19-08-2011, 10:35 PM | #31 |
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Re: ग़ालिब की रचनाएं ...
आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था अर्थ -हम तो मरने के लिए तैयार थे उसे पास आकर.... हमें क़त्ल करना चाहिए था। पास नहीं आना था तो न आता, ....उसके पास तरकश भी था, ...जिसमें कई तीर थे उसी में से किसी तीर से हमारा काम तमाम किया जा सकता था। ....मगर उसने ऐसा भी नहीं किया।.... इस तरह उसने हमारे साथ बेरुख़ी का बरताव किया .....जो ठीक नहीं था। |
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