26-05-2013, 02:33 PM | #1 |
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“एक कहानी ऐसी भी”
हड्डियों का एक खंडर, अपनी कहानी कह रहा, मौत प्यारी है उसे, वो जिंदगी को सह रहा i डोलता और डगमगाता, वह अकेला है खड़ा, 'पहरेदार, वक़्त का,परवान वक़्त के चढ़ा i वह कहे किससे कहे, वह सुने तो क्या सुने ? मौत की दहलीज़ पे, क्या उम्मीद के सपने बुने i जब खड़ा था, तब अकेला था, अकेला रह गया, 'किनारे' की उम्मीद कैसी, तिनका भी जब बह गया i न आरज़ू पूरी हुई, हसरत अधूरी रह गयी बंद लब से जिंदगी, समझो तो, हर कुछ कह गयी i 'मैं' के बस गुमान में, न सुन सका 'पुकार' को, उड़ान जो ,सोपान' की, तो छोड़े क्यों 'आधार' को ? जिंदगी कहती रही, पर 'मन' में तो कुछ और ही, नीव जिसकी ठोस हो, महल न ऐसा चुन सका i 'आकाश' की ख्वाइश मगर, 'बादल' भी ना नसीब था, कर सके पुरे जो वो, न ख्वाब ऐसे बुन सका i हारना तो लाज़मी था, दूर जीत थी मगर, "अनध" के हाँ, जो बोल थे, क्यों नहीं वो सुन सका ? "अनध" को तो ये सीख थी, सबक तो इतना था मिला, महल हो या वो झोपड़ी, एक न एक दिन सब जला i तो खुद पे हो गुमान कैसा, मन में क्यों ये भ्रम पला? खाख से "अनध" था आया, खाख होके तो चला i अमिताभ कुमार तिवारी “अनध” Last edited by amitabh kumar tiwary; 26-05-2013 at 02:37 PM. |
29-05-2013, 11:53 AM | #2 |
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Re: “एक कहानी ऐसी भी”
Thanks
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