22-03-2013, 11:56 PM | #1 |
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शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा. |
23-03-2013, 12:04 AM | #2 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
Last edited by Dark Saint Alaick; 23-03-2013 at 04:30 PM. |
23-03-2013, 12:05 AM | #3 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
हम आज अपने अमर शहीदों के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. इस अवसर पर हम शहीदे आज़म भगत सिंह द्वारा अपनी फांसी से कुछ अरसा पहले लिखे गए कुछ पत्रों को उद्धृत करना चाहते हैं जिसमे उनके अपने उद्देश्यों के प्रति समर्पण का भाव दिखाई देता है और उनकी परिपक्व सोच के दर्शन होते हैं. सबसे पहले हम सेन्ट्रल जेल, लाहौर से 16 सितम्बर 1930 को अपने छोटे भाई कुलबीर सिंह को लिखे पत्र को लेते हैं जिसमें आने वाले दिनों का स्पष्ट आभास होता है.
सेन्ट्रल जेल, लाहौर 16 सितम्बर 1930 प्यारे भाई कुलबीर जी, सत श्री अकालi तुम्हें मालूम ही होगा कि बड़े अधिकारियों के आदेशानुसार मुझ से मुलाकातों पर पाबंदी लगा दी गई है. इन परिस्थितियों में फिलहाल मुलाक़ात नहीं हो सकेगी और मेरा ख़याल है कि शीघ्र ही फैंसला सुना दिया जाएगा. इसके कुछ दिनों बाद दूसरी जेल में बैज दिया जाएगा. इस लिए किसी दिन जेल में आकर मेरी किताबें कागज़ात आदि ले जाना. मैं बर्तन, कपड़े, किताबें और अन्य कागज़ात सुपरिन्टेन्डेन्ट के दफ्तर में भेज दूंगा.आ कर ले जाना. पता नहीं क्यों, मेरे मन में बार बार यह विचार आ रहा है कि इसी सप्ताह या ज्यादा से ज्यादा इसी माः में फैंसला और चालन हो जाएगा. इन स्थितियों में तो इसी अन्य जेल में ही मुलाक़ात होगी. यहाँ तो उम्मीद नहीं. वकील को भेज सको तो भेजना. मैं प्रिवी कौंसिल के सिलसिले में एक जरूरी मशवरा करना चाहता हूँ. माता जी को दिलासा देना, घबराएं नहीं. तुम्हारा भाई,
भगत सिंह Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 11:16 AM. |
23-03-2013, 12:09 AM | #4 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
भगत सिंह और उनके साथियों की ग़ैर हाजिरी में लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया जिसमे वे कुछ ही दिनों के लिए अदालत में पेश किये गए थे.
ब्रिटिश सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया देखते हुए उन्होंने अपनी तरफ से कोई सफ़ाई पेश नहीं की. इससे भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह को लगा कि सांडर्स हत्याकांड केस में यदि भगत सिंह को सफ़ाई पेश करने का मौका मिले तो वह फांसी के फंदे से बच सकता है. सरदार किशन सिंह भी एक स्वतंत्रता सैनानी थे. राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के जुर्म में कई बार जेल भी जा चुके थे. लेकिन वे एक पिता भी थे. अतः, उन्होंने ट्राईब्यूनल के समक्ष आवेदन दे कर बचाव पेश करने के निमित्त अवसर की मांग की. इसकी जानकारी मिलने पर भगत सिंह ने पिता को पत्र लिख कर उनके इस कदम पर ऐतराज़ किया. पत्र नीचे दिया जा रहा है. Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 11:19 AM. |
23-03-2013, 12:11 AM | #5 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
