04-04-2011, 07:02 AM | #11 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
अरे चन्दा !
तेरी निरमल कहिए चाँदनी, राजा की बेटी पानी नीकरी अरे कुँअटा! तेरे ऊँचे-नीचे घाट रे, जा ऊपर धोवै छोरा धोवती अरे छोरा! तू मारू बैंगन तोरि ला जौं लौ मैं धोऊँ तेरी धोवती अरे छोरी! तेरे गोबर लिसरे हाथ रे, दाग लगैगो मेरी धोवती अरे छोरा! मेरे मेंहदी रचि रहे हाथ रे, रंग चुयेगी तेरी धोवती अरे छोरा! तू मन को बड़ो मलूक रे, इत्ते बड़े पै क्वाँरो चौं (क्यों) रह्यौ (रहो) ? अरे छोरी! मेरे मरि गए माई बाप रे, भैया भरोसे क्वाँरे हम रहे अरे छोरी! तू मन की बड़ी मलूक री, इतनी बड़ी तौ क्वाँरी चौं रही? अरे छोरा! वर देखे देश-विदेश में, मेरी जोड़ी को वर ना मिल्यौ अरे छोरी! चल चल तू सोरों घाट री, ह्वाँ चलिके डारें दोनों भाँवरी अरे छोरा! वहाँ बहुत जुरैंगे लोग रे, मोहि तो आवै देखौ लाज री।
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04-04-2011, 07:04 AM | #12 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया,
अरे घूंघटा भीगे तो भिजन दे अरे अंखिया ले चल बचाई पिया, अरे नथ भीजे तो भीजन दे...अरे होंठवां ले चल बचाई पिया अरे चोलीया भीजे तो भीजन दे अरे जुबना ले चल बचाइ पिया. अरे लहंगा भीजे तो भीजन दे...अरे जंघिया ले चल बचाइ पिया
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04-04-2011, 07:07 AM | #13 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
आई सावन की बहार मोरे बारे बलमू
छाई घटा घनघोर बन में, बोलन लागे मोर। रिमझिम पनियां बरसै जोर मोरे प्यारे बलमू।। धानी चद्दर सिंआव, सारी सबज रंगाव। वामें गोटवा टकाव, मोरे बारे बलमू।। मैं तो जइहों कुंजधाम, सुनो कजरी ललाम। जहाँ झूले राधे-श्याम, मोरे बारे बलमू।। बलदेव क्यों उदास पुनि अइहौ तोरे पास। मानो मोरा विसवास, मोरे बारे बलमू।।
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04-04-2011, 07:11 AM | #14 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,
आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे । तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे, चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे। अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे, आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे। सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे, आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे। जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे, आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे। मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे, आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे। भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे, आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।
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04-04-2011, 07:18 AM | #15 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
बन्नी –गीत( माँ की सीख -हास –परिहस)
आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जै तेरा ससुरा मन्दी ऐ बोल्लै पत्थर की बण जाइयो मेरी लाड्डो आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरी सासु गाळी ऐ देगी ले मूसळ गदकाइयो मेरी लाड्डो आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरा जेठा मन्दी ऐ बोल्लै घूँघट मैं छिप जाइयो मेरी लाड्डो आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरी जिठाणी गाळी देगी ले सोट्टा गदकाइयो मेरी लाड्डो । आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरा देवरा मन्दी ऐ बोल्लै हाँसी मैं टळ जाइयो मेरी लाड्डो आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरी नणदा गाळी ऐ देगी चुटिया पकड़ घुमाइयो मेरी लाड्डो आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो जो तेरा राजा मन्दी ऐ बोल्लै कुछ न पलट कै कहियो मेरी लाड्डो । आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो
