My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 05-02-2012, 10:36 PM   #31
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 22 )

गुलशन अपने घर में बैठा पायल के जीवन की गुत्थी सुलझाने की जुगत सोच रहा था मगर कोई भी सिरा हाथ न आने से उसका दिमाग उलझ गया था . बातचीत से हल होने योग्य कोई उपाय ही नहीं सूझ रहा था . चंचल से बात करने के बाद उसे उसकी बातों में भी वज़न लग रहा था . उसकी शंकायें अपनी जगह जायज़ थीं . वह सोच रहा था कि यदि चंचल की शंकाओं को सही ठहराते हुए उन्हें स्वीकार कर वह इस प्रकरण को यहीं विराम दे - दे तो निश्चित ही पायल की बेबस ज़िन्दगी चिंदी - चिंदी बिखर जायेगी . तब फिर वह क्या करे ! इसी उधेड़ - बुन में अन्य संभव विकल्पों पर विचार करने लगा . अचानक कोई विचार उसके मस्तिष्क में कौंधा , जिससे उसकी गर्दन एक विशेष ढंग से यूं तन गयी , मानो उसने कोई दृढ़ निश्चय कर लिया हो .
और तभी !
गुलशन - चंचल की वार्ता का परिणाम जानने की उत्सुकता से पायल वहां आ पहुंची .
उसका पक्के इरादों वाला तना हुआ चेहरा देखते ही , अपनी बात भूलकर , उसने पूछा -- " क्या सोच रहे हो गुलशन ? "
" सोच रहा हूँ , मुझे सेठ से वो तस्वीरें प्राप्त करनी ही होंगी ."
" अरे नहीं . ऐसा दुस्साहस भी मत करना . "
" वह बाईं हथेली पर अपना दायाँ मुक्का उत्तेजना वश मार कर बोला -- " पायल ! तुम निश्चिन्त रहो . देखना ! मैं उसके शैतानी जाल के ताने - बाने को तोड़कर फेंक दूंगा . "
" न - - -ना ! " उसने टोका -- " ऐसा मत सोचो . जोर जबरदस्ती से काम लेने पर उसके खतरनाक इरादे और भी खुंखार हो उठेंगे . और फिर - - - काम भी तो आसान नहीं है . अजगर के पेट में घुसकर अंतड़ियाँ निकालने जैसा काम है और इसमें दिलेरी और ताकत की जरूरत है . "
" अभी शायद तुम्हें प्यार की ताकत का अंदाजा नहीं पायल . "
" मगर - - - . "
" तुम चिन्ता मत करो . शठ के शठ - सा व्यवहार ही उचित होता है . मैं जानता हूँ कि शैतानों के पैरों के नीचे की ज़मीन बहुत कमजोर होती है , इसीलिए अगर कोई हिम्मत से मुकाबला करे तो उनके पाँव बहुत जल्दी उखड़ जाते हैं . "
" लेकिन फोटो मिल जाने से क्या समस्या पूरी तरह हल हो जायेगी ? क्या कहा चंचल ने ? कुछ उम्मीद है क्या ? "
" कहा तो कुछ नहीं . कोई उम्मीद भी नहीं . फिर भी किसी समस्या के समाधान हेतु सर्वोत्तम प्रयास करना मनुष्य का धर्म है . फल ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिये . क्या पता कब ईश्वर तुम्हारे सितारे रौशन करके सामने वाले की मति फेर दे . वैसे भी यदि मैं फोटो पाने में सफल रहा तो समस्या आंशिक रूप से आसान तो हो ही जायेगी . और इस सूरत में पुनः मैं चंचल को शादी के लिए राजी करने की भरसक कोशिश करूंगा . "
" और यदि फिर भी असफल रहे तो ? "
" तो " वह जोश में आकर बोला -- " तब मैं तुम्हारे जीवन के मटमैले रंगों को खुद धोकर उन्हें अपने बूते सतरंगी बना दूंगा . यानि ऐसी सूरत में मैं तुमसे शादी करने के लिए खुद हाज़िर हो जाऊंगा , वर्ना दुनिया की नज़र में प्यार बदनाम हो जाएगा . वैसे ये सुन लो पायल ! अब तुम मुझे मिलो या न मिलो , किन्तु यदि तुम खुश रह सकी , अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट रही , तो मेरा प्यार सुखी रहेगा . "
पायल की आँखों में कृतज्ञता के आंसू उमड़ आये . वह गुलशन के रोवेंदार मर्दाने सीने पर सिर टिकाकर सुबकने लगी .
गुलशन उसके सिर पर हाथ फेरकर बोला -- " चलो - - - मुझे सेठ का घर दिखाओ . "
दोनों बाहर निकल कर गंतव्य की ओर चल पड़े .
कुछ देर बाद , पायल ने सेठ का घर दिखाकर कहा -- " जाओ - - - पर जल्दी लौटना . मैं घर पर बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करूंगी . "
गुलशन शून्य भाव से बोला -- " संभव है - - - मैं न भी लौट सकूँ . "
" तब भी मैं हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करूंगी . " पायल ने भाव विभोर होकर कहा .

[29]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:38 PM   #32
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 2 3 )
बड़ी सी रहस्यमय कोठी के एक खूबसूरत कमरे के बेश कीमती विदेशी सोफे पर पसरा हुआ सेठ देसी शराब सुड़क रहा था .
और तभी !
उढ़के हुए दरवाजे पर भड़ाक से लात मारकर गुलशन धड़ाक से कमरे के भीतर घुस गया .
उसके अन्दर प्रवेश करने के तरीके से सेठ को ये समझते देर न लगी की आने वाला अपरिचित व्यक्ति खतरनाक इरादों से लैस उसका कोई विरोधी ही हो सकता है . फिर भी उसने जान - बूझ कर उसे ऐसी नज़र से देखा जैसे कि वह कोई बेकार की वस्तु हो .
उसने संयम मगर व्यंग्य सहित उससे पूछा -- " दरवाज़ा टूटा तो नहीं ? "
क्रोध में उफनते गुलशन ने जवाब दिया -- " चक्रवात केवल दरवाजे को ही अपना शिकार नहीं बनाता - - - बल्कि उसकी चपेट में आने वाली हर चीज़ नेस्त नाबूत हो सकती है . "
" कभी - कभी हवा का नव सिखुवा झोंका भी अपने को तूफान समझ लेता है . "
" वो तो अभी तुम्हें मालूम हो जाएगा कि तूफ़ान और हवा के झोंके में क्या अंतर होता है . " गुलशन दांत किटकिटा कर बोला -- " कमीने ! तो तुम्हीं वो शैतान हो जिसके कारण पायल का भविष्य चकनाचूर हो गया . "
" अबे बेवकूफ ! शीशे टूटने के ही लिए होते हैं . वो चाहे आज टूटें या कल . मुझसे टूटें या किसी और से . टूटना तो उनकी किस्मत है . "
" सुनो ! अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि पायल की तस्वीरें मुझे दे दो . "
" ओह - - - समझा . तो तुम उसके भाई साहब हो . "
" बदमाश ! मैं तेरा बाप हूँ . "
" बेटे ! अगर गीदड़ की मौत आती है , तो वह शहर कि ओर भागता है - - - और अगर किसी बदकिस्मत आदमी के दिन नज़दीक आते हैं , तो वह मेरे करीब आता है . जान की सलामती चाहते हो तो फ़ौरन दफ़ा हो जाओ . "
" मैं भागने के लिए नहीं आया सेठ . "
" बेटे ! क़ाज़ी ओसामा नियाज़ी का लिखा अफगान इनसाईक्लोपीडिया पढ़ा है ? दुनिया के कुछ नामी जिन्न हैं . उनमें से एक मैं भी हूँ - - - अगर ज़िन्दगी प्यारी है , तो दफ़ा हो जाओ - - - और हाँ - - - यदि मौत से मोहब्बत है , तब रुक सकते हो . " उसने बेहयाई से खींसें निपोर कर धमकाया .
गुलशन ने अपनी ज़िन्दगी में ऐसे कई बेहया आदमी देखे थे , जिनकी आँखों में सुअर को बाल था - - - मगर यहाँ तो सेठ की मैली आँखों में समूचा सुअर ही लोटता नज़र आ रहा था .
वह बोला -- " मैं कहता हूँ , तस्वीरें दे दो . "
" तस्वीर लेने आया है , पायल के भड़ुए . साले ! तस्वीरें तो क्या मिलेंगी - - - हाँ , मैं तुम्हें मार कर तेरी हड्डियाँ तलक जरूर हज़म कर जाऊंगा -- बगैर डकार लिये . "
" बेटा चींटे ! मैं कपास हूँ . मुझे गुड़ समझकर खाने का ख़याल महंगा पड़ेगा . "
" अबे - - - मैं कपास को धुनकना भी अच्छी तरह जानता हूँ . ऐसी जमकर धुनाई करूंगा तेरी , कि तियाँ - तियाँ बिखर जायेगा . "
" अच्छा - - - तो फिर कोशिश करके देखो . मालूम पड़ जायेगा कि कपास किस किस्म की है . कहता हूँ , तस्वीरें दे दो . और सुनो - - - अगर सभ्यता से काम नहीं चला , तो मैं तुम जैसों के वास्ते असभ्यता पर भी उतर सकता हूँ . मैं लखनऊ का रहने वाला नहीं हूँ , जो हर हाल में सभ्यता को ही जीवन में अव्वल दर्ज़ा देते हैं . "
क्रोध ने गुलशन को पागल बना डाला था . उसे अपनी नसों में लहू की जगह तेज़ाब दौड़ता लग रहा था . सेठ का भी चेहरा तमतमाया हुआ था . जैसे चेचक निकलने से पहले चेहरे पर लालिमा उग आती है .
सेठ गुस्से में बोला -- " तुम शायद मेरे नाम से अंजान हो , वर्ना यूं मौत से खेलने न निकलते . बेटे ! मेरे बारे में इतना ही जान लो कि मैंने उन्हें ही शागिर्द बनाया है , जो अपने को उस्ताद कहा करते थे . कह रहा हूँ - - - भाग जाओ , वरना मेरे हाथों से पचासवां खून हो जायेगा . "
" ये तो वक्त ही बतायेगा सेठ - - - कि मरना किसे है . मगर सुन लो ! सितारे शैतान का साथ हमेशा नहीं देते . ये सच है कि उनकी ज़िन्दगी रौबदार होती है , लेकिन ये भी झूठ नहीं कि उनकी मौत बहुत बदसूरत होती है . मैं भी अपनी ज़िन्दगी का पहला और आखिरी क़त्ल नहीं करना चाहता . न ही पुलिस की मदद लेकर पायल की ज़िन्दगी का तमाशा बनाना चाहता हूँ . मैं तो सिर्फ इतना चाहता हूँ कि तुम मुझे तस्वीरें दे दो और मैं लौट जाऊं . "
" क्या कहा ! लौट जाऊं ! ! अबे - - - वो लोग कम अक्ल होते हैं जो शेर की मांद में घुसने के बाद वापस लौटने की बात करते हैं . " इतना कहकर सेठ ने जेब से चाकू निकालकर हवा में गुलशन पर फेंक मारा .
गुलशन झुककर वार बचा गया और उसने उछलकर सेठ के मुंह पर एक घूँसा जड़ा . घूँसा पड़ते ही उसके ऐनक ने गिरकर फर्श की शरण ली . ऐनक का एक लेंस फ़ौरन शहीद हो गया और दूसरा गंभीर रूप से घायल .
सेठ जल्दी से दराज़ में रखा रिवाल्वर निकालकर बोला -- " सुनो ! जो आदमी अपनी ज़िन्दगी की परवाह नहीं करता , उसे दूसरों की जान लेते देर नहीं लगती . इन्सानी खून को बाहर निकालना मेरे रिवाल्वर का शौक है . मैं तुम्हारा खून कर दूंगा . हैंड्स अप - - - अ s s s प . "
उसने आदेश दिया . शहंशाही आदेश . सारी शहंशाही रिवाल्वर में होती है और रिवाल्वर उसके हाथ में था .
गुलशन ने तत्काल हाथ ऊपर उठा दिये लेकिन फिर - - - वह चीते की सी फुर्ती से सेठ के ऊपर उछला . सेठ ने फ़ौरन रिवाल्वर का घोड़ा दबा दिया . एक अंधी गोली निकली , जो गुलशन के कंधे के निचले किनारे को खुरचती हुई निकल गई . वो सेठ के ऊपर ढेर हो गया . सेठ उसका युवा वज़न बर्दाश्त न कर पाने के कारण लुढ़क गया गया , मगर रिवाल्वर उसके हाथ में ही थी - - - किन्तु रिवाल्वर पर अब गुलशन की भी पकड़ हो चुकी थी .
जान बड़ी प्यारी होती है . दोनों कस कर रिवाल्वर पकड़े रहे . दोनों ही पूरी ताकत लगाकर रिवाल्वर की नली में मुंह फैलाए बैठी मौत को अपने से परे ठेलने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे . भूखी नली का विकराल मुंह कभी सेठ की तरफ घूम जा रहा था , तो कभी गुलशन की ओर . बार - बार की इसी कोशिश में एक बार अचानक रिवाल्वर का घोड़ा दबकर हिनहिना उठा . रिवाल्वर ने एक शोला थूका और फिर एक उभरी हुई दर्दनाक चीख लहूलुहान लाश बनकर फर्श पर ढेर हो गयी .