4 अक्टूबर 1930 पूज्य पिता जी, मुझे यह जान कर हैरानी हुयी कि आपने मेरे बचाव पक्ष के लिए विशेष ट्राईब्यूनल को एक अर्जी भेजी है.यह खबर इतनी दुखदायी थी कि मैं उसे खामोशी से बर्दाश्त न कर सका. इस समाचार ने मेरे अन्दर कि सारी शक्ति समाप्त कर उथल-पुथल मचा दी है. समझ में नहीं आता कि आप इस विषय पर कैसे ऐसा प्रार्थना पत्र दे सकते हैं? आपका पुत्र होने के नाते मैं आपकी पैत्रिक भावनाओं और इच्छाओं का पूरा सम्मान करता हूँ, लेकिन साथ ही समझता हूँ कि मुझसे परामर्श किये बगैर आपको मेरे बारे में प्रार्थनापत्र देने का कोई अधिकार न था. आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आपसे सर्वथा भिन्न हैं. मैं आपकी सहमति या असहमति का विचार किये बिना सदा स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करता रहा हूँ. मुझे यकीन है कि आपको यह बात याद होगी कि आप शुरू से ही मुझसे यह बात मनवाने की कोशिश करते रहे हैं कि मैं अपना मुकद्दमा संजीदगी से लडूं और अपना विचार ठीक से प्रस्तुत करूं लेकिन आपको यह भी मालूम है कि मैं इसका सदा विरोध करता रहा हूँ. मैंने कभी भी अपने बचाव की इच्छा प्रकट नहीं की और न ही मैंने कभी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार ही किया है. Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 11:22 AM. |
23-03-2013, 12:13 AM | #6 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
आप जानते है कि हम एक विधिवत नीति के अनुसार मुकदमा लड़ रहे हैं. मेरा हर कदम उस नीति, मेरे सिद्धांतों और हमारे कार्यक्रम के अनुरूप होना चाहिए. आज परिस्थिति सर्वथा भिन्न है. परन्तु यदि परिस्थिति इससे भिन्न कुछ और होती तो भी मैं अंतिम व्यक्ति होता जो अपना बचाव प्रस्तुत करता. इस सारे मुक़दमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह यह कि यह जानते हुए भी कि हमारे विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए गए हैं, हम उनके प्रति पूर्णतः अवहेलना का रूख बनाए रखें. मेरा यह दृष्टिकोण रहा है कि समस्त राजनैतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी दशा में अदालत की अवहेलना और उपेक्षा दिखानी चाहिए और जो कठोर से कठोर दंड दिया जाए उसे वे हँसते हँसते बर्दाश्त करें. इस पूरे मुकदमे के बीच हमारी नीति इसी सिद्धांत पर आधारित रही है. हम ऐसा करने में सफल हुए हैं या नहीं, यह निर्णय करना मेरा कार्य नहीं है. हम स्वार्थपरता को त्याग कर अपना काम करते रहे हैं.
वॅायसराय ने लाहोर षडयंत्र केस अध्यादेश जारी करते हुए साथ में जो बयान जारी किया था उसमे उन्होंने कहा था कि इस षडयंत्र के अपराधी शान्ति, व्यवस्था और क़ानून को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं. इससे जो वातावरण पैदा हुआ है उसने हमें अवसर दिया कि हम जनता के सामने यह प्रस्तुत करें कि वह देखे कि शान्ति, व्यवस्था और क़ानून समाप्त करने का प्रयास हम कर रहे हैं या हमारे विरोधी. इस बात पर मतभेद हो सकते हैं. शायद आप भी उनमे से एक हों जो इस पर मतभेद रखते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मुझसे सलाह लिए बगैर मेरी ओर से ऐसे कदम उठायें. मेरी ज़िंदगी इतनी कीमती नहीं जितना आप समझते हैं. कम से कम मेरे लिए जीवन का इतना मूल्य नहीं कि सिद्धांतों की बलि दे कर इसे बचाया जाए. मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे उतने ही संगीन हैं जितना मेरा. हमने एक सयुक्त योजना बनायी है और उस पर हम अंतिम क्षण तक डटे रहेंगे. हमें इसकी कोई परवाह नहीं कि हमें व्यक्तिगत रूप से इस बात के लिए कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी. Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 11:26 AM. |
23-03-2013, 12:15 AM | #7 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
पिता जी, मैं बहुत दुखी हूँ. मुझे भय है कि आप पर दोष लगाते हुए या इससे भी बढ़ कर आपके इस कार्य की निंदा करते हुए कहीं में सभ्यता की सीमा न लाघ जाऊं और मेरे शब्द ज्यादा कठोर न हो जाएँ. फिर भी मैं स्पष्ट शब्दों में इतना जरूर कहूँगा कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति मुझसे ऐसा बर्ताव करता तो मैं इसे देशद्रोह से कम नहीं मानता पर आपके लिए मैं यह नहीं कह सकता.
