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Old 08-12-2010, 08:09 PM   #1
Sikandar_Khan
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Default कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)

प्रस्तुत है एक अन्य कथानक ..........

कभी यों होता कि उनके आफिस से आने का समय हो जाता और मैं घर जाना चाहती थी किन्तु रफ्फो फूफू मेरा हाथ ना छोडती / अब मैं उन्हें कैसे समझाऊँ कि मेरे यहाँ आने से वो कितने खफा होते हैं / ऐसे वक्त में फिर साजिदा की अम्मी बुदबुदा उठातीं, " नामुराद कमबख्त बला की तरह चिपट गयी है बेचारी की जान को.... वह भी तो घर बाहार वाली है / हर वक्त तेरी वहशतनाक सूरत कहाँ तक देखे / "

( पूरी कहानी नहीं है अतः तनिक प्रकाश डालना चाहूँगा रफ्फो फूफू पर ..." रफ्फो फूफू को प्रथम बार देख कर मेरी चीख ही निकल गयी थी / खौफ के मारे मेरे हाथ पैर ठन्डे पड़ गए थे / मेरे सामने एक चुड़ैल खड़ी थी / उसका मुँह चील कौवों ने नोच खाया था / आँखों की जगह सुर्ख गड्ढे थे और नाक से ठोडी तक कहीं गोश्त और खाल न थी / ............... बगैर होंठो की हिलती हुई बत्तीसी देख कर मेरे पसीने छूट जाते थे / .......... अब जरा मैंने इत्मीनान से उन्हें देखा / उसके स्याह ( काले )बाल और सुडौल जिस्म पच्चीस तीस बरस से ज्यादा का ना था / गुलाबी गुलाबी सी रंगत थी / उनके हाथ तो इतने खूबसूरत थे कि ऐसे गुलाबी सुडौल हाथ केवल चुगताई की तस्वीरों में नजर आते हैं / ............ मेरे दिल में उनका एहतिराम (सम्मान ) बढ़ता ही जा रहा था / मैं सोचने लगी, ' ऐसे लोग दुनिया में कितने कम होते हैं जिनके चेहरे जल गए हों किन्तु दिल स्याह न पडा हो '/..... एक दिन मैं जब चलना चाहती थी तो उन्होंने मेरी साड़ी पकड़ ली और बोली, " तुम्हारी साड़ी बहुत महक रही है /"
- यह सेंट उन्होंने लाकर दिया है /
-नहीं.... हमसे मत छिपाओ ... यह तो प्यार की खुशबू है /' उनकी चिर परिचित बत्तीसी फ़ैल गयी /
- आपको इस खुशबू की बड़ी पहचान है ... तब तो हम भी आपका दुपट्टा सूघेंगे / ' मैंने उनका दुपट्टा थामना चाहा तो वे लरज कर पीछे हट गयी और बोली , " हमसे ऐसा मजाक मत करना वरना हम खफा हो जायेंगे / ")

घर आती तो वे खफा होते / उन्हें जाने क्यों रफ्फो फूफू इतनी बुरी लगती थी / अब तो मेरी सभी लापरवाहियों का इल्जाम रफ्फो फूफू पर लगाते / एक दिन मैं उनसे लड़ पडी, " आप तो उनसे ऐसे जलते हैं जैसे वो आपकी रकीब (प्रतिद्विन्दी) हो "/
उन्हें भी गुस्सा आ गया , " मैं खूब समझता हूँ ऐसी औरतों को / अब कोई मर्द तो उसकी सूरत पर थूकेगा भी नहीं इसलिए आपको अपने जाल में फांस रही है /"
"आप मुझे ज़लील औरत समझते है /" बेबसी के मारे मैं रो पडी /
उसदिन हम दोनों खूब लड़े / मगर यह हमारी पहली लड़ाई थी इसलिए उन्होंने मुझे फ़ौरन मना लिया / मैंने उसी दिन रफ्फो फूफू से कभी ना मिलने की कसम खा ली थी / आखिर उन्हें हथियार डालना पडा और तीन दिनों के बाद वह खुद मुझे जीने तक छोड़ने आये जो रफ्फो फूफू के सहन में खुलता था /