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04-04-2011, 07:23 AM | #16 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
आल्हा
लागल कचहरी जब आल्हा के बँगला बड़े-बड़े बबुआन लागल कचहरी उजैनन के बिसैनन के दरबार नौ सौ नागा नागपूर के नगफेनी बाँध तरवार बैठल काकन डिल्ली के लोहतमियाँ तीन हजार मढ़वर तिरौता करमवार है जिन्ह के बैठल कुम्ह चण्डाल झड़ो उझनिया गुजहनिया है बाबू बैठल गदहियावाल नाच करावे बँगला में मुरलिधर बेन बजाव मुरमुर मुरमुर बाजे सरंगी जिन्ह के रुन रुन बाजे सितार तबला चटके रस बेनन के मुखचंद सितारा लाग नाचे पतुरिया सिंहल दीप के लौंड़ा नाचे गोआलियरवाल तोफा नाचे बँगला के बँगला होय परी के नाच सात मन का कुण्डी दस मन का घुटना लाग घैला अठारह सबजी बन गैल नौ नौ गोली अफीम चौदह बत्ती जहरन के आल्हा बत्ती चबावत बाय पुतली फिर गैल आँखन के अँखिया भैल रकत के धार चेहरा चमके रजवाड़ा के लड़वैया शेर जवान अम्बर बेटा है जासर के अपना कटले बीर कटाय जिन्ह के चलले धरती हीले डपटै गाछ झुराय ओहि समन्तर रुदल पहुँचल बँगला में पहुँचल जाय देखल सूरत रुदल के आल्हा मन में करे गुनान देहिया देखें तोर धूमिल मुहवाँ देखों उदास कौन सकेला तोर पड़ गैल बाबू कौन ऐसन गाढ़ भेद बताब तूँ जियरा के कैसे बूझे प्रान हमार हाथ जोड़ के रुदल बोलल भैया सुन धरम के बात पड़ि सकेला है देहन पर बड़का भाइ बात मनाव पूरब मारलों पुर पाटन में जे दिन सात खण्ड नेपाल पच्छिम मारलों बदम जहौर दक्खिन बिरिन पहाड़ चार मुलुकवा खोजि ऐलों कतहीं नव जोड़ी मिले बार कुआँर कनियाँ जामल नैना गढ़ में राजा इन्दरमन के दरबार बेटी सयानी सम देवा के बर माँगल बाघ जुझर बड़ि लालसा है जियरा में जो भैया के करौं बियाह करों बिअहवा सोनवा से एतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा मन मन करे गुनान जोड़ गदोइ अरजी होय गैल बबुआ रुदल कहना मान हमार जन जा रुदल नैनागढ़ में बबुआ किल्ला तूरे मान के नाहिं बरिया राजा नैना गढ़ के लोहन में बड़ चण्डाल बावन दुलहा के बँधले बा साढ़े सात लाख बरियात समधी बाँधल जब गारत में अगुआ बेड़ी पहिरलन जाय भाँट बजनियाँ कुल्हि चहला भैल मँड़वा के बीच मँझार एकहा ढेकहो ढेलफुरवा मुटघिंचवा तीन हजार मारल जेबव् नैनागढ़ में रुदल कहना मान हमार केऊ बीन नव्बा जग दुनिया में जे सोनवा से करे बियाह जन जा रुदल नैना गढ़ में बबुआ कहना मान हमार प्रतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बर के भैल अँगार हाथ जोड़ के रुदल बोलल भेया सुनी बात हमार कादर भैया तूँ कदरैलव् तोहरो हरि गैल ग्यान तोहार धिरिक तोहरा जिनगी के जग में डूब गैल तरवार जेहि दिन जाइब नैना गढ़ में अम्बा जोर चली तरवार टूबर देहिया तूँ मत देखव् झिलमिल गात हमार जेहि दिन जाइब नैना गढ़ में दिन रात चली तरवार एतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा बड़ मोहित होय जाय हाथ जोड़ के आल्हा बोलल बाबू सुनव् रुदल बबुआन केत्त मनौलों बघ रुदल के बाबू कहा नव् मनलव् मोर लरिका रहल ता बर जोरी माने छेला कहा नव् माने मोर जे मन माने बघ रुदल से मन मानल करव् बनाय एतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बड़ मंड्गन होय जाय दे धिरकारीरुदल बोलल भैया सुनीं गरीब नेवाज डूब ना मूइलव् तूँ बड़ भाइ तोहरा जीअल के धिरकार बाइ जनमतव् तूँ चतरा घर बबुआ नित उठ कुटतव् चाम जात हमार रजपूतन के जल में जीबन है दिन चार चार दिन के जिनगानी फिर अँधारी रात दैब रुसिहें जिब लिहें आगे का करिहें भगवान जे किछु लिखज नरायन बिध के लिखल मेंट नाहिं जाय