बस इतना ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी थी, निम्नकोटि की मानसिक दुर्बलता. यह ऐसा समय था जब हम सबकी परीक्षा हो रही थी. पिता जी मैं कहना चाहता हूँ कि आप उस परीक्षा में असफल रहे हैं.मैं जानता हूँ कि आपने सारी ज़िंदगी भारत की आजादी के लिए लगा दी लेकिन इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आपने ऐसी कंजोरी क्यों दिखाई, मैं समझ नहीं पाया. अंत में मैं आपको और अपने दूसरे दोस्तों तथा मेरे मुकदमें में सहानुभूति रखने वाले सभी व्यक्तियों को बता देना चाहता हूँ कि मैं आपके इस कार्य को अच्छी दृष्टि से नहीं देखता. मैं आज भी अदालत में अपना कोई बचाव पेश करने के पक्ष में नहीं हूँ. अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकरण आदि के लिए प्रस्तुत किये गए आवेदन को मंजूर कर लेती तो भी मैं कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं करता. भूख हड़ताल के दिनों में मैंने ट्राईब्यूनल को जो आवेदनपत्र दिया था और उन दिनों जो साक्षात्कार दिया था उनका गलत अर्थ लगाया गया और समाचार पत्रों में यह प्रकाशित कर दिया गया कि मैं स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ, हालांकि मैं सदा स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के विरुद्ध रहा हूँ आज भी मेरी यही मान्यता है जो उस समय थी. बोर्स्टल जेल में बंदी मेरे साथी इस बात को मेरी ओर से पार्टी के साथ विश्वासघात और विद्रोह समझते होंगे. मुझे उनके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर भी नहीं मिल सकेगा. मैं चाहता हू कि इस सम्बन्ध में जो कठिनाइयाँ उत्पन्न हो गई हैं, उनके विषय में लोगों को वास्तविकता का ज्ञान हो जाए. अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप शीघ्र ही यह पत्र प्रकाशित करा दें. आपका ताबेदार, भगत सिंह |
23-03-2013, 12:18 AM | #8 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
17 अक्टूबर 1930 को मुक़दमे का फैंसला सुना दिया गया. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी.
इस फैंसले के आने के बाद भगत सिंह ने मुल्तान जेल में बंदी अपने (असेम्बली बम काण्ड के सह-अभियुक्त) साथी बटुकेश्वर दत्त को जो पत्र लिखा था उससे इस महान क्रांतिकारी के अद्भुत साहस के साथ ही आदर्शों में उनकी अटूट आस्था भी प्रकट होती है. पत्र इस प्रकार है:- सेन्ट्रल जेल, लाहौर अक्टूबर, 1930 प्रिय भाई, मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है. इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत से अपराधी हैं. ये लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जायें, परन्तु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूँ जो बड़ी बेताबी से उस दिन का इंतज़ार कर रहा है जब मुझे अपने अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर झूलने का सौभाग्य प्राप्त होगा. मैं इस ख़ुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़ कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदशों के लिए कितनी वीरता से बलिदान कर सकते हैं. मुझे फांसी का दंड मिला है, किन्तु तुम्हें आजीवन कारावास का दंड मिला है. तुम जीवित रहोगे और तुम्हें जीवित रह कर यह दिखाना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रह कर मुसीबतों का मुकाबला भी कर सकते हैं. मृत्यु सांसारिक कठिनाईयों से मुक्ति का साधन नहीं बननी चाहिए बल्कि जो क्रांतिकारी संयोगवश फांसी के फंदे से बच गए हैं, उन्हें जीवित रह कर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे न केवल अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं वरन जेल की अंधकारपूर्ण छोटी कोठरियों में घुल घुल कर निकृष्टतम दर्जे के अत्याचारों को भी सहन कर सकते हैं. तुम्हारा,
भगत सिंह Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 11:31 AM. |
23-03-2013, 12:53 AM | #9 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
कभी वो दिन भी आयेगा कि जब आज़ाद हम होंगे
ये अपनी ही जमीं होगी, ये अपना आसमां होगा शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
23-03-2013, 03:19 PM | #10 |
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Re: शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
अलैक जी, आपका आभारी हूँ कि आप ने शहीदेआज़म भगत सिंह और उनके शहीद साथियों को समर्पित इस सूत्र को विजिट किया प्रशंसा की. इसके अतिरिक्त, भगत सिंह और उनके साथियों की तस्वीरों को उचित रूप से प्रदर्शित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.
Last edited by rajnish manga; 23-03-2013 at 09:50 PM. |
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