05-05-2013, 10:47 PM | #1 |
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हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
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05-05-2013, 10:50 PM | #2 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
1. फ़िल्म रोटी (1941)
सड़क पर एक भूखा इंसान भीख माँग रहा है लेकिन उसकी कोई मदद नहीं करता नायक- रोटी माँगने से नहीं मिले तो छीनकर ले लो....मार कर ले लो.
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05-05-2013, 10:50 PM | #3 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
2. रोटी (1941)
एक मुसलमान (शेख मुख़्तार) रेलवे स्टेशन पर खड़ा है और एक व्यक्ति चाय बेच रहा है- हिंदू चाय एक आना... शेख मुख़्तार चाय पीता है. उधर से दूसरा आदमी- मुस्लिम चाय एक आना करके चाय बेचता है. शेख मुख़्तार उससे भी चाय ख़रीदता है पर उसकी गर्दन पकड़ लेता है. शेख मुख़्तार- एक ही चाय दो नाम से क्यों बेच रहे हो ?
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05-05-2013, 10:50 PM | #4 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
3.सिकंदर (1942)
जहाँ पोरस की सेना सिकंदर से हार जाती है. सिकंदर ( पृथ्वीराज कपूर)- तुम्हारे साथ क्या सुलूक किया जाए? पोरस ( सोहराब मोदी) – जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है.
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05-05-2013, 10:55 PM | #5 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
4. दहेज (1949)
लालची ससुराल वाले हीरोइन से दहेज की माँग करते रहते हैं पिता (पृथ्वीराज कपूर)- देख बेटी मैं सारा सामान लाया हूँ. तू कागज़ से मिलाकर देख हर एक चीज़ लाया हूँ पुत्री- पिताजी आप एक चीज़ लाना भूल गए. पिता-क्या पुत्री- कफन (और वह मर जाती है क्योंकि लोभी ससुराल की न रुकने वाली माँगों के कारण वो ज़हर खा चुकी थी)
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05-05-2013, 10:55 PM | #6 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
5. आवारा (1951)
नायक पर मुकदमा चल रहा है. नायक- जज साहब, मै जन्म से अपराधी नहीं हूं. मेरी माँ चाहती थी कि मैं पढ़ लिखकर वकील बनूँ, जज बनूँ परंतु हमारी बस्ती से एक गंदा नाला गुज़रता है जिसमें अपराध के कीड़े बहते हैं. मेरी फिक्र छोड़िए, मुझे सज़ा दीजिए परंतु इन मासूम बच्चों को बचा लीजिए ( अदालत की ऊपरी गैलरी में बच्चे भी बैठे हैं)
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05-05-2013, 11:02 PM | #7 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
6. आवारा (1951)
नायक राजकपूर आवारा हैं. नायिका के संरक्षक उसे पैसे देकर नायिका के जीवन से दूर जाने को कहते हैं. दर्शक जानते हैं कि फिल्म में वे पिता-पुत्र हैं. नायक- मैं अपने आपको गिरा हुआ, नीच और कमीना समझता था परंतु आप तो मेरे भी बाप निकले.
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05-05-2013, 11:03 PM | #8 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
7. आवारा (1951)
नायक बचपन में ही अपनी बीमार और भूखी माँ के लिए रोटी चुराते हुए पकड़ा गया है. जेल में नायक को रोटी दी गई है. राजकपूर- यह कमबख़्त रोटी बाहर मिल जाती तो मैं बार-बार भीतर ( जेल) क्यों आता. (इसी संवाद से प्रेरित मनमोहन देसाई ने राजेश खन्ना के साथ रोटी फ़िल्म बनाई)
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05-05-2013, 11:03 PM | #9 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
8. आवारा (1951)
जज रघुनाथ के संरक्षण में पली नरगिस भी वकील है. वो आवारा राजू से प्यार करती है जिस पर क़त्ल का आरोप है नरगिस- मेरा दिल कहता है कि राजू बेगुनाह है जज- दिल की बात अदालत नहीं मानती नरगिस- मेरे दिल की अदालत पर क़ानून नहीं चलता क्लामेक्स में नायक सज़ा सुनने के बाद राजू- जज रघुनाथ मेरा असली मुकदमा तो आपके दिल की अदालत में चल रहा है. मुझे फैसले का इंतज़ार है.
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05-05-2013, 11:03 PM | #10 |
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Re: हिंदी फिल्मों के 100 यादगार डायलॉग
9. हमलोग (1952)
ग़रीब लोगों की बस्ती है और थोड़े से तेल वाला दिया जल रहा है. बलराज साहनी का साथी- जिस दिए में तेल कम है वो कब तक चलेगा. बलराज साहनी- जब तेल ख़त्म होगा तो सुबह हो जाएगी
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