11-03-2011, 07:25 PM | #1 |
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स्वास्थ्य समाचार
आप सभी के लिए ये सूत्र प्रारंभ कर रहा हूँ जिसमे आपको स्वास्थ्य सम्बंधित समाचार उपलब्ध कराए जायेंगे धन्यवाद
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11-03-2011, 07:26 PM | #2 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
रोज कंप्यूटर को दिए 4 घंटे, तो दिल दे देगा 'धोखा'
कंप्यूटर पर ज्यादा काम करने लोग थोड़ा होशियार हो जाएं। एक नई स्टडी में दावा किया गया है हर रोज महज 4 घंटे कंप्यूटर या टीवी स्क्रीन के आगे बिताने वाले लोगों को दिल की बीमारी होने का खतरा दोगुना हो जाता है। ऐसे लोगों की समय से पहले मौत के आसार बढ़ जाते हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के रिसर्चरों ने इस बारे में एक स्टडी कर यह नतीजा निकाला है। उन्होंने पाया कि जो लोग रोजाना चार घंटे या इससे ज्यादा समय तक कंप्यूटर पर काम करते हैं या फिर टीवी देखते हैं , उन्हें उन लोगों के मुकाबले दिल की बड़ी बीमारियां होने और इसके नतीजतन मौत का खतरा 125 फीसदी ज्यादा होता है , जो दो घंटे या इससे कम समय टीवी या कंप्यूटर पर बिताते हैं। स्टडी में यह भी पाया गया है कि कंप्यूटर या टीवी स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने वाले लोगों की अन्य वजहों से भी मौत का खतरा 48 फीसदी बढ़ जाता है। रिसर्चरों का यह भी कहना है कि कंप्यूटर या टीवी से होने वाले इस नुकसान भी भरपाई एक्सरसाइज या वर्जिश करने से भी नहीं की जा सकती। यह स्टडी ' डेली एक्सप्रेस ' में छपी है। रिसर्चरों के अनुसार इसकी वजह बेहद साफ है। ज्यादा समय तक निष्क्रिय रहने शरीर के अंदर सूजन और मेटाबॉलिक दिक्कतें होने लगती है। ज्यादा समय तक एक जगह बैठे रहने से एक बेहद अहम एंजाइम - लिपोप्रोटीन में 90 फीसदी तक कमी आ जाती है। वास्तव में , यह वही एंजाइम है जो शरीर में दिल की बीमारियों से बचाव करता है। इस स्टडी की अगुवाई करने वाले यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के डॉक्टर एमनुएल स्टामैटेकिस के मुताबिक हमारी स्टडी बताती है कि स्क्रीन पर दो घंटे या इससे ज्यादा समय बिताने से किसी शख्स में हार्ट से जुड़ी दिक्कत होने का खतरा बढ़ जाता है। क्या करें ऐसे लोग रिसर्चरों की सलाह है कि ऐसे लोग जो कंप्यूटर स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं , उन्हें खतरे को कम करने के लिए हरेक 20 मिनट के बाद उठकर थोड़ी दूर टहल लेना चाहिए। डॉ . एमनुएल का कहना है कि खडे़ होने और चलने से बैठे रहने के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा एनर्जी खर्च होती है और इस तरह से खतरे को कम किया जा सकता है। गौरतलब है कि भारत सहित दुनिया में टीवी और कंप्यूटर के साथ लोगों का समय अब ज्यादा गुजरने लगा है।
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Last edited by Sikandar_Khan; 11-03-2011 at 07:36 PM. Reason: edit |
11-03-2011, 07:33 PM | #3 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
