31-07-2013, 11:42 PM | #1 |
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चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!!
यारो की खिदमत मेरा आख़िरी सलाम हो.!! बहुत कोशिशें की दुनिया को समझने की.! हार गया हूँ यारो जीत तुम्हारे नाम हो.!! बहुत कुछ बचा है लिखने को मुझमे बाकी.! हो सकता कुछ मे सुनने का अरमान हो.!! जब तक है जान जिगर मे लिखता रहूँगा.! ना जाने कौन सा मेरा आख़िरी कलाम हो.!! खुश रहना प्यार बाँटना और हंसते रहना.! चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!! Ho sakta hai ye mera Aakhiri Paigam ho.! Yaaro ki Khidmat mera Aakhiri Salam ho.!! Bahut koshishein ki Duniya ko samjhne ki.! Haar gaya hun Yaaro Jeet tumahare naam ho.!! Bahut kuch bachaa hai likhne ko mujh me baaki.! Ho sakta kuch me mujhe ab bhi sunne ka Armaan ho.!! Jab tak hai Jaan Jigar me likhta rahunga.! Na jaane koun sa mera Aakhiri Kalaam ho.!! Khush rahna Pyaar baantna aur Hanste rahna.! Chalta hun is Bzam se Aakhiri Salaam ho.!! |
01-08-2013, 10:55 AM | #2 | |
Super Moderator
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Re: चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!!
Quote:
बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र सागर जी, अपनी इस ग़ज़ल को फोरम के सदस्यों के साथ शेयर करने के लिए. हो सकता है ये मेरा आख़िरी पैगाम हो.! यारो की खिदमत मेरा आख़िरी सलाम हो.!! जब तक है जान जिगर मे लिखता रहूँगा.! ना जाने कौन सा मेरा आख़िरी कलाम हो.!! खुश रहना प्यार बाँटना और हंसते रहना.! चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!! उपरोक्त अश'आर में आपने आख़िरी (या तमाम) पर बहुत जोर दिया है. हम आपसे ऐसी हज़ारों रचनाएं सुनना चाहते हैं, जिसे मैं आप ही के एक शे'र को दोहराते हए कहना चाहता हूँ: बहुत कुछ बचा है लिखने को मुझमे बाकी.! हो सकता कुछ मे सुनने का अरमान हो.!! |
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01-08-2013, 01:19 PM | #3 |
Diligent Member
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Re: चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!!
लिखते रहिए रविन्दरजी।
कृपया हम लोगों को कभी आखरी सलाम न करना । |
01-08-2013, 03:57 PM | #4 |
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Re: चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!!
very nice
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01-08-2013, 08:18 PM | #5 |
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Re: चलता हूँ इस बज़म से आख़िरी सलाम हो.!!
प्रातः के सूर्य को नमन हम सभी करते
इसी आशा से कि इसमें ऊर्जा अपार है उगता हुआ सूरज यदि स्वयं यह कहे कि उसकी किरणों में ठन्डे समुद्र का ज्वार है कहो कैसे प्रकृति यह फूलेगी फलेगी तब ऊर्जा रहित ही तो यह नश्वर संसार है मंच छोटा विश्व है,वासी हैं सदस्य 'जय' आप जैसे सूर्य हमारी ऊर्जा का भण्डार हैं अतः कृपया हमें क्षरित न होने वाली ऊर्जा से परिपूर्ण करते रहें। रचना के लिए आभार बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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