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Old 12-02-2011, 07:32 AM   #1
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Lightbulb दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है। राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं प्राचीन नगर होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से कुतुबमीनार और लौह स्तंभ जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। एक ओर हुमायूँ का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक राजसिक इमारत यहाँ है तो दूसरी ओर दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह।

लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं बिरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और देश पर जान देने वालों का स्मारक भी राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। भारत के प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है साथ ही अनेक प्रकार के संग्रहालय और बाज़ार हैं जो दिल्ली घूमने आने वालों का दिल लूट लेते हैं।
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Old 12-02-2011, 07:44 AM   #2
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लक्ष्मी नारायण मंदिर

लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसकाउद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहां मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है। जन्माष्टमी का त्यौहार यहां बहुत हर्षोल्लामस के साथ मनाया जाता है।
इसके वास्तुशिल्प की बात की जाए तो यह मंदिर उड़ियन शैली में निर्मित है। मंदिर का बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बलुआपत्थिर से बना है जो मुगल शैली की याद दिलाता है। मंदिर में तीन ओर दो मंजिला बरामदे हैं और पिछले भाग में बगीचे और फव्वारे हैं।
यह मंदिर मूल रूप में १६२२ में वीर सिंह देव ने बनवाया था, उसके बाद पृथ्वी सिंह ने १७९३ में इसका जीर्णोद्धार कराया।सन १९३८ में भारत के बड़े औद्योगिक परिवार, बिड़ला समूह ने इसका विस्तार और पुनरोद्धार कराया।
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जन्माष्टमी के अवसर पर सजा हुआ मंदिर
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किनारे की भित्ति शोभा
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गरुड़ स्तंभ
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आद्या कात्यायिनी मंदिर

आद्या कात्यायिनी मंदिर या छतरपुर मंदिर दिल्ली के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक है। यह मंदिर गुंड़गांव-महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में स्थित है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी सजावट बहुत की आकर्षक है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर विशाल क्षेत्र में फैला है। मंदिर परिसर में खूबसूरत लॉन और बगीचे हैं।

मूल रूप से यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। इसके अतिरिक्तं यहां भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी, हनुमान, भगवान गणेश और राम आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं।

दुर्गा पूजा और नवरात्रि के अवसर पर पूरे देश से यहां भक्त एकत्र होते हैं और समारोह में भाग लेते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। यहां एक पेड़ है जहां श्रद्धालु धागे और रंग-बिरंगी चूड़ियां बांधते हैं। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है।
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बहाई उपासना मंदिर

दिल्ली के दिल यानी नेहरू प्लेस में बसा लोटस टेंपल, अपने आप में अनूठा है। यह हर तरह के पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। माना जाता है कि प्रतिदिन लोटस टेंपल में करीब आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। यहाँ का निर्मल वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। यहाँ पर न तो कोई मूर्ति है, न ही कोई कर्म-कांड होते हैं बल्कि यहाँ पर विभिन्न धर्मों के पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक है और ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। इस फूल का कीचड़ में रहने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रह कर खिलना, सिखाता है कि धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी वे इन सबसे कैसे अनासक्त हो पाएँ।

बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। तब से इस मंदिर को लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि र्सिदयों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर रिसर्च भी करने आते हैं।
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मंदिर का स्थापत्य आर्किटेक्ट श्री.एफ.सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुओं के प्रश्नों का सहजता से जवाब दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीपों में भारत के लोटस टेंपल के अलावा छह मंदिर एपिया -पश्चिमी समोआ, सिडनी - आस्ट्रेलिया, कंपाला- यूगांडा, पनामा सिटी - पनामा, फ्रैंकफर्ट - जर्मनी और विलमेट- यू एस ए में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है -इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं।
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काली बाड़ी मंदिर

बिड़ला मंदिर के पास ही काली बाड़ी मंदिर स्थित है। यह छोटा-सा मंदिर काली मां को समर्पित है। नवरात्रि के दौरान यहां भव्य समारोह आयोजित किया जाता है। काली मां को देवी दुर्गा का ही रौद्र रूप माना जाता है। इस मंदिर में देवी को शराब का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। काली बाड़ी मंदिर दिखने में छोटा और साधारण अवश्यम है लेकिन इसकी मान्यमता बहुत अधिक है । मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है। भक्तेगण इस पेड को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं।
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जैन मन्दिर


दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर लाल किला और चांदनी चौक के सामने स्थित है। इसका निर्माण 1526 में हुआ था। वर्तमान में इसकी इमारत लाल पत्थरों की बनी है। इसलिए यह लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई मंदिर हैं लेकिन सबसे प्रमुख मंदिर भगवान महावीर का है जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। यहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा भी स्थापित है। जैन धर्म के अनुयायियों के बीच यह स्थान बहुत लोकप्रिय है। यहां का शांत वातावरण लोगों का अपनी ओर खींचता है।

मुगल साम्राज्य में मंदिरों के शिखर बनाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए इस मंदिर का कोई औपचारिक शिखर नहीं था। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत इस मंदिर का पुनरोद्धार हुआ।
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