22-09-2011, 10:23 AM | #1 |
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डॉ कुमार विश्वास
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता है। तू मुझसे दूर कैसी है, मैं तुझसे दूर कैसा हूँ ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है। मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है कभी कबिरा दिवाना था, कभी मीरा दिवानी है। यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं जो तू समझे तो मोती है , जो ना समझे तो पानी है।
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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22-09-2011, 10:23 AM | #2 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
किस पर विश्वास करूँ, किसका विश्वास करूँ? / विश्व भूषण
किस का विश्वास करूँ? किस पर विश्वास करूँ? जब आये दिन, हो जाता है कहीं भी, कभी भी, कैसा भी धमाका... किस पर विश्वास करूँ? सहमी हुई दिल्ली कि छाती पे बैठा, एक लुंगी वाला मद्रासी होम मिनिस्टर, कलंकित करता है, राजगोपालाचारी के आदर्श और सुब्रमण्यम भारती कि कवितायेँ, अपने कायरता भरे बयानों, और धनलोलुप जिह्वा के बहकाव से... किस का विश्वास करूँ? भ्रष्टाचार से त्रस्त राष्ट्र का मुखिया, पगड़ी कि खालसा शान को, चढ़ा देता है, एक "गुप्त रोग" से पीड़ित महिला के, चरणों में, और अपनी बेटी से इतिहास में लिखवाता है, यीशु महान और गुरु गोबिंद सिंह लुटेरा था, और लजाता है, बंद बहादुर से लेकर, ऊधम सिंह और भगत सिंह तक कि परंपरा को?
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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22-09-2011, 10:24 AM | #3 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
किस पर विश्वास करूँ?
देश का शिक्षा मंत्री, रोज झूठ बोलता है, कभी "टू जी" को "सच्चा सौदा", और कभी "कामन वेल्थ" को "अच्छा सौदा" कहकर, बेईमानी के खिलाफत्गारों को जेल, और आतंकवादियों को बहार करवाने कि, दलाली भरी वकालत करता न्यायलय में नजर आकर... रुलाता है डाक्टर राधाकृष्णन की आत्मा को... किस का विश्वास करूँ? लोकतंत्र का "चौथा स्तम्भ", बड़ी निर्लज्जता से, लोकतान्त्रिक राष्ट्र का, एक "राजकुमार" घोषित करता है। जो, न देश का नागरिक है, न अपनी बुद्धि से बोलना जानता है, न तो बेदाग है, न ही सच्चरित्र, जो, बलात्कार का आरोपी, और "ड्रग-एडिक्ट" भी बताया जाता है... किस पर विश्वास करूँ? आज का विद्रोही, कल भ्रष्टो के खेमे में नज़र आता है, "अनशन वीर" हठयोगी, सरकारी शर्तों पर समझौता कर, "जीत गए हम जीत गए" के गाने गाता है... किस का विश्वास करूँ? शीत रक्त युवा, सिर्फ नारे लगाना और झंडे लहराना जानता है, न मुद्दे समझ पाता है, न समझौते पढ़ पाता है, और बीस लोगों का दल, कुछ सरकारी खलनायकों, और माइक कैमरा वाले जोकरों के साथ, पूरे देश को टोपी पहना जाता है...
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22-09-2011, 10:24 AM | #4 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
किस पर विश्वास करूँ?
हर तरफ से लुटे पिटे, ये आम लोग, विरोध से विरत, मुर्दा लोग, मेरे देश के निन्यानबे प्रतिशत "शांत चित्त" लोग, सदियों से मार सहते, आपस में लड़ते, और धूर्तों कि गुलामी करते लोग, कभी भगत सिंह को आतंकवादी कहते, कभी गुरु गोबिंद सिंह को लुटेरा, और कभी, निजाम बदला, तो स्वर बदल लेने वाले लोग... क्या इन पर विश्वास करूँ? जो अन्याय और बेईमानी सह कर भी, विरोध के लिए खुद टोपी पहन लेते हैं, और सशक्त स्वर कि जगह, अहिंसा के चोचले अपना कर, एक " मोमबत्ती उत्सव" मन कर, फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल देते हैं?... किस पर विश्वास करूँ? किस का विश्वास करूँ?
