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Old 09-02-2013, 06:57 PM   #11
jai_bhardwaj
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मुंबई व संसद पर हुए आतंकी हमले के आरोपियों को फांसी पर चढ़ा कर अपनी पीठ थपथपा रही यूपीए सरकार को इस तरह के अन्य मामलों के आइने में अपनी तस्वीर देख लेनी चाहिए। समय पर सरकार की तरफ से फैसला न लेने और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाने की वजह से ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और दिल्ली स्थित युवा कांग्रेस कार्यालय पर हुए हमले के आरोपी सजा पाने के दस-दस वर्ष बाद भी जिंदा है। गहरे कानूनी दांव-पेंच में फंस चुके ये तीनों मामले राजनीतिक तरीकेसे भी बेहद संवेदनशील हैं। फांसी में लगातार बिलंब के चलते दोषियों को उम्रकैद की उम्मीद बढ़ती जा ही रही है। साथ ही इस मुद्दे पर राजनीति करने वालों को भी मौका मिल गया है।

दिल्ली में 11 सिंतबर 1993 को युवा कांग्रेस के कार्यालय के सामने हमले के मामले के मुख्य आरोपी और खालिस्तान लिबरेशन आर्मी के आतंकी देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को 2001 में फांसी की सजा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में इस पर मुहर लगाई और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मई 2011 में उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन सरकार ने कोई तेजी नहीं दिखाई। तब तक भुल्लर को लेकर पंजाब में राजनीति गर्माने लगी। इसी बीच भुल्लर की तरफ से किसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी कि चूंकि 2001 में फांसी की सजा मिलने के 11 वर्ष बाद भी उस पर अमल नहीं हुआ है, इसलिए सजा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट में मामला विचाराधीन है। भुल्लर के मामले को दुनिया भर की कई मानवाधिकार संस्थाओं ने भी उठा कर सरकार के लिए दो टूक फैसला करना मुश्किल कर दिया है।

राजीव गांधी हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दोषी करार और फांसी की सजा प्राप्त मुरुगन, संथन और पेरारीवालन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। 2011 में इनकी दया याचिका भी राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दी थी, लेकिन तभी इनको लेकर तमिलनाडु में राजनीति शुरू हो गई। विधान सभा ने राष्ट्रपति से उक्त तीनों को क्षमादान का अनुरोध करते हुए प्रस्ताव पारित कर दिया। भुल्लर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से याचिका दायर की गई है,उसी तरह की याचिका राजीव गांधी के हत्यारों के बारे में भी दायर की गई है।

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी बलवंत सिंह रजोआना को लेकर सरकार की तरफ से समय पर फैसला नहीं किए जाने से उसका मामला भी फंस चुका है। रजोवाना को फांसी नहीं देने की अपील पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने स्वयं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिल कर की थी। इससे केंद्र पर भी दबाव बना। इस मामले में रजोआना के साथ संयुक्त आरोपी जगतार सिंह हवारा ने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कानून के मुताबिक सह अभियुक्त पर अंतिम फैसला किए बगैर फांसी की सजा प्राप्त अभियुक्त पर कोई फैसला नहीं हो सकता।

सरकार के पास अभी भी कई बड़े गुनाहगारों की अर्जी लंबित पड़ी है जिन्हें जल्द से जल्द फांसी पर लटका देना चाहिए। पूरे देश की निगाहें अब इसपर टिकी हुई है कि अगला नंबर किसका होगा।

-राजीव गांधी के हत्यारे

-राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी करार दिए गए संथन, मुरुगन और पेरारिवलन को 1998 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। इन्हें पिछले साल 9 सितंबर 2011 को फांसी पर लटकाया जाना था लेकिन इनकी ओर से हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया कि इनकी दया याचिका के निपटारे में 11 साल लगे हैं और ऐसे में इन्हें फांसी की सजा दिया जाना सही नहीं होगा। 11 अगस्त 2011 को राष्ट्रपति ने इनकी दया याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