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04-04-2011, 07:28 AM | #17 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
एके कोखी[1] बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया दू रंग नीतिया[2] काहे कईल[3] हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के जनम में त सोहर गवईल अरे सोहर गवईल[4] हमार बेरिया, काहे मातम मनईल हमार बेरिया[5] दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के खेलाबेला[6] त मोटर मंगईल अरे मोटर मंगईल हमार बेरिया, काहे सुपली मऊनीया[7] हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के पढ़ाबेला[8] स्कूलिया पठईल अरे स्कूलिया पठईल[9] हमार बेरिया, काहे चूल्हा फूँकवईल हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया बेटा के बिआह में त पगड़ी पहिरल[10] अरे पगड़ी पहिरल हमार बेरिया, काहे पगड़ी उतारल[11] हमार बेरिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया शब्दार्थ: 1. ↑ कोख से पैदा
2. ↑ दुरंगी नीति 3. ↑ क्यों किया 4. ↑ सोहर गीत गवाए 5. ↑ हमारी बारी में 6. ↑ खेलने के लिए 7. ↑ सूप और डलिया 8. ↑ पढ़ाने के लिए 9. ↑ स्कूल भेजा 10. ↑ पगड़ी पहनी 11. ↑ पगड़ी उतारी
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04-04-2011, 07:31 AM | #18 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
काँकर ऊपर काँकरी, मेरी मैया रे जाए
मैं थारै आई पावहणी जो मेरा रखोगे मान रे, मेरी मैया रे जाए -मान राखैगी तेरी मायड़ी जिसकी तू लाडो धीयड़ रे -मायों के राखै न रहै बीरणों की लम्बी पंसाल रे, मेरी मैया रे जाए -जिब हम घर के नित छोटे जिब क्यूं नी करा था बुहार , मेरी मैया री जाए -इब तुम घर के लखपति इब हमनै कर्या बुहार रे राम, मेरी मैया रे जा फलसे का गाड्डा बेच कै, मेरी मैया रे जाए तौं मेरे मँढ़ा चढ़ आइ रे फलसे का गाड्डा ना बिकै, मेरी मैया री जाइ फलसे की सोभा जाइ रे राम -खूँटे की भुरिया बेच कै मेरी मैया रे जाए तौं मेरे मँढा चढ़ आवै -खूँटे की भुरिया ना बिकै खूंटे की सोभा जाइ रे, मेरी मैया री जाए -भावज का हँसला बेचकै तौं मेरे मँढा चढ़ आवै तौं मेरे मँढा चढ़ आवै -भावज का हँसला ना बिकै हँसला तो बहू के बाप का, मेरी मैया री जाए
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07-04-2011, 01:22 PM | #19 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
काला पति
काले री बालम मेरे काले, काले री बालम मेरे काले । जेठ गए दिल्ली ससुर बम्बई, काला गया री कलकता नगरिया , काले री बालम मेरे काले । जेठ लाए लड्डू ,ससुर लाए बर्फ़ी, काला लाया री काली गाजर का हलुआ, काले री बालम मेरे काले । जेठ लाए साड़ी , ससुर लाए अँगिया , काला लाया री ,काली साटन का लहँगा , काले री बालम मेरे काले । जेठ लाए गुड्डा ,ससुर लाए गुड़िया काला लाया री ,काली कुत्ती का पिल्ला , काले री बालम मेरे काले ।
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09-04-2011, 10:00 AM | #20 |
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Re: प्रादेशिक लोकगीत
कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ
बलम तोहे ऐसा मारूँगी ऐसा मारूँगी बलम तोहे ऐसा मारूँगी चकला मारूँ, बेलन मारूँ, फुँकनी मारूँगी जो बालम तेरी मैया बचावै वाकी चुटिया उखाड़ूँगी थाली मारूँ, कटोरी मारूँ, चम्मच मारूँगी जो बालम तेरी बहना बचावै वाकी चुनरी फाड़ूंगी लाठी मारूँ डंडा मारूँ थप्पड़ मारूँगी जो बालम तेरो भैया बचावै वाकी मूँछे उखाड़ूँगी
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