[30]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:40 PM   #33
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 2 4 )

गुलशन को सेठ का घर पहचनवाकर पायल उसके घर लौट आयी थी , बल्कि गुलशन ने ही उसे अपने घर लौट जाने को कहा था . वो बेचैनी से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी . उसका एक - एक पल उसे सौ - सौ उलाहने दे रहा था .
न जाने कैसे - कैसे बुरे विचार उसके मस्तिष्क को मथ रहे थे . वो सोच रही थी कि उसने गुलशन को सेठ के यहाँ भेजकर अच्छा नहीं किया . सेठ बड़ा कमीना आदमी है . बेचारे गुलशन की जान पर बनी होगी . न जाने क्या बीत रही होगी उसपर . काश ! एक बार वो सही सलामत लौट आये . कितना अधिक मानता है उसे गुलशन . उसके लिए जान हथेली पर लेकर मौत से जूझने गया है .
जैसे - जैसे देर होती जा रही थी - - - उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी . कभी - कभी उसके दिमाग में आता था कि वो सेठ के हाथों कहीं - - - . नहीं . नहीं - नहीं . उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिये . ऐसा नहीं हो सकता . वो भला आदमी है और कहते हैं कि भले लोगों के सिर पर सदा भगवान का हाथ रहता है . हे भगवान ! तू ही उसकी रक्षा करना . उसका दिल आज भगवान से मन्नतें मांगनें को मजबूर हो गया था . अच्छे - अच्छे नास्तिक भी जीवन में कभी न कभी ' बुद्धम शरणम् गच्छामि ' हो ही जाते हैं .
गुलशन के लिए बेचैन पायल उसे मौत के मुंह में धकेलने के लिए स्वयं को जिम्मेदार मान रही थी . बीतते समय के साथ पायल की आँखों की नमी बढ़ती जा रही थी . उसका भारी मन जोर - जोर से रोने को कर रहा था . वह पलंग पर औंधी लेटकर तकिया में मुंह छिपाकर जोर - जोर से सिसकने लगी .
रोते - रोते तकिया गीला हो गया था . तभी पीछे से गुलशन ने कमरे में प्रवेश करके पायल के सिर पर स्नेह भरा हाथ रखा .
पायल ने चौंककर मुंह उठाया , तो अपने सामने गुलशन को खड़ा देखकर तेजी से बोली -- " गु - - ल - - श - - न तुम ! तुम ठीक तो हो न !! हाय - - - मेरी तो जान ही निकल गयी थी . कहाँ लगा दी इतनी देर ? "
झट से ज़मीन पर उतर कर वह जल्दी - जल्दी गुलशन को टटोलने लगी . इधर से , उधर से , आगे से , पीछे से . जैसे उसे यकीन ही न आ रहा हो , उसके लौट आने का . वह उसे लगातार सहलाती जा रही थी .
और तभी - - - उसने अपने हाथ में खून लगा देखा , तो चीख कर बोली -- " ये क्या गुलशन ! क्या हुआ तुम्हें ? "
जवाब की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने घूमकर उसके कन्धे की तरफ देखा तो कमीज़ के पिछले हिस्से को खून से लथपथ पाया .
उसने पुनः घबड़ाकर पूछा -- " यह क्या हुआ ? "
" कुछ नहीं ! गोली लग गयी थी . "
" हाय राम ! गोली - - - और कहते हो कुछ नहीं . "
" हाँ - - - कुछ नहीं होगा . गोली कन्धे को खुरचते हुए निकल गयी थी . बाल - बाल जान बच गई . "
" गु - - ल - - श - - न ! " उसके गले से एहसान भरा स्वर उभरा और वह जोर से गुलशन से लिपट गयी , जैसे उसे अपनी बाहों में सुरक्षित कर लेना चाहती हो .
गुलशन ने जेब से तस्वीरों का लिफ़ाफा निकालकर पायल से कहा -- " ये रहीं तुम्हारी तस्वीरें . "
" तस्वीरें ! " वह उससे अलग होकर आश्चर्य से पूछने लगी -- " मिल गईं ! क्या सच ? लाओ देखूं . " पायल ने उत्सुक हाथ बढ़ाये .
" ना - - - न ! इन्हें न देखो , तो ही अच्छा है . "
उसका आशय समझ , पायल ने जिद नहीं की .
अचानक जैसे उसे कुछ ख़ास याद आ गया हो . वह बोली -- " तुम्हें गोली लगी है - - - इसका मतलब है कि सेठ से झगड़ा हुआ था . क्या हुआ उसे ? "
" ऊपर चला गया . चिराग के देर तक धुआं छोड़ते रहने से कहीं अच्छा है उसका बुझ जाना . उसे उसके कुकर्मों की सजा मिल गई . बुरे व्यक्ति का अंत कभी अच्छा नहीं होता ."
" क्या कहते हो ! मर गया ? " वह आश्चर्य मिश्रित भय से सिहर उठी और रोते हुए बोली -- " गुलशन ! मुझे माफ़ कर दो . मैं शर्मिंदा हूँ कि मैंने पहले तुम्हारा सही मूल्यांकन न किया - - - और एक तुम हो कि - - - . "
" अब छोडो भी इन बातों को . " गुलशन उसकी बात काटकर बोला -- " आगे की सुनो ! जब सेठ मर गया , तो मैंने उसके घर की तलाशी ली . बड़ी मुश्किल से ये फोटो हाथ लगे हैं . और ये भी एक सुखद संयोग ही रहा कि इस पूरे प्रकरण के समय सेठ घर पर अकेला ही था . काम जब बनने होते हैं तो परिस्थितियाँ खुद - ब - खुद अनुकूल होती चली जाती हैं . "
पायल बोली -- " चलो तुम्हें किसी अस्पताल ले चलूँ . "
" पगला गई हो क्या ! गोली लगने का मामला है . पुलिस - केस हो जाएगा . "
" मगर बिना इलाज के तो तुम्हारी जान को खतरा हो सकता है ! "
" नहीं - - - कुछ नहीं होगा . गोली थोड़े ही मांस में अटकी है . मात्र गहरा खुरच कर निकल गयी है . और फिर - - - अगर मेरी अब तक की नाकाम ज़िन्दगी तुम्हारे काम आ जाये , तो मुझे गम न होगा . "
" चुप भी रहो . क्या मरने - जीने की बातें करते हो . " उसके होठों पर ऊँगली रखकर उसने कहा - - - और उसके आंसू पुनः तेज हो गये .
गुलशन चुप हो गया .
पायल ने रोते - रोते कहा -- " क़त्ल का मामला है . पुलिस तुम तक भी तो पहुँच सकती है ! "
" उम्मीद तो नहीं . मैंने अपने वहां जाने के सभी सबूत भरसक मिटा दिये है . बाकी ईश्वर मालिक . होता तो उसी का चाहा है . अच्छा अब तुम जल्दी से पानी गरम करके मेरा घाव साफ़ करो . " गुलशन ने कहा .
कलेजे में काफी कुछ ठंढक लेकर पायल पानी खौलाने के लिए रसोई की तरफ चल दी .