-राजोआना: बेअंत सिंह का हत्यारा

-31 अगस्त 1995 को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फासी की सजा भी अब तक लटकी हुई है। अदालत ने 31 जुलाई, 2007 को बलंवत सिंह को फासी की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ राजोआना ने हाईकोर्ट में कोई अपील दायर नहीं की थी। हाईकोर्ट से सजा की पुष्टि होने के बाद जिला अदालत ने पांच मार्च को पटियाला जेल अधीक्षक को एक्जीक्यूशन वारंट जारी किए थे। जेल अधीक्षक ने कई तरह के तर्क देते हुए राजोआना को फांसी पर चढ़ाने से मना कर दिया था और यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आने का हवाला देते हुए डेथ वारंट वापस कर दिए। लेकिन अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए दोबारा से डेथ वारंट जारी कर दिए।

इस मामले में खुद सरकार ही राजोआना की फांसी की सजा को माफ करने को लेकर राष्ट्रपति के पास दया याचिका लेकर पहुंच गई। यह मामला भी अभी विचाराधीन है। मालूम हो कि पंजाब में शिअद-भाजपा की मिलीजुली सरकार है।

-अशफाक: लाल किले पर हमला

22 दिसंबर 2000 को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने लालकिले पर हमला किया था। इस मामले में अशफाक उर्फ आरिफ को गिरफ्तार किया गया। दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2005 को अशफाक को फांसी की सजा सुनाई। फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने 13 सितंबर 2007 को अशफाक की सजा बरकरार रखी। फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त , 2011 को अशफाक की फांसी की सजा को बरकरार रखा।

-भुल्लर: रायसीना पर बम ब्लास्ट

11 सितंबर 1993 को दिल्ली के रायसीना रोड स्थित यूथ कांग्रेस के दफ्तर के बाहर आतंकवादियों ने कार बम धमाका किया था। इसमें 9 लोगों की मौत हो गई थी और 35 घायल हुए थे। पटियाला हाउस कोर्ट स्थित टाडा कोर्ट ने 25 अगस्त 2001 को भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च 2002 को फांसी की सजा पर मुहर लगा दी। जिसके बाद भुल्लर ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की। राष्ट्रपति ने 27 मई , 2011 को दया याचिका खारिज कर दी थी। इसी दौरान भुल्लर के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर फांसी की सजा कम किए जाने की गुहार लगाई, जो अभी पेंडिंग है।
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आतंकी अफजल गुरु की फांसी से संबंधित जानकारियों को बयां करने के क्रम में कई तथ्यात्मक गलतियां को लेकर एक बार फिर केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे विवादों में घिर गए है। सुशील कुमार शिंदे ने शनिवार की सुबह प्रेसवार्ता के दौरान इस संबंध में जानकारी देने के क्रम में कई तथ्यात्मक गलतियां कीं। इसमें शिंदे ने तारीख और वक्त गलत बताया।

उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री ने इस संबंध में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, अफजल गुरु को आज आठ बजे फांसी दी गई। 2011 में ही गृह मंत्रालय ने इसकी सिफारिश की थी। राष्ट्रपति को 21 जनवरी को फाइल भेजी गई। राष्ट्रपति ने तीन फरवरी को दया याचिका खारिज की थी। इस फाइल पर चार फरवरी को मैंने हस्ताक्षर किए और आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया गया।

शनिवार की सुबह अपना बयान देते समय शिंदे ने कई तथ्यात्मक गलतियां कीं। इसमें शिंदे ने तारीख और वक्त गलत बताया। गृहमंत्री ने कहा, कोर्ट ने आठ फरवरी की तारीख तय की थी। आठ बजे का वक्त भी तय हो गया था। तो आज आठ बजे अफजल को फांसी दे दी गई है। लेकिन इसके बाद अंग्रेजी में बोलते समय शिंदे ने तो और भी गड़बड़ी की। उन्होंने अफजल की फांसी के वक्त के बारे में आठ बजे सुबह [8 ए.एम.] के बजाय आठ बजे रात [8 पी.एम.] कह दिया।
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मौत बांटने वाले भी कभी अपने ही अंत से डर जाते हैं। हां ऐसा ही हाल देश के लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले आतंकी अफजल गुरु का हुआ था। जब उसे टीवी पर मुंबई हमले के सबसे बड़े दोषी अजमल आमिर कसाब की फांसी की बात पता चली थी तो अफजल गुरु के चेहरे का रंग ही उड़ गया था, उसके माथे पर शिकन दिखाई देने लगी थी। इससे भी बुरा हाल तो 1993 में दिल्ली में यूथ कांग्रेस कार्यालय के बाहर बम विस्फोट करने वाला देवेंद्र सिंह भुल्लर का हुआ था। वह जेल में ही अपनी मौत के खौफ से बीच-बीच में चिल्लाने लगता था।

