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22-09-2014, 05:35 PM | #1 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
सोनी जी, आपने बहुत अच्छा विषय चुना है, प्रेम और त्याग। इन दोनों ही शब्दों में बहुत गहराई है ,जिसकी व्याख्या शब्दों में करना बहुत मुश्किल है। ये दोनों एक -दुसरे के पूरक हैं। कई बार हम लगाव को ही प्रेम समझ बैठते हैं. हमें लगता है हम जिसे प्रेम करते हैं हम उसे पा लें लेकिन वो किसी और से प्रेम करता है तो हमें ईर्ष्या होती है ,और जहाँ ईर्ष्या होती है वहां प्रेम कभी नहीं हो सकता। प्रेम वो होता है जहाँ हम सामने वाले की ख़ुशी में दिल से खुश होते हैं ,चाहे वो हमसे प्रेम करे या न करे। प्रेम का सबसे बड़ा आदर्श श्री कृष्ण और ब्रज की गोपियाँ हैं। श्री कृष्ण जब ब्रज को और गोपियों को छोड़ कर चले गए थे ,गोपियों को पता था श्री कृष्ण अब उन्हें नहीं मिलेंगे तब भी उनका प्रेम श्री कृष्ण के लिए कभी कम नहीं हुआ.hum जिससे प्रेम करते हैं वो चाहे हमारे पास रहे या दूर हमारा प्रेम कभी कम नहीं होता। एक बेटा चाहे कितना नालायक हो ,अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भी छोड़ दे तो भी माँ-बाप अपने बच्चे को आशीर्वाद ही देते हैं ,उनका प्रेम बच्चे के लिए कभी कम नहीं होता।
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22-09-2014, 06:35 PM | #2 | |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
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22-09-2014, 07:03 PM | #3 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
बहुत खूब प्रेम का एक और रूप आपने बताया है लावण्या जी , सही कहा आपने ये इर्ष्या इन्सान को बर्बाद करती है क्यूंकि इर्ष्या खुद को पहले जलाती है , बाद में सामने वाले को और जब येइर्ष्या का भाव मन में आये वहां प्रेम के लिए कोई स्थान नही रहता... प्रेम अनंत है विशाल है व्यापक है और आपने जो उदहारण दिया कृष्ण और गोपियों के प्रेम का ,वो ही प्रेम की पराकाष्ठा है .खुद को भूल के दुसरे के लिए जीना दुसरे के लिए सोचना . ये गोपियों का सच्चा प्रेम था कृष्ण के लिए ..जिसे बदले में कुछ नही चहिये था और गोपियों के माध्यम से कृष्ण ने दुनिया को प्रेम की सिख दी की प्रेम में बदले में कुछ मांग नही अपितु ,सिर्फ त्याग होना चहिये . न की कुछ पाने की लालसा.
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22-09-2014, 07:29 PM | #4 | |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
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धन्यवाद kuki जी ... Last edited by soni pushpa; 23-09-2014 at 09:41 PM. |
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22-09-2014, 08:37 PM | #5 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
कुकी जी, आपने बहुत अच्छी बात कही है.. ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ के अनुरूप’. देखा- इसीलिए तो लोग फटाफट थैंक्स लगा रहे हैं. अतः ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ अति उत्तम है. मेरा दोगुना धन्यवाद आपको.. और लावण्या जी, आपको अभी काफी जवाब देने हैं. सोनी पुष्पा जी, आपसे कल बात होगी. तब तक के लिए आज्ञा दीजिए.
Last edited by Rajat Vynar; 23-09-2014 at 11:49 AM. |
22-09-2014, 11:13 PM | #6 | |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
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rajat ji, aapka apna manch hai. aapko kaun agyan de sakta hai. aap apna paksh zarur saamne rakhen. ham aapke tark padhne ke liye betaab hain. dhanywad.
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23-09-2014, 08:13 PM | #7 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
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23-09-2014, 11:54 AM | #8 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
कुकी जी के एक अच्छे जवाब के लिए मेरी और से २५१ पॉइंट नगद इनाम दिया गया.
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24-09-2014, 09:37 PM | #9 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
सोनी पुष्पा जी, मेरा सेंचुरी बन गया. चलिए, प्रोफाइल पर कांग्रेट्स करिये. अति महान कृपा होगी.