[31]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:41 PM   #34
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 2 5 )

कन्धे के ज़ख्म ने गुलशन को परेशान कर रखा था . वह पिछले तीन दिन से पलंग पकड़े था . पुलिस - केस हो जाने के डर से उसे अस्पताल में भरती नहीं कराया जा सकता था और घर पर घाव जल्दी ठीक न होने की जिद ठाने था . जख्म पक चला था और प्रोफ़ेसर साहब के एक परिचित व भरोसे के डॉक्टर का उपचार चल रहा था . वो भी इतना गुप - चुप कि किसी बाहरी को कानोंकान खबर न हो सके .
जब गोली लगी थी , तब तो क्रोध व आवेश में होने के कारण तकलीफ दबी रह गयी थी - - - मगर अब उसका ज़ख्म मचल उठा था और किसी नटखट बच्चे की तरह उसे परेशान करने पर तुला हुआ था .
और उधर !
चंचल के सदमे की मारी और गुलशन की चिन्ता में दोहरी हुई अशक्त पायल को भी लम्बे ढीठ बुखार ने धर - पकड़ा था . वो भी बिस्तर की मेहमान बनी थी . इसीलिये वो प्रबल इच्छा होने पर भी गुलशन की देखभाल के लिये न जा पा रही थी .
मगर गेसू ने गुलशन की सेवा में कोई कसर न उठा रखी थी . और यदि चाहें , तो औरतों में जितनी सेवा - शक्ति होती है , मर्दों में नहीं . तभी तो प्रोफ़ेसर साहब और चंचल तो दिनभर में कुछ एक बार उसके घर पर जाकर उसे देख सुन आते थे - - - मगर गेसू को इतने भर से संतुष्टि कहाँ होने वाली थी .
वह रात - रात भर गुलशन के घर रहकर उसकी सेवा करती थी . समय से पट्टी बदलती , दवा पिलाती और जब कभी गुलशन की जलती हुई आँखों पर रहमदिल नींद अपनी मेंहदी रची खुशबूदार उंगलियाँ रखकर उसे अपनी मखमली बाहों में ले लेती , तो वो स्टूल पर बैठी - बैठी - - - उसके पैरों पर सिर टिकाकर एक - आध जिम्मेदार झपकियाँ लेकर खुद को बहला लेती थी .
यह सच है कि आदमी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये , कितना भी आधुनिक और हिम्मती क्यों न बन जाये , लेकिन जब वो बीमार पड़ जाता है , तो एक बच्चे की तरह असहाय हो जाता है - - - और उस वक्त उसे माँ जैसी किसी ममता व त्याग की मूर्ति की सख्त जरूरत पड़ती है . और उन्हीं दिनों - - - इन बीमारी के दिनों में गुलशन भली - भाँति अनुभव कर रहा था कि गेसू माँ हो गयी - - - फिर नर्स , दोस्त , प्रिया और पत्नी . और औरत एक साथ इतना कुछ हो सकती है - - - ये उसने पहली बार देखा , जाना और महसूस किया था .
आज भी ! दर्द से दोहरा गुलशन पूरी रात सो न सका .
सुबह के समय , गुलशन को सुलाकर - - - न चाहते हुए भी गेसू को नींद की झपकी लग गयी . वह स्टूल पर बैठे - बैठे पलंग पर सो रहे गुलशन के पैरों पर सिर रखकर नींद की वादियों में खो गयी . सो गयी .
गुलशन की आँख खुली तो उसने देखा कि गेसू उसके दोनों पैरों के बीच अपना थका उदास चेहरा छुपाये नींद की चादर ताने पड़ी है . उसकी इस मुद्रा को देखकर उसे अनुभव हुआ कि वह बेकार ही अपने आप को आजतक अकेला समझता रहा . वो अकेला नहीं है . दुनिया में उसके आगे पीछे भी कोई है . सोचते - सोचते सुप्त गेसू को निहारते - निहारते उसका मन गेसू के प्रति एक अजीब सी अनुभूति से ओत - प्रोत हो गया . इस अनुभूति का नाम तलाशते - तलाशते उसकी आँखें भर आयीं .
वो बिना पैर हिलाए , हाथों का सहारा लेकर , कमर के बल धीरे से उठ बैठा और पंखे के तेज शरारती झोंकों की छेड़खानी से बिखर गये गेसू के बालों को समेट कर उसकी कनपटी में हौले से फंसाने लगा . उसका दिल चाह रहा था कि वह गेसू को अपने सीने से लगा ले . मगर फिर - - - न जाने क्या सोचकर उसने गेसू की पलंग पर खुली पड़ी हथेलियों को धीरे से चूम लिया . और तभी - - - उसकी सीप सी आँखों से कुछ नर्म - गर्म मोती छलक कर गेसू की हथेलियों पर बिखर गये .
हाथों में कुछ गुनगुनी सी गर्मी अनुभव करते ही गेसू कीं कच्ची नींद चिटक गयी . उसे जागा देखकर गुलशन ने जल्दी से अपने मुंह को उसकी हथेलियों से दूर कर लिया और कुछ सोचने की सी मुद्रा बना ली .
सब कुछ जान - समझ कर भी गेसू अनजान बनते हुए बोली -- " क्या सोच रहे हो दोस्त ? "
" सोच रहा हूँ ! तुम्हारे इतने रूप !! गेसू - - - मैं तुम्हें आज तक समझ न सका . "
" वह फीकी हंसी बिखेर कर बोली -- " औरत कभी भी समझ में नहीं आ सकती मेरे दोस्त ! मर्दों को उन्हें समझने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिये . "
" हाँ गेसू - - - हाँ . तुम ठीक कहती हो शायद . " वह रुंधे कंठ से बोला .
और तभी - - - जैसे धीरज कहीं अस्त हो गया . जैसे विवेक मचल उठा . जैसे मन का बाँध टूट गया - - - और तभी गुलशन ने अधीर होकर , कंधे की पीड़ा की परवाह किये बिना , उसे अपनी बाहों में बांधकर उसके रेशमी गालों को चुम्बनों से मालामाल कर दिया .
गेसू फफक कर रो उठी - - - और उसने खुद को गुलशन की बाहों में ढीला छोड़ दिया . उसी के भरोसे . उसी की मरजी पर .
कुछ देर बाद !
गेसू ने पूछा -- " गुलशन पता चला है कि पायल ने तुम्हारे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था . तुमने क्यों मना कर दिया ? पहले तो तुम उससे शादी के लिए बेहद उतावले हुआ करते थे . उसके प्रति कितने भावुक थे . '
" गेसू भावुक तो उसके प्रति मैं आज भी बहुत हूँ . किन्तु जहाँ तक मैंने समझा - - - पायल की पहली पसन्द तो आज भी चंचल ही है . मैं तो उसकी हमदर्दी अथवा विवशता वश उपजा विकल्प मात्र हूँ . जबकि उसे इस प्रकार इस रूप में पाने की तमन्ना तो मैंने कभी न की थी . और वैसे भी - - - इधर बीच , धीरे - धीरे मेरे विचार अब करवट बदलने लगे हैं . या यूं कहो मेरी तन्द्रा टूटने लगी है . अब धीरे - धीरे मेरी समझ में आता जा रहा है कि भावना और यथार्थ में काफी लम्बा फासला है . पहले शायद मैं भूल कर बैठा था और यथार्थ की महत्ता को अनदेखा करके भावनाओं को महत्व दे बैठा था . और उन्हीं जरूरत से ज्यादा भावना वश संचालित मेरे व्यवहारों ने मुझे रुलाया भी बहुत . "
" लेकिन मैं तो अच्छाई इसी में समझती हूँ कि तुम्हें पायल का प्रस्ताव मान लेना चाहिए था . "
" माना तो है . हाँ - - - ये बात और है कि आंशिक रूप से -- चंचल से उसका विवाह न हो पाने की दशा में . और मैं समझता हूँ कि उस वक्त की परिस्थितियों को देखते हुए , मेरे इस निर्णय के नीचे यथार्थ की बुनियाद है . और - - - . "
और इससे पहले कि गुलशन कुछ और कहता - - - कि बाहर से डाकिये की आवाज़ आयी -- " पोस्ट - मैन - - - रजिस्ट्री ले लें . "
गुलशन चौंक कर बुदबुदाया -- " कैसी रजिस्ट्री ! " उसने गेसू से कहा -- " जाओ - - - बाहर जाकर ले लो . "
गेसू बाहर चली गयी .
थोड़ी देर में वो लिफाफा लेकर लौटी और उसने उसे गुलशन को पकड़ा दिया .
गुलशन प्रेषक का नाम देखकर चौंका - - - और फिर बेहद फुर्ती से उसे खोलकर भीतर रखा कागज़ पढ़ने लगा . इसके बाद पागलों की तरह ख़ुशी से झूमकर गेसू को बाहों में लेकर नाचने सा लगा .
उसकी ख़ुशी देखकर गेसू भौचक्की रह गयी . उसने अपने को उसकी बाहों से आज़ाद करा कर पूछा -- " क्या बात है दोस्त ! क्या पढ़ लिया - - - जो अचानक आज पहली बार इस कदर बम - बम हुए जा रहे हो ? "
" बात ही कुछ ऐसी है गेसू . " उसने उसे पुनः अपनी बाहों में खींच कर कहा -- " मुझे नौकरी मिल गयी . एक आकर्षक नौकरी . अब जाना - - - भगवान के घर देर है - - - अन्धेर नहीं . "
" स - - - च ? " गेसू ने आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी में पूछा .
गुलशन चहका -- " हाँ गेसू - - - सच . मुझे नौकरी मिल गयी . अब मै बेरोजगार नहीं रहा . मेरा चयन प्रतिष्ठित बहु राष्ट्रीय कम्पनी में एक बड़े अधिकारी के रूप में हो गया . अब जाकर निश्चिन्त हुआ . लगता है , सही समय आ गया है . देखो तो - - - बदसूरत ज़िन्दगी अचानक कैसी खूबसूरत करवट ले लेती है . "
" हाय - - - मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा , अपने कानों पर . क्या तुम प्रतियोगिताओं में बैठते थे ? "
" तो क्या तुम समझती हो कि डूब रहा आदमी अपनी पूरी ताकत से हाथ पाँव नहीं मारता ! "
" गुलशन ! मै तो सचमुच आश्चर्यचकित हूँ - - - यह खबर सुनकर . "
" तुम्हारे लिए इससे भी आश्चर्य की एक सुखद बात और सुनाऊँ ? "
" क्या ? जरा जल्दी बताओ . "
" तुम्हें नहीं मालूम कि इस पद के लिये साक्षात्कार देने दूर दूसरे शहर मै तुम्हारे पड़े मिले रुपयों की मदद से ही गया था . सच्ची - - - तुम मेरे लिये बड़ी भाग्यशाली साबित हुई . अगर ऐन वक्त पर संयोगवश तुम्हारे पड़े मिले रूपये सहारा न देते तो निश्चित ही आज मुझे ये सुखद दिन देखने को न मिलता . सच ही है - - - कोई - कोई किसी के लिये कितना शुभ होता है . "
यह सुखद संयोग सुनकर वह और भी फूलकर कुप्पा हो गयी और बोली - " गुलशन ! मेरे दोस्त !! ईश्वर तुम्हें खूब आगे बढ़ाये . " इतना कहकर वह गुलशन की बाहों से चिपक कर मुस्कराते हुए पुनः बोली -- " मेरे पेट में स्त्री सुलभ अफारा हो रहा है . मैं तो चली - - - घर पर सबको यह खुशखबरी सुनाने . "
वह फुर्र से किसी चिड़िया की भाँति दरवाजे के बाहर हो गयी और अपने पीछे एक ऐसी ख़ुश्बू छोड़ गयी - - - जो सिर्फ तरुणियों के बदन से ही आती है -- और वो भी किसी - किसी के .

