01-04-2011, 09:57 PM | #41 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
जीवन नैया कर ले पार
है क्या जीवन बहती धार दुख सुख मन के है आधार सच का अपना अलग निखार ममता देवी मेरा प्यार
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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01-04-2011, 10:07 PM | #42 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
कुत्ता आया कुत्ता आया भों-भों करता कुत्ता आया। मेरे घर का रखवाला है हम बच्चों के मन को भाया। घर से बाहर घूमने जाऊँ बना रहे यह मेरा साया।
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Last edited by Sikandar_Khan; 03-04-2011 at 12:37 PM. Reason: एडीट |
03-04-2011, 12:26 PM | #43 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
1.
जाड़े में मन भाती धूप हमको खूब सुहाती धूप दरवाज़े तक आ जाती है घर में क्यों नहीं आती धूप। 2. बस्ता भारी मन है भारी कर दो बस्ता हल्का मन हो जाये फुल्का। 3. मेरी मैडम मेरे सर जी हमें पढाते अपनी मरजी। 4. सारे दिन क्यों पढ़ें पुस्तकें हम भी खेलें कोई खेल बोझा बस्ते का कम कर दो घर-स्कूल बने हैं जेल।
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10-04-2011, 08:42 AM | #44 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाए ।
इसी लिए कूलर कहलाए ।। जब जाड़ा कम हो जाता है । होली का मौसम आता है ।। फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ । यही हवाएँ लू कहलाएँ ।। तब यह बक्सा बड़े काम का । सुख देता है परम-धाम का ।। कूलर गर्मी हर लेता है । कमरा ठण्डा कर देता है ।। चाहे घर हो या हो दफ़्तर । सजा हुआ है यह खिड़की पर ।। इसकी महिमा अपरम्पार । यह ठण्डक का है भण्डार ।। जब आता है मास नवम्बर । बन्द सभी हो जाते कूलर ।।
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11-04-2011, 08:10 AM | #45 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
कोयला जैसा बाहर से
वैसा ही भीतर से है । फिर भी दूसरों के लिए जलता है । आदमी का आजकल पता ही नहीं चलता है ।
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11-04-2011, 08:15 AM | #46 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
बादल बाबा
ओले ? न न कुल्फ़ी तुम बरसाओ ना ! पिस्ता, काजू, अखरोट की और मलाई वाली, ठण्डी-मीठी, शहद- सरीखी मनभावन, मतवाली । नहीं ज़रा-सी ख़ूब ढेर-सी चुपके हमें खिलाओ ना ! पापा से जो पैसे माँगो लेते सदा उबासी, मम्मी कहतीं, ठण्डा खाने से आएगी खाँसी । दादी खीजें दादा चीख़ें तुम तो प्यार जताओ ना ! मन की आज मुरादें पूरी कर दो बादल बाबा, सदा बड़ों के आगे अपनी इच्छाओं को दाबा । छत ख़ाली है आँगन ख़ाली तुम इसको भर जाओ ना !
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04-08-2011, 08:05 PM | #47 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
पड़ी चवन्नी तेल में रे, गाँधी बाबा जेल में
चले देश की ख़ातिर बापू ले कर लाठी हाथ में सारा भारत खड़ा हो गया गांधी जी के साथ में दिखा दिया कितनी ताक़त है सचमुच सबके मेल में काट गुलामी की जंजीरें रच दी अमर कहानी अंग्रेज़ों के छक्के छूटे याद आ गई नानी हारी मलका रानी भैया मजा, आ गया खेल में छोड़ विदेशी बाना, पहनी सूत कात कर खादी तकली नाची ठुम्मक ठुम्मक बोल-बोल आज़ादी आधी रात चढ़ गया, भारत आज़ादी की रेल में।
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04-08-2011, 08:06 PM | #48 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
हैं छोटे छोटे हाथ मेरे,
छोटे छोटे पाँव। नन्हीं नन्हीं आँखे मेरी नन्हें नन्हें कान। फिर भी हरदम चलता हूँ हाथों से करता काम। रोज देखता सुंदर सपना सुनता सुंदर गान। अब हमारी सुनो प्रार्थना तुम भी बच्चे बन जाओ। छोड़ो झगड़े और लड़ाई अच्छे बच्चे बन जाओ।
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24-09-2011, 09:46 AM | #49 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
कठपुतली
गुस्से से उबली बोली - ये धागे क्यों हैं मेरे पीछे आगे ? तब तक दूसरी कठपुतलियां बोलीं कि हां हां हां क्यों हैं ये धागे हमारे पीछे-आगे ? हमें अपने पांवों पर छोड़ दो, इन सारे धागों को तोड़ दो ! बेचारा बाज़ीगर हक्का-बक्का रह गया सुन कर फिर सोचा अगर डर गया तो ये भी मर गयीं मैं भी मर गया और उसने बिना कुछ परवाह किए जोर जोर धागे खींचे उन्हें नचाया ! कठपुतलियों की भी समझ में आया कि हम तो कोरे काठ की हैं जब तक धागे हैं,बाजीगर है तब तक ठाट की हैं और हमें ठाट में रहना है याने कोरे काठ की रहना है
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24-09-2011, 09:48 AM | #50 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
भोले-भाले बहुत कबूतर मैंने पाले बहुत कबूतर ढंग ढंग के बहुत कबूतर रंग रंग के बहुत कबूतर कुछ उजले कुछ लाल कबूतर चलते छम छम चाल कबूतर कुछ नीले बैंजनी कबूतर पहने हैं पैंजनी कबूतर करते मुझको प्यार कबूतर करते बड़ा दुलार कबूतर आ उंगली पर झूम कबूतर लेते हैं मुंह चूम कबूतर रखते रेशम बाल कबूतर चलते रुनझुन चाल कबूतर गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर देते मिश्री घोल कबूतर।
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