एक लंबी खींचतान के बाद आखिरकार देश के लोकतंत्र के मंदिर पर बुरी नजर डालने वाले अफजल गुरु को फांसी दे दी गई। अजमल कसाब के बाद अफजल गुरु की भी कहानी आज खत्म हो गई। लेकिन अफजल गुरु के मामले को अंजाम देने में सरकार को काफी वक्त लगा। जब मुंबई हमले के दोषी अजमल आमिर कसाब की फांसी की खबर ने तिहाड़ जेल में बंद अफजल गुरु के चेहरे का रंग उड़ा दिया था। अफजल को अपने मौत का खौफ रह-रह कर सताने लगा था।

कसाब के बाद अफजल अब तीसरा कौन यह सवाल कहीं न कहीं उठने लगे हैं। हालांकि अब तक आतंकी संगठन बब्बर खालसा से संबंध रखने वाले देवेंद्रपाल सिंह भुल्लर पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। बताया जाता है कि उसकी दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज हो चुकी है। मौत बांटने वाला भुल्लर आज खुद के सामने मौत देखकर इस कदर खौफजदा है कि अक्सर चिल्ला उठता है। मौत के डर ने उसे मानसिक रोगी बना दिया है। बीमारी के कारण ही वह मौत से दूर है। उसका दिल्ली के मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान अस्पताल में इलाज चल रहा है।

अस्पताल में भुल्लर अक्सर चिल्ला पड़ता है, जल्लाद आ रहे हैं, मुझे फांसी पर लटका देंगे। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने अदालत व तिहाड़ प्रशासन को अवगत करा दिया है कि भुल्लर की हालत में सुधार नहीं हो रहा है। डॉक्टर परेशान हैं कि उसकी बीमारी को किस रूप में लें।

वर्ष 1993 में भुल्लर ने यूथ कांग्रेस कार्यालय के बाहर बम विस्फोट किया था। इसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च, 2002 को भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई थी।

तिहाड़ जेल प्रवक्ता सुनील गुप्ता का कहना है कि कसाब को फांसी की खबर टेलीविजन पर देखने के बाद अफजल के चेहरे पर शिकन देखी गई थी, लेकिन उसकी दिनचर्या सामान्य रही।
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Old 09-02-2013, 07:28 PM   #16
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शनिवार सुबह 8.00 बजे अफजल गुरु को फांसी दे दी गई। गृहसचिव आर के सिंह ने पुष्टि की है। तिहाड़ के तीन नंबर जेल में संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल को फांसी दे दी गई। सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर 2006 में तिहाड़ जेल के अधिकारी बक्सर जेल से छह रस्सी ले आए थे। तो ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इसी रस्सी से अफजल को फांसी दी गई होगी।

ब्रिटिश शासनकाल से देश की किसी भी जेल में फांसी देने के लिए बक्सर (बिहार) केंद्रीय कारागार के पुनर्वास प्रशिक्षण केंद्र में ही फंदे वाली मनीला रस्सी का निर्माण होता रहा है। जेल के एक अधिकारी ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत में पहले फिलीपींस की राजधानी मनीला में फांसी के लिए रस्सी तैयार होती थी। बाद में बक्सर जेल में भी वैसी ही रस्सी का निर्माण होने लगा। अंग्रेजों ने ही इसे मनीला रस्सी नाम दिया। बक्सर केन्द्रीय कारा में तैयार मौत के फंदे से पहली बार सन् 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था। वर्तमान समय में देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है तब-तब केन्द्रीय कारा बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते है। अधिकारी के मुताबिक आजादी के बाद अबतक देश में जितनी भी फांसी दी गई, उसके लिए रस्सी यहीं से भेजी गई। यहां की रस्सी से अंतिम फांसी कोलकाता में 14 अगस्त, 2004 को दुष्कर्मी व हत्यारे धनंजय को दी गई थी।