[32]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:43 PM   #35
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच


( 2 6 )

प्रोफ़ेसर साहब अपने इर्द - गिर्द तेजी से घट रहे घटनाक्रम पर पैनी निगाह गड़ाये उसका सूक्ष्म विश्लेषण कर रहे थे . वो अभी तक मौन साधे थे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि अच्छी तरह जानते थे कि हर बात को कहने का एक उचित अवसर होता है . समय से पहले या बाद में कहे जाने पर महत्वपूर्ण बात अपना प्रभाव खो बैठती है . अब जबकि घटना चक्र काफी कुछ ठहर गया था तो उन्होंने एकान्त तलाश कर चंचल से दो टूक बात कर लेना उपयुक्त समझा .
उन्होंने चंचल से कहा -- " बेटा ! मैं तुमसे तुम्हारे विषय में कुछ बात करना चाहता हूँ . "
" मेरे विषय में ! " चंचल ने पूछा -- " कैसी बातें ? "
" पायल से तुम्हारे विवाह - सम्बन्धी बातें . "
" लेकिन इस सन्दर्भ में अब कौन सा पक्ष बचा है बात करने का ? क्योंकि मैंने तो फैसला कर लिया है , शादी न करने का . "
" यही तो वह पहलू है , जिस पर मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ . "
" क्यों - - - क्या मैं अपनी ज़िन्दगी के व्यक्तिगत फैसले भी स्वयं नहीं ले सकता ? "
" बेटे ! कोई भी ऐसा फैसला या कार्य जिससे दूसरों को असुविधा हो , वह व्यक्तिगत हो ही नहीं सकता . "
" फिर तो - - - आपके हिसाब से मैं अपनी ज़िन्दगी के अहम् निर्णय भी अकेले नहीं ले सकता . चलिए - - - आप ही बताइये - - - आप को क्या लगता है - - - क्या मेरा फैसला गलत है ! "
" तुम्हारा फैसला गलत है अथवा सही - - - यह विषय गौण है . पहला और मुख्य प्रश्न तो ये है कि कोई फैसला करने का फैसला तुम अकेले ने कैसे ले लिया . "
" पिताजी ! घुमा - फिरा कर आप मुझसे यही अपेक्षा तो कर रहे हैं कि मैं स्वयं से सम्बंधित महत्वपूर्ण निर्णय भी अकेले न लूं . "
" अवश्य लो . लेकिन क्या ये अनुचित नहीं कि सामूहिक रूप से लिए गए किसी पारिवारिक निर्णय को तुम बिना विचार - विमर्श के अकेले ही उलट दो ! क्या तुम्हारा ये आचरण हम लोगों के लिए असुविधा जनक न होगा ! "
" क्या मतलब ! मैं आपका तात्पर्य नहीं समझा . "
" मेरे कहने का सीधा सा अर्थ ये है कि जब तुम्हारे अकेले के अनुरोध पर हमारे पूरे परिवार ने तुम्हारी व पायल की शादी का सामूहिक निर्णय लिया था , तो तुम्हारे अकेले द्वारा ही मनमाने तरीके से , बिना हम लोगों को भरोसे में लिए , हमारी सहमति की परवाह किये बगैर , उसे बदल दिया जाना कहाँ तक नीति - सम्मत है ? क्या ये आचरण परिवार की अनदेखी करना नहीं है ? "
" आपकी बात सही है और इसका मुझे खेद है . किन्तु मेरा निर्णय गलत है क्या ? "
" कम से कम तुम्हारी नज़र में तो नहीं है गलत . लेकिन जहाँ तक मेरा विचार है , वो तुम्हारे निर्णय से भिन्न है . बेटे ! खूब आगा- पीछा सोच समझ कर संक्षेप में मैं ये कहना चाहता हूँ कि तुम पायल से शादी कर लो . गेसू की भी यही इच्छा है . "
" पिता s s s जी - - - आप - - - . "
" हाँ - - - मेरी यही सलाह है . और ये एक ऐसे आदमी की सलाह है , जिसने दुनिया को तुमसे अधिक देखा , जाना और समझा है . इसीलिए मैं चाहता हूँ कि तुम पायल से शादी कर लो . "
" पिताजी ! यह आप कह रहे हैं ! ! ये जानते हुए भी कि किसी बदमाश के हाथों उसकी इज्जत लूटी जा चुकी है . "
" लेकिन इसमें उस बेचारी का क्या दोष ? उसका सहयोग तो नहीं था उस कार्य में ? "
" मगर पिताजी ! पायल किसी पर पुरुष के संपर्क में - - - ."
" चंचल बेटे ! स्त्री को देह के दायरे में बाँध कर परिभाषित मत करो . देह से परे भी उसका अपना एक अस्तित्व होता है . घटनावश देह मैली होने का मतलब चरित्र मैला होना कतई नहीं . वैसे भी ये तुम नहीं , तुम्हारे भीतर समाज द्वारा भरे गए अधकचरे पूर्वाग्रह बोल रहे हैं . अछूती कन्या से ही विवाह का प्राविधान तो हमारे सभ्य समाज ने व्यक्ति को निरंकुश होने से बचाए रखने के लिए बनाया है . यदि ऐसा नियम न हो तो लोग अव्यवस्था उत्पन्न कर दें . भावनाओं पर नियंत्रण न रखकर खुलकर खेलने लगें . किन्तु अपवादों में तो नियम लागू नहीं होते . वहां शिथिलता स्वीकार्य होती है . पायल के साथ घटी घटना तो एक अनैच्छिक विवशता थी . वो अपवाद की श्रेणी में है . आखिर पाश्चात्य देशों में भी तो औरतें अपने जीवन में प्रायः कई - कई शादियाँ करके नये - नये आदमियों के संपर्क में आती हैं . वहां ऐसी औरतों से सहर्ष शादी करने वालों की पर्याप्त संख्या है . यह तो मात्र सोचने का फर्क है . "
" किन्तु सोचने का ये अन्तर तो भिन्न - भिन्न समाजों की देन है . पाश्चात्य व भारतीय समाज की सोच का फर्क आपसे छुपा तो नहीं . पिताजी ! जरा सोचिये !! हम जिस तरह के समाज में रहते हैं , यदि उसे मालूम पड़ा तो मेरी सामाजिक स्थिति पर भी तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा . लोग क्या कहेंगे ! "
" चंचल ! लोग क्या कहेंगे - - - इस दायरे में सोचना साधारण आदमी की बहुत बड़ी कमजोरी है . इसका उसे प्रतिपल मूल्य चुकाना पड़ता है . ऐसा सोचने वाला व्यक्ति झिझकने और व्यक्त न हो पाने के कारण अपने जीवन में कुछ ख़ास नहीं कर पाता . जबकि मैंने तुम्हें साधारण नहीं बल्कि कुछ ख़ास बनाने के लिये , तुम्हारे व्यक्तित्व को निजता प्रदान करने की नीयत से , तुम्हें उच्च शिक्षा दिलवाई थी . यह सोचकर कि उच्च शिक्षा मनुष्य की सोच को विशिष्ट एवं लचीला बनती है . उच्च शिक्षित व्यक्तियों के विचारों का दायरा व्यापक हो जाता है . ऐसे लोग अपनी पहल पर सामाजिक विचारों को परिष्कृत करने का निरन्तर प्रयास करते हैं और अपने विवेक के कहे अनुसार अपनी इच्छाओं से अपनी शर्तों पर जिन्दगी जीकर समाज में अपनी स्वतन्त्र पहचान स्थापित करते हुए समाज के लिये नये व्यवहारिक मार्ग प्रशस्त करते हैं . "