इंजेक्शन नहीं, सूंघने वाला इंसुलिन तैयार डायबीटीज़ के रोगियों के लिए अच्छी खबर है। उन्हें अब इंसुलिन की सूई नहीं लेनी पडे़गी। एक ऐसी दवा तैयार की गयी है जिसके केवल सूंघने से ही बात बन जाएगी। अफ्रेज्जा नामक इस दवा को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खून में शुगर का स्तर सामान्य के करीब रखता है और इसमें मौजूदा इंजेक्शन की तुलना में निम्न शुगर स्तर होने का जोखिम भी काफी कम है। इस नई दवा को अभी अमेरिकी खाद्य एवं मादक पदार्थ विभाग (एफडीए) से अनुमति का इंतजार है। मैनकाइंड कॉरपोरेशन कंपनी में इस दवा को बनाने वाली टीम के प्रमुख आंड्रिया लियोन बे ने कहा- यह दवा सूखे पाउडर के रूप में है और उसे सूंघा जाता है। दवा के कण फेफडे़ से होते हुए खून में पहुंच जाते हैं और तुरंत अपना असर दिखाने लगते हैं। दवा लेने के 12-15 मिनट में ही उसका असर दिखने लगता है। लियोन बे का कहना है कि यह दवा इंजेक्शन की तुलना में काफी पहले ही अपना असर दिखाती है। हालांकि 2006 में सूघने वाली दवा तैयार हुई थी। लेकिन अक्टूबर 2007 में दवा निर्माता कंपनी फाइज़र ने उसे कुछ चिंताओं को लेकर बाजार से हटा लिया। एक स्टडी में यह बात सामने आयी थी कि एक्यूबेरा से फेफड़े के काम करने की गति घट जाती है और दूसरी एवं अधिक चिंताजनक बात यह थी कि इससे फेफड़े का कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। लियोन-बे कहती हैं- अफ्रेज्जा पर कैंसर संबंधी अध्ययन किया गया है। चूहे को मानव की तुलना में ज्यादा अफ्रेज्जा सुंघाया गया और शोधकर्ताओं को उसके फेफड़े के कैंसर का खतरा बढ़ने का कोई जोखिम नजर नहीं आया। दरअसल पिछली दवा पर कैंसर संबंधी अध्ययन किए ही नहीं गए थे। विशेषज्ञों ने इस नई दवा का स्वागत तो जरूर किया है लेकिन थोड़ा सावधान भी किया है। जूवेनाइल डायबीटीज़ रिसर्च फाउंडेशन के इंसुलिन विभाग के डायरेक्टर संजय दत्त कहते हैं कि नई दवा का केवल 6 महीने के लिए टेस्ट किया गया है अभी लंबी अवधि के लिए इसका असर जानना बाकी है।
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11-03-2011, 07:39 PM | #4 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
बहुत ही अच्छी जानकारी
एक अच्छे सूत्र के लिए बधाइयाँ
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11-03-2011, 08:00 PM | #6 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
दिल से दिल के लिए
प्रतिमा पांडेय बचपन से बड़े होने तक, जब भी किसी काम में सफलता के मंत्र गिनाए जा रहे होते हैं, दिल की बात जरूर उठती है। दिल से पढ़ो, तो अच्छे नंबर, दिल से काम करो, तो तरक्की निश्चित आदि-आदि। लगता है हमारे बड़े-बुजुर्ग दिल की मल्टीटैलेंटेड तबीयत से अच्छी तरह परिचित थे। माटी के चोले में जान डालने वाली धड़कनों के अलावा दिल इस मायावी संसार में आपको सबकुछ दिला सकता है, बशर्ते ये आपके कंट्रोल में हो! और अब इसमें एक बात और जोड़ लीजिए कि दिल पर आपका कंट्रोल बना रहे, इसके लिए दिल से करिए पढ़ाई। बीएमसी पब्लिक हेल्थ नामक एक ओपन एक्सेस शोध पत्र में प्रकाशित एक स्टडी तो यही सलाह देती है। स्टडी के अनुसार हायर एजुकेशन यानी अपनी जिंदगी के लगभग सोलह-सत्रह साल, जिन्होंने पढ़ाई में लगाए हैं, उन्हें दिल की समस्याएं बाकियों की अपेक्षा कम सताती हैं। आज के दौर में इसे यूं समझा जा सकता है कि अगर आप प्रोफेशनली, वोकेशनली या एकेडेमिकली एजुकेटेड हैं, तो लाइफ में टेंशन नहीं है। और टेंशन ही तो सारी मुसीबतों की जड़ कही जाती है। पर टेंशन शारीरिक भी हो सकती है। जमकर मेहनत, कम खाना, कम सोना भी शरीर के सिस्टम्स को तनावग्रस्त कर देता है। आज के युग में मानसिक तनाव की तो कहिए ही क्या! अगर आपके जीवन में बार-बार फाइट ऑर फ्लाइट यानी कि लड़ो या भाग खड़े हो, की सिचुएशंस आती हैं, तो इससे उपजा तनाव भी दिल ज्यादा दिन बरदाश्त नहीं कर