09-12-2010, 11:49 AM | #31 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
मुझे लगता है कि मैं अहिंसा की अपेक्षा सत्य के आदर्श को ज्यादा अच्छी तरह समझता हूं और मेरा अनुभव मुझे बताता है कि अगर मैंने सत्य पर अपनी पकड़ ढीली कर दी तो मैं अहिंसा की पहेली को कभी नहीं सुलझा पाउंगा.... दूसरे शब्दों में, सीधे ही अहिंसा का मार्ग अपनाने का साहस शायद मुझमें नहीं है। सत्य और अहिंसा तत्वतः एक ही हैं और संदेह अनिवार्यतः आस्था की कमी या कमजोरी का ही परिणाम होता है। इसीलिए तो मैं रात-दिन यही प्रार्थना करता हूं कि 'प्रभु, मुझे आस्था दें'। |
09-12-2010, 11:49 AM | #32 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मेरा मानना है कि मैं बचपन से ही सत्य का पक्षधर रहा हूं। यह मेरे लिए बड़ा स्वाभाविक था। मेरी प्रार्थनामय खोज ने 'ईश्वर सत्य है' के सामान्य सूत्र के स्थान पर मुझे एक प्रकाशमान सूत्र दिया : 'सत्य ही ईश्वर है'। यह सूत्र एक तरह से मुझे ईश्वर के रू-ब-रू खड़ा कर देता है। मैं अपनी सला के कण-कण में ईश्वर को व्याप्त अनुभव करता हूं। |
09-12-2010, 11:50 AM | #33 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मैं आशावादी हूं, इसलिए नहीं कि मैं इस बात का कोई सबूत दे सकता हूं कि सच्चाई ही फलेगी बल्कि इसलिए कि मेरा इस बात में अदम्य विश्वास है कि अंततः सच्चाई ही फलती है.... हमारी प्रेरणा केवल हमारे इसी विश्वास से पैदा हो सकती है कि अंततः सच्चाई की ही जीत होगी। |
09-12-2010, 11:50 AM | #34 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मै किसी-न-किसी तरह मनुष्य के सर्वोत्कृष्ट गुणों को उभार कर उनका उपयोग करने में कामयाब हो जाता हूं, और इससे ईश्वर तथा मानव प्रछति में मेरा विश्वास दृढ़ रहता है । |
09-12-2010, 11:50 AM | #35 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मैंने कभी अपने आपको संन्यासी नहीं कहा। संन्यास बड़ी कठिन चीज है। मैं तो स्वयं को एक गृहस्थ मानता हूं जो अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर, मित्रों की दानशीलता पर जीवन निर्वाह करते हुए, सेवा का विनम्र जीवन जी रहा है... मैं जो जीवन जी रहा हूं वह पूर्णतया सुगम और बड़ा सुखकर है, यदि सुगमता और सुख को मनःस्थिति मान लें तो। मुझे जो कुछ चाहिए, वह सब उपलब्ध है और मुझे व्यक्तिगत पूंजी के रूप में कुछ भी संजोकर रखने की कतई जरूरत नहीं है। |
09-12-2010, 11:51 AM | #36 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मैं विशेषाधिकार और एकाधिकार से घृणा करता हूं। जिसमें जनसाधारण सहभागी न हो सके, वह मेरे लिए त्याज्य है। |
09-12-2010, 11:51 AM | #37 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मुझे संन्यासी कहना गलत है। मेरा जीवन जिन आदर्शों से संचालित है, वे आम आदमियों द्वारा अपनाए जा सकते हैं। मैंने उन्हें धीरे-धीरे विकसित किया है। हर कदम अच्छी तरह सोच-विचार कर और पूरी सावधानी बरतते हुए उठाया गया है। मेरा इंद्रिय-निग्रह और अहिंसा, दोनों मेरे व्यक्तिगत अनुभव की उपज हैं, जनसेवा के हित में इन्हें अपनाना आवश्यक था। दक्षिण अफ्रीका में गृहस्थ, वकील, समाज-सुधारक या राजनीतिज्ञ के रूप में जो अलग-थलग जीवन मुझे बिताना पड़ा, उसमें अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वाह के लिए यह आवश्यक था कि मैं अपने जीवन के यौन पक्ष पर कठोर नियंत्रण रखूं, और मानवीय संबंधों में, वे चाहे अपने देशवासियों के साथ हों अथवा यूरोपियनों के साथ, अहिंसा और सत्य का दृढ़ता से पालन करूं। |
09-12-2010, 11:52 AM | #38 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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अनवरत काम के बीच मेरा जीवन आनंद से परिपूर्ण रहता है। मेरा कल कैसा होगा, इसकी कोई चिंता न करने के कारण मैं स्वयं को पक्षी के समान मुक्त अनुभव करता हूं.... मैं भौतिक शरीर की जरूरतों के खिलाफ निरंतर ईमानदारी के साथ संघर्षरत हूं, यही विचार मुझे जीवित रखता है। |
09-12-2010, 11:52 AM | #39 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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मैं जानता हूं कि मुझे अभी बड़ा मुश्किल रास्ता तय करना है। मुझे अपनी हस्ती को बिलकुल मिटा देना होगा। जब तक मनुष्य अपने आपको स्वेच्छा से अपने सहचरों में सबसे अंतिम स्थान पर खड़ा न कर दे तब तक उसकी मुक्ति संभव नहीं। अहिंसा विनम्रता की चरम सीमा है। |
09-12-2010, 11:52 AM | #40 |
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Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread
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यदि हम धर्म, राजनीति, अर्थशात्र आदि से 'मैं' और 'मेरा' निकाल सकें तो हम jald ही स्वतंत्र हो जाएंगे, और पृथ्वी पर स्वर्ग उतार सकेंगे । |
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