मनीला रस्सी क्यों है खास

गले में लिपट बिना तकलीफ मौत की नींद सुलाने वाली मनीला रस्सी को बनाने के लिए खास विधि अपनाई जाती है। पहले कच्चे सूत की एक-एक कर 18 धागे तैयार किए जाते हैं। सभी को मोम में पूरी तरह संतृप्त किया जाता है। इसके बाद सभी धागों को मिलाकर एक मोटी रस्सी तैयार की जाती है।

इस रस्सी की कीमत महज 182 रूपये

168 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता वाली विशेष प्रकार की रस्सी की कीमत महज 182 रूपये है। इस कीमत में बढ़ोतरी अजादी के बाद से नहीं की गई है। अंग्रेजों के जमाने में रूई सुता से इस रस्सी का निर्माण किया जाता था। मनीला रस्सी का निर्माण आज भी पंजाब में उत्पादित होने वाली जे-34 गुणवक्ता वाली रूई के सुतों से किया जाता है जो विशेष आर्दता में तैयार 50 धागों से बना होता है। जिसका वजन 3 किलो 950 ग्राम होने के साथ 60 फीट लम्बा होता है।
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श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को अफजल गुरु को फांसी दिए जाने पर अफसोस जताते हुए कहा, इससे आम कश्मीरियों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता की भावना और ज्यादा मजबूत होगी। मुझे इस बात का भी अफसोस रहेगा कि परिजन फांसी से पूर्व गुरु से नहीं मिल सके। हम प्रयास करेंगे कि अफजल गुरु का शव उसके परिजनों को सौंपा जाए। विदित हो कि उमर की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस भी संप्रग का घटक दल है और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला केंद्र सरकार में मंत्री हैं।

यहां एक टीवी चैनल से साक्षात्कार में मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु की फांसी के बाद आम कश्मीरियों में धारणा बनी है कि फांसी देने का फैसला सियासी था। इसलिए संप्रग सरकार को साबित करना पडे़गा कि यह फैसला सियासी नहीं था। अफजल को फांसी दिए जाने की सूचना से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, लेकिन मेरी राय में उसे यह सजा न दी जाती तो ज्यादा बेहतर होता। उसे फांसी दिए जाने के कश्मीर में दूरगामी परिणाम होंगे, विशेषकर यहां की नौजवान पीढ़ी पर।

इसे आप मानो या न मानो, लेकिन आम अवाम में इस फांसी के बाद यह भावना मजबूत हुई है कि उसके साथ पूरा इंसाफ नहीं हुआ। फिलहाल, हमारा ध्यान इस बात पर है कि हम लोगों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता कैसे और किस हद तक कम कर सकते हैं।

उमर ने कहा, फिलहाल तो अफजल गुरु की फांसी का असर हमें सुरक्षा व्यवस्था के मोर्चे पर झेलना है। यह चुनौती गुरु की फांसी से राज्य के हालात पर होने वाले दूरगामी प्रभावों के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है। मुझे नहीं मालूम कि अफजल के परिजनों को केंद्र सरकार ने स्पीड पोस्ट के जरिये पहले ही उसकी फांसी की सजा से अवगत करा दिया था। कम से कम हमें केंद्र सरकार समय पर सूचित करती, तो हम गुपचुप तरीके से उसके परिजनों को दिल्ली ले जाकर अफजल से मिलवाते।

इंसानियत के तौर पर अफजल को फांसी दिए जाने से पहले परिजनों से अंतिम मुलाकात का मौका दिया जाना चाहिए था। यह बहुत ही अफसोसजनक है कि वह फांसी से पहले अपने परिवार से नहीं मिल पाया। उसके परिजनों को यह गम हमेशा रहेगा।