" हुंह - - - अपना जीवन , अपने अरमान , अपनी पहचान - - - . पिताजी ! ये शब्द बोलने - सुनने में जितने आसान लगते है , वास्तव में उतने हैं नहीं . कोई भी व्यक्ति स्वयं अपनी सोची - चाही ज़िन्दगी भला जी ही कितनी पाता है . अगर ध्यान से देखें तो हम पूरी उम्र प्रायः दूसरों द्वारा थोपी हुई ज़िन्दगी ही तो जीते हैं .क्योंकि हर पल छिन हमें यही विचार तो घेरे रहता है कि लोग क्या सोचेंगे , समाज क्या कहेगा . और इस प्रकरण में तो मेरी शर्तिया सोच ये है कि लोग मेरा नाना प्रकार से प्रबल विरोध करेंगे . राह चलते मज़ाक उड़ाकर मेरा जीना हराम कर देंगे . "
" बेटे ! समाज में प्रारम्भिक व सर्वाधिक विरोध तो निकटतम लोग ही करते हैं . उन्हीं का प्रश्रय पाकर विरोध समाज में विस्तार पाता है . जबकि हम - - - जो तुम्हारे निकटतम हैं - - - परिवार के रूप में समाज की सूक्ष्मतम इकाई हैं - - - जब हमारा हार्दिक सहयोग और अभयदान तुम्हारे साथ रहेगा , तो वह प्रतिपल तुम्हें संबल प्रदान करेगा . सोचो ! अगर तुम पर कोई टीका - टिप्पणी करेगा भी , तो इस निर्णय में सम्मिलित रहने के कारण तुम्हारा पूरा परिवार स्वाभाविक रूप से इसे सहने में साझीदार रहेगा , जो तुम्हारे लिये निश्चित ही ढाल का काम करेगा . हम सब मिल - जुल कर परिस्थितियों का सामना करेंगे . एक बात जान लो बेटा ! समाज में बनी - बनायी लीक से हटकर जो साहसी लोग कुछ नया व अटपटा करते हैं - - - इतिहास गवाह है कि समाज का जो वर्ग पहले उनकी खिल्ली उड़ाता है , फिर भी वह निडर यदि डटा रहे तो उसे धमकाता और बातों व हाथों के पत्थर से मारता है . इसके बावजूद भी वह नहीं डिगे तो वही विरोधी समाज भीड़ की शक्ल धारण कर उसकी जय - जयकार करता हुआ उसी के पीछे चल निकलता है . "
" मगर क्या मेरा यह आचरण सामाजिक नीति के विरूद्ध न होगा ? '
" बेटे ! क़ानून जिसकी अनुमति देता है , वह कार्य नीति - विरुद्ध हो ही नहीं सकता . क्योंकि क़ानून के निर्माता नीति के मर्मज्ञ एवं बहुसंख्य समाज की भावना के प्रखर प्रतिनिधि होते हैं . और फिर - - - अब तुम समाज की इतनी चिन्ता क्यों करते हो ! अब तो सूचना के प्रमुख स्रोत को ही गुलशन ने ख़त्म कर दिया है . फिर तुम्हें काहे का भय ! कहीं ऐसा तो नहीं कि समाज के संभावित उलाहने की आड़ लेकर अपने पूर्वाग्रह विशेष के चलते तुम पायल को त्यागने का प्रयास कर रहे हो ! यदि तुम्हारे मन में ऐसी कोई छुपी भावना हो तो ज़रा विचार करो कि यदि कहीं विवाह के उपरान्त पायल के साथ ऐसा कोई हादसा हो जाता तो क्या तुम उसे ऐसी आसानी से छोड़ सकते थे ! तब यही समाज आड़े न आ जाता क्या ? इसलिए मैं फिर कहूँगा कि यदि तुम इन जटिल परिस्थितियों में पायल से शादी कर लेते हो तो उसके मन में निश्चित ही तुम्हारा दर्जा बढ़ जाएगा . वो सारी उम्र तुम्हारे पाँव धोकर पीयेगी . सो अक्लमन्दी इसी में है कि परिस्थितियों के अनुसार ढलना सीखो . वक्त हाथ से निकल गया तो पूरी उम्र हाथ मलते गुज़र जायेगी . बेटे ! अगर गंभीरता से ली जाय तो ज़िन्दगी शतरंज की बिसात से कम नहीं , जहाँ पर एक गलत चाल भी पूरा खेल बिगाड़ देती है . इसीलिए जोर देकर कहता हूँ कि सही राह पर लौटने के लिये कभी भी देर नहीं होती बल्कि हर वक्त सही होता है . इसलिये अब और अधिक देर न करो . जाओ - - - जाकर पायल का हाथ थाम लो . मुझे पूरा भरोसा है - - - सब ठीक हो जायेगा ."
" मगर पिताजी ! आप इतने आत्म विश्वास के साथ कैसे कह रहे हैं कि अन्ततोगत्वा सब कुछ ठीक हो ही जायेगा ? "
" बेटे ! आत्म विश्वास अनुभवों से उत्पन्न होता है और अनुभव बढ़ती उम्र के साथ स्वतः बढ़ते रहते हैं . साथ ही बड़ों के बीते हुए कल के अनुभव छोटों का आज संवारने में काफी सहायक हो सकते हैं . बशर्ते छोटे अपने से बड़ों का विश्वास करके उनके अनुभवों का लाभ उठायें . "
" पिताजी ! फ़िलहाल मैं कुछ सोचना चाहता हूँ . क्योंकि अभी मेरी मनःस्थिति दुविधा और भ्रम से भरी है . मुझे थोड़ा सोचने का अवसर दीजिये . "
" हाँ - हाँ - - - जरूर सोचो . खूब सोचो . लेकिन जब इस विषय में सोचना तो यह भी जरूर सोचना कि आखिर वो कौन से मानवीय कारण हैं , जिसके वशीभूत होकर गुलशन ने पायल के लिये इतना बड़ा जोखिम उठाया . "
" हाँ पिताजी ! ये प्रश्न तो मुझे कई दिनों से मथ रहा है और मैं चकित हूँ . किन्तु मैंने सोचा कि गुलशन की तबीयत सही हो जाने के बाद ही इसका उत्तर मैं उसी से पूछूंगा . "
" बेटे ! तुम सोचते ही रह गये और मैंने गेसू के माध्यम से इसका उत्तर तलाश भी लिया . "
" क्या ? "
" सुनो ! गुलशन व पायल कभी सहपाठी थे . कॉलेज के दिनों से ही गुलशन पायल को एकतरफा प्यार करता था . किन्तु उसमे जीवन साथी की व्यवहारिक छवि न पाकर पायल केवल दोस्ती तक ही सीमित रही और बाद में तुमसे प्यार करने लगी . सब कुछ जानते - समझते हुए भी उस सच्चे प्रेमी ने विपत्ति में पायल की निस्वार्थ सहायता करके अपना कर्तव्य बखूबी निभाया . मेरे ख़याल से - - - अब तुम्हारी बारी है - - - अपना धर्म निभाने की . अगर तुमसे बन पड़े तो . "
इतना सुनकर अवाक रह गये चंचल की आँखों में गुलशन के प्रति श्रद्धा पसीज उठी और उसके मस्तिष्क में उठी भावनाओं की आँधी ने उसके क़दमों को कमरे के बाहर ठेल दिया .