मुझे डर था कि तीन दिनों तक ना आने से रफ्फो फूफू ने ना जाने अपना क्या हाल किया होगा ( आज कल वो मेरे साथ थी दोपहर का खाना खाती थी अन्यथा अगली दोपहर तक भूखी ही रहती थी /) मुझसे बहुत खफा होंगी किन्तु वे हस्बे-आदत (स्वभावानुसार) उसी बेताबी से मेरी ओर दौड़ी /
- रफ्फो फूफू, मैं तीन दिन तक तुम्हारे पास नहीं आ सकी/ बात यह हुई कि......
-ऊँह, बात कुछ भी हो' ...उन्होंने मेरी बात काटते हुए कहा , " मैं जानती हूँ कि कोई आखिर मुझे क्यों पसंद करेगा / तुम्हारे मियाँ भी मुझसे मिलने पर खफा होते होंगे ?"
-नहीं, अल्लाह.... आप कैसी बातें करती हैं," मैंने हैरानी से यह बात कही और सोचने लगी कि इन्हें किसने बताया /
-मुझे इतना बेवकूफ मत समझो , नूरी! " आज वे कुछ अधिक संजीदा ( गंभीर ) हो रही थी ," मैंने हिमाकत में हमेशा चलती हवाओं को पकड़ने की कोशिश की है /"
- रफ्फो फूफू! मुझे मुआफ कर दीजिये! " मेरे अन्दर इससे अधिक कुछ कहने की ताब ना थी /
-मुआफी काहे की चन्दा! उन्होंने बड़े प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रखा, " क्या मैं यह बात नहीं जानती कि तुम्हारे मियाँ क्या चाहते होंगे..... मुझे तुम इसी लिए अच्छी लगती हो कि कोई तुम्हे इतना चाहता है/"
-रफ्फो फूफू!' मैं चिल्ला पडी / " वह कौन जालिम था जिसने तुम्हारी आँखों में तेज़ाब दाल दिया था /" मैं सचमुच रो पडी थी / रफ्फो फूफू का दिन सचमुच कितना सरल और साफ़ था /
- पागल! यह तुमसे किसने कहा कि किसी ने मेरी आँखों में तेज़ाब डाला है ? अरे ... मैंने तो खुद अपनी आँखे फोडी हैं /"
-सच ?" मैं उछल पडी इस हकीकत से /
-हाँ! ' उनका पूरा बदन काँप रहा था , "तुम ज़रा सोचो कि जो हमारी जान भी हो और हमारी रूह भी, जिसकी मुहब्बत पर हमें अपने वजूद की तरह यकीन हो , वह अचानक बदल जाए .. तो.." उनकी आँखों के गड्ढों में जैसे खून उतरने को था, " नज़्म मेरी आँखों में बार बार झाँकता था/ रफ्फो! क्या बात है! तुम्हारी आँखों के अन्दर मेरी सूरत ही नज़र आती है /उसकी यह बात सुनकर मेरा जी चाहता कि मैं अपनी आँखों को कस कर बंद कर लूँ ताकि वह फिसल ना जाए / और फिर नज़्म मुझसे बदल गया......... / एक करोडपति की दौलत ने उसे खीच लिया / मुझे लोगों के कहने पर यकीन ना आता था / फिर उसने खुद आकर मुझसे कहा कि उसके अब्बाजान जबरदस्ती उसकी शादी वहाँ करवा रहे रहे हैं / यह सुन कर मैं चुप रही / मैंने उसकी दुल्हन के लिए खुद कपडे तैयार किये / रात रात भर जाग कर आँगन में गीत गाये/ जो चीज हमारे लिए नहीं उसके लिए हम क्यों रोयें? फिर दरवाजे पर शहनाईयाँ गूँज उठी जो हमेशा से मेरे कानों में बसी हुई थी /मैंने कितने हज़ार बार यह ख्वाब देखा था कि घर रोशनियों से जगमगा रहा है / आँगन में मीरासिने गा रही हैं / और नज़्म की बहने अपने जगमगाते दुपट्टे उसके सेहरे पर डाले उसे मसनद की तरफ ला रही हैं / तभी कोइ जोर से चिल्लाया.. " नज़्म की दुल्हन कहाँ है ?" और पान बनाते बनाते मैं रुक गयी / उसके बाद मैं अपने घर की तरफ तेजी से भागी / फिर सभी मुझे ढूँढने निकलें कि मैं नज़्म की दुल्हन देखूं / नज़्म खुद आया /
"मैं तुम्हारी दुल्हन नहीं देखूँगी / कहीं उसने मेरी आँखों में तुम्हे देख लिया तो ?" मैंने नज़्म से कहा /
यह सुन कर नज़्म चला गया मगर उसकी दुल्हन खुद अन्दर आ गयी / मैं घबरा कर भाई जान की डिस्पेंसरी में भागी और तेज़ाब की बोतल अपने चेहरे पर उड़ेल ली / " उफ्फ्फाह ... मुझे किस कदर सुकून मिला था उस दिन .." रफ्फो फूफू ने इत्मीनान से कहा ," जैसे मेरी जलती हुई आँखों में किसी ने बर्फ की डलियाँ (टुकड़े) रख दी हों जैसे कलेजे की आग पर किसी ने ठंडा पानी डाल दिया हो /"
- मगर रफ्फो फूफू, आँखे इतनी सस्ती तो नहीं होती कि एक सख्स के लिए बंद कर ली जाएँ " मैंने आखिर पूँछ ही लिया /
- मुझे आँखे जलाने से कोई तकलीफ नहीं हुई चन्दा! " उन्होंने बड़ी मुहब्बत से मेरे हाथ थाम लिए, " मैं अब भी अपना हर काम कर लेती हूँ, और फिर वह आँखे मेरी कहाँ रही थी जिनमे नज़्म बसा था /"
मैंने उनके ठंडे गुलाबी हाथ पकड़ लिए /" जाने नज़्म साहब आपके हाथ कैसे भूल सके होंगे ? सच्ची रफ्फो फूफू! मैं तो आपके हाथो पर मरती हूँ /"
-हाय अल्ला! यूँ न कहो भई! " वह खुश हो गयीं " कहीं यह हाथ मैं तुम्हे न दे दूं /"
फिर हम दोनों हँस पड़े /


