29-05-2011, 10:10 AM | #1 |
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ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
आपके पोस्ट के इंतजार में आपका दोस्त पंकज
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29-05-2011, 10:35 AM | #2 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य - २: आर्यभट की खोज
पहले मनुष्य यही मानते थे कि पृथ्वी स्थिर है, केन्द्र में है तथा सूर्य सहित अन्तरिक्ष के सभी नक्षत्र उसकी परिक्रमा करते हैं। ईसा की पांचवीं शती में विश्व में ब्रह्माण्ड का एक रहस्य सर्वप्रथम भारत में खोजा गया। उस समय बिना किसी दूरदर्शी की सहायता के आर्यभट ने सौर मण्डल का उस काल के लिए एक अत्यन्त अविश्वसनीय किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रहस्य खोला था जिसे स्वीकार करने में मानव जाति को एक हजार वर्ष और लगे – कि सौरमण्डल में सूर्य स्थिर है तथा पृथ्वी अपने अक्ष पर प्रचक्रण करती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है; कि ग्रहण छाया पड़ने के कारण पड़ते हैं न कि राक्षसों के कारण।
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29-05-2011, 10:37 AM | #3 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
इसे सोलहवीं शती में स्वतन्त्र रूप से कोपरनिकस ने पाश्चात्य जगत में स्थापित किया। बारहवीं शती में भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के तीनों नियम खोज निकाले थे। इसके साथ भारत में की गई अन्य वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी खोजों तथा आविष्कारों से यह प्रमाणित होता है कि यह आध्यात्मिक भारत बारहवीं शती तक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक समृद्धि में विश्व में सर्वाग्रणी था। गति के नियमों को सत्रहवीं शती में स्वतन्त्र रूप से न्यूटन ने वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया। और देखा जाए तो इन वैज्ञानिक तथ्यों की स्वीकृति के बाद ही पाश्चात्य संसार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का ‘बिग बैंग’ (महान विस्फोट) हुआ।
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29-05-2011, 10:39 AM | #4 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
दूरदर्शी
सत्रहवीं शती के दूरदर्शी के आविष्कार तक, पाश्चात्य जगत समस्त ब्रह्माण्ड को सौरमण्डल ही मानता था, 1609 में गालिलेओ ने छोटे से दूरदर्शी की सहायता से बृहस्पति ग्रह के चार चान्द देखे तो मानो दूरदर्शी में ही चार चान्द लग गये। और तब से विशाल से विशालतर दूरदर्शी बने जिनसे हम अब लगभग दस अरब प्रकाश–वर्ष (95 लाख करोड़ अरब किमी)की दूरी तक के नक्षत्रों, मन्दाकिनियों तथा नीहारिकाओं को देख सकते हैं। फिर हजारों मीटरों तक के क्षेत्र में फैले रेडियो दूरदर्शी बनाए गये और अब तो भारतीय मूल के नोबैल पुरस्कृत खगोलज्ञ एस. चन्द्रशेखर के सम्मान में निर्मित उपग्रह स्थित ‘चन्द्र एक्स–किरण’ वेधशाला है जो पृथ्वी के वायुमण्डल के पार से ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खोल रही है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों तथा शून्य या अल्पतम द्रव्यमान वाले वाले न्यूiट्रनो कणों पर खोज हो रही है।
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29-05-2011, 10:40 AM | #5 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
मजे की बात है कि दूरदर्शी या अन्य उपकरण या वैज्ञानिक कुछ रहस्यों को खोलते हैं तो कुछ नवीन रहस्यों को उत्पन्न भी करते हैं। जब ब्रह्माण्ड में पिण्ड दिखे तो प्रश्न आया कि ये अतिविशाल जलते हुए पिण्डों का निर्माण किस तरह हुआ, मन्दाकिनियों, मन्दाकिनी–गुच्छो
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29-05-2011, 10:41 AM | #6 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
ब्रह्मांड उत्पत्ति का सिद्धांत
अरबों साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश। इसे अनाहत या अनहद (जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं) की ध्वनि कहते हैं जो आज भी सतत जारी है इसी ध्वनि को हिंदुओं ने ॐ के रूप में व्यक्त किया है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। 'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।'
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29-05-2011, 10:49 AM | #7 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
दोस्तों आपसे अनुरोध है की आप भी अपने अनमोल विचार और अपनी संग्रहित जानकारियां यहाँ मुझे और यहाँ हमारे सब मित्रों को देंकर हमारा ज्ञान बढ़ाये ताकि में भी उत्साह से आगे और भी अच्छी जानकारियां पोस्ट कर सकूँ.... धन्यवाद
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02-06-2011, 11:33 PM | #8 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
ऋग्वेद
ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा- यह तीन तत्व हैं। ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना' होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है। उपनिषद जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि नृत्यकार और नृत्य में कोई फर्क नहीं। जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है, इसीलिए हिंदुओं ने ईश्वर के होने की कल्पना अर्धनारीश्वर के रूप में की जो नटराज है।
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02-06-2011, 11:34 PM | #9 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
इसे इस तरह भी समझें 'पूर्व की तरफ वाली नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं और पश्चिम वाली पश्चिम की ओर बहती है। जिस तरह समुद्र से उत्पन्न सभी नदियाँ अमुक-अमुक हो जाती हैं किंतु समुद्र में ही मिलकर वे नदियाँ यह नहीं जानतीं कि 'मैं अमुक नदी हूँ' इसी प्रकार सब प्रजा भी सत् (ब्रह्म) से उत्पन्न होकर यह नहीं जानती कि हम सत् से आए हैं। वे यहाँ व्याघ्र, सिंह, भेड़िया, वराह, कीट, पतंगा व डाँस जो-जो होते हैं वैसा ही फिर हो जाते हैं। यही अणु रूप वाला आत्मा जगत है।-छांदोग्य
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02-06-2011, 11:36 PM | #10 |
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Re: ब्रह्माण्ड और एलियंस; कितना जानते हैं हम
महाआकाश व घटाकाश :
ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घटाकाश अर्थात मटके का आकाश। ब्रह्मांड से बद्ध होकर आत्मा सीमित हो जाती है और इससे मुक्त होना ही मोक्ष है।
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