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22-09-2011, 10:25 AM | #5 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
सडकों पे चकती लगी , बुरा देश का हाल
भ्रष्टाचारी तंत्र में जनता है बेहाल i जनता है बेहाल बढ़ी जाती महगाई दिन दिन बढ़ता भाव त्रस्त जनता चिल्लाई कह भास्कर ललकार बजा अन्ना का डंका निकल पड़े हनुमान जलाने को लंका i त्रेता का भगवान एक हनुमान पठाया जिसने रावन की लंका में आग लगाया अन्ना के हनुमान चल पड़े लाख करोनो सुन लो उनकी बात भ्रस्त आचरण छोड़ो i
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22-09-2011, 10:25 AM | #6 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
कह भास्कर ललकार जलेगी धू धू लंका
अब भी चेतो बजा दिया अन्ना ने डंका i अन्ना है भगवान देश के दिल की धड़कन इकराना छोड़ दो तजो उनसे अब अनबन उनसे अनबन छोड़ दो राष्ट्रहित बात विचारो कोटि कोटि जन गरज रहे ये दृश्य निहारो i कह भास्कर ललकार की अब जनता ऊब गयी है और भ्रस्त तंत्र की लाज सरम सब डूब गयी है i उदित राष्ट्र के मंच पर अन्ना प्रखर पतंग हैं अरविन्द प्रशांत अब बेदी किरण तरंग बेदी किरण तरंग क्रांति की शौम्य प्रतिमा भारत जग का भाल प्रतिष्ठित उसकी गरिमा i
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22-09-2011, 10:25 AM | #7 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
कह भास्कर ललकार क्रांति अब रोके न रुकेगी
टकराना छोड़ दो शांति में क्रांति उगेगी i विनय न माना जलधि जल गए तीन दिन बीत भ्रस्त तंत्र शातिर हुआ भय बिनु होया न प्रीति भय बिनु होय न प्रीति युवा जन आगे आओ राजगुरु सुखदेव भगत सिंह तुम बन जावो इ कह भास्कर ललकार तुम्ही अन्ना के बल हो भारत की हो शान तुम्ही उज्जवल हो कल होइ फूल गए तुम रामदेव को देकर झांसा वाही चल फिर चले पद गया उल्टा पाँसा उल्टा पाँसा पड़ा गयी एम्बुलैंस खदेड़ी चेतो चेतो सत्ता मद में चूर नसेड़ी i कह भास्कर ललकार की युग परिवर्तन होगा बदलो अपनी चाल क्रांति का नर्तन होगा गाँधी मोहनदास पुनः अन्ना बन आये सच्ची आजादी का आकर बिगुल बजाये इ बाल , वृद्धजन , युवा , साधू , ब्यापारी जागे जागे सभी किसान सिपाही सैनिक जागे कह भास्कर ललकार जग रहे हैं कुछ नेता शुभ लक्छ्न है आज भला उनका मन चेता ॥
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22-09-2011, 10:26 AM | #8 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
अब कुछ नहीं कहना,
कुछ भी नहीं कहना बहुत हैं यूँ तो गुबार दिल में, फिर भी नहीं कहना। दिल में हैं वैसे तो अहसास कुछ, हैं दूर कुछ और पास कुछ, कुछ भूख से मरते, कुछ प्यास के मारे खबरनवीसों को लगता नहीं ख़ास कुछ। सड़कों पे लगती हैं लम्बी कतारें संसद भवन में खड़ी लम्बी कारें, सारा वतन झुलसता है तो क्या? दिल्ली में हैं सब बसंती बहारें। जागो, उठो अब नहीं यूँ ही रहना, जलाओ मशालें, बस क्रांति कहना, मगर वायदों के कुटिल कातिलों से, अब कुछ नहीं कहना, कुछ भी नहीं कहना॥...
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22-09-2011, 10:26 AM | #9 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
हृदय मंथन/ दिनेश आदित्य.
बैशाख की दमकती धूप में, अपने सहारे खड़े होने को मचलती स्वाभिमान से भरी, जोश के पात पहने, उस नवयौवना लता के उत्साह में कमी ना थी। दृढसंकल्प उसका दे रहा था चुनौती, कौन रोकेगा उसकी सवित्रमयी 'उड़ान' को। जब साथ है सर्वशक्तिमान, जो है उसका आराध्य।
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22-09-2011, 10:27 AM | #10 |
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Re: डॉ कुमार विश्वास
सम्पूर्ण आहुति.../ दिनेश आदित्य
जिंदगी में कुछ पल मुस्कान मांगता हूँ। "पंखों का सौदागर" थोड़ी सी उडान मांगता हूँ। जेठ की दुपहरी में, कंक्रीट की सड़कों पर लहू तपाते चन्दन को मकान मांगता हूँ। मैं थक गया हूँ 'न्याय' का बोझ ढ़ोते ढ़ोते, प्रलयकारी विद्ध्वंश का सामान मांगता हूँ। धुल धूसरित मानवता, बहुत हुआ अब चिंतन, कंटक पथ पर चलने का अभियान मांगता हूँ।
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