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29-09-2014, 12:53 PM | #10 |
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने विद्यार्थियों को एक एसाइनमेंट दिया। विषय था मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में रहते 10 से 13 साल की उम्र के लड़कों के बारे में अध्यन करना और उनके घर की तथा सामाजिक परिस्थितियों की समीक्षा करके भविष्य में वे क्या बनेंगे, इसका अनुमान निकालना।
कॉलेज विद्यार्थी काम में लग गए। झोपड़पट्टी के 200 बच्चो के घर की पृष्ठभूमिका, मा-बाप की परिस्थिति, वहाँ के लोगों की जीवनशैली और शैक्षणिक स्तर, शराब तथा नशीले पदार्थो के सेवन , ऐसे कई सारे पॉइंट्स पर विचार किया गया । तदुपरांत हर एक लडके के विचार भी गंभीरतापूर्वक सुने तथा ‘नोट’ किये गए। करीब करीब 1 साल लगा एसाइनमेंट पूरा होने में। इसका निष्कर्ष ये निकला कि उन लड़कों में से 95% बच्चे गुनाह के रास्ते पर चले जायेंगे और 90% बच्चे बड़े होकर किसी न किसी कारण से जेल जायेंगे। केवल 5% बच्चे ही अच्छा जीवन जी पाएंगे। बस, उस समय यह एसाइनमेंट तो पूरा हो गया , और बाद में यह बात का विस्मरण हो गया। 25 साल के बाद एक दुसरे प्रोफ़ेसर की नज़र इस अध्यन पर पड़ी , उसने अनुमान कितना सही निकला यह जानने के लिए 3-3 विद्यार्थियो की 5 टीम बनाई और उन्हें धारावी भेज दिया । 200 में से कुछ का तो देहांत हो चुका था तो कुछ दूसरी जगह चले गए थे। फिर भी 180 लोगों से मिलना हुवा। कॉलेज विद्यार्थियो ने जब 180 लोगों की जिंदगी की सही-सही जानकारी प्राप्त की तब वे आश्चर्यचकित हो गए। पहले की गयी स्टडी के विपरीत ही परिणाम दिखे। उन में से केवल 4-5 ही सामान्य मारामारी में थोड़े समय के लिए जेल गए थे ! और बाकी सभी इज़्ज़त के साथ एक सामान्य ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ तो आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में थे। अध्यन कर रहे विद्यार्थियो तथा उनके प्रोफ़ेसर साहब को बहुत अचरज हुआ कि जहाँ का माहौल गुनाह की और ले जाने के लिए उपयुक्त था वहां लोग महेनत तथा ईमानदारी की जिंदगी पसंद करे, ऐसा कैसे संभव हुवा ? सोच-विचार कर के विद्यार्थी पुनः उन 180 लोगों से मिले और उनसे ही ये जानें की कोशिश की। तब उन लोगों में से हर एक ने कहा कि “शायद हम भी ग़लत रास्ते पर चले जाते, परन्तु हमारी एक टीचर के कारण हम सही रास्ते पर जीने लगे। यदि बचपन में उन्होंने हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं दिया होता तो शायद आज हम भी अपराध में लिप्त होते…. !” विद्यार्थियो ने उस टीचर से मिलना तय किया। वे स्कूल गए तो मालूम हुवा कि वे तो सेवानिवृत हो चुकी हैं । फिर तलाश करते-करते वे उनके घर पहुंचे । उनसे सब बातें बताई और फिर पूछा कि “आपने उन लड़कों पर ऐसा कौन सा चमत्कार किया कि वे एक सभ्य नागरिक बन गए ?” शिक्षिकाबहन ने सरलता और स्वाभाविक रीति से कहा : “चमत्कार ? अरे ! मुझे कोई चमत्कार-वमत्कार तो आता नहीं। मैंने तो मेरे विद्यार्थियो को मेरी संतानों जैसा ही प्रेम किया। बस ! इतना ही !” और वह ठहाका देकर जोर से हँस पड़ी। मित्रों , प्रेम व स्नेह से पशु भी वश हो जाते है। मधुर संगीत सुनाने से गौ भी अधिक दूध देने लगती है। मधुर वाणी-व्यवहार से पराये भी अपने हो जाते है। जो भी काम हम करे थोड़ा स्नेह-प्रेम और मधुरता की मात्रा उसमे मिला के करने लगे तो हमारी दुनिया जरुर सुन्दर होगी। आपका दिन मंगलमय हो, ऐसी शुभभावना।
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