[33]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:44 PM   #36
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 2 7 )

यह सत्य है कि व्यक्ति ऐसे लोगों की बातों को अपेक्षाकृत आसानी से और शीघ्र मानता है जो उसके आदर्श होते हैं और जिनकी वह इज्जत करता है . क्योंकि अतीत के अनुभवों के आधार पर वह आश्वस्त रहता है कि वो उसके शुभ चिन्तक हैं और किसी भी दशा में उसे गलत सलाह नहीं देंगे .
यही चंचल के साथ हुआ .
अपने पिताजी के साथ हुई वार्ता विशेष के सन्दर्भ में काफी चिंतन - मनन करने के पश्चात चंचल के मस्तिष्क में एक वैचारिक क्रान्ति सी आ गयी थी . आमूल चूल परिवर्तन उत्पन्न हो गये थे . पिता द्वारा प्राप्त संबल एवं गुलशन के त्याग ने उसके दिग्भ्रमित मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि उसने अपने मन में खुद के पूर्व निर्णय को रद्द करके पायल को अपनाने का विचार दृढ़ कर लिया .
अब उसे पायल के प्रति पिछले दिनों किये गये अपने निष्ठुर व्यवहार पर अत्यधिक ग्लानि हो रही थी . एक अपराध - बोध ने बसेरा कर लिया था उसके मन - मस्तिष्क में . वह सोच रहा था कि पता नहीं उसके कठोर आचरण से घायल पायल उसको क्षमा करेगी भी या नहीं .
उस अनुभवहीन को अभी ये नहीं मालूम था कि बेचारी आम औरत के पास चाहे - अनचाहे क्षमा करने के अतिरिक्त दूसरा चारा भी क्या है . युगों - युगों से वो विकल्पहीन विवशता वश पुरुषों को क्षमा ही तो करती आ रही है और पुरुष सदा यह कहकर उसे बहलाता आ रहा है कि स्त्री क्षमा की देवी है - - - महान है . बड़े लीलाधर होते हैं पुरुष .
गुलशन के साथ किये गये शुष्क व्यवहार पर भी चंचल को अब बहुत पश्चाताप हो रहा था . उसने निर्णय कर लिया था कि वह अवसर मिलते ही गुलशन से अपने आचरण के प्रति खेद व्यक्त करेगा . उसे पूरी आशा थी कि गुलशन उस प्रकरण को बिसार देगा . क्योंकि उसकी नज़र में वो विशालमना है . ऐसे व्यक्ति तो क्षमा करने और भूल जाने की आदत के चलते निरंतर महान और सर्व प्रिय होते चले जाते हैं .
लेकिन वो पायल का क्या उपाय करे . वह तो औसत व्यक्तित्व की ही स्वामिनी है . पता नहीं उसके शुष्क व्यवहार का तीर उसने अपने कोमल ह्रदय में कितने गहरे तक अनुभव किया है . और जब दिल टूटता है तो सीधे दिमाग पर असर पड़ता है . कहीं सामान्य व्यक्ति की सी प्रतिक्रिया स्वरूप चोट खाकर उसके मस्तिष्क में विद्रोह ने जन्म तो नहीं ले लिया .
अपराध बोध के सशंकित साए तले वह उस पल की निरन्तर प्रतीक्षा कर रहा था - - - जब अनुकूल एकान्त पाकर वह पायल से वार्ता का साहस जुटा सके .
और ईश्वरीय अनुकम्पा से शीघ्र ही ऐसा समय आ गया .
इस वक्त घर में केवल चंचल और पायल ही थे . उदास पायल सूने आँगन में रखे एक गमले में लगे हुए अपनी तरह लगभग मुरझा चुके पौधे को पानी देने जा रही थी .
दबे पाँव चंचल भी उसके पीछे सकुचाकर खड़ा हो गया .
चंचल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह संवाद को कहाँ से व कैसे शुरू करे . ये द्वन्द उसके मन को मथ रहा था . सच तो ये था कि इतने दिनों की निष्ठुरता के बाद उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी कि वह पायल से बात करे .
थोड़ी देर तक यूँ ही खड़ा - खड़ा वह पायल के बेरौनक हो चले बदन को देखता रहा और फिर कुछ हिम्मत जुटाकर उसके कन्धे पर पीछे से थपकी देकर किसी तरह शब्दों के धक्के से अधर खोलकर बोला -- " चलो - - - जल्दी से तैयार हो जाओ पायल . "
" क्यों ? " पायल ने पलटकर आश्चर्य से पूछा . जबकि उसका हाथ गमले में पानी छोड़ने से पहले ही झुका का झुका रह गया .
" चलना नहीं है क्या ? "
"कहाँ ? " वह वैसे ही हाथ झुकाए - झुकाए मुंह उसकी तरफ करके बोली .
" बाज़ार . आखिर सारी खरीददारी हम ही लोगों को तो करनी है . शादी की तारीख कितनी नज़दीक आ गयी है हमारी . "
ये सुनते ही पायल के हाथ में थमा पानी का बर्तन लगभग सूख रहे पौधे वाले गमले में खुद - ब - खुद गिर पड़ा और गमला पानी से सराबोर हो उठा . साथ ही उसके कुम्हलाये चेहरे पर अचानक एकबारगी सावन की हरियाली सी छा गयी .
उसके हाथ तेजी से थरथराये और मुंह से निकला -- " क्या - - - सच - - - चंचल ? "
" हाँ पायल ! - - - हाँ . बिलकुल सच . " चंचल ने अपनी बाँहें फैला दीं . "
" पायल उससे लिपटकर उसकी बाहों में समा गयी - - - जैसे उसे इसी पल का सदियों से इन्तजार था . उसके मुंह से हलकी सी आवाज़ निकली -- " चंचल ! मेरी ज़िन्दगी !! तुम मेरी रूठी हुई किस्मत हो . मेरा खोया हुआ चैन हो . तुम मिल गए - - - मुझे सुकून मिल गया . अब मुझे और कुछ न चाहिए चंचल . कुछ भी नहीं . "
उसकी डबडबायी आँखों से आंसुओं की फागुनी पिचकारियाँ छूट पड़ीं और वो अपनी दृष्टि ऊपर नीले - चमकीले आकाश में जमाये रही - - - जहाँ उसके प्यार के बिखरे घोसले का तिनका - तिनका फिर से इकठ्ठा हो रहा था . बड़े खूबसूरत आकार में .
चंचल ने पायल का माथा चूमकर कहा -- " मुझे माफ़ कर दो पायल . मैंने तुमको बहुत सताया . "
मगर पायल ने कुछ भी न सुना . वो तो चंचल के सीने से सटी हुई एक नई ज़िन्दगी के सुनहरे सपने बुनती हुई खुशियों के समन्दर में हिलोरें ले रही थी . अब उसका मुरझाया हुआ चेहरा ऐसे खिल उठा था , जैसे किसी सूख रहे पौधे को पानी मिल गया हो .

[34]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 10:48 PM   #37
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

( 2 8 )

