अध्ययन में पता लगाया है कि साढे छह करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी से डायनासोर समेत 70 प्रतिशत जीव जंतुओं का सफाया करने वाला आकाशीय पिंड उल्का पिंड नहीं बल्कि धूमकेतु था। न्यू हैंपशायर के वैज्ञानिकों ने बताया कि मेक्सिको के युकातान प्रायद्वीप में 180 किलोमीटर चौडा गड्ढा करने वाला पिंड पहले माने जाने वाले पिंड से अपेक्षाकृत छोटा था। न्यू हैंपशायर के दार्तमाउथ कालेज के वैज्ञानिक जैसन मूरे ने कहा कि हमारे शोध का प्रमुख उद्देश्य पिंड का बेहतर अध्ययन करना है। आकाशीय पिंड से रासायनिक तत्व इरिडियम समृद्ध कण की पूरी पृथ्वी पर परत बन गई थी। इरिडियम का नए सिरे से अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि दरअसल इरिडियम का अध्ययन ठीक से नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी पाया कि वह पिंड अपेक्षाकृत तेजी से घूम रहा था।
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Old 29-03-2013, 10:24 PM   #1388
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वैज्ञानिकों ने कैंसर के लिए जिम्मेदार जीन का पता लगाने का किया दावा

मेलबर्न। आस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों के एक समूह ने ऐसे जीन का पता लगाने का दावा किया है जो किसी व्यक्ति में कई तरह के कैंसर विकसित होने के जोखिम को बढा सकते हैं। एबीसी की रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में इस अनुसंधान परियोजना के लिए क्वींसलैंड इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल रिसर्च (क्यूआईएमआर) ने एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया जिसके तहत दो लाख से अधिक लोगों के डीएनए संघटन की जांच की गई। एबीसी ने क्यूआईएमआर की प्रवक्ता जार्जिया चेनेविक्स -ट्रेंच के हवाले से कहा, ‘हमने कैंसर के लिए जिम्मेदार जिन 150 जीन का पता लगाया है उनमें से प्रत्येक जीन हमें विभिन्न अंगों में होने वाले अलग अलग तरह के कैंसर के लिए एकदम नई ईलाज पद्धति की ओर ले जा सकता है।’ उन्होने कहा, ‘इस बात का पता लगाने के लिए अभी और अनुसंधान करना पड़ेगा कि ये जीन कैंसर के लिए किस तरह जिम्मेदार हैं और हम कैंसर विकसित करने से रोकने के लिए उन्हें किस तरह रोक सकते हैं।’ प्रवक्ता ने हालांकि बताया कि अनुसंधान से प्राप्त नतीजों को ईलाज में बदलने में अभी लंबा समय लग सकता है। उन्होंने कहा, नई उपचार पद्धति के लिए आपको पहले इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार तंत्र को समझना होगा। इस अध्ययन से वास्तव में ऐसी कुछ जीन का पता लगाया गया है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

मनुष्य और निअंडरथल की संतान का पहली बार पता लगा?

वाशिंगटन। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि वैज्ञानिकों को 30 से 40 हजार साल पहले उत्तरी इटली में रहने वाले एक ऐसे मानव का कंकाल मिला है जिसकी मां संभवत: निअंडरथल और पिता आधुनिक मनुष्य था। यदि आधुनिक मनुष्य और निअंडरथल की पहली ज्ञात संतान संबंधी यह बात सत्य साबित होती है तो यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण होगा कि मनुष्य और निअंडरथल की संतानें भी थीं। निअंडरथल और आधुनिक मनुष्य यूरोप में साथ रहा करते थे। ‘डिस्कवरी न्यूज’ के अनुसार इससे पहले किए गए उत्पत्ति संबंधी अध्ययनों ने बताया था कि यूरोपियाई और एशियाई पुरखों के डीएनए में से एक से चार प्रतिशत निअंडरथल थे। यह कंकाल इटली के मोंटी लेसिनी क्षेत्र से मिला है जिसके अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने जबड़े पर ध्यान केंद्रित किया है। अध्ययन की सह लेखिका एई-मैरशीले विश्वविद्यालय की सिल्वाना कोंडेमी ने कहा, ‘निचले जबड़े की आकृति देखने से पता चलता है कि यह मानव काफी हद तक निअंडरथल और आधुनिक मनुष्य दोनों से मेल खाता होगा। निअंडरथल का निचला जबड़ा :बिना ठोढी: छोटा होता था जबकि आधुनिक मनुष्य की ठोढी विकसित और निचला जबड़ा आगे की ओर निकला होता है।’ कंकाल का माइटोकोंड्रियल डीएनए निअंडरथल है। यह डीएनए मां से बच्चे को मिलता है। इसी से अनुसंधानकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इसकी मां निअंडरथल थी जबकि पिता आधुनिक मनुष्य था। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि हालांकि इन दोनों प्रजातियों की आपसी संतानें थी लेकिन निअंडरलैंड ने अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाए रखा। यह अध्ययन पीएलओस वन पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

वैज्ञानिकों ने विकसित किया हैरी पॉटर का अदृश्य करने वाला लबादा

वाशिंगटन । प्रकाश तरंगों की सीमित पहुंच में किसी वस्तु को अदृश्य करने के क्रांतिकारी नए सिद्धांत के आविष्कार के साथ ही वैज्ञानिक ‘हैरी पॉटर’ के अंदाज वाला ऐसा लबादा विकसित करने के थोड़ा और करीब पहुंच गए हैं जिसे पहनकर व्यक्ति अदृश्य हो जाता है । यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘मैंटल क्लोक’ नामक पतला कपड़ा विकसित किया है जिसे लपेटने के बाद किसी वस्तु को अदृश्य किया जा सकता है। सीएनएन ने बताया कि हालांकि इसका प्रभाव प्रकाश तरंगों की सीमित पहुंच तक ही रहता है। वैज्ञानिकों ने एक सिलेंडर को इस लबादे से ढका जिसके बाद इसे माइक्रोवेव डिटेक्टर से नहीं देखा जा सकता था हालांकि मानवीय आंखों से यह अब भी दिख रहा था। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इसी सिद्धांत को आंखों से दिखने वाले प्रकाश के क्षेत्र में भी हस्तांतरित जा सकता है जिससे मानवीय आंखों से भी वस्तु दिखाई नहीं देगी। यह अध्ययन नई जरनल आॅफ फिजिक्स में प्रकाशित किया गया था।
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