(साभार: "बे-मसरफ हाथ" द्वारा: "जीलानी बानो" )
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Old 08-12-2010, 08:12 PM   #2
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Default Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)

A man came home from work late, tired & irritated, to find his 5 years old son waiting for him at the door.

"Daddy, may I ask you question?"

"Yes sure, what is it?" replied the man.

"Daddy, how much do you make an hour?"

"That's none of your business. Why do you ask such a thing?" the man said angrily.

"I just wanted to know, please tell me , how much do oyu make an hour?" pleaded the little boy.

"If you must know, I make $20 an hour".

"oh, the little boy replied, wih his head down.Then looking up he said, "Daddy, can I please burrow $10".

The father was furious."If this is the only reason you asked so that you can burrow some money to buy a silly toy some other nonsense, then you march straight to your room & go to bed & think about why you are being so selfish.

"I work long hard hours everyday & dont have time for this childish behaviour.

The little boy quietly went to his room & shut the door.

The man sat down & started getting even angrier about the little boy's question."How dare he ask me scuh questions only to get some money?".

After about half an hour or so the man calmed down & started to think that he may have been a little hard on his son. May be there is something he really needed to buy that & so he reall didnt ask for money very often.

The man went to the door of the little boy's room & opened the door."Are you alseep , son?". he asked.

"No. Daddy. I am awake". replied the boy.

"I have been thiking, may be I was too hard on you earlier". said the man."It's been a long day & I took out my aggravation on you.Here's the $10 you asked for".

The little boy stood set uo straight, smiling,"Oh, thank you Daddy!" he yelled.

Then, reaching under his pillow he pulled out some crumbled up bills.

The man seeing that the boy already had money, started to get angry again.

The little boy slowly counted out his money, then looked up at his father.

"Why do you want more money, if you already have some?". The father grumbled.

"Because I didnt have enough, but now I do."The little boy replied."Daddy , I have $20 no. Can I buy an hour of your time?.Please come home early tomorrow.I would like to have dinner with you".



Share this story with someone you like....but even better share $20 worth of time with someone you love.

Its just a short reminder to all of you working so hard in life. We should not let time slip through our fingers
without having spent time with those who really matter to us, those close to our hearts.
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 08-12-2010, 08:26 PM   #3
Sikandar_Khan
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Default Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)