पायल से विवाह हेतु चंचल के राजी हो जाने का समाचार गुलशन को मिल चुका था और वह ठीक से समझ नहीं पा रहा था कि यह समाचार उसके लिए सुखद है या दुखद . काफी माथा - पच्ची के पश्चात उसने ऐसी दुविधा के विशेष क्षणों हेतु सर्वोत्तम तरीका अपनाते हुए तटस्थ भाव से सब कुछ ईश्वर के हाथ छोड़ दिया और अपने उदास कमरे में बैठा अपने भावी जीवन की रूप रेखा तैयार करने लगा .
आज न जाने क्यों उसके तन - मन में यह बात बार - बार और बड़ी जोर - जोर से कुलबुला रही थी कि घरनी बिन घर भूत का डेरा . आज उसे अपना ही घर भांय - भांय करता नजर आ रहा था . उसकी इच्छा हो रही थी कि उसे भी अपना घर अब बसा ही लेना चाहिये . गेसू उसे कितना चाहती है - - - वह भी उस समय से , जब वह कुछ भी नहीं था . खूब जानी समझी लड़की है . बुरे दिनों की अच्छी प्रमाणिक संगिनी . सुघढ़ - सफल पत्नी के लगभग सभी गुणों से युक्त है . हाँ - - - निश्चित ही यही चयन सर्वोत्तम रहेगा . आज ही जाकर गेसू को अपने निर्णय से अवगत कराकर आश्चर्य चकित कर दूंगा . ख़ुशी से गदगद हो उठेगी वह तो .
तभी गेसू उसके कमरे में दाखिल हुई . लगता है उसकी उम्र बहुत लम्बी होगी . तभी तो याद करते ही आ धमकी थी . ख़ुशी से चहकते हुए गुलशन ने उसे हाथों हाथ लिया .
थोड़ी देर तक औपचारिक बातचीत करते रहने के पश्चात अचानक गेसू बन्दूक की तरह दग पड़ी -- " दोस्त ! पिताजी ने मेरी शादी तय कर दी है . उनका कहना है कि चंचल - पायल के साथ - साथ मेरे भी हाथ पीले कर देंगे . "
उसकी बात की चोट से गुलशन की सारी सोच ही जैसे छितरा गयी . मानो पहाड़ टूट पड़ा हो उस पर . उसका तो चेहरा पीला पड़ गया . वह चौंक कर बोला -- " और तुमने हाँ कर दी ? "
" क्या करती ! चाहती तो बहुत थी कि मेरी शादी तुमसे ही हो - - - प्रयास भी कुछ कम नहीं किये - - - मगर तुम्हारी ढुल मुल नीति के कारण मुझे पिताजी की बात माननी ही पड़ी . गुलशन ! मेरे दोस्त !! इधर बीच मैं अनुभव कर रही थी कि मेरे लिए तुम्हारे इंतज़ार की मोमबत्ती अधिक दिनों तक चलने - जलने वाली नहीं . लौ बुझने से पहले मैं अपना रास्ता ढूंढ लेना चाहती थी . "
गुलशन को तो जैसे काठ ही मार गया था .
गेसू कहती रही -- " और चारा भी क्या था ! ये तो तुम जानते ही हो कि औरत इन्तज़ार कर सकती है , उसकी जवानी नहीं . और जीने के लिए कोई स्थायी सहारा तो चाहिये ही . आखिर कब तक तुम्हारा इन्तज़ार करते - करते अपनी उम्र को घुन लगाती . उम्र गुज़र जाने के बाद मुझे कौन पूछता ! "
गेसू इतना कह गयी - - - मगर गुलशन तो कुछ और ही सोच रहा था . उसके चुप हो जाने पर उसने कहा -- " गेसू ! "
" क्या ? "
" एक बात पूछूं ? "
" पूछो . "
" आदमी जिस मकान में रहने की तमन्ना करे , उसकी छत अगर गिर जाये , तो क्या दूसरी छत नहीं डाली जा सकती ? "
" हाँ - हाँ - - - क्यों नहीं ! जरूर डाली जा सकती है दूसरी छत . "
" तो क्या - - - तुम दूसरी छत डालने में मेरी मदद करोगी ? '
इतना कहते - कहते हवा से डरे दीपक की लौ की तरह गुलशन की मार्मिक आवाज़ काँप उठी और गेसू उसकी औचक बातों का अर्थ निकाल उसे आठवें आश्चर्य की तरह भौचक देखने लगी . गेसू ने कुछ कहना भी चाहा मगर आवाज़ दगाबाजी कर गयी . ये वो क्षण था , जब शब्दों की संपत्ति समाप्त हो जाती है और सशक्त भाषा अशक्त होकर मौन हो जाती है .
गेसू को लग रहा था , जैसे अचानक उसके चारों ओर एक साथ हज़ारों फुलझड़ियाँ और पटाखे फूट पड़े हों . जैसे सैकड़ों झरने एक साथ गुनगुना उठे हों . जैसे समूचा आर्केस्ट्रा उफान पर आ पहुंचा हो . उसका तन - मन खुशियों के नगमें अलापने लगा और उसकी तेज़ साँसे साज बनकर झंकृत सी होने लगीं .
एक बार तो उसे गुलशन की बात पर यकीन ही नहीं हुआ . मगर फिर करना ही पड़ा . क्योंकि यह दिन पहली अप्रैल का नहीं था और न ही फागुन का महीना था , जो इस तरह ठिठोली की जाय .
गुलशन की तरफ देखने पर , जिस क्षण उससे आँखें चार हुईं - - - तो उसने उन कुछ क्षणों में उतना कुछ सोच डाला , जितना की मनुष्य पूरी जिंदगी में करता है . उसने आँखों ही आँखों में गुलशन द्वारा प्रस्तावित संधि - पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये .
" मैं तुम्हारी हूँ गुलशन ! तुम्हारी . " आखिर खुशियों में आकंठ डूबी बाईस वर्ष की भरपूर जवानी बोल पड़ी -- " मुझे विश्वास नहीं हो रहा मेरे दोस्त , कि मई की ये गर्म शाम अपने दहकते हुए दामन में महकते हुए इंद्र धनुषी फूलों के ढेर भी लेकर आ सकती है . "
इतना सुनते ही गुलशन ने गेसू को गले लगाकर उसका मखमली मुंह चूम लिया और उसे लगा जैसे उसने किसी ताज़ा खिले गुलाब पर अपने होठ रख दिये हों . जबकि गेसू की कजराई पलकें मादक होकर उठीं और फिर लड़खड़ाकर झुक गयीं , मानो कोई दुल्हन सुहाग - सेज पर शर्मा रही हो .
गुलशन ने गेसू के चेहरे को अपने हाथों में लेकर आज पहली बार उसे ऊपर से नीचे तक एक विशेष नज़र से सिर्फ देखने के लिए देखा . बल्कि यूँ कहें कि उसकी आँखों ने गेसू के सम्पूर्ण शरीर को छुआ तो उसने अनुभव किया कि दुनिया की सबसे नरम और सोंधी मिट्टी से निर्मित गेसू की सम्मोहक आँखों में बंगाल का जादू और अंगों में राजस्थानी कसाव है . उसकी रंगत कश्मीर की और स्वास्थ पंजाब का है . उसमे गोवा की अल्लढ़ता और हिमांचली सरलता है . उसके चेहरे में सिक्किमी युवतियों सी अपील और बदन में महाराष्ट्रियन मछेरिनों जैसा लोच है . संक्षेप में वह काया से कामिनी , महक से पद्मिनी और कंठ से रागिनी है .
उसकी इस कवितामय सुन्दरता पर मुग्ध होकर गुलशन बोला -- " गेसू ! जानती हो - - - आज तुम मुझे कैसी लग रही हो ? "
" तुम ही बताओ ? "
" बेहद आकर्षक और कीमती औरत . " गुलशन ने उसका माथा चूमकर मुस्कराते हुए कहा .
गेसू भी हंसकर बोली -- " दोस्त ! ज़रुरत के वक्त औरत ही क्या - - - हर चीज़ आकर्षक और कीमती हो जाती है . "
इसके बाद गेसू ने उसकी बाहों से परे हटकर कहा -- " गुलशन ! मुझे लगता है - - - अब तुम्हें अनुभव हो चुका है कि पहले भावुकता और जल्दबाजी में आकर तुमने अदूरदर्शिता से काम लिया था - - - और अब तुम्हारा ये ख़याल दृढ़ हो चला है कि संसार में केवल भावुकता की बुनियाद पर आधारित प्रेम कभी सफल नहीं हो सकता . शायद तुम्हारा ये भ्रम भी दूर हो चुका है कि केवल प्रथम प्रेम ही सच्चा प्रेम होता है . "
" हाँ गेसू - - - हाँ . तुमने और समय ने मिलकर मुझे ये अनुभव करा दिया कि प्रेम को व्यक्ति या वक्त नहीं बाँध सकते और कोई जरूरी नहीं कि पहला प्रेम ही अंतिम और सच्चा प्रेम हो - - - बाद का प्रेम समझौता मात्र . अब मैं भली - भांति अनुभव कर रहा हूँ कि प्रथम प्रेम नासमझी भी हो सकता है . गेसू ! सच में तुम धन्यवाद की पात्र हो , क्योंकि तुमने मेरे अव्यवस्थित और भटके हुए विचारों को व्यवस्था और उचित दिशा दी . "
" अच्छा - - - एक बात बताओ दोस्त . मेरी शादी दूसरी जगह तय होने की बात जानकार क्या तुम्हें ऐसा अनुभव हुआ था कि तुम मुझसे दूर रहकर अधूरे रह जाओगे ! ठीक से जी न सकोगे ? "
" हाँ ! बिलकुल यही लगा था . बल्कि एकबारगी तो ऐसा लगा , जैसे मैं मर ही जाऊंगा , "
" धत - - - मरें तुम्हारे दुश्मन . अभी तो तुम्हारी उम्र और काया ऐसीं है कि तुम पर अनेकों मर सकती हैं . इसी भावना को - - - इसी एहसास को प्रेम कहते हैं गुलशन . यही प्यार है . चाहे यह पहला हो या फिर दूसरा . "
गुलशन चुप रहा .
अचानक गेसू ने गंभीर होकर पूछा -- " दोस्त ! सोचती हूँ - - - उस व्यक्ति के दिल पर क्या बीतेगी , जिससे मेरा रिश्ता तय हो चुका है . तुमसे शादी कर लेने पर उस बेचारे को तो बहुत दुःख होगा . "
" हाँ - - - उसे दुःख तो जरूर होगा , मगर बहुत थोड़ा . क्योंकि अभी तुम्हारे और उसके रिश्तों में प्रगाढ़ता नहीं है . और दुःख के आधिक्य का सम्बन्ध रिश्तों की प्रगाढ़ता से है . जबकि तुम्हारी व मेरी शादी हो जाने पर मुझे और तुम्हें - - - दोनों को ही बहुत अधिक ख़ुशी होगी . इस प्रकार - - - होने वाले कुल दुःख की अपेक्षा , कुल सुख की मात्रा बढ़ेगी . अंततः कुल सामाजिक कल्याण में वृद्धि ही होगी . वैसे भी वह व्यक्ति तो ख़ुशी के साथ कहीं और भी शादी कर सकता है , लेकिन मैं - - - . "
