30-10-2010, 03:21 PM | #1 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
लघु कथाएँ..........
|
30-10-2010, 03:22 PM | #2 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
दिवाली -- रोहित कुमार ‘हैप्पी’
पखवाड़े बाद दिवाली थी, सारा शहर दिवाली के स्वागत में रोशनी से झिलमिला रहा था। कहीं चीनी मिट्*टी के बर्तन बिक रहे थे तो कहीं मिठाई की दुकानों से आने वाली मन-भावन सुगंध लालायित कर रही थी। उसका दिल दुकानों में घुसने को कर रहा था और मस्तिष्क तंग जेब के यथार्थ का बोध करवा रहा था। ‘दिल की छोड़ दिमाग की सुन’ उसको किसी बजुर्ग का दिया मँत्र अच्छी तरह याद था। दिवाली मनाने को जो-जो जरूरी सामान चाहिए, उसे याद था। ‘रंग-बिरंगे काग़ज की लैसें, एक लक्ष्मी की तस्वीर, थोड़ी-सी मिठाई और पूजा का सामान!’ किसी दुकान में दाखिल होने से पहले उसने जेब में हाथ डाल कर पचास के नोट को टटोल कर निश्चित कर लिया था कि उसकी जेब में नोट है। फिर एक के बाद एक सामान खरीदता रहा, सब कुछ बजट में हो गया था। संतालिस रूपये में सब कुछ ले लिया था उसने। वो प्रसन्नचित घर की ओर चल दिया पर अचानक रास्ते में बैठे एक बूढ़े कुम्हार को देख उसे याद आया कि वो ‘दीये’ खरीदने तो भूल ही गया था। ‘दीये क्या भाव हैं बाबा?’ ‘तीन रूपए के छह।’ उसने जेब में हाथ डाल सिक्कों को टटोला।’ ‘कुछ पैसे दे दो बाबू जी, सुबह से कुछ नही खाया......’ एक बच्चे ने हाथ फैलाते हुए अपनी नीरस आँखे उसपर जमा दी। सिक्के जेब से हाथ में आ चुके थे। ‘कितने दीये दूं, साब?’ ‘...मैं फिर आऊँगा’ कहते हुए उसने दोनो सिक्के बच्चे की हथेली पर धर दिए और आगे बढ़ गया। जब दिल सच कहता है तो वो दिमाग की कतई नहीं सुनता। ‘दिल की कब सुननी चाहिए’ उसे सँस्कारों से मिला था। बच्चा प्रसन्नता से खिलखिला उठा, उसे लगा जैसे एक साथ हजारों दीये जगमगा उठे हों। फिर कोई स्वरचित गीत गुनगुनाते हुए वो अपने घर की राह हो लिया। वो एक लेखक था! अगले पखवाड़े आने वाली दिवाली दुनिया के लिए थी, लोग घी के दीये जलाएंगे। लेखक ने बच्चे को मुस्कान देकर पखवाड़े पहले आज ही दिवाली का आनन्द महसूस कर लिया था। |
30-10-2010, 03:25 PM | #3 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
उलझन – रोहित कुमार ‘हैप्पी’
‘ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी। ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ एक भारतीय संस्था में एक भारतीय बच्चे को विदेश में अँग्रेजी पढ़ाई जा रही थी। अपने देश में विदेशी ढंग से और विदेश में देसी ढंग से। अपने देश में, ‘ए फॉर अर्जुन, बी फॉर बलराम’ क्यों नहीं होता? मैं उलझन में पड़ गया। मैं सोचने लगा अगर अँग्रेजी हमारी जरूरत ही है तो ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ ही क्यों न पढ़ा जाए? |
30-10-2010, 03:41 PM | #4 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
न देने वाला मन
एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है। पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया। उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी। |
30-10-2010, 03:43 PM | #5 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
उदार दृष्टि
पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था। एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी। लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था। जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे। पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ मनुष्य हैं।” |
30-10-2010, 03:45 PM | #6 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
दुख का कारण
एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी। एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट सुनी। देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की कोशिश कर रहा था, परन्तु चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी। नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं। |
30-10-2010, 04:06 PM | #8 |
Exclusive Member
|
बहुत अच्छे मित्र
आपसे हमेँ बहुत उम्मीद हैँ |
30-10-2010, 04:44 PM | #9 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
|
30-10-2010, 07:23 PM | #10 |
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
समाधान
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ। एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा। बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो। फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो। एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ? पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना। |
Bookmarks |
Tags |
hindi, hindi stories, nice stories, small stories, stories |
|
|