पाता। ऐसे अंतर्द्वंद्व दिल के लिए घातक साबित होते हैं। उन लोगों के दिल को भी नुकसान पहुंचता है, जो अपने गुस्से को कम नहीं कर पाते। यह भी जगजाहिर तथ्य है कि तनाव से उत्पन्न हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्त चाप दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा मस्तिष्क आघात यानी ब्रेनहैमरेज, किडनी फेल्योर का भी कारण होता है। इस स्टडी के हिसाब से आपके दिल की बात सीधी जाकर जुड़ती है आपकेकमाई के तौर-तरीकों से। कम पढ़े-लिखे लोगों की वर्किंग कंडीशंस तनावपूर्ण होती हैं, तो हाई ब्लड प्रेशर का कारण बनती हैं। ऐसी तनावपूर्ण स्थितियां शरीर में हाइपर टेंशन की प्रवृत्ति उत्पन्न करती हैं। अगर लंबे समय हाइपरटेंशन रहे, तो यह उच्च रक्तचाप की बीमारी में बदल जाती है और दिल बेचारा कमजोर होने लगता है। लेकिन अगर दिल को हम केवल मांस-मज्जा वाले दिल की तरह समझेंगे और उसके मामलों को कोलेस्ट्रॉल या कार्डियाक सर्जरी जैसे मुद्दों तक सीमित कर देंगे, तो दिलवालों के प्रति नाइंसाफी होगी। दिल में जज्बात होते हैं। जज्बात दिल की दवा भी हैं और दर्द भी। जज्बात तनाव का भी कारण होते हैं। पर यहां भी पढ़ाई काम आती है और निराशा से बचाती है। क्योंकि उच्च शिक्षा वालों को जिंदगी से मिलने वाले बार-बार के सदमे झेलने के बेहतर तौर-तरीकेपता होते हैं। यह कहना है क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडेय का। हायर एजुकेशन में व्यक्ति के ब्लू प्रिंट्स चेंज हो जाते हैं। हायर एजुकेशन से हमारे अंदर गहरे बैठे स्टीरियोटाइप्स यानी परंपरागत भूमिकाओं या निष्कर्षों को चुनौती मिलती है। इस प्रक्रिया में हम स्टीरियोटाइप्स की कैद से बाहर निकलने लगते हैं। यह हमारे समायोजन के फ्लेक्सिबल तरीके अपनाने का आधार बनता है। पॉजिटिव कोपिंग मैकेनिज्म डेवलप होते हैं, तो तनावपूर्ण स्थिति के व्यावहारिक पक्ष पर नजर पहले पड़ती है और बेहतर समाधान आसान होता है। उनके अनुसार उच्च शिक्षा इन्फॉर्मेशन तक पहुंच बनाती है। जिस कारण लाइफ स्टाइल भी बेहतर होता है। पोषण, एक्सरसाइज का महत्व इन सबकी सार्थकता के प्रति हमारा ध्यान जाता है। तनाव भगाने के तरीकों, जैसे कि रीडिंग, एक्सरसाइजिंग, स्पोर्ट्स वगैरह पर व्यक्ति स्वतः ही ध्यान देता है। उच्च शिक्षा फ्यूचर सिक्योरिटी की भावना भी जगाती है। लिहाजा व्यक्ति कम तनावग्रस्त रहता है और दिल की सेहत दुरुस्त रहती है। हालांकि फोर्टिस हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. परनीश अरोड़ा दिल के इस मामले को हायर एजुकेशन से जुड़े लोगों की दवाइयों के प्रति जागरूकता से जोड़कर भी देखते हैं। उनके अनुसार एजुकेटेड लोगों में ड्रग कंप्लाएंस होती है। उनमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ज्यादा होती है। ज्यादा नमक हाई बीपी करता है, जैसे सामान्य तथ्यों से ज्यादा परिचित होते हैं। उच्च शिक्षा से मेडिकल अटेंशन बढ़ती है। आप इंटरनेट पर पढ़ते हैं, अखबार में सावधान करते हुए आलेखों पर ध्यान जाता है, तो आप ज्यादा प्रेरित होते हैं दवाइयों के इस्तेमाल के लिए सजग होते हैं। इस संदर्भ में डॉक्टर अतुल यह भी कहते हैं कि हाई सुसाइड और स्ट्रेस केसेज वाले कारपोरेट सेक्टर में भी आप देखेंगे कि ऊंचे पद पर रहने वाला अपना तनाव या वर्कप्रेशर अपने से नीचे वाले पर, जो कि जाहिर तौर पर उससे प्रोफेशनली कम एजुकेटेड है, ट्रांसफर कर सकता है। इस तरह नंबर वन से टू और फिर थ्री और यह तनाव निचले सिरे पर