" बस - - - दोस्त बस . " गेसू ने जोर से हंसकर उसकी बात काटी और बोली -- " अब बस भी करो . यहाँ गणित की कक्षा नहीं चल रही - - - और न ही समाज शास्त्र की . अपने हक़ में आदमी पता नहीं कहाँ - कहाँ से तर्क तोड़कर ले आता है . "
उसकी सच्ची बात सुनकर गुलशन सचमुच झेंप गया .
गेसू मुस्कराकर पुनः बोली -- " दोस्त ! एक बात कहूं ? "
" कहो न . "
" मैं तुमसे झूठ बोली थी . " वह हंस दी .
गुलशन ने चौंककर पूछा -- " कब ! क्या ? "
" अभी थोड़ी देर पहले - - - जो मैंने अपनी शादी तय होने की बात बतायी थी , वह सरासर गप्प थी . " वह हंसती रही .
गुलशन आँखें फाड़कर बोला -- " स s s s च ? "
" हाँ - - - सच . वास्तव में - - - मैं वो निश्छल झूठ बोलकर अपने प्रति तुम्हारे मन के भाव जानना चाहती थी - - - और वो मैंने जान लिए . पगलू ! मेरी शादी - वादी थोड़े ही तय हुई थी . "
" अच्छा s s ! तो ये बात है . " उसने राहत की सांस ली .
" और नहीं तो क्या ! क्या तुम समझते हो कि मैंने जिसकी बुरे वक्त में अच्छी पहचान की , अच्छे समय में उसे छुट्टा छोड़ देने की बेवकूफी करती !! वैसे तुम्हारी मौन स्वीकृति तो मुझे उसी दिन मिल गयी थी , जब अपनी बीमारी के वक्त तुमने मुझे आलिंगनबद्ध किया था - - - लेकिन फिर भी मैं चाहती थी कि तुम यह बात अपने मुंह से जल्दी से जल्दी कहो . "
" और यह बात अंततः तुमने मुझसे कहलवाकर ही छोड़ी . : इतना कहकर हौले से हँसते हुए गुलशन ने गेसू के सिर पर एक प्यार भरी चपत जड़कर कहा -- " यकीन मानो गेसू ! आज मैं तुमसे शादी का प्रस्ताव स्वयं रखने वाला था किन्तु तुमने तो पहले ही स्वांग रच दिया . मानना पड़ेगा - - - औरतें वाकई बड़ी नौटंकी होती हैं . मगर ये तो बताओ - - - तुम्हें यह बात मेरे मुंह से कबुलवाने की ऐसी भी क्या जल्दी आन पड़ी ? "
" ये बात शायद तुम नहीं समझोगे . ये बात और इसकी जल्द जरूरत कोई लड़की पक्ष ही बेहतर समझ सकता है . "
" क्या मतलब ? '
"मतलब ये मेरे भोले शंकर - - - कि अब तुम्हें एक सम्मानित नौकरी मिल गयी है और ये खबर फैलते ही अनेकों लड़की वाले , जो पहले तुम्हारी तरफ नज़र उठाकर देखते भी नहीं थे , अब मधुमक्खियों की तरह तुम्हें घेरकर नाना प्रकार और प्रलोभनों से तुम्हारी मति फेरकर तुम्हें मुझसे दूर कर सकते हैं . "
" अव्वल तो इसमें कोई सफल होगा नहीं - - - और एक बार को मान लो कि यदि ऐसा हो भी जाए तो तो तुम्हें अच्छे कमाऊ लड़कों की क्या कमी ! "
" वो तो ठीक है . मेरी शिक्षा सहित मेरे परिवार का जो सामाजिक स्तर है - - - उसके हिसाब से तो मुझे तुम्हारे समकक्ष अथवा डॉक्टर - इन्जीनियर वर कभी भी आसानी से मिल सकता है . लेकिन दिल की गहराइयों तक असलियत ये है कि मैं यथासंभव तुम्हें खोने का कोई खतरा उठाना नहीं चाहती . "
" क्यों ? "
" क्योंकि तुम थोड़े से लल्लू और ढेर से नासमझ हो - - - और ऐसे लड़कों से टांका भिड़ाने से उनका शादी के बाद मनमाफिक संचालन करना काफी आसान रहता है . " इतना कहकर वह जोर से हँसते हुए बोली -- " पगलू ! हर बात न तो पूछी जाती है और न ही समझायी जा सकती है . थोड़ा - बहुत तो महसूस करने पर भी छोड़ देना चाहिये . समझे ? "
" समझा . "
" सुनाओ - - - क्या समझे ? "
वह मुंह पर कृतिम डरी मुस्कान लाकर बोला -- " यही - - - कि शादी के बाद , लगता है कि तुम मुझे दाब कर रखने की कोशिश करोगी . "
" तो इसमें कौन सी नई बात होगी ! " वह हंसकर अधिकार पूर्वक बोली -- " एक मशवरा अभी से गाँठ बाँध लो - - - अच्छे - अच्छे दारा सिंह भी घर - दाम्पत्य में शान्ति बनाये रखने के वास्ते अपनी बीबी से दबकर रहने की तरकीब अपनाते हैं . "
उसकी बिन मांगी नेक सलाह पर गुलशन अपनी तेज हंसी का फव्वारा न रोक सका . गेसू तो पहले से ही हंस रही थी .
अचानक गुलशन ने गंभीर होकर पूछा -- " गेसू ! प्रोफ़ेसर साहब क्या सहमत होंगे - - - हमारी शादी के लिये ? "
" क्यों नहीं ! उन्हें क्या आपत्ति होगी भला !! मेरी ख़ुशी ही उनकी ख़ुशी है . इन्कार करने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं दिखती . मेरे पिताजी तो वैसे भी तुम्हारी काफी इज्जत करते हैं . और फिर - - - भला ऑफिसर लड़का किसे काटता है ! ये क्यों भूलते हो दोस्त - - - कि अब तुम एक अधिकारी हो . "
" हाँ गेसू ! मुझे ज्यादा अच्छे से ये भी याद है कि तुम मुझे तब से चाहती हो , जब मैं कुछ भी नहीं था . बस - - - मलाल है तो सिर्फ इतना कि तुम्हें समझने में मुझे थोड़ी देर हुई . "
" इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं - - - क्योंकि आँखों के बहुत अधिक नज़दीक रखी किताब की लिखावट थोड़ी देर से ही समझ आती है . खैर - - - छोड़ो इन बातों को . आज एक वादा करो . "
" क्या ? "
" ये - - - कि अब तुम कभी शराब न पियोगे . "
" अरे - - - ये कौन सी असंभव बात है . चलो वादा रहा - - - अब कभी भी बोतल वाली शराब न पियूंगा . अब दूसरी शराब जो मिल गयी है . "
" कौन ? '
" तुम . तुम क्या शराब से कोई कम नशीली हो ! खूबसूरत लड़कियों का साथ अपने आप में एक नशा होता है . " उसने गेसू के गाल पर एक थपकी मारी .
गेसू शरमाकर बोली -- " धत . "
और इसी के साथ अचानक जैसे गेसू को कुछ ध्यान आ गया . उसने पूछा -- " ये बताओ ! क्या नौकरी से सम्बंधित तुम्हारी कोई ट्रेनिंग भी होगी ? "
" हाँ . एक खूबसूरत पहाड़ी इलाके में . अगले महीने जाना होगा . "
" स s s s च ! " गेसू ख़ुशी और मजाक के सम्मिलित स्वर में बोली -- " तब तो जल्दी से शादी करके कुछ दिनों के लिये मुझे भी अपने साथ लेते चलना . दोस्त ! शायद दयालु भगवान की भी यही मर्ज़ी है कि हम दोनों का हनीमून खूबसूरत वादियों में जोरदार और खूबसूरत ही मने . "
" हो बड़ी बदमाश . " कहकर गुलशन ने गेसू को अपनी बांहों में समेट लिया और बोला -- " डियर ! सुना है - - - उस स्थान पर प्रकृति ने अपने जलवे बिखेर रखे हैं . "
" गेसू ने गुलशन की आँखों में गहरे झांककर हौले से कहा -- " डार्लिंग ! जलवों की क्या बात करते हो - - - वो तो तुम्हारे भाग्य से भगवान ने मुझे भी कुछ कम नहीं सौंपे . ज़रा शादी हो जाने दो - - - तो एक - एक करके ऐसे - ऐसे जलवे दिखाऊंगी कि तुम्हारी आँखें चुंधिया जायेंगी और तबीयत बाग़ - बाग़ हो उठेगी . "
" तुम भी न , बंद गोभी की तरह पर्त दर पर्त खुल रही हो . देखता हूँ - - - तुम दिन - ब - दिन बहुत ढीठ होती जा रही हो . जब देखो - - - बातों के पंख लगाए उड़ती फिरती हो . शादी के बाद एक - एक करके तुम्हारे सारे पंख न कतर डाले - - - तो कहना . "
" उस जायकेदार जालिम घड़ी का तो सभी लड़कियों को हर घड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है जॉनी . "
" वह खिलखिला कर हंस पड़ी . गुलशन के होठों के कोने पर भी हंसी का एक नन्हा सा जुगनू झिलमिला उठा .

( समाप्त )


[35]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote
Old 05-02-2012, 11:07 PM   #38
Dark Saint Alaick
Super Moderator
 
Dark Saint Alaick's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182
Dark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

अद्भुत कविवर ! आपका गद्यकार रूप फोरम पर देख कर अतीव आनंदानुभूति हुई ! उपन्यास पर प्रतिक्रिया तनिक और पढने के बाद व्यक्त करूंगा ! यह कृति फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए आपका आभारी हूं !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
Dark Saint Alaick is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2012, 07:07 PM   #39
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

मित्र आपने जो लिखा है वो वाकई काविले तारीफ है
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2012, 07:21 PM   #40
abhisays
Administrator
 
abhisays's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Location: Bangalore
Posts: 16,772
Rep Power: 137
abhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to abhisays
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

लाजवाब.. बहुत ही बढ़िया...
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
abhisays is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Thread Tools
Display Modes

Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:59 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.