23-10-2011, 05:07 PM | #12 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
राजस्थानी कहावतों का प्रचलन जितना शेखावाटी क्षेत्र में है वैसा शायद ही कहीं देखने को मिले ,गावों में सजने वाली चौपाल में अधिकतर बातों को कहावतों के रूप में ही कहते है,और हर बात का कहावत में जवाब देना यहाँ की खूबी........
एक शानदार शुरुआत के लिए डार्क जी का धन्यवाद ! |
23-10-2011, 05:44 PM | #13 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
कर्जा भला ना बाप का, बेटी भली ना एक !
पेंडा भला ना कोष का, मालिक राख टेक !! अर्थात, कर्जा तो अपने पिता का भी अच्छा नही,ना घर में बेटी भली ! यात्रा एक कोष की भी ठीक नहीं,भगवान इन सबसे बचाए............ ये कहावत पुराने समय में काफी उपयोगी थी ,शायद आज इसका कोई महत्त्व नही है . Last edited by Dark Saint Alaick; 29-10-2011 at 11:37 AM. |
29-10-2011, 11:41 AM | #14 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अंधेरे में गासियो किसौ कान में जावै !
चाहे कितना ही अन्धकार क्यों न हो, हाथ का ग्रास मुंह में ही जाता है, कान में नहीं ! मनुष्य हर परिस्थिति में अपने स्वार्थ के प्रति सजग रहता है !
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29-10-2011, 11:47 AM | #15 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अंधेरी रात में मूंग काला !
अंधेरी रात में हरे रंग के मूंग भी काले ही दिखाई देते हैं ! अज्ञान के अन्धकार में वस्तुस्थिति का सही ज्ञान नहीं हो पाता !
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29-10-2011, 11:51 AM | #16 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अठीनली छायां बठीनै आयां सरै !
इधर की छाया उधर आती ही है अर्थात उत्थान-पतन अवश्यम्भावी है ! इससे प्रसन्न होना या घबराना नहीं चाहिए !
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29-10-2011, 12:08 PM | #17 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अठै टर बठै टर, तेरै खातर छोड़ द्यूं घर ?
यहां भी टर्र, वहां भी टर्र, तो क्या तेरे लिए घर ही छोड़ दूं ! अनजान वास्तु से घबराने के बजाय उसे समझने का प्रयास करना चाहिए ! सन्दर्भ कथा- एक गड़रिया भेड़-बकरियां चराने के लिए जंगल में जाया करता था ! दोपहर की रोटी अपने साथ ले जाता और उन्हें खाकर पास के तालाब से पानी पी लिया करता ! एक दिन जैसे ही उसने पानी पीना शुरू किया, एक मेंढक जोरों से टर्र-टर्र बोल उठा ! बेचारा गड़रिया डर गया कि न जाने क्या बला है और प्यासा ही घर की ओर दौड़ पड़ा ! घर आकर जैसे ही पानी पीने को हुआ, तो यहां भी जोर से टर्र की आवाज़ सुनाई दी, लेकिन इस बार उसकी नज़र घड़े के पीछे बैठे मेंढक पर पड़ गई और वह समझ गया कि यह आवाज़ यह मेंढक ही कर रहा है ! तब उसे अपनी जल्दबाजी और मूर्खता पर बहुत हंसी आई और वह बोल उठा- अठै टर बठै टर, तेरै खातर छोड़ द्यूं घर ? (यहां भी टर्र और वहां भी टर्र, तो क्या तेरे लिए अपना घर ही छोड़ दूं ?)
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29-10-2011, 12:12 PM | #18 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अभागिये चोर नै बिल्ली घूंसै !
चोर को देख कर कुत्ता तो भौंकता ही है, लेकिन अभागे चोर को देख कर बिल्ली भी गुर्राने लगती है ! अगर समय और परिस्थिति विपरीत है तो अनुकूल चीज़ें भी आपके खिलाफ परिणाम देने लगती हैं, ऎसी परिस्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए !
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06-11-2011, 11:27 AM | #19 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
अनजी का बाजा अर अनजी का गाजा !
सारे गाजे-बाजे अन्न के पीछे ही हैं अर्थात अगर खाने के लिए है, तो सभी चीजें अच्छी लगती हैं !
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25-11-2011, 11:23 AM | #20 |
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Re: राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार
आं तिलां में तेल कोनी !
इन तिलों में तेल नहीं है ! अर्थात यहां कोई सार नहीं है ! यहां से किसी प्रकार के लाभ की आशा नहीं है !
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