सबसे ज्यादा पाया जाएगा। एक ऐसे ही अध्ययन के अनुसार ऑफिस में निचले पदों पर नियुक्त लोगों को तनाव से पहुंचने वाले नुकसान सीनियर्स की तुलना में कहीं अधिक होते हैं। बात शिक्षा पर ही आकर टिकती है। पर सवाल यह भी उठता है कि हम शिक्षा किसे कह रहे हैं। काउंसलर जितिन चावला की बात पर गौर करें, तो यह पेंच भी कुछ-कुछ समझ में आने लगता है। वे बताते हैं कि आईआईटीज में ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंसेज के कोर्सेज शुरू किए गए हैं। इसकी जरूरत यूं बनी कि प्रोफेशनल स्किल्स को सफल जिंदगी के लिए जितना जरूरी माना जाता है, उतना ही जरूरी होते हैं व्यक्तित्व विकास और जीने की कला। क्योंकि जिंदगी की नरमी तभी महसूस होती है, जब दिल की धड़कन से हमारा रिश्ता बना रहे। जब दिल ही बेचैन है, तो बेहाल जिंदगी में फलता-फूलता हमारा प्रोफेशन किस काम का! ज्यादा शिक्षा, तो बेहतर सोच फोर्टिस एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी डायरेक्टर डॉ. अतुल माथुर की राय में भी उच्च शिक्षा हमारे नजरिए को प्रभावित करती है। उच्च शिक्षित लोगों के सोचने का तरीका बदल जाता है। यह ज्यादा विकसित और तार्किक होता है। इसी के आधार पर हर दिन आने वाले तनावों से वे आम लोगों से बेहतर ढंग से समायोजन कर लेते हैं। इसे प्रोफेशनल सिक्योरिटी से जोड़कर भी देख सकते हैं। क्योंकि बेहतर एजुकेशन आपको व्यावसायिक सुरक्षा प्रदान करती है। जिस कारण मन मजबूत रहता है और बात-बात पर दिल बेचैन नहीं होता। यानी बीपी को प्रभावित करने वाले स्ट्रेस फैक्टर्स कम ही आते हैं। जो भी करो दिल से करो क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडेय के अनुसार केवल दिल की सेहत को सोच कर ही शिक्षा की उपयोगिता को न देखिए। पढ़ाई दिल से न की, तो भी यही मुश्किल आ सकती है। दिल से पढ़ाई करने का मतलब है कि हम जो कर रहे हैं, किसी दबाव में नहीं कर रहे। इसीलिए दिल से पढ़ाई करते वक्त आपका दिमाग आपको पहले मिल चुकी जानकारी और अनुभवों से पढ़ाई को रिलेट करता चलता है। जब हम कुछ नया किसी पुराने संदर्भ से जोड़ कर सीखते हैं, तो वह ज्यादा समझ में आता है और याद रहता है। इसे टेक्निकली कहें, तो अच्छे मेमोरी चंक्स फार्म होते हैं। जीवन में आप उस शिक्षा का व्यावहारिक उपयोग भी बेहतर कर सकते हैं। इससे संतोष बढ़ता है। आप जिंदगी से संतुष्ट होंगे, तो बीपी बढ़ाने वाली सिचुएशंस कम ही आएंगी।
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11-03-2011, 08:03 PM | #7 |
Exclusive Member
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Re: स्वास्थ्य समाचार
बहुत अच्छा आपने सुत्र बनाये हो भाइ
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
11-03-2011, 08:21 PM | #8 |
Special Member
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स्वास्थ्य समाचार
एक मिनट..........|
मेरा जैसे का क्या होगा, जो रोजाना औसतन 12 से 14 घंटे कंप्यूटर पर बिताता है??? और कभी-कभी इससे भी ज्यादा.....!!!
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Self-Banned. Missing you guys! मुझे तोड़ लेना वन-माली, उस पथ पर तुम देना फेंक|फिर मिलेंगे| मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक|| |
11-03-2011, 08:46 PM | #10 | |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
Quote:
और जो उपाय बताये गए है उन पर अमल करें
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