चाहत के नज़रिए में अक्सर ऐसा होता है ,की हर किसी को सच्चा चाहनेवाला नहीं मिलता और जिस मिलता है , वो उसकी सच्चाई को सम्जहने में बहुत देर कर जाते है , तब तक चाहनेवाले के दिल से चाहत का नज़रिए करवट बदल लेता क्यों चाहेंवाले को ये एहसास होता है , की वो मोहरा बन चूका है , और उसका पूरा नजरिया अपनी ही चाहत के लिए बदल जाता है ,क्योकि उसकी चाहत को समझने के लिए लोग वक़्त नहीं देते जिसे वो चाहता वो भी उसको वक़्त नहीं देते और लड़का एक चाहत की खातीर अपनी ज़िन्दगी को मौत के हवाले कर देने तक के लिए राज़ी हो जाता है , तब कही हमारी आखे खुलती है , मगर तब तक सब कुछ बिखर चूका होता है .
अब सोचिये की एक लड़के ने यदि एक लड़की को चाह और यदि लड़की उसकी चाहत को नहीं समझ पाई और लड़के ने जान दे दी ,
इस चाहत के सामने उस माँ का 9 महीने का प्यार और उस लड़के को पाल पोसकर बड़ा करने तक का माँ -बाप का प्यार इतना छोटा कैसे हो जाता है की लड़का जान दे देता है , क्या प्यार जान से बड़ा है , या उस माँ -बाप का प्यार की कोई अहमियत नहीं इस प्यार
के सामने ?
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Old 08-12-2010, 08:30 PM   #4
ABHAY
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क्या बात है बहुत ही अच्छा सूत्र है भाई मजा आ गया लगे रहे
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Old 08-12-2010, 09:33 PM   #5
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Ama miya maja aa gaya.lage raho barkat karoge
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डेथ का दूसरा नाम पूजा चौहान .मरना है तो आ जाओ .में वेट कर रही हु .कच्चा चबा जाउंगी .

मेरे सभी सूत्र


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Old 08-12-2010, 09:42 PM   #6
khalid
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अच्छा सुत्र हैँ सिकन्दर भाई कृप्या और आगे बढाऐँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 10-12-2010, 05:28 PM   #7
Kumar Anil
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"Daddy , I have $20 no. Can I buy an hour of your time?.Please come home early tomorrow.I would like to have dinner with you".
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दिल को दस्तक देने वाली इस भावप्रवण , सुंदर , मार्मिक पोस्ट ने झिँझोड़ डाला । काश इस शिक्षाप्रद लघुकथा से हम कुछ सीख ले सकेँ । सिकन्दर भाई , आपको इसके लिए ढेरोँ बधाई ।
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Old 10-12-2010, 06:55 PM   #8
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क्या बात है बहुत ही अच्छा सूत्र है भाई मजा आ गया लगे रहे
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Originally Posted by pooja 1990 View Post
ama miya maja aa gaya.lage raho barkat karoge
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Originally Posted by khalid1741 View Post
अच्छा सुत्र हैँ सिकन्दर भाई कृप्या और आगे बढाऐँ
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"daddy , i have $20 no. Can i buy an hour of your time?.please come home early tomorrow.i would like to have dinner with you".
We should not let time slip through our fingers
without having spent time with those who really matter to us, those close to our hearts.

दिल को दस्तक देने वाली इस भावप्रवण , सुंदर , मार्मिक पोस्ट ने झिँझोड़ डाला । काश इस शिक्षाप्रद लघुकथा से हम कुछ सीख ले सकेँ । सिकन्दर भाई , आपको इसके लिए ढेरोँ बधाई ।
आप सभी का हार्दिक आभार मित्रों
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Old 10-12-2010, 08:10 PM   #9
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काँच की बरनी और दो कप चाय
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम
पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं .

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने
की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ .
आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे
- धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ
... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर
हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई .

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –


इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ..

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे
पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है
... बाकी सब तो रेत है .
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया .
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।



दोस्तों मैने ये कहानी पङी तो मुझे लगा की आप सब के साथ भी ईस कहानी को बाँटू उम्मीद है आप सब को भी ये कहानी पसंद आऐगी ।।
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मासूम सज़ा


एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा – किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए।

दरबारियों में से किसी ने कहा – उसे सूली पर लटका देना चाहिए, किसी ने कहा उसे फाँसी दे देनी चाहिए, किसी ने कहा उसकी गरदन धड़ से तत्काल उड़ा देनी चाहिए।

बादशाह नाराज हुए। अंत में उन्होंने बीरबल से पूछा – तुमने कोई राय नहीं दी!
बादशाह धीरे से मुस्कराए, बोले - क्या मतलब?
जहाँपनाह, ख़ता माफ हो, इस गुनहगार को तो सज़ा के बजाए उपहार देना चाहिए – बीरबल ने जवाब दिया। जहाँपनाह, जो व्यक्ति आपकी मूँछें नोचने की जुर्रत कर सकता है, वह आपके शहजादे के सिवा कोई और हो ही नहीं सकता जो आपकी गोद में खेलता है। गोद में खेलते-खेलते उसने आज आपकी मूँछें नोच ली होंगी। उस मासूम को उसकी इस जुर्रत के बदले मिठाई खाने की मासूम सज़ा दी जानी चाहिए – बीरबल ने खुलासा किया।

बादशाह ने ठहाका लगाया और अन्य दरबारी बगलें झांकने लगे।
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