उन्होंने कहा कि गुरु की सजा माफी के लिए, उसके मामले की दोबारा सुनवाई के लिए न सिर्फ जम्मू-कश्मीर में बल्कि बाहर भी बहुत से लोगों ने आवाज उठाई थी। मेरे विरोधी गुरु की फांसी के लिए मुझे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन मेरी जिम्मेदारी सिर्फ इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर में पैदा होने वाले हालात से निपटने तक ही सीमित है। इस तरह के फैसले पूरी कैबिनेट या फिर सरकार में शामिल सहयोगियों को बताकर नहीं लिए जाते हैं। जब अजमल कसाब को फांसी दी गई थी तब मुझे आभास हो गया था किअफजल का भी नंबर आने वाला है। इसलिए मैंने पहले ही पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों को ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने के लिए कहा था।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मौके पर स्वर्गीय राजीव गांधी और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों को फांसी दिए जाने में हो रही देरी के लिए भारतीय जनता पार्टी सरीखे दलों को आड़े हाथ भी लिया। कहा, उनके रवैये को देखते हुए ही मैं कह सकता हूं कि गुरु की फांसी एक सियासी फैसला था।

संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को शनिवार को फांसी दिए जाने के बाद से घाटी में तनाव फैला है। इस बीच, घाटी के दस जिलों में लगाया गया क*र्फ्यू भी बरकरार है। रविवार को भी घाटी में मोबाइल और इंटरनेट सेवा पर रोक जारी रही, हालांकि सरकार ने टीवी के प्रसारण पर लगी रोक हटा ली है। शनिवार रात को बारामुला और सोपोर समेत कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा बलों झड़पें भी हुई हैं।

शुक्रवार से ही घाटी की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया था। इसके लिए राज्य पुलिस बल के साथ सीआरपीएफ के जवानों को भी तैनात किया गया है।

इस बीच परिवारजनों को अफजल का शव दिए जाने की मांग को लेकर जेकेएलएफ प्रमुख यासिन मलिक ने 24 घंटे की भूख हड़ताल करने का ऐलान किया है। वहीं केंद्र सरकार ने घाटी में हालात सामान्य रखने के मद्देनजर हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारुख समेत कई नेताओं को दिल्ली और जम्मू कश्मीर समेत नजरबंद किया गया है। राज्य के मुख्यमंत्री ने सभी से शांति बनाए रखने की अपील की है।
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कश्मीर में अखबार के प्रकाशन पर रोक

श्रीनगर । केबल टीवी, एसएमएस, मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं को ठप करने के बाद प्रशासन ने कश्मीर घाटी में अगले आदेश तक स्थानीय अखबारों के प्रकाशन व वितरण पर भी रोक लगा दी है। अधिकारिक तौर पर आदेश जारी नहीं किया गया है, लेकिन कश्मीर में रविवार को प्रशासन ने किसी भी अखबार का वितरण नहीं होने दिया।

नागरिक या पुलिस प्रशासन ने स्थानीय अखबारों के प्रकाशन व वितरण पर रोक पर कुछ भी कहने से इन्कार किया है। शनिवार रात को 11 बजे पुलिस ने अखबारों के प्रकाशन व उनके वितरण को रुकवाने का ऑपरेशन शुरू किया, जो रविवार तड़के तक जारी रहा। कश्मीर के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ग्रेटर कश्मीर के प्रिंटर पब्लिशर राशिद मखदूमी ने बताया कि हम अपने अखबार को अंतिम रूप दे रहे थे कि अचानक पुलिस आ गई। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि अखबार नहीं छपेगा, अगर छपेगा तो वह उसे वितरित नहीं होने देंगे। इसके बाद हमने अखबार को नहीं छापा, अलबत्ता हमारा ऑनलाइन एडीशन ही जारी हुआ है।

कश्मीर रीडर अखबार के संपादक शौकत मौटा ने कहा, हमारा अखबार छप चुका था, लेकिन पुलिस ने उसे लालचौक में हमारे एजेंट के पास से जब्त कर लिया। एक भी प्रति कहीं नहीं जा पाई है। पुलिस ने कार्यालय के लिए भी एक प्रति नहीं छोड़ी। हमें चार दिनों तक अखबार न छापने की हिदायत की गई है। वादी के प्रमुख न्यूज पेपर वितरक जनता न्यूज एजेंसी के अनुसार, उन्हें रात को ही पुलिस ने सूचित कर दिया था कि कोई अखबार नहीं बांटा जाए। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद मीडिया के साथ बातचीत में लोगों से संयम बनाए रखने और मीडिया से विशेषकर न्यूज चैनलों से आग्रह किया था कि वह किसी भी समाचार को महज सुनी सुनाई बात पर न प्रसारित करें, उसके प्रसारण से पूर्व सभी तथ्य जांच लें।
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